भारत में शिक्षा नीति के तहत तीन-भाषा फार्मूला लागू किया गया है, जिससे छात्रों को अलग-अलग भाषाएँ सीखने का मौका मिले और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया जा सके। लेकिन तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कई छात्रों के लिए यह नियम मुश्किलें पैदा कर रहा है।
तीन–भाषा फार्मूला क्या है?
- इसमें छात्रों को अपनी मातृभाषा (पहली भाषा) और अंग्रेजी (दूसरी भाषा) के अलावा एक और भाषा (तीसरी भाषा) सीखनी होती है।
- इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लागू किया गया, ताकि बहुभाषिकता को बढ़ावा मिले और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया जा सके।
तीन–भाषा नीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- 1948-49: राधाकृष्णन आयोग ने उच्च शिक्षा स्तर पर तीन भाषाओं को पढ़ाने की वकालत की।
- 1965: जब हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा बनाया जाना था, तब तमिलनाडु में हिंदी-विरोधी आंदोलन तेज़ हुआ।
- 1968: केंद्र ने तीन-भाषा नीति को अपनाया, लेकिन तमिलनाडु ने इसे लागू नहीं किया।
- 2020: नई शिक्षा नीति में इसे फिर से लागू करने की कोशिश की गई, जिससे तमिलनाडु में फिर से विरोध शुरू हो गया।
तीन–भाषा फार्मूला के प्रभाव
- सिर्फ तीसरी भाषा सीखने से रोज़गार के बेहतर अवसर नहीं मिलते, बल्कि अंग्रेजी और तकनीकी ज्ञान ज़रूरी होते हैं।
निजी स्कूलों के छात्रों को अतिरिक्त ट्यूशन मिलती है, जबकि सरकारी स्कूलों के छात्र केवल स्कूल की पढ़ाई पर निर्भर होते हैं। निजी स्कूल के छात्र हिंदी के लिए अलग से कोचिंग ले सकते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए यह संभव नहीं है। - तीसरी भाषा जोड़ने से गणित, विज्ञान और साक्षरता जैसे मुख्य विषयों पर ध्यान कम हो सकता है। उदाहरण: ASER 2024 रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के 88% कक्षा 3 के छात्र बुनियादी साक्षरता में कमजोर हैं, तीसरी भाषा सीखने से यह अंतर और बढ़ सकता है।
तमिलनाडु के स्कूलों में बुनियादी साक्षरता का स्तर
- एएसईआर (ASER) 2024 सर्वेक्षण के अनुसार, तमिलनाडु के कक्षा 3 के 88% छात्र बुनियादी साक्षरता कौशल में पिछड़ रहे हैं। एक अतिरिक्त भाषा जोड़ने से उनके सीखने की प्रक्रिया और अधिक कठिन हो सकती है। 55% नामांकित छात्र पहले से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।
- तमिलनाडु के सार्वजनिक स्कूलों में तीन-भाषा फार्मूला छात्रों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहा है और उनकी सीखने की प्रक्रिया को जटिल बनाता जा रहा है। इस नीति में लचीला लाना और शिक्षण गुणवत्ता पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है, जिससे छात्रों को समग्र विकास और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सहायता मिल सके।
गुणवत्तापूर्ण भाषा हेतु संसाधनों की कमी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का तर्क है कि तीन भाषाएँ सीखने से संज्ञानात्मक क्षमता, रोजगार के अवसर और राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है। जबकि एआई (AI) और डिजिटल अनुवाद तकनीकों के विकास ने कई भाषाओं की जानकारी की अनिवार्यता को कम कर दिया है। शोध बताते हैं कि मातृभाषा में ठोस नींव बनाना बहुभाषी होने से अधिक फायदेमंद है।
तमिलनाडु में हिंदी विरोध क्यों?
- 1937 में पहली बार विरोध: मद्रास में सी. राजगोपालाचारी सरकार ने हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य किया, लेकिन भारी विरोध के बाद आदेश वापस लेना पड़ा।
- 1965 में बड़ा आंदोलन: जब हिंदी को देश की एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव आया, तो राज्य में हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसमें कई लोगों की जान गई।
- 1968 में तमिलनाडु की अलग नीति: तब से राज्य केवल तमिल और अंग्रेजी की दो-भाषा नीति का पालन कर रहा है।
- DMK और अन्य क्षेत्रीय दल हिंदी को “उत्तर भारत की भाषा” मानते हैं और इसे “द्रविड़ संस्कृति” के लिए खतरा मानते हैं।
तमिलनाडु की आपत्ति: हिंदी की “बैक डोर एंट्री“?
तमिलनाडु सरकार का मानना है कि तीन-भाषा नीति के कारण हिंदी को एक अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया जा सकता है, जिससे राज्य की मूल भाषा तमिल के महत्व को कम किया जा सकता है।
- समग्र शिक्षा अभियान के तहत फंड रोके जाने का आरोप:
तमिलनाडु ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने 573 करोड़ रुपये की राशि रोक दी क्योंकि राज्य ने PM श्री योजना के तहत मॉडल स्कूल स्थापित करने से इनकार कर दिया था। - तीन भाषा नीति को अस्वीकार करने का रुख:
तमिलनाडु पहले से ही दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेज़ी) का पालन करता है और तीन-भाषा नीति को स्वीकार करने से इंकार कर चुका है।
केंद्र का क्या कहना है?
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि NEP 2020 भाषाई आज़ादी और विकल्पों पर आधारित है, और किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।
- नई शिक्षा नीति के तहत तीन भाषाओं का चयन राज्यों और छात्रों द्वारा किया जाएगा, लेकिन कम से कम दो भाषाएं भारतीय होनी चाहिए।
- शिक्षा समवर्ती सूची में आती है, जिससे राज्य और केंद्र दोनों को नीतियां बनाने का अधिकार है।
क्या कहती है नई शिक्षा नीति 2020?
नई शिक्षा नीति 2020 में तीन-भाषा फॉर्मूले को दोबारा प्रस्तुत किया गया है, जो पहले 1968 में कोठारी आयोग की सिफारिशों पर आधारित था। इसके तहत:
- हिंदी भाषी राज्यों में – अंग्रेज़ी और किसी दक्षिण भारतीय भाषा को पढ़ाने की अनुशंसा की गई।
- गैर-हिंदी भाषी राज्यों में – हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ किसी क्षेत्रीय भाषा को शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया।
- शिक्षा और शिक्षकों की भर्ती में क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की बात कही गई।
समाधान
- तीसरी भाषा को अनिवार्य न करें, इसे वैकल्पिक रखा जाए, ताकि छात्र अपनी जरूरत के अनुसार भाषा चुन सकें।
- कौशल को मजबूत करें, तमिल और अंग्रेजी पर ध्यान केंद्रित किया जाए, ताकि छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकें।
- स्थान के हिसाब से भाषा नीति लागू करें, भाषा नीति को स्थानीय जरूरतों के अनुसार लागू किया जाए।
- सभी छात्रों को समान संसाधन उपलब्ध कराएँ, यदि तीसरी भाषा पढ़ाई जाती है, तो शिक्षकों और किताबों की उचित व्यवस्था की जाए।
क्या शिक्षा के नाम पर राजनीति हो रही है?
तमिलनाडु ने शिक्षा के कई मानकों में बेहतर प्रदर्शन किया है, जैसे कि उच्च नामांकन दर और कम ड्रॉपआउट रेट। ऐसे में त्रिभाषा नीति को लागू करने के लिए राज्य पर दबाव डालना केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव को और बढ़ा सकता है। तमिलनाडु केंद्र से फंड जारी करने की मांग कर रहा है, जबकि केंद्र सरकार त्रिभाषा नीति को लागू करने पर जोर दे रही है। दोनों पक्षों के बीच सहमति और लचीलापन ही इस समस्या का समाधान हो सकता है।
निष्कर्ष
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सबसे जरूरी चीज़ उनकी मूल शिक्षा को मजबूत करना है, ताकि वे भविष्य में प्रतियोगी परीक्षाओं और रोज़गार के अवसरों के लिए तैयार हो सकें। तीन-भाषा फार्मूले को लचीला बनाना और अंग्रेजी एवं मातृभाषा पर ध्यान देना एक बेहतर समाधान हो सकता है।
भाषा सम्बंधित Facts
- अनुच्छेद 343: हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
- अनुच्छेद 344: हर 10 वर्ष में राजभाषा आयोग का गठन किया जाएगा।
- अनुच्छेद 345: राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषा को राजकीय भाषा बना सकते हैं।
- अनुच्छेद 351: हिंदी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं के साथ मिलाकर किया जाएगा।
- भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ (अनुसूची 8)
- मूल रूप से 14 भाषाएँ थीं, वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं।
- संविधान में जोड़ी गई नई भाषाएँ: 1971: सिंधी, 1992: कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, 2003: संथाली, मैथिली, डोगरी, बोडो
- भारत में कई राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर हुआ है। धार आयोग (Dhar Commission) – 1948, जे. वी. पी. समिति (JVP Committee) – 1949, फजल अली आयोग (States Reorganization Commission) – 1953-1955
- पहला भाषाई राज्य: आंध्र प्रदेश (1953)
- सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा: हिंदी (44% लोग हिंदी बोलते हैं)
- संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ: वर्तमान में 22 भाषाएँ
- तमिलनाडु और भाषा विवाद: तमिलनाडु ने हिंदी थोपने का विरोध किया और केवल दो-भाषा नीति अपनाई।