Great Debates अंतरराष्ट्रीय संबंधों (International Relations) के सिद्धांतों में एक महत्वपूर्ण विषय है। अंतरराष्ट्रीय संबंध (International Relations – IR) के इतिहास में अब तक चार ग्रेट डिबेट्स हुए है। IR में “ग्रेट डिबेट्स” ने उस बौद्धिक संघर्ष को दर्शाया है जिसमें विद्वानों और विचारधाराओं के बीच यह तय करने को लेकर बहस हुई कि वैश्विक राजनीति को कैसे समझा जाए। ये बहसें किसी एक सिद्धांत की जीत या समाप्ति से अधिक, IR को विकसित करने, परिपक्व बनाने और विविध दृष्टिकोणों को स्वीकारने की दिशा में अग्रसर थीं। इससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में जटिलता और बारीकी बढ़ती गयी। विद्धार्थियो को अक्सर इन Great Debates की बारीकियों को समझने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, नीचे इन Great Debates को आसान भाषा में समझाया गया है।
पहला डिबेट: यथार्थवाद बनाम उदारवाद (Realism vs. Liberalism)
- कालखंड: प्रथम विश्व युद्ध के बाद (1919 से)
- कारण: लीग ऑफ नेशंस के निर्माण के साथ यह विश्वास पनपा कि संस्थाओं के ज़रिए युद्ध रोका जा सकता है। पर यथार्थवादियों ने इसे “आदर्शवादी” और अव्यावहारिक कहा।
- युद्ध की वास्तविकताओं और शक्ति संघर्ष ने आदर्शवादी सोच को चुनौती दी।
- E.H. Carr और Hans Morgenthau ने यथार्थवाद को एक व्यवहारिक और शक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण के रूप में स्थापित किया।
- समाप्ति का कारण: द्वितीय विश्व युद्ध की विफलता ने उदारवाद को झटका दिया और यथार्थवाद को श्रेष्ठ माना गया।
दूसरा डिबेट: पारंपरिकता बनाम व्यवहारवाद (Traditionalism vs. Behaviouralism)
- कालखंड: 1960 के दशक
- कारण: अमेरिका में वैज्ञानिक पद्धति (positivism) के आधार पर व्यवहारवादी यह मानने लगे कि केवल मापनीय और परीक्षण योग्य चीज़ें ही “ज्ञान” हैं।
- व्यवहारवादी (जैसे मोर्टन कापलान) चाहते थे कि IR को प्राकृतिक विज्ञानों की तरह मापा और परीक्षण किया जाए।
- पारंपरिकवादी (जैसे हेडली बुल) मानते थे कि IR की गहराइयों को व्याख्यात्मक दृष्टिकोण से ही समझा जा सकता है।
- समाप्ति का कारण: व्यवहारवाद अकादमिक रूप से प्रभावी हुआ लेकिन पारंपरिक दृष्टिकोण पूरी तरह समाप्त नहीं हुए, यह बहस अनुसंधान पद्धति की विविधता को स्वीकारने में बदल गई।
तीसरा डिबेट: नव–यथार्थवाद बनाम नव–उदारवाद (Neorealism vs. Neoliberalism)
- कालखंड: 1970–80 के दशक
- कारण: दोनों विचारधाराएं अब संरचनात्मक (systemic) विश्लेषण पर केंद्रित थीं और यह मानने लगीं कि राज्य सहयोग कर सकते हैं, पर विभिन्न कारणों से।
- Kenneth Waltz ने Neorealism को “संरचनात्मक यथार्थवाद” के रूप में पेश किया – यानी राज्यों का व्यवहार उनकी स्थिति पर आधारित होता है, न कि उनके स्वभाव पर।
- Keohane और Nye ने Neoliberalism के ज़रिए यह दिखाया कि संस्थान और पारस्परिक निर्भरता (interdependence) राज्यों के व्यवहार को प्रभावित करती है।
- समाप्ति का कारण: दोनों के बीच “Neo-Neo Synthesis” हुआ – जिसमें दोनों के तत्वों को स्वीकार करते हुए सह-अस्तित्व संभव हुआ।
चौथा डिबेट: तर्कवाद बनाम परावर्तितवाद (Rationalism vs. Reflectivism)
- कालखंड: 1980 के दशक से अब तक
- कारण: आलोचनात्मक सिद्धांतों (जैसे नारीवाद, उत्तर-आधुनिकता, सामाजिक संरचनावाद) ने IR की पारंपरिक, मापन योग्य विश्लेषण पद्धति को चुनौती दी।
- तर्कवादी (जैसे Realists और Liberals) Positivism आधारित हैं – वे परीक्षण योग्य तथ्यों को महत्व देते हैं।
- परावर्तितवादी (Reflectivists) जैसे Constructivists, Feminists, Post-modernists मूल्य आधारित और व्याख्यात्मक विधियों का प्रयोग करते हैं।
- यह बहस ज्ञान की प्रकृति और सामाजिक निर्माण के सिद्धांतों को IR में शामिल करने का प्रयास है।
- अभी समाप्त नहीं हुआ है: लेकिन अब यह बहस एक ध्रुवीय विरोध के बजाय एक स्पेक्ट्रम या धुरी पर बदल गई है, जहाँ लोग बीच के दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं।
ग्रेट डिबेट्स का अंत क्या है?
अंत का मतलब यहां किसी बहस की अप्रासंगिकता या उससे आगे बढ़ जाना है–न कि विचारधाराओं का अंत। धीरे-धीरे ये बहसें एक-दूसरे में समाहित हो गईं और एक “सिंथेसिस” (synthesis – समन्वय) की ओर बढ़ गईं। दरअसल यह IR के आत्म-निर्माण और परिपक्वता का प्रमाण है। यह अंत किसी विचारधारा की मृत्यु नहीं बल्कि विविध दृष्टिकोणों के बीच सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता का संकेत है। आज, अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन बहस की जगह संवाद, विविधता और सहयोग पर केंद्रित हो गया है।
- सिद्धांतों का समन्वय (Synthesis): जैसे-जैसे डिबेट्स आगे बढ़ीं, सिद्धांतों ने एक-दूसरे से कुछ तत्व ग्रहण किए और नई मिश्रित दृष्टिकोण उभरे।
- वैज्ञानिक यथार्थवाद और पद्धति विविधता: अब गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों तरीकों को मान्यता दी जा रही है जिससे बहस की धार कुंद हो गई।
- अति विशिष्टता और व्यावहारिकता का संतुलन: बहसें अब नीति-निर्माण या सामाजिक परिवर्तन की दिशा में अधिक केंद्रित हैं, न कि केवल सिद्धांत की श्रेष्ठता पर।
IR सिद्धांतों के उदय के कारण
- प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध: युद्धों ने आदर्शवादी सोच को झटका दिया, यथार्थवाद को प्रमुखता मिली।
- शीत युद्ध (Cold War): शक्ति संतुलन और वैचारिक विभाजन ने नई थ्योरीज जैसे नव-यथार्थवाद को जन्म दिया।
- अन्य एक्टरों का उदय: NGO, अंतरराष्ट्रीय संगठन और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ – जिससे राष्ट्र-राज्य के बाहर भी ध्यान गया।
- अकादमिक क्रांति: व्यवहारवाद ने IR को वैज्ञानिक अध्ययन की दिशा दी।
- सामाजिक आंदोलनों और विचारधाराओं का प्रभाव: उत्तर-औपनिवेशिकता, नारीवाद, आलोचनात्मक सिद्धांत ने नए दृष्टिकोणों को जन्म दिया
निष्कर्ष
ग्रेट डिबेट्स के सिद्धांत समयानुसार उभरते और विकसित होते गए। प्रत्येक बहस ने पिछले दृष्टिकोण को चुनौती दी, और इससे नए और अधिक समावेशी सिद्धांतों का जन्म हुआ। आज IR एक बहुविध, बहु-सांस्कृतिक और बहु-विधायी क्षेत्र बन चुका है जो न केवल राज्य बल्कि समाज, संस्थानों और विचारधाराओं को भी केंद्र में रखता है।