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अमर्त्य सेन

विकास के प्रश्न को लेकर पिछली सदी में कई तरह के विचार उभरे, लेकिन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में विकास के मानदंडों और उसके मापन के तरीकों को लेकर गंभीर पुनर्विचार आरंभ हुआ। दुनिया भर में नीतियाँ प्रायः इस सोच पर आधारित थीं कि किसी देश की आर्थिक समृद्धि, विशेष तौर पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि, अपने-आप लोगों के जीवन को बेहतर बना देगी। इसी मुख्यधारा की सोच को चुनौती देने वाले विचारकों में अमर्त्य सेन का सबसे महत्वपूर्ण नाम रहा हैं, जिन्होंने असमानता, स्वतंत्रता और मानव क्षमताओं के आधार पर विकास की एक नई अवधारणा प्रस्तुत की।

अमर्त्य सेन के अनुसार असमानता का स्वरूप

अमर्त्य सेन का यह मानना है कि असमानता केवल आर्थिक संसाधनों की असमानता नहीं है, बल्कि यह एक गहरे स्तर पर लोगों की क्षमताओं (capabilities) की असमानता है।
उदाहरण के लिए, दो व्यक्ति यदि समान आय अर्जित कर रहे हों, तो भी यह आवश्यक नहीं कि उनके जीवन के विकल्प समान हों। एक व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है, शिक्षित हो सकता है, और लोकतांत्रिक संस्थाओं में भागीदारी कर सकता है—जबकि दूसरा व्यक्ति बीमार, अनपढ़ या सामाजिक रूप से वंचित हो सकता है। यह है ‘capability deprivation’ जो सेन के अनुसार, असमानता का मूल कारण है।
उनका दृष्टिकोण इस बात पर केंद्रित है कि लोगों को उनके जीवन में क्या करने और क्या बनने की वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त है। क्या वे पढ़ सकते हैं? क्या वे अपनी पसंद की नौकरी कर सकते हैं? क्या वे लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं? यदि नहीं, तो वह समाज विकासशील नहीं है, चाहे GDP जितना भी ऊँचा हो।

विकास का लक्ष्य: केवल आय वृद्धि या मानव गरिमा?

सेन ने ‘विकास’ को एक आर्थिक प्रक्रिया के बजाय एक मानवीय प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने अपनी पुस्तक Development as Freedom में यह स्पष्ट किया कि विकास का मूल लक्ष्य लोगों की स्वतंत्रताओं का विस्तार होना चाहिए।

इन स्वतंत्रताओं में पाँच प्रमुख आयाम शामिल हैं:

राजनीतिक स्वतंत्रता
आर्थिक सुविधाएँ
सामाजिक अवसर (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य)
पारदर्शिता की गारंटी
संस्थागत सुरक्षा

यह दृष्टिकोण मुख्यधारा की उस सोच से पूरी तरह अलग था, जो आर्थिक विकास को मात्र आय और उत्पादन की दर से आंकती थी।

Capability Approach: अमर्त्य सेन की मौलिक अवधारणा

Capability Approach अमर्त्य सेन द्वारा प्रतिपादित वह दार्शनिक ढांचा है, जो यह कहता है कि किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाना चाहिए कि वह क्या करने और बनने में सक्षम है।

यह दृष्टिकोण दो प्रमुख अवधारणाओं पर आधारित है:

Functionings: वे चीज़ें जो व्यक्ति वास्तव में करता है, जैसे—स्वस्थ रहना, शिक्षित होना, सामाजिक जीवन जीना।
Capabilities : वे विकल्प और संभावनाएँ जो किसी व्यक्ति को उपलब्ध हैं, ताकि वह अपनी Functionings को चुन सके।

सेन का कहना है कि कोई समाज तभी विकसित कहा जा सकता है जब उसके नागरिकों को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने की वास्तविक परिस्थितियाँ प्राप्त हों।

GDP आधारित विकास की आलोचना: एक सीमित दृष्टिकोण

अमर्त्य सेन ने पारंपरिक GDP आधारित विकास दृष्टिकोण की गहन आलोचना की। उन्होंने कहा कि GDP समाज के औसत उत्पादन और आय को तो माप सकता है, लेकिन यह नहीं दर्शाता कि समाज के सबसे गरीब, वंचित या सामाजिक रूप से बहिष्कृत वर्गों की क्या स्थिति है।

GDP की सीमाएँ निम्नलिखित हैं:

यह औसत पर आधारित होता है, जिससे अमीर और गरीब के बीच की खाई छिप जाती है।
यह शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण जैसी गैर-आर्थिक लेकिन महत्वपूर्ण बातों की अनदेखी करता है।
यह असमानता को छिपाता है और एक झूठी प्रगति का भ्रम उत्पन्न करता है।

सेन ने उदाहरण देकर समझाया कि दो देशों की GDP समान हो सकती है, लेकिन यदि एक देश में महिलाएँ अशिक्षित और कुपोषित हैं जबकि दूसरे में पूर्ण रूप से सशक्त, तो दोनों को समान रूप से विकसित नहीं कहा जा सकता।

मानव विकास सूचकांक (HDI): एक व्यावहारिक प्रतिपादन

GDP आधारित विकास मापन की सीमाओं को देखते हुए, अमर्त्य सेन और उनके सहयोगी महबूब उल हक ने मिलकर 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के लिए Human Development Index (HDI) की रचना की। इसका उद्देश्य था—विकास का एक ऐसा मापदंड प्रस्तुत करना जो लोगों के जीवन की गुणवत्ता को केंद्र में रखे।

HDI तीन मूलभूत आयामों पर आधारित है

स्वास्थ्य औसत जीवन प्रत्याशा
शिक्षा औसत स्कूली शिक्षा और संभाव्य स्कूली वर्ष
जीवन स्तर: प्रति व्यक्ति आय

 

यह सूचकांक विकास को इस रूप में देखता है कि व्यक्ति कितना स्वस्थ, शिक्षित और गरिमामय जीवन जी पा रहा है। यह एक संवेदनशील, समावेशी और नैतिक दृष्टिकोण है।

व्यवहारिक समाधान का विचार

अमर्त्य सेन के अनुसार असमानता को कम करने और एक न्यायसंगत समाज की ओर बढ़ने के लिए हमें निम्नलिखित उपायों की आवश्यकता है:

सार्वभौमिक शिक्षा प्रणाली – ताकि सभी वर्गों को समान अवसर मिलें।
स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच – विशेषतः ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में।
महिला सशक्तिकरण – जिससे सामाजिक और आर्थिक भागीदारी बढ़े।
नीतिगत पारदर्शिता – ताकि गरीब तबके का शोषण न हो।
विकास का पुनर्परिभाषण – जिसमें केवल अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि मानव गरिमा केंद्र में हो।

आलोचनाएँ और संभावनाएँ

जहाँ Capability Approach को एक नैतिक और समावेशी सिद्धांत के रूप में सराहा गया है, वहीं इसकी कुछ आलोचनाएँ भी सामने आई हैं
कुछ आलोचकों का मानना है कि यह दृष्टिकोण अत्यधिक अमूर्त है और नीति निर्माण में व्यावहारिक रूप से जटिल हो सकता है।
कुछ कहते हैं कि सेन ने capabilities को परिभाषित करने का कोई ठोस पैमाना नहीं दिया, जिससे तुलनात्मक अध्ययन कठिन हो जाता है।

फिर भी, अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि सेन का दृष्टिकोण विकास विमर्श में एक सार्वभौमिक नैतिक आधार प्रस्तुत करता है, और यह बहसों को सामाजिक न्याय की दिशा में ले जाता है।

निष्कर्ष: विकास की नई व्याख्या

अमर्त्य सेन ने यह स्थापित किया कि वास्तविक विकास का अर्थ केवल संसाधनों की वृद्धि नहीं, बल्कि मानव स्वतंत्रता, गरिमा, और विकल्पों का विस्तार है। उन्होंने असमानता को एक आर्थिक समस्या से अधिक एक न्याय और नैतिकता का प्रश्न बनाया।
आज जब दुनिया सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही है, सेन का दृष्टिकोण और अधिक प्रासंगिक हो गया है। यदि विकास को न्यायसंगत, समावेशी और मानवीय बनाना है, तो हमें GDP के भ्रम से बाहर निकलकर Capabilities, Freedoms और Dignity पर आधारित सोच अपनानी होगी।

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सुदीप्त कविराज