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अमेरिका और पाकिस्तान संबंधों का नया दौर और भारत

हाल ही में अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हुई नई ऑयल डील ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को पुनः परिभाषित करने की दिशा में संकेत दिए हैं। इस डील की घोषणा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा की गई, जिससे भारत के रणनीतिक और कूटनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में घटित हुआ है जब भारत और अमेरिका के संबंध व्यापार, रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में लगातार गहराते जा रहे हैं।

इस डील की पृष्ठभूमि में अमेरिका और पाकिस्तान के लंबे, परंतु उतार-चढ़ाव भरे संबंध मौजूद हैं। 9/11 के पश्चात पाकिस्तान अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी बन गया था, विशेषकर आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में। परंतु समय के साथ अमेरिका को यह अनुभव हुआ कि पाकिस्तान दोहरा खेल खेल रहा है। इसीलिए ट्रंप प्रशासन के पहले वर्षों में पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता में कटौती कर दी गई। इसके बाद भारत को अमेरिका की ‘इंडोपैसिफिक’नीति का प्रमुख स्तंभ माना गया, और भारत के साथ घनिष्ठ रक्षा सहयोग स्थापित किया गया।

लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा पाकिस्तान के साथ नई ऑयल डील की घोषणा ने विश्लेषकों को चौंका दिया है। ट्रंप ने इस डील को ‘महत्वपूर्ण ऊर्जा साझेदारी’ करार दिया, जो पाकिस्तान की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगी और अमेरिकी ऊर्जा कंपनियों के लिए नया बाजार खोलेगी। इसके साथ ही ट्रंप ने यह भी कहा कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया में अमेरिका का भरोसेमंद भागीदार हो सकता है। इस बयान को भारत के संदर्भ में देखा जा रहा है, क्योंकि यह भारत के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश हो सकता है कि अमेरिका विकल्पों की तलाश में है।

पाकिस्तान के पास कितना है तेल का भंडार?

 

अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन और वर्ल्डोमीटर के आंकड़ों के अनुसार 2016 तक पाकिस्तान के पास 353.5 मिलियन बैरल तेल भंडार (Pakistan Oil Reserves) था। यह आंकड़ा इस मामले में उसे वैश्विक स्तार पर 52वें नंबर पर रखता है। पाकिस्तान के पास पूरी दुनिया का केवल 0.021% ही तेल भंडार है।
जून में, पाकिस्तान की राष्ट्रीय अन्वेषण कंपनी ने सिंध प्रांत में तेल और गैस के नए भंडार मिलने का दावा किया था। राज्य के स्वामित्व वाली ऑयल एंड गैस डेवलपमेंट कंपनी ने दिसंबर की शुरुआत में खारो क्षेत्र में फकीर-1 वाइल्डकैट कुएं पर इन नए भंडारों की पहचान की।
यह खोज 4,185 मीटर की गहराई तक खुदाई करने के बाद की गई थी। पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी के हवाले से बताया गया कि इस कुएं से लोअर गोरू संरचना से प्रतिदिन 6.4 मिलियन घन फीट गैस और 55 बैरल कंडेसेट निकला।
पिछले वर्ष, पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसके समुद्री सीमाओं के भीतर तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार की खोज की गई है। पाकिस्तान का कहना था कि ये संभावित भंडार इतने बड़े पैमाने पर हैं कि इनका विकास देश के भविष्य को पूरी तरह बदल सकता है।
तीन वर्षों तक चले एक व्यापक जलपोत सर्वेक्षण, जिसे एक “मित्र देश” की सहायता प्राप्त थी, ने समुद्र के नीचे ऐसे बड़े संरचनात्मक क्षेत्र चिन्हित किए जिनमें तेल और गैस की उपस्थिति के संकेत मिले। हालांकि, ये निष्कर्ष फिलहाल अप्रमाणित हैं।

 

यह स्थिति भारत के लिए कई स्तरों पर चिंता का विषय है। पहला, यह डील अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती है। दूसरा, इससे भारत और अमेरिका के रणनीतिक गठजोड़ पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ ऐसे समझौते कर रहा हो जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा या सामरिक चिंताओं से जुड़ी हो। तीसरा, पाकिस्तान इस डील का उपयोग भारत विरोधी रणनीतियों में समर्थन के रूप में कर सकता है।

साथ ही पाकिस्तान की दृष्टि से यह डील केवल ऊर्जा आपूर्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर उसकी साख को पुनः बहाल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है,वह भी तब जब भारत पहलगाम हमले और पाकिस्तान के कनेक्शन को वैश्विक मंच पर सामने लाने का कार्य कर रहा है।आर्थिक दृष्टि से अमेरिका की यह पहल पाकिस्तान के लिए संजीवनी से कम नहीं सिद्ध होगी क्योंकि यह डील पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अन्य बहुपक्षीय संस्थाओं से मिलने वाली सहायता के लिए एक सकारात्मक वातावरण भी प्रदान कर सकती है। साथ ही, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना के तहत पाकिस्तान में हो रहे निवेशों के बीच यह डील उसे अमेरिका के साथ संतुलन स्थापित करने में मदद कर सकती है।

अगर देखा जाए तो भारत और अमेरिका के संबंध ओबामा प्रशासन के समय से ही बेहतर होने शुरू हुए और पिछले एक दशक में और मजबूत तथा बहुआयामी हुए हैं; क्वाड समूह, 2+2 वार्ता, रक्षा तकनीक हस्तांतरण, सेमीकंडक्टर सहयोग, और आपसी व्यापार वृद्धि इसके उदाहरण हैं। ऐसे में अमेरिका का पाकिस्तान की ओर फिर से झुकाव, भारत को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह सिर्फ एक आर्थिक डील है या इसके पीछे कोई दीर्घकालिक रणनीतिक सोच छिपी है।

पिछले दशक में अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी केवल रक्षा, व्यापार या तकनीक तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह उस व्यापक रणनीतिक गठबंधन का हिस्सा है जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करना है। ऐसे में अमेरिका का पाकिस्तान के साथ ऊर्जा सहयोग बढ़ाना भारत के इस विश्वास को चुनौती दे सकता है कि वह वॉशिंगटन के रणनीतिक प्राथमिकताओं में शीर्ष पर है या नहीं!

ऐसे में अब भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह इस डील को केवल अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के परिप्रेक्ष्य में ही न देखे, बल्कि अपने रणनीतिक दृष्टिकोण को और व्यापक बनाए। भारत को अब अपनी ऊर्जा आपूर्ति, कूटनीतिक साझेदारियों और व्यापारिक संबंधों को बहुस्तरीय बनाना होगा ताकि किसी एक देश की नीति-परिवर्तन का उस पर अत्यधिक प्रभाव न पड़े।

अंततः यह कहा जा सकता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बना यह नया ऊर्जा गठजोड़ न केवल दक्षिण एशिया की कूटनीति में नए समीकरण पैदा करेगा, बल्कि भारत को भी अपनी विदेश नीति को और अधिक सतर्कता और दूरदृष्टि से संचालित करने के लिए बाध्य करेगा।कहावत है कि वैश्विक राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता, बल्कि स्व हित ही सबसे बड़ा मार्गदर्शक होता है। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ यह डील यह भी दर्शाती है कि भले ही भारत अमेरिका के लिए एक उभरती शक्ति हो, परंतु अमेरिका अपने पुराने संबंधों को भी पूरी तरह त्याग नहीं सकता। भारत को अपनी कूटनीति में लचीलापन रखते हुए वैश्विक मंचों पर अपनी स्वतंत्र पहचान को और सशक्त करना होगा।यह समय है जब भारत को अपनी रणनीतिक आत्मनिर्भरता को और अधिक मजबूत बनाना होगा ताकि वह वैश्विक शक्ति-राजनीति के बदलते समीकरणों में प्रभावशाली भूमिका निभा सके।


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भारत और अमेरिका ट्रेड डील:सहयोग या मजबूरी

पार्थ चटर्जी