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अमेरिका, चीन और भारत: नीति, शिक्षा और वैश्विक कथा का त्रिकोण

The US, China and India: The triangle of policy, education and the global narrative

भारत, जिसकी जनसंख्या 1.4 अरब है, एक प्राचीन सभ्यता, जीवंत लोकतंत्र, और उभरती हुई वैश्विक शक्ति होने के बावजूद भी पश्चिम, विशेष रूप से अमेरिका की बौद्धिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं में अपेक्षित स्थान नहीं प्राप्त कर पाया है।

यह लेख इस बात पर केंद्रित है कि कैसे अमेरिका की सामूहिक चेतना और नीति-निर्माण में भारत की तुलना में चीन को अधिक महत्त्व दिया गया है। अमेरिका ने चीन के लिए ‘Schwarzman Scholars Programme’ को जो  त्सिंगहुआ विश्वविद्यालय में संचालित होता है, जबकि भारत के लिए ऐसा कोई समान कार्यक्रम नहीं है, और यह केवल संयोग नहीं बल्कि गहरे मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक और बौद्धिक असंतुलन का परिणाम है।

मुख्य प्रश्न यह है कि क्यों अमेरिका की उच्च शिक्षा और रणनीतिक संस्थाओं में भारत की उपस्थिति सीमित है, जबकि चीन को एक प्रमुख स्थान मिला हुआ है।

भारत को अपनी उच्च शिक्षा और रणनीतिक संस्थानों को मजबूत करने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि वह वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख खिलाड़ी बन सके।

“A Comparative Study on System of General Education in China and India”नमक शोधपत्र से पता चलता है कि वैश्विक मानकों के अनुरूप चीन भारत की तुलना में अधिक सफल रहा है, विशेष रूप से निम्नलिखित कारणों से:

  1. शिक्षा प्रणाली पर राज्य का नियंत्रण और समन्वय
  • चीन में शिक्षा प्रणाली पर राज्य का कड़ा और समन्वित नियंत्रण है। केंद्रीय स्तर पर नीति निर्माण और स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन सुनिश्चित किया गया है।
  • इसके विपरीत, भारत में शिक्षा प्रणाली विकेन्द्रित और विविधतापूर्ण है, जहाँ केंद्र और राज्य दोनों की भूमिका है, लेकिन समन्वय की कमी अक्सर देखी जाती है।
  1. पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (Pre-primary Education)
  • चीन में पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने Three Year Pre-school Education Action Plan जैसे ठोस कदम उठाए हैं। इस स्तर को अनिवार्य बनाने की दिशा में प्रयास हुए हैं।
  • भारत में यह शिक्षा अभी भी ऐच्छिक (optional) है और ज्यादातर निजी क्षेत्र पर निर्भर है, या फिर ग्रामीण क्षेत्रों में केवल ICDS (आंगनबाड़ी) तक सीमित है।
  1. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में संरचना और मूल्यांकन प्रणाली
  • चीन में नौ-वर्षीय अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत बच्चों को प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती है, और हर स्तर पर राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा प्रणाली है।
  • भारत में भी शिक्षा 6–14 वर्ष तक अनिवार्य है (RTE, 2009 के तहत), लेकिन “No Detention Policy” और मूल्यांकन की कमजोर प्रणाली ने गुणवत्ता पर असर डाला है।
  1. उच्च शिक्षा में प्रवेश प्रक्रिया और गुणवत्ता
  • चीन में National College Entrance Examination (Gaokao) जैसी सख्त और प्रतिस्पर्धी प्रणाली है, जो गुणवत्ता को प्राथमिकता देती है।
  • भारत में हालांकि कुछ संस्थानों में प्रवेश परीक्षा होती है (जैसे IITs, AIIMS), परंतु अधिकांश कॉलेज सामान्य अंकों के आधार पर प्रवेश देते हैं, जिससे गुणवत्ता में अंतर आता है।
  1. नीति के केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण
  • चीन में शिक्षा नीति केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह नियंत्रित होती है, जिससे नीति का समान और कुशल कार्यान्वयन होता है।
  • भारत में अनेक निकाय और नियामक संस्थान (जैसे UGC, AICTE, MCI आदि) कार्यरत हैं, जिससे कभी-कभी नीतियों में विरोधाभास और ढीलापन देखा जाता है।

इस प्रकार, चीन की शिक्षा नीति अधिक केंद्रीकृत, अनुशासित और गुणवत्ता पर केंद्रित है, जिससे वह वैश्विक मानकों के अनुरूप भारत की तुलना में अधिक सफल रहा है। भारत को भी कुछ क्षेत्रों जैसे पूर्व-प्राथमिक शिक्षा, मूल्यांकन प्रणाली और उच्च शिक्षा में गुणवत्ता की निगरानी में चीन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

भारत और चीन की उच्च शिक्षा का स्तर  

चीन

  • चीन ने अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में भारी निवेश किया है और विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए कई पहल की हैं। चीनी विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, और वे अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
  • चीन की सरकार ने रणनीतिक संस्थानों को मजबूत करने और अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें सैन्य, आर्थिक और राजनयिक क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं को बढ़ाना शामिल है।
  • चीन ने अपनी उच्च शिक्षा और रणनीतिक संस्थानों में भारी निवेश किया है, जबकि भारत अभी भी इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
  • चीन की सरकार ने शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट नीतियां बनाई हैं, जबकि भारत में ऐसी नीतियों की कमी है।
  • चीन का प्रभाव वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है, और यह उच्च शिक्षा और रणनीतिक संस्थानों में भी दिखाई देता है। भारत का प्रभाव अभी भी सीमित है, लेकिन यह भी बढ़ रहा है।

भारत

  • भारत में, उच्च शिक्षा प्रणाली अभी भी चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कि बुनियादी ढांचे की कमी, योग्य शिक्षकों की कमी, और अनुसंधान और विकास में निवेश की कमी।
  • भारत भी अपने रणनीतिक संस्थानों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहा है, लेकिन चीन की तुलना में इसमें अभी भी समय लगेगा।

अमेरिकी कूटनीति: भारत और चीन

  1. Schwarzman स्कॉलर प्रोग्राम चीन की रणनीति और वैश्विक दृष्टिकोण को समझने वाले नेताओं की नई पीढ़ी को तैयार करने के उद्देश्य से है। भारत के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं होना अमेरिकी संस्थानों की भारत को कम प्राथमिकता देने की मानसिकता को दर्शाता है।
  2. मानसिक खरोंचें‘ (Scratches): हारोल्ड आइजैक्स की किताब “Scratches on Our Minds” में बताया गया है कि कैसे अमेरिकी चेतना में भारत की छवि अस्पष्ट, आध्यात्मिक और भ्रमित रही है, जबकि चीन की छवि रहस्यमयी, शक्तिशाली और चुनौतीपूर्ण मानी गई।
  3. भारत की गलत व्याख्या: भारत को अक्सर अमेरिकी नीति और शिक्षा में गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है या पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। इसके पीछे शीत युद्ध की मानसिकता, औपनिवेशिक दृष्टिकोण और पश्चिमी मीडिया की धारणाएँ शामिल हैं।
  4. शैक्षणिक निवेश में असमानता: अमेरिका की प्रमुख विश्वविद्यालयों में चीन से जुड़े अध्ययन केंद्र, चीनी भाषा और राजनीति पर गहन अध्ययन होते हैं, परंतु भारत पर ऐसे गहरे शोध केंद्र नहीं हैं।
  5. भारत की ज़रूरत: भारत को अपनी वैश्विक छवि को खुद गढ़ने और उसके लिए उच्च शिक्षा, निजी निवेश और संस्थागत स्वतंत्रता के साथ दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

Narrative क्यों महत्वपूर्ण हो रहा है?

  1. वैश्विक पहचान और प्रभाव के लिए
    • वैश्विक राजनीति में अब सिर्फ सैन्य या आर्थिक शक्ति पर्याप्त नहीं है; अपनी “कहानी” दुनिया को कैसे सुनाई जाती है, इससे भी एक देश की छवि बनती है।
    • चीन इस मामले में सफल रहा है, खुद को “chosen people” की तरह प्रस्तुत कर चुका है और अमेरिका की चेतना में गहराई तक जगह बना चुका है।
  2. राजनयिक और रणनीतिक लाभ के लिए
    • जो देश प्रभावी “narrative” प्रस्तुत करते हैं, वे कूटनीति, निवेश, और वैश्विक गठबंधनों में आगे रहते हैं।
    • भारत की छवि अभी भी पश्चिमी मानस में “पुराना”, “रहस्यमय”, “अनिश्चित”, और “कम जरूरी” जैसी रूढ़ियों से घिरी है। इससे रणनीतिक साझेदारी और सहयोग की संभावना सीमित हो जाती है।
  3. नई पीढ़ी के नेतृत्व को तैयार करने हेतु
    • चीन का “Schwarzman Scholars” कार्यक्रम रणनीतिक रूप से वैश्विक नेताओं को प्रशिक्षित करता है जो चीन को समझते हैं। भारत के पास ऐसा कोई प्रभावशाली शैक्षणिक मंच नहीं है।
    • भारत को अपनी ताकत (जैसे IITs, IIMs, Ashoka और Krea जैसे विश्वविद्यालय) के जरिए नेतृत्व विकास का एक वैश्विक मंच बनाना चाहिए।
  4. सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के लिए
    • भारत को दूसरों की नजरों से देखे जाने के बजाय, खुद की दृष्टि से समझे जाने की ज़रूरत है – अपनी परंपराओं, इतिहास और लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर।
  5. प्रतिस्पर्धा सिर्फ युद्ध क्षेत्र में नहीं, विचारों के क्षेत्र में भी है:
    • आज वैश्विक शक्ति-संघर्ष विश्वविद्यालयों, अनुसंधान केंद्रों, मीडिया और डिजिटल मंचों पर लड़ा जा रहा है – जहां “कहानी” सबसे प्रभावशाली हथियार बन गई है।

संभावित समाधान

  • भारत को एक रणनीतिक रूप से सशक्त वैश्विक शैक्षणिक मंच बनाना चाहिए जो भारतीय और विदेशी नेताओं की नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करे।
  • भारत को अपने लोकतांत्रिक मॉडल, उद्यमशीलता और वैश्विक योगदान को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करना होगा।
  • इससे भारत केवल अध्ययन का विषय नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक नेतृत्व का स्रोत बन पाएगा।

अन्य क्षेत्रो में भारतअमेरिका: एक साथी और कंट्राबैलेंस

भारत ने अमेरिका को हमेशा एक साथी के रूप में देखा है निम्नलिखित बिंदुओ के माध्यम से यह बेहतर ढंग से समझा जा सकता है;

  • भारत ने 2016–2020 में अमेरिका के साथ चार प्रमुख सुरक्षा समझौते (LEMOA, COMCASA, BECA, GSOMIA) पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों सेनाओं की इंटरऑपरेबिलिटी और रक्षा सहयोग में तेजी आई।
  • मालाबार और वार्षिक “युद्ध अभ्यास” जैसे मल्टीनेशनल सैन्य अभ्यास चीन की बढ़ती गतिविधियों का प्रतिकार करने के लिए आयोजित किए जाते हैं।
  • चीन की विस्तारवादी नीतियों और सीमा विवादों के बीच भारत अमेरिका को एक “कार्यात्मक साझेदार” के रूप में देखता है, जो एशिया–प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक संतुलन बनाए रखता है।
  • विदेश मंत्री जयशंकर की टिप्पणी है – “जहां तक चीन की बात है, अमेरिकी और भारतीय राष्ट्रीय हित बहुत मेल खाते हैं”।
  • 2022–23 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना, व्यापार $128 B तक पहुंचा।
  • रक्षा क्षेत्र में भारत ने 20 B डॉलर के अमेरिकी आयात हासिल किए, जिसमें F‑414 जेट इंजन, MQ‑9 ड्रोन और MK‑54 टॉरपीडो जैसे उपकरण शामिल हैं।
  • QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) को चीन की सामरिक प्रधानता को चुनौती देने के लिए एक ताकतवर मंच माना जा रहा है।

  • भारत और अमेरिका संयुक्त राष्ट्र, G20, IPEF, अंतरिक्ष एवं तकनीकी सहयोग (NISAR, Artemis) में साथ कार्य कर रहे हैं।
  • अतीत में भारत-अमेरिका रिश्ते “love‑hate” पैटर्न पर चले, लेकिन मोदी के दौर में ये भरोसेपात्र और व्यावहारिक साझेदारी में बदल गए हैं ।
  • रक्षा और आर्थिक सहयोग स्पष्ट संकेत देते हैं कि अमेरिका भारत के लिए स्थिर और महत्वपूर्ण साझेदार बन चुका है।

भारतअमेरिका संबंधों का इतिहास

  1. स्वतंत्रता के बाद आरंभिक संबंध (1947–1960s)
  • भारत की स्वतंत्रता (1947) के बाद अमेरिका ने औपचारिक रूप से भारत को मान्यता दी और राजनयिक संबंध स्थापित हुए।
  • भारत की गुटनिरपेक्ष नीति (Non-Alignment) और अमेरिका की शीत युद्ध में सोवियत विरोधी रणनीति के कारण दोनों देशों में निकटता नहीं बन पाई।
  • अमेरिका ने पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता दी, जिससे भारत में अविश्वास की भावना बढ़ी।
  1. शीत युद्ध काल और दूरी (1970s–1980s)
  • 1971 में भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश निर्माण के समय अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर था।
  • 1974 में भारत के पहले परमाणु परीक्षण (Smiling Buddha) के बाद अमेरिका ने भारत पर तकनीकी प्रतिबंध लगाए।
  • इस काल में भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर अधिक था।
  1. संबंधों में परिवर्तन की शुरुआत (1990s)
  • शीत युद्ध के अंत और सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने आर्थिक उदारीकरण शुरू किया (1991)।
  • अमेरिका ने भारत के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को पुनः सशक्त करने की कोशिश की।
  • 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा, लेकिन Strobe Talbott–Jaswant Singh वार्ता श्रृंखला ने संबंधों को संभाला।
  1. रणनीतिक साझेदारी का उदय (2000–2010)
  • 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की ऐतिहासिक भारत यात्रा के साथ द्विपक्षीय संबंधों का नया दौर शुरू हुआ।
  • 2005 में New Framework for the US–India Defense Relationship’ समझौता हुआ।
  • 2008 में भारतअमेरिका असैन्य परमाणु समझौता (Civil Nuclear Deal) हुआ — एक ऐतिहासिक मोड़।
  1. सहयोग का विस्तार (2010–2020)
  • रक्षा, अंतरिक्ष, आतंकवाद विरोधी, साइबर सुरक्षा, और व्यापार में गहरा सहयोग हुआ।
  • LEMOA (2016), COMCASA (2018), BECA (2020) जैसे तीन रक्षा समझौते हुए।
  • अमेरिका ने भारत को “Major Defense Partner” की उपाधि दी।
  1. हालिया दौर (2020–वर्तमान)
  • जो बाइडन प्रशासन के दौरान संबंधों में स्थिरता बनी रही।
  • QUAD (India, USA, Japan, Australia) मंच पर भारत की भूमिका बढ़ी।
  • जलवायु परिवर्तन, इंडो-पैसिफिक सुरक्षा, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा।
  • भारतीय प्रवासी समुदाय की भूमिका अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण बनी।

क्या अमेरिका के लिए जरूरी है भारत?

हालांकि अमेरिका भारत को ‘पूर्ण सहयोगी’ की तरह नहीं देखता (जैसे NATO), लेकिन उसे यह एहसास है कि भारत के बिना वह एशिया में चीन का सामना नहीं कर सकता।

  • अमेरिका चीन के उदय से चिंतित है और भारत, जिसकी सीमा चीन से लगी है, एकमात्र लोकतांत्रिक शक्ति है जो स्थानीय रूप से चीन का मुकाबला कर सकती है
  • अमेरिका के लिए भारत इंडो-पैसिफिक रणनीति का प्रमुख स्तंभ है (QUAD, Indo-Pacific Economic Framework)।जयशंकर ने कहा था: “अमेरिका को एशिया में एक स्थिर, लोकतांत्रिक शक्ति की ज़रूरत है — और वह भारत है।”
  • अमेरिका लोकतंत्र को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने की बात करता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
  • अमेरिका को value-based partnership की ज़रूरत है ताकि वह “autocratic axis” (जैसे चीन, रूस, ईरान) को संतुलित कर सके।
  • अमेरिका को चीन पर अपनी विनिर्माण और तकनीकी निर्भरता कम करनी है। भारत एक विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोत है:
    • सेमीकंडक्टर
    • दवा उद्योग
    • सूचना प्रौद्योगिकी
  • भारत की विशाल जनसंख्या और उपभोक्ता बाज़ार अमेरिकी कंपनियों के लिए बड़ा अवसर है (Apple, Google, Tesla सभी भारत में निवेश बढ़ा रहे हैं)। भारत और अमेरिका के बीच गहरे रक्षा समझौते हैं (LEMOA, BECA, COMCASA)।
  • अमेरिका चाहता है कि भारत रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता घटाए और पश्चिमी प्रणालियों की ओर बढ़े।
  • भारत अब Global South (अफ्रीका, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका) का नेतृत्व करने की ओर अग्रसर है।
  • अमेरिका को ऐसी स्थानीय, सम्मानित शक्ति की ज़रूरत है जो वैश्विक दक्षिण में अमेरिका के हितों को आगे बढ़ा सके।

क्षेत्रअमेरिका को भारत की ज़रूरत क्यों
रणनीतिचीन को संतुलित करने के लिए
भू-राजनीतिइंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विश्वसनीय सहयोगी
अर्थव्यवस्था

चीन पर निर्भरता घटाने के लिए वैकल्पिक बाज़ार

मूल्यलोकतंत्र और मानवाधिकार का साझा दृष्टिकोण
वैश्विक मंच

G20, BRICS, UN में भारत का प्रभाव

निष्कर्ष

भारत को वैश्विक नेतृत्व के लिए केवल एक आर्थिक या सामरिक शक्ति बनकर नहीं, बल्कि एक वैचारिक, संस्थागत और सांस्कृतिक शक्ति बनकर उभरना होगा। इसके लिए भारत को उच्च शिक्षा, रणनीतिक संप्रेषण, और वैश्विक कथा-निर्माण में निवेश करना होगा, जिससे कि वह अमेरिकी और पश्चिमी मनोचेतना में स्थायी रूप से स्थापित हो सके।

स्रोत: The Hindu

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