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अमेरिकी शासन व्यवस्था में कांग्रेस की भूमिका

अमेरिका की विधानमंडल को “कांग्रेस” (Congress) कहा जाता है।अमेरिका में संघीय शासन प्रणाली है। इसका मतलब है कि वहाँ दो तरह की सरकारें होती हैं —

1. संघीय सरकार, जो पूरे देश के काम देखती है।
2. राज्य सरकारें, जो अपने-अपने राज्यों के काम देखती हैं।

कांग्रेस दो भागों में बँटी होती है

a. प्रतिनिधि सभा (House of Representatives): यह पूरे देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। इसे निम्न सदन (Lower House) कहा जाता है।
b. सीनेट (Senate) : यह अलग-अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसे उच्च सदन (Upper House) या दूसरा सदन (Second Chamber) कहा जाता है।

प्रतिनिधि सभा के सदस्य को कांग्रेस सदस्य (Congressman) कहा जाता है, और सीनेट के सदस्य को सीनेटर (Senator) कहा जाता है।

प्रतिनिधि सभा (लोकसभा)

अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य होते हैं। ये सभी सदस्यदेश की जनता द्वारा चुने जाते हैं। इनके निर्वाचन क्षेत्र जनसंख्या के आधार पर बनाए जाते हैं। इसलिए, किसी राज्य से आने वाले प्रतिनिधियों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर करती है।
प्रतिनिधि सभा के सदस्य 2 साल के लिए चुने जाते हैं। इस अवधि को न तो बढ़ाया जा सकता है और न ही घटाया जा सकता है।प्रचलित प्रथा के अनुसार, प्रतिनिधि सभा का सदस्य उसी क्षेत्र से होना चाहिए, जहाँ से वह चुनाव लड़ता है। इससे भले ही देश की प्रतिभाओं का पूरा उपयोग नहीं हो पाता, लेकिन इससे लोकतंत्र की भावना मजबूत होती है।
प्रतिनिधि सभा का सभाध्यक्ष प्रतिनिधि सभा अपने सभाध्यक्ष का चुनाव खुद करती है। यह चुनाव राजनीतिक दलों के आधार परहोता है। जो व्यक्ति सभाध्यक्ष बनता है, वह अपने दल का सदस्य बना रहता है।
प्रतिनिधि सभा के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उन्हें सदन में बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता है। वहां कही गई किसी भी बात के लिए उन पर कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। अधिवेशन के दौरान उन्हें दीवानों मामलों में बंदी नहीं बनाया जा सकता।

सीनेट

अमेरिका में कुल 50 राज्य हैं। हर राज्य से 2 सदस्य सीनेट में चुने जाते हैं। इसलिए सीनेट में कुल 100 सदस्य होते हैं। पहले, सीनेट के सदस्य राज्य की विधानसभाएँ चुना करती थीं, लेकिन 1913 से जनता सीधे सीनेटरों का चुनाव करती है।सीनेट में हर राज्य को बराबर प्रतिनिधित्व दिया गया है, चाहे राज्य बड़ा हो या छोटा।प्रत्येक सीनेट सदस्य छह वर्ष के लिए चुना जाता है। 2 वर्ष बाद सीनेट के एक-तिहाई सदस्य सेवा निवृत्त हो है। इस तरह पूरो सीनेट कभी भंग नहीं होती। यह एक सदन बनी रहती है।

संयुक्त राज्य अमरीका का उपराष्ट्रपति (Vice-president)

सीनेट का सभापति : सीनेट का सभापति अमेरिका का उपराष्ट्रपति होता है।उपराष्ट्रपति का चुनाव भी राष्ट्रपति की तरह ही किया जाता है निर्वाचक मंडल के माध्यम से, और उसकी कार्यावधि 4 वर्ष की होती है।
उपराष्ट्रपति सीनेट में सभापति के रूप में कार्य करता है, लेकिन वहमतदान में सामान्य रूप से भाग नहीं लेता। वह केवल तब मत देता है, जब किसी मुद्दे पर दोनों पक्षों के मत बराबर हो जाएं और निर्णय संभव न हो। ऐसी स्थिति में वह निर्णायक मत देकर फैसला करता है।

कांग्रेस की शक्तियाँ और कार्य

विधि निर्माण और संविधान संशोधन अमेरिका में संघीय शासन प्रणाली और लिखित संविधान अपनाया गया है। संविधान के तहत विधि बनाने के विषयों को दो भागों में बाँटा गया है
1. संघीय विषय (Federal Subjects) – जिन पर संघीय सरकार यानीकांग्रेस कानून बनाती है।
2. राज्य विषय (State Subjects) – जिन पर राज्य सरकारें कानून बनाती हैं।
जो विषय इन दोनों सूचियों में नहीं आते, उन्हें अवशिष्ट विषय कहा जाता है। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों के पास होता है।इस प्रकार, अमेरिकी संघीय व्यवस्था
भारत की व्यवस्था से अलग है क्योंकि भारत में अवशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होता है, और भारत में एक समवर्ती सूची भी है, जिस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। लेकिन अमेरिका में समवर्ती सूची की व्यवस्था नहीं है।इसलिए, अमेरिकी कांग्रेस केवल संघीय विषयों पर ही कानून बना सकती है।

शक्तियों का सिद्धांत

इस सिद्धांत के तहत, कांग्रेस और राष्ट्रपति ने कई ऐसी शक्तियाँ हासिल कर ली हैं जो संविधान में सीधे तौर पर नहीं दी गई थीं, लेकिन उन्हेंसंविधान की भावना से निहित माना गया है।

उदाहरण के लिए संविधान में कांग्रेस को मुद्रा छापने, कर लगाने, ऋण लेने और खर्च करने का अधिकार दिया गया है। इन्हीं शक्तियों के आधार पर कांग्रेस ने राष्ट्रीय बैंक स्थापित करने का अधिकार अपने पास मान लिया।
संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय  इन निहित शक्तियोंको स्वीकार करता है, लेकिन साथ ही उनकी सीमाएँ भी तय करता है, ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो।
वित्त विधेयक केवल प्रतिनिधि सभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं,लेकिन उन्हें लागू करने के लिए सीनेट की स्वीकृति आवश्यक होती है। इसी कारण से, सीनेट को विश्व का सबसे शक्तिशाली दूसरा सदन कहा जाता है।

अन्य विधेयक

कांग्रेस में अन्य विधेयक  किसी भी सदन  प्रतिनिधि सभा या सीनेट से शुरू किए जा सकते हैं। जब कोई विधेयक दोनों सदनों से पारितहो जाता है, तो उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है।आम तौर पर, राष्ट्रपति 10 कार्य-दिवसों के भीतर उस विधेयक परहस्ताक्षर करके उसे वापस भेज देता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद वह कानून बन जाता है। लेकिन यदि राष्ट्रपति अपने निषेधाधिकार का प्रयोग करते हुए विधेयक को आपत्तियों के साथ वापस भेज देता है, तो कांग्रेस के दोनों सदन उसे दो-तिहाई बहुमत सेफिर से पारित कर सकते हैं। ऐसा होने पर राष्ट्रपति का वीटो निष्फल हो जाता है, और वह विधेयक कानून बन जाता है।

संविधान संशोधन की शक्ति

कांग्रेस को संविधान में संशोधन करने का पूरा अधिकार है। किसी भी संशोधन को पारित करने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक होता है। लेकिन केवल कांग्रेस की स्वीकृति पर्याप्त नहीं होती। संशोधन को लागू करने के लिए कम से कम तीन-चौथाई (¾) राज्यों की विधानसभाओं से भी अनुमोदन आवश्यक है।
सर्वोच्च न्यायालय सामान्य कानूनों के मामले में यह कह सकता है कि
किसी कानून को बनाना कांग्रेस की शक्ति से बाहर था, और इस कारण वह कानून अमान्य है। लेकिन जब बात संविधान संशोधन की होती है, तो सर्वोच्च न्यायालय उसमें हस्तक्षेप नहीं करता
वह यह नहीं कहता कि संशोधन असंवैधानिक है।

प्रशासनिक शक्तियाँ

अमेरिकी कांग्रेस को प्रशासनिक विभागों की जांच और निगरानीकरने का अधिकार है। यह विभिन्न विभागों से रिपोर्टें मंगा सकती है और जांच समितियाँ बनाकर उनके कामकाज की जाँच और आलोचना कर सकती है। इसके अलावा, राष्ट्रपति जब उच्च पदों पर नियुक्तियाँ करता है जैसे कि मंत्री, राजदूत, न्यायाधीश, या महान्यायवादी तो इन नियुक्तियों के लिए सीनेट की स्वीकृति जरूरी होती है। इसी तरह, राष्ट्रपति जब विदेशों के साथ कोई संधि करता है, तो वह भी तभी प्रभावी होती है जब सीनेट उसे मंजूरी देती है।
एक प्रथा भी प्रचलित है जिसे “सीनेट-सौजन्य” (Senatorial Courtesy) कहा जाता है। इसका अर्थ है यदि राष्ट्रपति किसी ऐसे राज्य में किसी व्यक्ति की नियुक्ति करना चाहता है जहाँ का सीनेट सदस्य राष्ट्रपति की पार्टी से हो, तो राष्ट्रपति पहले उस सीनेटर से परामर्श करता है। यदि वह सीनेटर उस नियुक्ति से सहमत होता है, तो सीनेट भी उसे मंजूरी दे देती है।
लेकिन अगर वह सीनेटर आपत्ति करता है, तो सीनेट भी उस नियुक्ति को अस्वीकार कर देती है।

न्यायिक शक्तियां

यदि देशदोह, भ्रष्टाचार या संविधान के उल्लंघन, इत्यादि का आरोप लगाकर राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों या प्रशासनिक उच्चाधिकारियों पर महाभियोग तो इसके प्रतिनिधि सभा महाभियोग की चलाना हो तो इसके लिए तैयार करती है,
सीनेट में मुकदमा चलाया जाता है। प्रतिनिधि सभा में महाभियोग की धाराओं को साधारण बहुत से पारित किया जाता है। दोष-सिद्धि के लिए महाभियोग की प्रत्येक धारा पर सीनेट में उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक होगा। दोष सिद्ध हो जाने पर अभियुक्त को पद से हटा दिया जाता है।

निर्वाचकीय शक्तियां

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित शक्तियाँ हर चार साल में जब राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव होता है तो कांग्रेस के दोनों सदन (प्रतिनिधि सभा और सीनेट) मिलकर
एक संयुक्त अधिवेशन आयोजित करते हैं। इस अधिवेशन में चुनाव में डाले गए वोटों की गिनती की जाती है। यदि किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति पद के लिए पूर्ण बहुमत नहीं मिलता, तो ऐसे में प्रतिनिधि सभा सबसे अधिक वोट पाने वाले तीन उम्मीदवारों में से एक को राष्ट्रपति चुन लेती है।
यदि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में किसी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता,तो सीनेट इस पद के लिए निर्णय लेती है। सीनेट उन दो उम्मीदवारों में से, जिन्हें सबसे अधिक वोट मिले हों,एक उम्मीदवार को उपराष्ट्रपति के रूप में चुन लेती है।

समिति प्रणाली

अमेरिकी कांग्रेस में विधि निर्माण का काम बहुत बड़ा और जटिल होता है। इसलिए यह कार्य विभिन्न समितियों और उपसमितियों की मदद से किया जाता है। हर साल कांग्रेस के सत्र में हजारों विधेयक पेश किए जाते हैं। सभी विधेयकों की जानकारी किसी एक सदस्य के लिए संभव नहीं होती। इसलिए, समिति प्रणाली का उद्देश्य यह है कि हर विधेयक को उन सदस्यों को सौंपा जाए जो उस विषय के विशेषज्ञ हों। इस तरह सदस्य किसी खास क्षेत्र जैसे कराधान , ऊर्जा या विदेश नीति पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और उस विषय परसही और उपयोगी विधेयक का प्रारूप तैयार कर सकते हैं। कांग्रेस की समितियों को अक्सर “लघु विधानमंडल” कहा जाता है, क्योंकि किसी भी विधेयक को अंतिम रूप देने की असली शक्ति इन्हीं समितियों के पास होती है।
सिद्धांत रूप में, प्रतिनिधि सभा या सीनेट किसी समिति के प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकते हैं,लेकिन व्यवहार में ऐसा बहुत कम होता है, क्योंकि जब समिति का अध्यक्ष या सदस्य किसी विधेयक पर बोलता है,तो बाकी सदस्य उसकी विशेषज्ञता का सम्मान करते हैं और उसकी राय को गंभीरता से सुनते हैं। अगर किसी स्थायी समितिको किसी विधेयक पर अपना प्रतिवेदन देने में तीस दिन से ज़्यादासमय लग जाता है,तो प्रतिनिधि सभा के बहुमत (218 सदस्यों) के हस्ताक्षर से वह विधेयक समिति से वापस लेकर सदन में लाया जा सकता है। हालाँकि, ऐसा बहुत ही कम अवसरों पर किया जाता है।
पिछली दो शताब्दियों में कांग्रेस में अनेक प्रकार की समितियाँबनाई गई हैं।
इनमें कुछ प्रमुख प्रकार की समितियाँ इस प्रकार हैं
(1) स्थायी समितियाँ (Standing Committees)
(2) विशेष या अस्थायी समितियाँ (Special or Select Committees)
(3) संयुक्त समितियाँ (Joint Committees)
(4) सम्मेलन समितियाँ (Conference Committees)।


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