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आत्मनिर्भर भारत से ग्लोबल ब्रिटेन तक: भारत–ब्रिटेन CEPA (Comprehensive Economic Partnership Agreement)

‘भारत–ब्रिटेन विज़न 2035’

भारतीय प्रधानमंत्री की लंदन यात्रा के दौरान ‘भारत–ब्रिटेन विज़न 2035’ दस्तावेज़ का अनावरण किया गया, जिसमें दोनों देशों के बीच बहुआयामी सहयोग की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। इसी अवसर पर, भारत और ब्रिटेन के बीच ‘व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते’ (CETA), जो एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को औपचारिक रूप प्रदान किया गया। इस समझौते का लक्ष्य वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक तक विस्तारित करना है।

  • भारत और ब्रिटेन के बीच हस्ताक्षरित CEPA (Comprehensive Economic Partnership Agreement) सिर्फ व्यापार का समझौता नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों की रणनीतिक प्राथमिकताओं को जोड़ता है। ब्रिटेन इसे ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ की रणनीति के तहत देखता है, जबकि भारत इसे ‘मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ के एक कदम के रूप में समझ रहा है। यह समझौता भारत को यूरोपियन बाजारों तक पहुंच आसान करेगा है और ब्रिटेन को भारत के विशाल बाजार तक पहुचने में सहयोग कर सकता है।

CEPA (Comprehensive Economic Partnership Agreement) क्या है?

भारत और यूनाइटेड किंगडम ने 24 जुलाई को Comprehensive Economic and Trade Agreement (CEFTA) पर हस्ताक्षर किए, जो न केवल पारंपरिक टैरिफ अवरोधों को समाप्त करता है, बल्कि व्यापारिक प्रतिबंधों के व्यापक ढांचे को भी उदार बनाता है। यह समझौता भारत को यूके के विशाल बाज़ार में पहुंच और यूके को भारत की बढ़ती उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी का अवसर देता है।

  • यह FTA 30 से अधिक क्षेत्रों को कवर करता है, जिसमें व्यापार, सेवाएं, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, सरकारी खरीद, और डिजिटल व्यापार शामिल हैं। विशेष रूप से, यह समझौता सेवाक्षेत्र को प्रोत्साहन देता है, जिससे भारतीय पेशेवरों और व्यवसायों को ब्रिटेन में बेहतर पहुँच प्राप्त होगी। ब्रिटेन द्वारा 240 पेशेवर श्रेणियों को मान्यता देना और भारत को सेवा प्रदाताओं के लिए व्यापक पहुंच देना, दोनों देशों के बीच मानव संसाधन गतिशीलता को बढ़ावा देता है।

भारत–ब्रिटेन संबंधों का इतिहास 

  • स्वतंत्रता के बाद भारत और ब्रिटेन ने राष्ट्रमंडल के माध्यम से कूटनीतिक संबंध बनाए रखे।
  • शीतयुद्ध काल में संबंध सीमित और औपचारिक रहे, लेकिन धीरे-धीरे व्यापारिक संवाद आरंभ हुए।
  • 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत ने विदेश निवेश के लिए दरवाज़े खोले, जिससे ब्रिटिश कंपनियों की भारत में उपस्थिति बढ़ी।
  • 2004 में भारत और ब्रिटेन ने रणनीतिक साझेदारी स्थापित की, जिससे रक्षा, ऊर्जा और शिक्षा में सहयोग को दिशा मिली।
  • 2010 के बाद दोनों देशों ने आर्थिक सहयोग के साथ-साथ विज्ञान, नवाचार और स्मार्ट सिटीज़ पर सहयोग बढ़ाया।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन साझेदारी (AstraZeneca–Serum Institute) ने स्वास्थ्य क्षेत्र में संबंधों को मज़बूत किया।
  • 2023–24 में द्विपक्षीय व्यापार $21.34 बिलियन तक पहुँचा, और 2024–25 में भारत का निर्यात 12.6% बढ़ा।
  • 2024 में भारत–ब्रिटेन टेक्नोलॉजी सिक्योरिटी इनिशिएटिव (TSI) लॉन्च किया गया, जिससे AI, सेमीकंडक्टर्स, और साइबर सुरक्षा में सहयोग बढ़ा।
  • रक्षा सहयोग बढ़ाने हेतु कोंकण, कोबरा वॉरियर और अजेय वॉरियर जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित किए गए।
  • ब्रिटेन ने भारत को इंटरनेशनल साइंस पार्टनरशिप फंड में भागीदार बनाया, जिससे अनुसंधान सहयोग को प्रोत्साहन मिला।
  • दोनों देशों ने ‘नेट ज़ीरो इनोवेशन वर्चुअल सेंटर’ स्थापित किया जो हरित हाइड्रोजन और डीकार्बोनाइजेशन पर केंद्रित है।
  • ब्रिटेन में 1.86 मिलियन भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं जो व्यापार, संस्कृति और राजनीति में सक्रिय हैं।
  • 2024 में भारत और ब्रिटेन ने व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CEFTA) को औपचारिक रूप दिया जिसका लक्ष्य 2030 तक व्यापार को $100 अरब तक ले जाना है।
  • प्रवास, जलवायु, तकनीक, रक्षा और व्यापार में गहराते संबंधों के माध्यम से भारत–ब्रिटेन साझेदारी आज एक वैश्विक रणनीतिक परिपक्वता की ओर अग्रसर है।

CEPA: बहुआयामी समझौता

इस समझौते के तहत भारत को यूरोप में शराब, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल्स, और कृषि उत्पादों के निर्यात में बढ़ावा मिलेगा।

  • ब्रिटेन के लिए भारतीय बाजार में चाय, व्हिस्की, पनीर, चॉकलेट, और समुद्री उत्पादों के लिए टैरिफ में बड़ी छूट मिलेगी।
  • इससे छोटे और मध्यम व्यवसायों को लाभ होगा, खासकर स्कॉटलैंड की डिस्टिलरी, मिडलैंड्स के ऑटो पार्ट्स निर्माता और भारत का कृषि व फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र।
  • यह समझौता चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण कर सकता है।
  • एक ‘रूल-बेस्ड ऑल्टरनेटिव’ के रूप में, यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में व्यापार के लिए लचीलापन और पारदर्शिता ला सकता है।
  • भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे स्टैक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर) में निवेश के रास्ते ब्रिटिश कंपनियों के लिए खुल सकते हैं।

जलवायु, तकनीक और वित्तीय सहयोग का विस्तार
इस समझौते में केवल व्यापार ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा, डिजिटल इनोवेशन, और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को भी शामिल किया गया है। भारत की हरित अर्थव्यवस्था और ब्रिटेन का तकनीकी अनुभव मिलकर एक मजबूत साझेदारी का निर्माण कर सकते हैं।

  • भारत ने इस समझौते के माध्यम से यह सुनिश्चित किया है कि पर्यावरण और श्रम मानकों का उपयोग ‘छिपे हुए संरक्षणवाद (disguised protectionism)’ के रूप में न किया जाए।
  • अध्याय 22 (ट्रेड एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट) के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी पक्ष ऐसे मानकों को इस प्रकार लागू नहीं करेगा जिससे व्यापार बाधित हो।
  • यह मुद्दा भारत की ओर से उठाई गई उस चिंताओं को संबोधित करता है जिसमें विकसित देश श्रम और पर्यावरणीय विषयों का प्रयोग व्यापारिक प्रतिबंधों के लिए करते हैं।

सरकारी खरीद में भारत की रणनीतिक लचीलापन

  • भारत ने पहली बार किसी एफटीए में सरकारी खरीद प्रणाली (government procurement) के क्षेत्र में सीमित प्रतिबद्धताएं दी हैं।
  • यह विशेषकर केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं तक सीमित है और राज्यों तथा नगरपालिकाओं को इससे बाहर रखा गया है।
  • यह भारत की संप्रभु निर्णय क्षमता को बनाए रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ संतुलन साधने का प्रयास है।

ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत

  • यह FTA, ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन द्वारा किया गया सबसे महत्वपूर्ण समझौता माना जा रहा है। ब्रिटेन इसे अपनी आर्थिक स्थिरता और रोज़गार सृजन की दिशा में एक बड़ा कदम मानता है।
  • तकनीकी, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में हज़ारों नई नौकरियां उत्पन्न होंगी।
  • स्कॉच व्हिस्की और लक्ज़री कारों पर भारत में टैक्स घटने से ब्रिटिश निर्यात में ज़बरदस्त बढ़ोतरी होगी।

भारत के उत्पादों पर ब्रिटेन टैक्स लगभग शून्य

इस समझौते के तहत भारत से निर्यात होने वाले 99% उत्पादों पर ब्रिटेन में टैक्स (Import Duty) नहीं लगेगा।

उत्पाद/उद्योगपहले का टैक्स (%)अब का टैक्स (%)लाभार्थी क्षेत्र/संभावित लाभ
कपड़ा उद्योग (Textiles)12%0%भारत का वस्त्र उद्योग, 4.5 करोड़ रोज़गार, निर्यात वृद्धि
जूतेचप्पल और लेदर उत्पाद16%0%उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के चमड़ा उद्योग, MSMEs को बढ़ावा
प्रोसेस्ड फूड (Processed Food)70%0%पैकेज्ड फूड, स्नैक्स, फूड प्रोसेसिंग कंपनियों को नई मांग
चाय, कॉफी, मसाले10–20%0%कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ेगा, छोटे किसान व निर्यातक लाभान्वित
कुटीर एवं MSME उद्योगविविध (उच्च)0% (लगभग सभी पर)कम लागत में यूके पहुंच, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त

इसका सीधा लाभ भारत के कपड़ा उद्योग (4.5 करोड़ लोगों को रोज़गार), फूड प्रोसेसिंग, कुटीर उद्योगों और MSME सेक्टर को मिलेगा।

विवाद समाधान और नीतिस्वतंत्रता

  • इस समझौते में शामिल संप्रभु विवाद समाधान तंत्र (state-to-state dispute mechanism) इस बात को रेखांकित करता है कि भारत ने अभी तक निवेशक-राज्य विवाद समाधान (ISDS) व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया है।
  • इससे भारत की नीति निर्माण में स्वायत्तता बनी रहती है और यह विकासशील देशों की आम चिंता को उजागर करता है।

भारतचीन प्रतिस्पर्धा

  • चीन और ब्रिटेन के बीच ऐसा कोई मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। इसका लाभ उठाकर भारत ब्रिटेन में सस्ता और टैक्स-फ्री निर्यात कर सकता है।
  • यह रणनीतिक रूप से भारत के लिए ‘मेक इन इंडिया’ को वैश्विक स्तर पर मजबूती देगा।
  • भारत का माल अब वियतनाम और बांग्लादेश जैसे प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ब्रिटेन में अधिक प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर उपलब्ध होगा।
  • 2023–24 में भारत–ब्रिटेन के बीच ₹4.74 लाख करोड़ का व्यापार हुआ। इस समझौते के बाद यह 2030 तक ₹10.33 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है।

CEFTA का अमेरिकाEU वार्ताओं में प्रभाव

  • CEFTA की सफलता से भारत की वैश्विक वार्ता शक्ति बढ़ेगी।
  • भारत और यूके के मध्य हुए CEFTA समझौते के अंतर्गत, भारतीय पेशेवरों को अब अस्थायी नियुक्ति की अवधि (तीन वर्षों तक) के लिए यूके की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में अंशदान से छूट प्रदान की गई है।
  • पूर्व में, भारतीय नागरिकों को इस प्रणाली में भुगतान करना पड़ता था, भले ही वे लाभ के लिए पात्र न हों।
    यह प्रावधान भारत के लिए न केवल मानव संसाधन के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ सुनिश्चित करता है, बल्कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों के साथ भविष्य की व्यापारिक वार्ताओं में रणनीतिक सौदेबाज़ी के एक प्रभावशाली साधन (bargaining chip) के रूप में कार्य कर सकता है।
  • भारत द्वारा किए जा रहे बहुपक्षीय और द्विपक्षीय व्यापार समझौते केवल तभी व्यावहारिक लाभ में रूपांतरित हो सकते हैं जब वे घरेलू औद्योगिक क्षमताओं, प्रतिस्पर्धात्मक उत्पादकता, और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के सरलीकरण द्वारा समर्थित हों।
    यदि देश आंतरिक रूप से उत्पादकता, नवाचार और लॉजिस्टिक्स सुधार की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाता, तो उदारीकरण के लाभ सीमित रह जाएंगे और भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (global value chains) में अपेक्षित स्तर तक एकीकृत नहीं हो पाएगा।

भारतब्रिटेन विज़न 2035 की मुख्य विशेषताएँ

प्रौद्योगिकी और नवाचार: प्रौद्योगिकी सुरक्षा पहल पर मुख्य ध्यान दिया जा रहा है, जिसका लक्ष्य अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, दूरसंचार और महत्त्वपूर्ण खनिजों में प्रगति करना है।

व्यापार और आर्थिक सहयोग: नव हस्ताक्षरित CETA विज़न 2035 का केंद्रीय विषय है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाना और रोज़गार सृजन करना है।

संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (JETCO) इसके कार्यान्वयन की देखरेख करेगी तथा द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) को आगे बढ़ाने की योजना बनाएगी।

जलवायु एवं स्थायित्व: भारत और ब्रिटेन हरित वित्त जुटाने, अपतटीय पवन तथा परमाणु प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करने एवं हरित वस्तुओं में संयुक्त आपूर्ति शृंखला बनाने के लिये मिलकर काम करेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन जैसे मंच इन प्रयासों को सुगम बनाएंगे।

रक्षा: दोनों देशों ने 10 वर्षीय रक्षा औद्योगिक रोडमैप पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें जेट इंजन प्रौद्योगिकी, समुद्री सुरक्षा और निर्देशित ऊर्जा हथियारों जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान और विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

ब्रिटेन हिंद महासागर क्षेत्र में रसद के लिये भी भारत पर निर्भर रहेगा और गैर-पारंपरिक समुद्री सुरक्षा खतरों से निपटने हेतु क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा उत्कृष्टता केंद्र (RMSCE) की स्थापना हेतु हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) के तहत भारत के साथ काम करेगा।

शिक्षा और कौशल: ब्रिटेन भारत में विश्वविद्यालय परिसरों की स्थापना को प्रोत्साहित करेगा तथा दोनों देश हरित कौशल साझेदारी के माध्यम से योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता और जलवायु से जुड़े रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

वैश्विक शासन: बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है तथा संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, IMF और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में सुधारों का समर्थन करता है।

भारतब्रिटेन में टकराव (friction) के मुद्दे

  • प्रत्यर्पण नीति में असहमति
    ब्रिटेन भारत द्वारा वांछित आर्थिक अपराधियों (जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी) के प्रत्यर्पण में विलंब करता रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव उत्पन्न होता है।
  • रूसयूक्रेन युद्ध पर नीति विरोध
    भारत की तटस्थता और रणनीतिक संतुलन की नीति, ब्रिटेन की स्पष्ट यूक्रेन-समर्थक स्थिति से मेल नहीं खाती, जिससे रणनीतिक दृष्टिकोण में असहजता आती है।
  • जलवायु शुल्क (CBAM) पर असहमति
    ब्रिटेन और यूरोपीय देशों द्वारा प्रस्तावित कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) जैसे उपाय, भारत के स्टील और अन्य निर्यातों को प्रभावित कर सकते हैं। भारत इसे संरक्षणवाद मानता है।
  • खालिस्तान समर्थक गतिविधियाँ
    ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनों और भारतीय दूतावास पर हमलों ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाया है। भारत ब्रिटेन से सख्त कार्रवाई की अपेक्षा करता है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर मतभेद
    ब्रिटेन, फार्मास्यूटिकल्स में सख्त IPR प्रवर्तन चाहता है, जबकि भारत सस्ती दवाओं और लचीले पेटेंट कानूनों की नीति अपनाता है। इससे व्यापार वार्ताओं में रुकावट आती है।
  • आव्रजन और वीज़ा नीतियाँ
    ब्रिटेन द्वारा आव्रजन पर सख्ती और छात्रों व पेशेवरों पर वीज़ा प्रतिबंध, लोगों के आवागमन को प्रभावित करते हैं और सेवाक्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते हैं।

निष्कर्ष

CEFTA न केवल भारत और ब्रिटेन के आर्थिक संबंधों को पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि यह वैश्विक व्यापारिक शासन व्यवस्था में भारत की भूमिका को सशक्त करता है। एक ऐसे समय में जब बहुपक्षीय संस्थाएं जैसे WTO जटिल दौर से गुजर रही हैं, यह समझौता भारत की नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक सौदेबाज़ी का प्रमाण है।

भविष्य में यह समझौता भारत की ASEAN, EU और दक्षिण एशिया के साथ अन्य व्यापार वार्ताओं को भी प्रभावित कर सकता है।

 

 

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