in

आदर्शवादी अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत का यथार्थवादी स्वरूप

    अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का आशय राज्यों के मध्य राजनीति से हैअंतर्राष्ट्रीय राजनीती के तीन तत्व है (i) राज्यों का अस्तित्व; (ii) राज्यों केबीच संघर्ष; तथा (iii) अपने राष्ट्रहितों की पूर्ति हेतु शक्ति का प्रयोग। एकप्रकार से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति उन क्रियाओं का अध्ययन है जिसकेअंतर्गत राज्य अपने राष्ट्र हिर्ता की पूर्ति हेतु शक्ति के आधार पर संघर्षरतरहते हैं। परन्तु आज अंतरर्राष्ट्रीय राजनीतिका स्थान इससे व्यापकस्वरुप अंतर्राष्ट्रीय संबंधों ने ले लिया है। इसके अंतर्गत राज्यों के पररपरसंघर्ष के साथसाथ सहयोगात्मक पहलुओं को भी अब अंतर्राष्ट्रीयराजनीति के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा, अन्य कईकारक जैसे व्यक्ति, संस्था, संगठन गैरराज्य ईकाइयां भी अंतर्राष्ट्रीयराजनीति अभिन्न अंग बन गये है।
    अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने के कई उपागम है; जिसको आधार बनाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राज्यों के व्यव्हार को समझा जाता है जैसे; आदर्शवादी उपागम, यर्थाथवादी उपागम, व्यवस्थावादी उपागम, मार्क्सवादी उपागम, नारीवादी उपागम, संरचनावादी उपागम आदि इसलेख में केवल आदर्शवादी उपागम की समकालीन समय में प्रासंगिता काविश्लेषण शामिल है
    आदर्शवादी उपागम का जन्म
    फ्रांसी क्रांति (1789) अमेरिकी क्रान्ति (1776) आदर्शवादी उपागम कीउत्पत्ति हेतु प्रेरणा स्रोत रही कौण्डररीट, बुडरो विल्सन, बटन फिल्ड, बनार्ड रसल ने अहिंसा नैतिक आधारों पर एक आदर्श विश्व की रचनाकी कल्पना करते हुए इसकी आधारशिला रखी
    आदर्शवादी उपागम की मूल मान्यताएँ:
    मानव स्वभाव जन्म से ही बहुत अच्छा सहयोगी प्रवत्ति का रहता है।
    मानव द्वारा दूसरों की मदद करने एवं कल्याण की भावना ने हीविकारा को सम्भव बनाया है।
    मानव स्वभाव में विकार व्यक्तियों के कारण नहीं बल्कि बुरी संस्थाओंके विकास के कारण आता है। मानव युद्ध की ओर भी इन संस्थाओंके कारण प्रेरित होता है।
    युद्ध अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की सबसे खराब विशेषता है।
    युद्धों को रोकना असम्भव नहीं है, अपितु संस्थागत सुधारों के माध्यमसे ऐसा करना सम्भव है।
    युद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है, अतः इसका हल भी अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर ही खोजना होगा, स्थानीय स्तर पर नहीं।
    अंतर्राष्ट्रीय आदर्शवाद से जुड़े चिंतक
    अंतर्राष्ट्रीय आदर्शवाद के प्रारम्भिक विचार सेंट साइमन, ग्रेशियश. कॉट जैसे विचारकों के लेखों में निहित थे।
    आधुनिक काल में महात्मा गाँधी, वुडरो विल्सन, हक्सले मीड जैसेविद्वानों ने आदर्शवादी विचारधारा में प्रमुख रूप से योगदान दिया।
    इस विचारधारा को तत्कालीन चिंतकों नॉर्मल एंजेल, कार्ल ड्यूश, चार्ल्स ब्लिट्ज़, माइकल डोले, फ्रांसिसी फुकुयामा, डेविड हेल्ड, जॉन होबसन, म्टेनली होफमेन अल्फ्रेड जिमर्न ने सैद्धांतिक रूप मेंआगे बढ़ाया है।
    आदर्शवाद का वर्तमान स्वरूप और विश्व में इसकी स्वीकार्यता
    आदर्शवाद (Idealism) जो विचारों, मूल्यों और सिद्धांतों की प्राथमिकताको स्वीकार करता है। लेकिन आज के समय में यह सिद्धांत किसी भीराष्ट्र या समाज की नीति का एकमात्र आधार नहीं हो सकता इसलिएअधिकांश देश यथार्थवाद (Realism) और आदर्शवाद (Idealism) केमिश्रित दृष्टिकोण का पालन करते हैं। जैसे संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्वस्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आदर्शवादीदृष्टिकोण पर आधारित हैं, जहां वैश्विक शांति, मानवाधिकार, और सततविकास को बढ़ावा दिया जाता है। यूरोपीय संघ (EU) का गठनआदर्शवादी मूल्यों जैसे कि सहयोग, समानता और लोकतंत्र के सिद्धांतोंपर आधारित है। आज भी शिक्षा प्रणाली में नैतिकता, चरित्र निर्माण औरमूल्यआधारित शिक्षण पर जोर दिया जाता है, जो आदर्शवाद का हीप्रतीक है। गांधीजी का आदर्शवाद अभी भी भारत और दुनिया में प्रेरणा कास्रोत बना हुआ है। पेरिस जलवायु समझौता (Paris Climate Agreement) और सतत विकास लक्ष्य (SDGs) आदर्शवाद कीअवधारणाओं पर आधारित हैं, जहां वैश्विक भलाई को प्राथमिकता दीजाती है।
    यह ध्यान देने योग्य है कि संस्थागत स्तर पर संस्थाए तो आदर्शवादीविचारधारा पर खड़ी है लेकिन जैसे ही एक देश का दुसरे देश के साथसम्बन्ध बनाने का विषय आता है तब लगभग सभी देश यथार्थवादी आधारपर निर्णय करते है अंत: वर्तमान समय में कोई भी देश शुद्ध आदर्शवाद कापालन नहीं करता। अधिकांश देश प्रायोगिक आदर्शवाद (Pragmatic Idealism) अपनाते हैं, जिसमें आदर्शों और व्यावहारिक जरूरतों के बीचसंतुलन बनाया जाता है। विश्व राजनीति में अमेरिका, चीन, रूस औरभारत जैसे बड़े देश यथार्थवादी नीतियों का अधिक पालन करते हैं, लेकिनकुछ नीतियों में आदर्शवादी तत्व भी मौजूद होते हैं।
    वर्तमान वैश्विक परिदृश्य
    वर्तमान में, विश्व दो बड़े युद्धों यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व संघर्षसे जूझरहा है, जो वैश्विक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बने हुए हैं। दूसरी ओर, उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता, ताइवान पर चीन का दबाव, और अमेरिकाचीन के बीच तनाव ने वैश्विक स्तर पर अस्थिरता को औरबढ़ा दिया है। रूस का यूक्रेन पर हमला द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप मेंसबसे बड़ा सैन्य संघर्ष है। अब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी सेयूरोप में असुरक्षा बढ़ गई है। वही हमास और इज़राइल के बीच युद्ध पूरेमध्य पूर्व को अस्थिर कर रहा है। उत्तर कोरिया ने अपने संविधान सेशांतिपूर्ण पुनर्मिलन का उल्लेख हटा दिया है, जिससे दक्षिण कोरिया केसाथ संभावित युद्ध का संकेत मिलता है। ध्यावतय,चीन, रूस, ईरान औरउत्तर कोरिया के बीच सैन्य सहयोग बढ़ा है, जिससे पश्चिमी देशों के लिएचुनौती और बढ़ गई है।
    निष्कर्ष
    दुनिया एक नए शीत युद्ध की ओर बढ़ रही है, जिसमें महाशक्तियों के बीचसीधा सैन्य टकराव होने का खतरा बना हुआ है। वैश्विक स्थिरता के लिएयह सबसे खतरनाक दौरों में से एक है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्यआदर्शवादी विचारधारा पर महत्वपूर्ण प्रश्न खडा करती है, कि अनेको आदर्शवादी संस्थाए होने के बावजूद विश्व में भर में युद्ध और संघर्ष का माहौल बना हुआ है परन्तु आधुनिक युग में आदर्शवाद पूरी तरह सेसमाप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह यथार्थवाद और व्यावहारिकता के साथसंतुलित रूप में मौजूद है। विश्व ने यह स्वीकार किया है, कि आज केसमय में आदर्शवाद का भी यर्थाथ रूप है। एक युग में जहा आदर्शवादऔर यर्थाथवादग्रेट डीबेटका मुख्य केंद्र हे, वही आज ये दोनों उपागमएक दुसरे के पूरक प्रतीत हो रहे है  

What do you think?

ग्लोबल साउथ के विकास में कितना जरूरी अमेरिकी नेतृत्व

ट्रम्प युग में व्यापारिक शक्ति संतुलन और पारस्परिकता का खेल