भारत सरकार ने आप्रवास और विदेशियों से संबंधित विधेयक, 2025 (Immigration and Foreigners Bill, 2025) लोकसभा में पारित कर दिया है। यह विधेयक भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और वैश्विक शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए बनाया गया है। यह विधेयक Transparent, Tech-driven, Time-bound और Trustworthy होगा। यह भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में मदद करेगा और देश को विदेशी निवेश, शिक्षा, अनुसंधान और पर्यटन के लिए अधिक आकर्षक बनाएगा।
आप्रवास और विदेशियों से संबंधित विधेयक, 2025 के बारे में
आप्रवास और विदेशियों से संबंधित विधेयक, 2025 का उद्देश्य अवैध प्रवास को नियंत्रित करना, राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत करना और विदेशी नागरिकों की गतिविधियों पर अधिक निगरानी रखना है। इसके तहत कड़े दंड और नियमों का प्रावधान किया गया है ताकि भारत में गैरकानूनी रूप से रहने वाले व्यक्तियों की पहचान हो सके और उन पर सख्त कार्रवाई की जा सके।
- अगर कोई व्यक्ति जाली पासपोर्ट या वीजा का उपयोग कर भारत में प्रवेश करता है, रहता है या बाहर जाता है, तो उसे सात साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
- यह विधेयक अवैध प्रवासियों पर सख्त कार्रवाई करने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के उद्देश्य से लाया गया है।
- होटल, विश्वविद्यालय, अस्पताल और नर्सिंग होम को विदेशी नागरिकों की सूचना देना अनिवार्य होगा।
- इसका उद्देश्य विदेशियों की निगरानी बढ़ाना और ओवरस्टे (निर्धारित अवधि से अधिक रुकने) के मामलों को रोकना है।
- केंद्र सरकार को अधिकार होगा कि वह उन इलाकों पर नियंत्रण रखे जहां विदेशियों का अधिक आना-जाना होता है।
- सरकार किसी संपत्ति के मालिक को उस क्षेत्र को बंद करने, विशेष शर्तों के साथ उपयोग करने, या विशिष्ट विदेशी नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए कह सकती है।
- इस विधेयक के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी विदेशियों का उचित दस्तावेज़ीकरण हो और वे कानूनी प्रक्रिया का पालन करें।
- IVFRT प्रणाली अर्थात “आप्रवास, वीजा और विदेशी पंजीकरण तथा ट्रैकिंग” को कानूनी आधार दिया गया है ताकि अवैध प्रवासियों पर निगरानी रखी जा सके।
- Foreigners Identification Portal (FIP) पोर्टल 700 से अधिक जिलों में कार्यान्वित किया गया है।
- अब ‘Visa on Arrival’ की सुविधा 31 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों और 6 प्रमुख बंदरगाहों पर मिलेगी।
- अब 9 श्रेणियों में ई-वीज़ा दिया जाएगा, जिसमें पर्यटन, व्यापार, चिकित्सा, आयुष वीज़ा आदि शामिल हैं।
- सरकार का कहना है कि भारत की परंपरा और संस्कृति ही उसकी शरणार्थी नीति है, इसलिए कोई अलग नीति नहीं बनाई जाएगी।
विधेयक से सम्बंधित विवाद
आप्रवास और विदेशियों से संबंधित विधेयक, 2025 को सरकार अवैध प्रवास को रोकने और राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ाने के लिए जरूरी मानती है। हालांकि, इसके सख्त दंड, निगरानी तंत्र और केंद्र सरकार के बढ़ते अधिकारों को लेकर राजनीतिक दलों, मानवाधिकार संगठनों और व्यापारिक समूहों ने चिंता जताई है।
इसका सीधा असर अल्पसंख्यकों, शरणार्थियों, विदेशी छात्रों और व्यापार पर पड़ सकता है, जिससे यह विधेयक विवादों के घेरे में आ गया है।
- नए विधेयक में जाली पासपोर्ट या वीजा के उपयोग पर 7 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया गया है। आलोचकों का मानना है कि यह सख्त दंड प्रवासियों पर अनुचित दबाव डाल सकता है और असली शरणार्थियों को भी प्रभावित कर सकता है।
- होटल, विश्वविद्यालय, अस्पताल और नर्सिंग होम को विदेशी नागरिकों की जानकारी देना अनिवार्य किया गया है। इससे प्रवासियों की निगरानी बढ़ेगी, लेकिन गोपनीयता और मानवाधिकार हनन के सवाल उठाए जा रहे हैं।
- विधेयक के तहत सरकार को संवेदनशील क्षेत्रों में संपत्तियों को बंद करने, उनके उपयोग को नियंत्रित करने, या विदेशी नागरिकों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने का अधिकार मिलेगा। इससे संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत संपत्ति की स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है।
- कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों का दावा है कि यह विधेयक विशेष रूप से कुछ समुदायों को निशाना बना सकता है। आलोचकों को डर है कि इस कानून का दुरुपयोग कर अल्पसंख्यकों या शरणार्थियों को परेशान किया जा सकता है।
- भारत में कई ऐसे शरणार्थी हैं जो युद्ध या उत्पीड़न के कारण अपने देशों से भागकर आए हैं। इस विधेयक से उनके रहने की वैधता पर सवाल उठ सकता है और विदेशी छात्रों को भी परेशानी हो सकती है।
- 40 लाख विदेशी नागरिक हर साल भारत आते हैं। कड़े नियमों से पर्यटन और व्यापार प्रभावित हो
भारत में विधेयक से कानून बनने की प्रक्रिया
भारत में विधेयक (Bill) एक प्रस्तावित कानून होता है, जो संसद में चर्चा और अनुमोदन के बाद कानून (Act) बनता है। संसद में किसी भी विधायी प्रस्ताव को विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और इसके पारित होने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया सात चरणों में पूरी होती है।
- परिचय चरण (Introduction Stage)
- कोई मंत्री या संसद सदस्य विधेयक को संसद में प्रस्तुत करता है।
- इसे प्रथम वाचन (First Reading) कहा जाता है।
- इसमें केवल विधेयक की मूल बातें बताई जाती हैं, कोई चर्चा नहीं होती।
- चर्चा चरण (Discussion Stage)
- सदन के पास तीन विकल्प होते हैं:
- विधेयक पर सीधे चर्चा की जाए।
- इसे स्थायी समिति (Standing Committee) को भेजा जाए ताकि विस्तृत जांच हो सके।
- विधेयक को आम जनता की राय के लिए प्रकाशित किया जाए।
- यदि विधेयक को समिति के पास भेजा जाता है, तो वह गहन जांच और सुधार की सिफारिश करती है।
- संशोधन (Amendments) सिर्फ इसी चरण में किए जा सकते हैं।
- मतदान चरण (Voting Stage)
- इसे तृतीय वाचन (Third Reading) भी कहते हैं।
- बहस सीमित होती है और चर्चा का फोकस विधेयक के समर्थन या विरोध पर होता है।
- मतदान (Voting) के बाद, यदि विधेयक पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है।
- राज्यसभा या लोकसभा में दोहराव (Review in Second House)
- यदि विधेयक लोकसभा में पारित हुआ, तो इसे राज्यसभा में भेजा जाता है (या इसके विपरीत)।
- दूसरा सदन भी इसी प्रक्रिया का पालन करता है।
- यदि दूसरा सदन इसे अस्वीकार कर देता है या इसमें संशोधन करता है, तो इसे पहले सदन में फिर से विचार के लिए भेजा जाता है।
- संयुक्त सत्र (Joint Sitting) (अगर मतभेद हो)
- यदि दोनों सदनों में सहमति नहीं बनती या विधेयक छह महीने तक लंबित रहता है, तो राष्ट्रपति संयुक्त सत्र (Joint Sitting) बुला सकते हैं।
- संयुक्त सत्र में बहस होती है और फिर मतदान होता है।
- यदि बहुमत से विधेयक पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है।
- राष्ट्रपति की मंजूरी (President’s Assent)
- संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत, विधेयक को राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
- राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं:
- मंजूरी देना – विधेयक कानून बन जाएगा।
- विधेयक को वापस भेजना (Reconsideration) – संसद को पुनर्विचार करना होगा।
- अस्वीकृति (Veto) – राष्ट्रपति इसे अस्वीकार कर सकते हैं।
- कानून बनना (Becoming an Act)
- यदि राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति दे देते हैं, तो यह सरकारी गजट में प्रकाशित हो जाता है और कानून (Act) बन जाता है।
- यदि राष्ट्रपति इसे पुनर्विचार के लिए लौटा देते हैं और संसद इसे फिर से पारित कर भेजती है, तो राष्ट्रपति को इसे मंजूरी देनी ही होगी।
राष्ट्रपति की भूमिका (President’s Role in Law Making)
राष्ट्रपति के पास तीन तरह के वीटो अधिकार होते हैं:
- मूल्यांकनात्मक वीटो (Suspensive Veto) – राष्ट्रपति विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं।
- पॉकेट वीटो (Pocket Veto) – राष्ट्रपति अनिश्चित समय तक विधेयक को रोक सकते हैं।
- पूर्ण वीटो (Absolute Veto) – राष्ट्रपति पूरी तरह से विधेयक को अस्वीकार कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत में कानून बनाने की यह सात-चरणीय प्रक्रिया लोकतांत्रिक और पारदर्शी है, जिससे हर विधेयक को पूरी तरह से जांचा और परखा जाता है। संविधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति, संसद और समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रक्रिया का पालन करने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल व्यापक विचार-विमर्श और बहस के बाद ही कोई विधेयक कानून बन सके।