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ईरान-इजरायल युद्ध:भारत पर प्रभाव

भारत और ईरान के बीच गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, जो हजारों वर्षों से चले आ रहे हैं। ये संबंध सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया सभ्यताओं के बीच प्राचीन व्यापार से शुरू हुए। औपचारिक राजनयिक संबंध 15 मार्च, 1950 को एक मैत्री संधि के साथ स्थापित हुए। दोनों देशों के बीच साझा इतिहास में व्यापार, भाषाई संबंध, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान शामिल हैं, विशेष रूप से मुगल और सफाविद काल में, जब भारतीय कला, वास्तुकला और साहित्य पर फारसी प्रभाव पड़ा। हालांकि, आधुनिक संबंध भू-राजनीतिक जटिलताओं, रणनीतिक हितों और बाहरी दबावों से प्रभावित रहे हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  प्राचीन संबंध: भारत और ईरान, 1947 में भारत के विभाजन तक पड़ोसी क्षेत्र थे, और हड़प्पा काल में चांदी, तांबा और हाथी दांत जैसे सामानों का व्यापार करते थे। भाषाई और नस्लीय संबंध 1500 ईसा पूर्व के आसपास मध्य एशिया से आए इंडो-ईरानी जनजातियों से जुड़े हैं।

  मध्यकाल और मुगल युग: फारसी संस्कृति ने भारत को बहुत प्रभावित किया, खासकर दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में। फारसी साहित्य, कविता और वास्तुकला का प्रभाव आज भी दिखता है।

  शीत युद्ध की चुनौतियां: भारत की गैर-गठबंधन नीति और सोवियत संघ से नजदीकी के कारण ईरान के साथ संबंध तनावपूर्ण रहे, जो शाह के शासन में पश्चिमी ब्लॉक का हिस्सा था। 1979 की इस्लामी क्रांति ने संबंधों में सुधार किया, लेकिन भारत-पाकिस्तान संघर्ष में ईरान का पाकिस्तान समर्थन और ईरान-इराक युद्ध के दौरान भारत के इराक से संबंधों ने तनाव पैदा किया।

आधुनिक संबंध

  शीत युद्ध के बाद सुधार: 2001 में तेहरान घोषणा और 2003 में नई दिल्ली घोषणा, क्रमशः भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और ईरानी राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी की यात्राओं के दौरान, ने रणनीतिक सहयोग को गहरा किया। पीएम नरेंद्र मोदी की 2016 की यात्रा ने कनेक्टिविटी, व्यापार और ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें चाबहार बंदरगाह समझौता और 12 एमओयू शामिल थे।

  चाबहार बंदरगाह: यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक परियोजना है, जो भारत को पाकिस्तान को बायपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करती है। मई 2024 में, भारत ने इस बंदरगाह को विकसित और संचालित करने के लिए 10 साल का अनुबंध किया, हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों ने चुनौतियां खड़ी की हैं। भारत, ईरान और रूस की भागीदारी वाला अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) व्यापार कनेक्टिविटी को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है, लेकिन प्रतिबंधों के कारण इसकी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया है।

  व्यापार और ऊर्जा: भारत 2019 तक ईरान के कच्चे तेल का प्रमुख आयातक था, जब तक कि अमेरिकी प्रतिबंधों (CAATSA) ने आयात को रोक नहीं दिया। इसके बावजूद, चावल, चाय, दवाइयां और सूखे मेवों जैसे क्षेत्रों में व्यापार जारी है। 2025 में, दोनों देशों ने व्यापार, सीमा शुल्क और स्वास्थ्य सेवा में आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए समझौते किए।

  हाल के उच्च-स्तरीय संपर्क: मई 2025 में 20वीं भारत-ईरान संयुक्त आयोग की बैठक, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची की सह-अध्यक्षता में, ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की और नए अवसरों की खोज की। 2024 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी और ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियन की मुलाकात ने संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया।

चुनौतियां

  अमेरिकी प्रतिबंध: 2018 में अमेरिका के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) से हटने के बाद प्रतिबंधों ने भारत के ऊर्जा आयात और चाबहार परियोजना को बाधित किया। भारत का अमेरिका और इज़राइल के साथ गठबंधन भी संबंधों को प्रभावित करता है, जैसा कि 2005 में भारत के IAEA में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ वोट से दिखा।

  भू-राजनीतिक तनाव: ईरान का पाकिस्तान समर्थन और कश्मीर पर टिप्पणियां, जैसे सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई की 2017 और 2024 की टिप्पणियां, भारत की तीखी प्रतिक्रिया का कारण बनीं। ईरान के चीन के साथ 25-वर्षीय रणनीतिक साझेदारी और यमन में हूती विद्रोहियों का समर्थन, जो भारत के खाड़ी सहयोगियों (सऊदी अरब और यूएई) के खिलाफ है, जटिलताएं बढ़ाता है।

  इज़राइल-ईरान संघर्ष: भारत के इज़राइल के साथ बढ़ते संबंध, विशेष रूप से रक्षा और प्रौद्योगिकी में, ईरान के साथ संतुलन को जटिल बनाते हैं। 2025 के इज़राइल-ईरान संघर्ष पर भारत की सतर्क प्रतिक्रिया, जिसमें डी-एस्क्रियलेशन और कूटनीति पर जोर दिया गया, दोनों देशों के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश को दर्शाती है।

अवसर

  रणनीतिक कनेक्टिविटी: चाबहार और INSTC भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करते हैं, जिससे क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ता है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में ईरान की भूमिका भारत के पाकिस्तान के प्रभाव को कम करने के हित में है।

  आर्थिक संभावनाएं: ईरान भारत की विशाल अर्थव्यवस्था को व्यापार और निवेश के लिए महत्वपूर्ण मानता है। वीजा नियमों में छट और रुपये में निवेश का भारत का प्रस्ताव व्यापारी के अवसरों को दर्शाता है।

  सांस्कृतिक संबंध: सभ्यतागत संबंध, भारत में शिया मुस्लिम की उल्लेखनीय मौजूदा, और तेहरान में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र लोगों के बीच संबंध को बढ़ावा देता है। दोनों देशों के बीच पर्यटन भी मजबूत है।

वर्तमान स्थिति और भविष्य

हाल के एक्स पोस्ट 2025 में ईरान द्वारा अपहृत भारतीय नागरिकों को बचाने और व्यापार व स्वास्थ्य में समझौतों जैसे सकारात्मक विकास को उजागर करते हैं। हालांकि, ईरान, इज़राइल, अमेरिका और खाड़ी देशों के बीच भारत का संतुलन, साथ ही ईरान के चीन और रूस के साथ गठजोड़, चुनौतियां बनाए रखते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के नए राष्ट्रपति मसूद और पीएम मोदी के तीसरे कार्यकाल में कनेक्टिविटी, ऊर्जा और क्षेत्रीय स्थिरता पर केंद्रित संबंधों को रीसेट करने का अवसर है।

भारत और ईरान संभवतः अपने जटिल संबंधों को साझा आर्थिक और रणनीतिक हितों पर केंद्रित करते हुए, बाहरी दबावों और क्षेत्रीय गतिशीलता का प्रबंधन करते रहेंगे

ईरान-इज़राइल युद्ध का भारत-ईरान संबंधों पर प्रभाव

ईरान और इज़राइल के बीच 2025 में शुरू हुआ सीधा सैन्य संघर्ष (जैसा कि वेब और एक्स स्रोतों में उल्लेखित है) भारत-ईरान संबंधों और भारत की क्षेत्रीय व वैश्विक रणनीति को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। यहाँ इसका हिंदी में विश्लेषण दिया गया है, जिसमें भारत-ईरान संबंधों के संदर्भ में आर्थिक, रणनीतिक, और भू-राजनीतिक प्रभावों पर ध्यान दिया गया है, साथ ही 17 जून, 2025 तक की स्थिति को ध्यान में रखा गया है।

1. आर्थिक प्रभाव

  तेल की कीमतों में उछाल: ईरान एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है, और युद्ध के कारण तेल की कीमतों में 9% से अधिक की वृद्धि हुई है (ब्रेंट क्रूड 74.60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया)। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का 80% से अधिक आयात करता है, को इससे महंगाई और आयात लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है। ईरान से तेल आयात 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण बंद हो गया था, लेकिन युद्ध के कारण क्षेत्रीय तेल आपूर्ति श्रृंखला (जैसे स्ट्रेट ऑफ होर्मुज) में व्यवधान भारत के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।

  वैश्विक व्यापार और विमानन: युद्ध के कारण ईरान के हवाई क्षेत्र में उड़ानों पर प्रतिबंध से यूरोप-एशिया मार्गों पर भारतीय एयरलाइंस को अतिरिक्त लागत (लाखों डॉलर) का सामना करना पड़ रहा है। यह भारत-ईरान व्यापार (जैसे चावल, चाय, और दवाइयां) को भी प्रभावित कर सकता है, जो पहले से ही प्रतिबंधों के कारण सीमित है।

  निवेश और चाबहार परियोजना: चाबहार बंदरगाह, जिसमें भारत ने मई 2024 में 10 साल के लिए निवेश किया, युद्ध और बढ़ते अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण जोखिम में पड़ सकता है। इससे भारत की अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच की रणनीति बाधित हो सकती है।

2. रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव

  भारत की तटस्थता पर दबाव: भारत ने ईरान-इज़राइल संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया है, जैसा कि विदेश मंत्रालय के 13 जून, 2025 के बयान में दिखा, जिसमें डी-एस्केलेशन और कूटनीति पर जोर दिया गया। हालांकि, भारत के इज़राइल के साथ मजबूत रक्षा और प्रौद्योगिकी संबंध और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी के कारण ईरान के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है। ईरान ने अमेरिका को इज़राइल के हमलों का समर्थक माना है, जिससे भारत की स्थिति जटिल हो सकती है।

  चाबहार और INSTC पर असर: चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) भारत की मध्य एशिया और रूस तक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण हैं। युद्ध के कारण ईरान में अस्थिरता या बुनियादी ढांचे को नुकसान (जैसे तेल और गैस क्षेत्रों पर हमले) से इन परियोजनाओं में देरी हो सकती है।

  क्षेत्रीय संतुलन: ईरान की सैन्य और परमाणु क्षमता को नुकसान (जैसे नतांज़ सुविधा पर हमले) से इसकी क्षेत्रीय शक्ति कम हो सकती है, जिसका असर भारत के अफगानिस्तान में हितों पर पड़ सकता है। ईरान तालिबान के खिलाफ भारत का सहयोगी रहा है, और उसकी कमजोरी से पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ सकता है।

  ईरान का परमाणु कार्यक्रम: इज़राइल के हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाया, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह ईरान को परमाणु हथियार की दौड़ में तेजी लाने के लिए प्रेरित कर सकता है। इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी, जिसका भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा, खासकर यदि सऊदी अरब जैसे देश भी परमाणु हथियारों की दौड़ में शामिल होते हैं।

3. भारत-ईरान संबंधों पर विशिष्ट प्रभाव

  द्विपक्षीय व्यापार और सहयोग: युद्ध के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे भारत के साथ व्यापार (2025 में व्यापार, सीमा शुल्क, और स्वास्थ्य सेवा में हुए समझौते) प्रभावित हो सकता है। ईरान भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखता है, लेकिन अस्थिरता और प्रतिबंध इसके रास्ते में बाधा बन सकते हैं।

  कश्मीर पर ईरान का रुख: ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई की कश्मीर पर टिप्पणियां (2017 और 2024) पहले से ही भारत को नाराज कर चुकी हैं। युद्ध के दौरान यदि ईरान भारत के खिलाफ बयानबाजी बढ़ाता है या पाकिस्तान के साथ निकटता दिखाता है, तो द्विपक्षीय संबंध और तनावपूर्ण हो सकते हैं।

  सांस्कृतिक और जन-जन संपर्क: युद्ध के कारण ईरान में अस्थिरता से भारत-ईरान सांस्कृतिक आदान-प्रदान (जैसे तेहरान में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र) और पर्यटन प्रभावित हो सकता है। हालांकि, भारत में शिया समुदाय और साझा सभ्यतागत संबंध इन चुनौतियों के बावजूद संबंधों को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।

  ईरान की आंतरिक अस्थिरता: यदि युद्ध के कारण ईरान में शासन परिवर्तन या अराजकता होती है, तो भारत के लिए एक स्थिर साझेदार खोने का जोखिम है। इससे भारत की क्षेत्रीय रणनीति, विशेष रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया में, प्रभावित हो सकती है।

4. वैश्विक और क्षेत्रीय प्रभाव

  अमेरिका की भूमिका: युद्ध में अमेरिका की अप्रत्यक्ष भागीदारी (जैसे इज़राइल की मिसाइल रक्षा में सहायता) भारत को अपनी कूटनीति में सावधानी बरतने के लिए मजबूर करती है। भारत को अमेरिका और इज़राइल के साथ संबंध बनाए रखते हुए ईरान के साथ रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करना होगा।

  हूती और समुद्री सुरक्षा: ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों द्वारा लाल सागर में शिपिंग पर हमले बढ़ सकते हैं, जिससे भारत के समुद्री व्यापार मार्ग प्रभावित हो सकते हैं। भारत पहले से ही हूती हमलों के कारण बढ़ती शिपिंग लागत का सामना कर रहा है।

  वैश्विक अर्थव्यवस्था: युद्ध के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि और वैश्विक बाजारों में अस्थिरता (जैसे S&P 500 और नैस्डैक में 1.1-1.3% की गिरावट) भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है, जो पहले से ही वैश्विक मंदी और ट्रम्प की टैरिफ नीतियों से जूझ रही है।

5. भारत की प्रतिक्रिया और भविष्य की दिशा

  कूटनीतिक रुख: भारत ने डी-एस्केलेशन का आह्वान किया है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। यह भारत की बहु-संरेखण नीति को दर्शाता है, जिसमें वह इज़राइल, ईरान, और खाड़ी देशों (सऊदी अरब, यूएई) के साथ संबंध बनाए रखना चाहता है।

  रणनीतिक सावधानी: भारत को चाबहार और INSTC जैसी परियोजनाओं को बचाने के लिए कूटनीतिक और आर्थिक उपाय तेज करने होंगे। साथ ही, ईरान के साथ व्यापार को रुपये में बढ़ाने का प्रस्ताव युद्ध के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।

  क्षेत्रीय स्थिरता: भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया में स्थिरता के लिए ईरान के साथ सहयोग जारी रखना चाहेगा, लेकिन युद्ध के कारण ईरान की कमजोरी भारत को रूस और अन्य भागीदारों पर अधिक निर्भर होने के लिए मजबूर कर सकती है।

निष्कर्ष

ईरान-इज़राइल युद्ध भारत-ईरान संबंधों के लिए कई चुनौतियां और कुछ अवसर लाता है। तेल की कीमतों में वृद्धि और चाबहार जैसी परियोजनाओं पर जोखिम भारत की आर्थिक और रणनीतिक योजनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, ईरान की कमजोरी और क्षेत्रीय अस्थिरता भारत के अफगानिस्तान और मध्य एशिया में हितों को नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि, भारत की तटस्थ कूटनीति और सांस्कृतिक संबंध युद्ध के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं। भविष्य में, भारत को अपनी बहु-संरेखण नीति को और मजबूत करते हुए क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देनी होगी।

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