मुद्दा क्या है?
13 जून को इज़राइल ने ईरान हमला कर दिया, जिसमे अमेरिका भी शामिल रहा। परिणामस्वरुप ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम पुन: सक्रिय कर दिया है। क्योंकि इरान अब समझ चुका है कि परमाणु कार्यक्रम अब सिर्फ एक राजनीतिक या कूटनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक सोच का मुख्य तत्व है। अमेरिका और इज़राइल की आक्रामक नीति को ध्यान में रखते हुए यदि वह अभी भी परमाणु शक्ति नहीं बनेगा, तो उसकी संप्रभुता और सुरक्षा खतरे में रहेगी।
इसराइल और अमेरिका की नीति
नेतन्याहू चाहते हैं कि इज़राइल क्षेत्र एकमात्र परमाणु शक्ति बना रहे। उन्हें लगता है कि अगर ईरान को परमाणु हथियार मिल गए, तो यह इज़राइल की रणनीतिक बढ़त को खत्म कर देगा। उन्होंने 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) का विरोध किया था।
- नेतन्याहू का विश्वास है कि लिबिया की तरह यदि कोई देश अपने परमाणु कार्यक्रम को रोक दे, तो वह बाहरी हस्तक्षेप का शिकार हो सकता है। इसलिए एकमात्र सुरक्षित विकल्प है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त किया जाए, चाहे इसके लिए सैन्य हमला ही क्यों न करना पड़े।
- अमेरिका ने भी पहले JCPOA का समर्थन किया था, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने 2018 में इससे पीछे हटते हुए ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए। इसके बाद ईरान ने भी अपने परमाणु कार्यक्रम को फिर से सक्रिय किया।
ईरान की सामरिक रणनीतियां
ईरान का मानना है कि परमाणु शक्ति प्राप्त करना उसकी सुरक्षा की गारंटी है, खासकर जब अमेरिका और इज़राइल जैसे देश शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाते हैं। ईरान की नज़र उत्तर कोरिया जैसे उदाहरणों पर भी है, जिन्होंने परमाणु हथियारों की मदद से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित की है। इसलिए अमेरिका के नए व्यव्हार के कारण ईरान ने फिर से संवर्धन शुरू कर दिया।
- यद्दपि 2015 में हुए समझौते के तहत ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम पर रोक लगाई थी और IAEA को निरीक्षण की अनुमति दी थी।
- अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाइयों (जैसे कासिम सुलेमानी की हत्या) और इज़राइल द्वारा साइबर हमलों और वैज्ञानिकों की हत्या से ईरान की रणनीति और कठोर हो गई।
- ईरान को लगता है कि पश्चिमी देशों से कोई भी समझौता टिकाऊ नहीं है, और केवल आत्मनिर्भर परमाणु शक्ति ही सुरक्षा की गारंटी है।
- अब इरान भी उत्तर कोरिया के तरह ‘निवारक सिद्धांत’ (deterrence doctrine) को अपनाना चाहता है।
निवारक सिद्धांत (Deterrence Doctrine)
- यह एक सामरिक (strategic) और सुरक्षा नीति है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई शत्रु देश या समूह किसी प्रकार का आक्रमण या हानिकारक कार्य न करे, क्योंकि उसे इसके गंभीर और अस्वीकार्य परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
- यह “डर के संतुलन से शांति” लाने का प्रयास करता है, यदि दोनों पक्षों के पास इतनी शक्ति हो कि वे एक-दूसरे को पूरी तरह नष्ट कर सकें, तो कोई भी पहला हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा।
निवारक सिद्धांत के मुख्य तत्व (Core Elements of Deterrence)
- प्रतिशोध की क्षमता (Second-strike capability): हमला झेलने के बाद भी जवाब देने की पूरी क्षमता बनी रहे
- विश्वसनीयता (Credibility): विरोधी को यह यकीन हो कि जवाबी हमला अवश्य होगा
- स्पष्ट संप्रेषण (Clear communication): विरोधी को चेतावनी और नीति की स्पष्ट जानकारी दी जाती है
- उद्देश्य का संकल्प (Resolve): विरोधी को यह यकीन दिलाना कि हमला हुआ तो जवाब निश्चित है
परमाणु निवारक सिद्धांत (Nuclear Deterrence)
परमाणु हथियारों के संदर्भ में यह सिद्धांत और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
उदाहरण:
- शीत युद्ध (Cold War) के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के पास इतने परमाणु हथियार थे कि दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह नष्ट कर सकते थे, इसे Mutually Assured Destruction (MAD) कहते हैं। इसी डर ने सुनिश्चित किया कि दोनों देश कभी सीधे युद्ध में न उलझें।
अन्य देश परमाणु निवारण का उपयोग कैसे करता है
निवारक सिद्धांत एक ऐसी रणनीति है जो भय और शक्ति के संतुलन पर आधारित है। यह शांति बनाए रखने में मदद कर सकता है, लेकिन इसका प्रयोग अत्यंत सावधानी और ज़िम्मेदारी से करना ज़रूरी होता है।
- भारत की परमाणु नीति “No First Use” (एनएफयू) पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि भारत किसी भी देश पर पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, लेकिन यदि उस पर हमला किया गया, तो वह पूरी ताकत से जवाब देगा। यह नीति संयम और ज़िम्मेदारी की मिसाल मानी जाती है।
- इसके विपरीत, पाकिस्तान अपनी नीति में First Use की संभावना को खुला रखता है, यानी वह परिस्थिति के अनुसार पहले हमला भी कर सकता है। इसका उद्देश्य भारत को पारंपरिक युद्ध से भी डराना है।
- उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह निवारक सिद्धांत पर आधारित मानता है। उसके अनुसार, परमाणु हथियारों का होना उसकी संप्रभुता, शासन और सुरक्षा की गारंटी है, खासकर अमेरिका जैसे शक्तिशाली विरोधियों से बचने के लिए।
- ईरान मानता है कि अमेरिका और इज़राइल जैसे शत्रुओं से सुरक्षित रहने के लिए परमाणु शक्ति एकमात्र विश्वसनीय गारंटी है।
ये देश अपनी-अपनी ऐतिहासिक, भौगोलिक और रणनीतिक जरूरतों के अनुसार निवारक सिद्धांत को अपनाते हैं, जो उनकी विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को दिशा देता है।
निवारक सिद्धांत क्यों विवादित है?
निवारक सिद्धांत को लेकर विवाद इसलिए है क्योंकि यह जितना सुरक्षा प्रदान करता है, उतना ही जोखिम भी बढ़ाता है।
- इस सिद्धांत का एक प्रमुख लाभ यह है कि यह युद्ध को रोकता है। जब दोनों पक्ष जानते हैं कि अगर उन्होंने हमला किया तो जवाबी हमला भी उतना ही घातक होगा, तो वे युद्ध से बचने की कोशिश करते हैं। इसी कारण से यह वैश्विक शांति बनाए रखने में भूमिका निभाता है।
- इसके अलावा, यह सामरिक संतुलन बनाए रखता है। जब शक्तिशाली देश एक-दूसरे के प्रति जवाबी कार्रवाई की क्षमता रखते हैं, तो कोई भी पक्ष सैन्य रूप से हावी नहीं हो सकता, जिससे संतुलन बना रहता है।
- निवारक सिद्धांत एक और लाभ यह देता है कि यह देशों को अपनी संप्रभुता की रक्षा का भरोसा देता है। विशेषकर छोटे या खतरे में पड़े देश इसे अंतिम सुरक्षा कवच मानते हैं।
- लेकिन इसके कई समस्याएँ भी हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह हथियारों की दौड़ को बढ़ावा देता है। जब एक देश परमाणु क्षमता बढ़ाता है, तो अन्य देश भी खुद को पीछे नहीं रखना चाहते और इससे वैश्विक हथियार भंडारण बढ़ता है।
- दूसरी समस्या यह है कि एक छोटी सी चूक या गलतफहमी भी विनाशकारी हो सकती है। यदि किसी चेतावनी प्रणाली में तकनीकी गलती हो जाए, तो झूठे खतरे की प्रतिक्रिया में असली हमला हो सकता है।
- तीसरी समस्या यह है कि यह सिद्धांत शांति के बजाय भय पर आधारित होता है। देशों के बीच विश्वास और संवाद के बजाय यह रणनीति डर और धमकी पर टिकी होती है, जिससे दीर्घकालिक शांति अस्थिर हो सकती है।
- इसलिए निवारक सिद्धांत एक दोधारी तलवार की तरह है: यह सुरक्षा भी देता है और खतरा भी बढ़ाता है।
निष्कर्ष
ईरान अब परमाणु शक्ति को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी मानता है, खासकर अमेरिका और इज़राइल की आक्रामक नीतियों को देखते हुए। एक तरफ इज़राइल चाहता है कि क्षेत्र में सिर्फ वही परमाणु शक्ति बना रहे, जबकि अमेरिका की नीतियाँ लगातार बदलती रही हैं।
इस परिस्थिति में, ईरान ‘निवारक सिद्धांत’ को अपनाकर उत्तर कोरिया की तरह परमाणु हथियारों से अपनी संप्रभुता सुरक्षित करना चाहता है। हालांकि यह सिद्धांत सुरक्षा देता है, लेकिन इसके साथ ही हथियारों की दौड़, भय और अस्थिरता भी बढ़ाता है। स्थायी शांति के लिए केवल शक्ति नहीं, बल्कि संवाद और विश्वास की भी ज़रूरत होती है।