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ऑपरेशन सिंदूर : भारत की विदेश नीति

ऑपरेशन सिंदूर

अगर हम “ऑपरेशन सिंदूर “ को एक हालिया सैन्य या रणनीतिक कार्रवाई मानें (जैसे सीमापार कार्रवाई, आतंकवाद-विरोधी अभियान या समुद्री सुरक्षा ऑपरेशन), तो यह भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण संकेत देता है।

1. सक्रिय विदेश नीति की पुष्टि:

भारत ने अब “रणनीतिक संयम” की नीति से आगे बढ़कर “सक्रिय प्रतिक्रिया” और “सक्रिय प्रतिरोध” (proactive resistance) की दिशा अपनाई है। ऑपरेशन सिंधुर इस नई नीति का उदाहरण बन सकता है।

  • यह बताता है कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि रणनीतिक रूप से पहले से तैयारी करता है।

  • इससे भारत की रक्षा नीति और विदेश नीति का सामंजस्य बेहतर दिखता है।

2. वैश्विक साझेदारों के साथ तालमेल:

अगर ऑपरेशन के दौरान अमेरिका, फ्रांस, या इंडो-पैसिफिक साझेदारों से सहयोग रहा हो, तो यह भारत की बहुपक्षीय कूटनीति (multilateral diplomacy) को मजबूत करता है।

  • QUAD या I2U2 जैसे मंचों पर भारत की भूमिका और सक्रिय हो सकती है।

  • मित्र राष्ट्र भारत को एक जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति के रूप में देखेंगे।

3. चीन को परोक्ष संदेश:

ऐसे ऑपरेशनों से भारत यह संकेत देता है कि वह अपनी संप्रभुता और सुरक्षा के प्रति कोई समझौता नहीं करेगा, चाहे वह LAC हो या इंडो-पैसिफिक क्षेत्र।

  • भारत की रक्षा तैयारी का प्रभाव चीन की रणनीति पर भी पड़ता है।

  • यह एक डिटरेंस (निवारक प्रभाव) पैदा करता है।

4. द्विपक्षीय (Bilateral) संबंधों पर प्रभाव

  • पाकिस्तान:
    यदि ऑपरेशन सिंधुर पाकिस्तान से जुड़ा हो, तो यह द्विपक्षीय वार्ता की संभावनाओं को और कमजोर कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को यह दिखाना होगा कि यह आत्मरक्षा के अधिकार के तहत कार्रवाई थी।

  • चीन:
    यदि ऑपरेशन सिंधुर पूर्वी लद्दाख या अरुणाचल के सन्दर्भ में हुआ हो, तो यह चीन को एक परोक्ष सैन्य और कूटनीतिक संदेश देता है।
    चीन के साथ जारी सीमा विवाद के संदर्भ में यह ऑपरेशन डिटरेंस डिप्लोमेसी का हिस्सा हो सकता है।

  • अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्र:
    यदि ऑपरेशन सिंधुर भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति से जुड़ा है, तो अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे QUAD साझेदार इसका अप्रत्यक्ष समर्थन कर सकते हैं। इससे भारत की “नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर” (NSP) की छवि मजबूत होगी।

5. बहुपक्षीय मंचों पर प्रभाव

  • UNSC:
    भारत यदि ऑपरेशन को वैध आत्मरक्षा (Article 51 of the UN Charter) के तहत प्रस्तुत करता है, तो इसकी स्वीकार्यता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक हो सकती है।

  • BRICS और SCO:
    यदि ऑपरेशन से रूस या चीन अप्रसन्न होते हैं, तो भारत को इन मंचों पर रणनीतिक लचीलापन (strategic balancing) बनाए रखना होगा।

  • G20 और Global South:
    भारत के विकासशील देशों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की कोशिश पर असर पड़ सकता है, खासकर यदि ऑपरेशन विवादास्पद हो।

6. भारत की विदेश नीति सिद्धांतों में परिवर्तन

“नॉन-अलाइनमेंट” से “मल्टी-अलाइनमेंट” की ओर:

ऑपरेशन सिंधुर दिखाता है कि भारत अब पुरानी गुटनिरपेक्ष नीति की सीमाओं से निकलकर लाभ-आधारित गठबंधनों पर ध्यान दे रहा है।

“शांति का पक्षधर” से “शांति-सुरक्षा संतुलन” की ओर:

भारत की छवि केवल कूटनीतिक और नैतिक शक्ति तक सीमित नहीं रही; अब वह रणनीतिक विवेक के साथ सैन्य शक्ति का प्रयोग भी करता है।

7. सैन्य-तकनीकी कूटनीति (Defence Diplomacy)

  • साझा सैन्य अभ्यासों (Joint Exercises) जैसे मालाबार, Yudh Abhyas, आदि की भूमिका बढ़ सकती है।

  • रक्षा निर्यात नीति को बल मिलेगा, जैसे ब्रह्मोस मिसाइल या मेड-इन-इंडिया रक्षा प्लेटफॉर्म।

  • ISR नेटवर्क (Intelligence, Surveillance, Rconnaissance) साझेदारी—सैटेलाइट डेटा साझा करने के समझौते और बढ़ सकते हैं।

  • 8. पाकिस्तान के विरुद्ध भारत द्वारा अब तक किये गए सैन्य अभियान

    • ऑपरेशन रिडल (1965 भारत-पाक युद्ध): यह 1965 में पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा (एलओसी) का उल्लंघन करने और जम्मू और कश्मीर में प्रवेश करने  के बाद पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर और ग्रैंड स्लैम के प्रति भारत की प्रतिक्रिया थी ।
    • ऑपरेशन एब्लेज (1965 भारत-पाक युद्ध): यह अप्रैल 1965 में भारतीय सेना द्वारा किया गया एक पूर्व-आक्रमण था, जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर, विशेष रूप से कच्छ के रण में बढ़ते तनाव के कारण शुरू किया गया था। 
      • यद्यपि इससे तत्काल युद्ध की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई, लेकिन इसने भारत की सैन्य तत्परता को प्रदर्शित किया, तथा अगस्त 1965 में प्रारम्भ होने वाले पूर्ण पैमाने के युद्ध के लिए मंच तैयार कर दिया ।
      • ऑपरेशन रिडल के साथ इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को पीछे धकेलने में मदद की और ताशकंद समझौते (1966) का मार्ग प्रशस्त किया।
    • ऑपरेशन कैक्टस लिली (1971 भारत-पाक युद्ध): यह बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान भारतीय सेना और वायु सेना द्वारा किया गया एक हवाई हमला अभियान था । 
      • दिसंबर 1971 में आयोजित इस अभियान में मेघना नदी को पार करना, आशुगंज/भैरब बाजार में पाकिस्तानी गढ़ को पार करना तथा ढाका की ओर बढ़ना शामिल था।
    • ऑपरेशन ट्राइडेंट और पायथन (1971): ये 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के कराची बंदरगाह पर भारतीय नौसेना के आक्रामक ऑपरेशन हैं ।
      • ऑपरेशन ट्राइडेंट, इस क्षेत्र में एंटी-शिप मिसाइलों का पहला प्रयोग था । इन अभियानों ने पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश के निर्माण में योगदान दिया।
    • ऑपरेशन मेघदूत (1984): 13 अप्रैल 1984 को , प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, भारत ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया, जिसके तहत बिलाफोंड ला और सिया ला जैसे प्रमुख दर्रे सहित सियाचिन ग्लेशियर और साल्टोरो रिज पर नियंत्रण हासिल किया गया ।
    • ऑपरेशन विजय (1999): यह कारगिल युद्ध  के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जा किये गये क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए भारत का सैन्य अभियान था ।
      • इसने सफलतापूर्वक पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया, जिससे भारत की जीत हुई।
    • ऑपरेशन सफ़ेद सागर (1999 कारगिल संघर्ष): इसमें भारतीय वायुसेना ने नियंत्रण रेखा पर भारतीय ठिकानों से पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए हवाई हमले किए थे। यह 1971 के बाद से हवाई शक्ति का पहला बड़े पैमाने पर इस्तेमाल था ।
      • इस ऑपरेशन से भारत को कारगिल में सभी सामरिक ऊंचाइयों को सफलतापूर्वक हासिल करने में मदद मिली।
    • 2016 सर्जिकल स्ट्राइक: उरी हमले के जवाब में भारतीय विशेष बलों द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी । इस ऑपरेशन में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी लॉन्च पैड को निशाना बनाया गया था।
    • ऑपरेशन बंदर (2019 बालाकोट हवाई हमले): जम्मू और कश्मीर में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर 2019 के हमले के जवाब में ।
      • भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर हवाई हमले किए ।
      • यह ऑपरेशन 1971 के बाद नियंत्रण रेखा पर किया गया पहला हवाई हमला था, जिसके कारण भारत और पाकिस्तान के बीच संक्षिप्त हवाई झड़पें हुईं।

निष्कर्ष:

ऑपरेशन सिंधुर, भारत की बदलती विदेश नीति का प्रतीक हो सकता है — जहां कूटनीति और शक्ति संतुलन साथ-साथ चलते हैं। भारत अब वैश्विक मंच पर मूक दर्शक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। ऐसे ऑपरेशन न केवल उसकी रक्षा क्षमताओं को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि भारत अब अपने हितों की रक्षा के लिए निर्णायक कदम उठाने में संकोच नहीं करता।

पहलूसंभावित प्रभाव
सामरिक संतुलनभारत की समुद्री और सीमा सुरक्षा में मजबूती
निवेश/FDIयदि स्थिरता बनी रहे तो FDI को बढ़ावा
वैश्विक भूमिकाUNSC में स्थायी सदस्यता की दावेदारी और मज़बूत
 

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