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औपनिवेशिकवाद और उपनिवेश-उन्मूलन: इतिहास, कारण, प्रभाव और आधुनिक संदर्भ

Colonialism और Decolonization

औपनिवेशिकवाद एक ऐसी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक शक्तिशाली राष्ट्र किसी दूसरे देश या क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है और उसे अपने हितों के अनुसार शासित करता है। औपनिवेशिक शक्ति (Colonial Power) न केवल उस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार कर लेती है, बल्कि वहाँ के लोगों की श्रमशक्ति और संस्कृति पर भी प्रभुत्व जमाती है।

औपनिवेशिकवाद का उद्देश्य केवल शासन नहीं, बल्कि आर्थिक दोहन और सांस्कृतिक नियंत्रण भी होता है। इस प्रकार यह केवल राजनीतिक प्रणाली नहीं, बल्कि एक आर्थिक शोषण और वैचारिक वर्चस्व (Ideological Domination) की प्रक्रिया है।

औपनिवेशिकवाद की उत्पत्ति

औपनिवेशिकवाद की जड़ें 15वीं शताब्दी के यूरोपीय समुद्री अन्वेषणों में मिलती हैं। पुर्तगाल और स्पेन जैसे देशों ने सबसे पहले एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के नए क्षेत्रों की खोज कर वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित किए।
इसके बाद इंग्लैंड, फ्रांस, नीदरलैंड और बाद में जर्मनी व इटली जैसे देशों ने भी उपनिवेशवादी दौड़ में भाग लिया।

औपनिवेशिक विस्तार के पीछे प्रमुख प्रेरक शक्तियाँ:-

  • नए व्यापारिक मार्गों की खोज,
  • सस्ते कच्चे माल की प्राप्ति,
  • उत्पादित वस्तुओं के लिए नए बाज़ारों की आवश्यकता,
  • और ‘सभ्यता फैलाने’ (Civilizing Mission) के नाम पर सांस्कृतिक नियंत्रण।

औपनिवेशिक शासन के प्रमुख रूप

औपनिवेशिकवाद को विभिन्न रूपों में देखा गया:-

  1. प्रत्यक्ष शासन (Direct Rule): जिसमें उपनिवेश पर पूरी तरह विदेशी शासन लागू किया जाता है, जैसे भारत में ब्रिटिश शासन।
  2. अप्रत्यक्ष शासन (Indirect Rule): जिसमें स्थानीय शासकों को नाममात्र का अधिकार देकर औपनिवेशिक शक्ति वास्तविक नियंत्रण बनाए रखती है, जैसे अफ्रीका के कई ब्रिटिश उपनिवेशों में।
  3. सेटलर कॉलोनी (Settler Colony): जहाँ उपनिवेशी देश के लोग बस जाते हैं और स्थानीय लोगों को हाशिए पर धकेल दिया जाता है, जैसे दक्षिण अफ्रीका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में।

औपनिवेशिकवाद के प्रभाव

(1) राजनीतिक प्रभाव: औपनिवेशिक शासन ने स्वदेशी राजनीतिक संस्थाओं और प्रशासनिक ढाँचों को नष्ट कर दिया।

  • यूरोपीय शासन प्रणालियों और कानूनों को लागू किया गया।
  • स्वतंत्रता और आत्मशासन की भावना को दबा दिया गया।

(2) आर्थिक प्रभाव: उपनिवेशों की अर्थव्यवस्था को ‘मातृदेश’ के हित में ढाला गया।

  • कच्चे माल का निर्यात और तैयार माल का आयात, इस नीति ने उपनिवेशों को निर्भर अर्थव्यवस्थाएँ बना दिया।
  • स्थानीय उद्योग-धंधे नष्ट हुए और कृषि को निर्यातमुखी बनाया गया।

(3) सामाजिक सांस्कृतिक प्रभाव: स्थानीय संस्कृति, परंपराओं और भाषाओं को ‘पिछड़ा’ बताकर यूरोपीय संस्कृति को श्रेष्ठ माना गया।

  • शिक्षा प्रणाली को ऐसा बनाया गया जिससे औपनिवेशिक प्रशासन के लिए अधीन वर्ग तैयार हों।
  • धार्मिक और नस्लीय श्रेष्ठता (Racial Superiority) की विचारधारा को फैलाया गया।

औपनिवेशिकवाद के वैचारिक औचित्य (Ideological Justifications)

औपनिवेशिक शक्तियाँ अपने शासन को ‘सभ्यता मिशन’ (Civilizing Mission), ‘ईश्वर की इच्छा’, या ‘वैज्ञानिक प्रगति’ के नाम पर उचित ठहराती थीं।
उन्होंने दावा किया कि वे ‘असभ्य’ समाजों में आधुनिकता, कानून और शिक्षा ला रही हैं।
वास्तव में यह तर्क आर्थिक और राजनीतिक शोषण को वैध ठहराने के लिए गढ़े गए थे।

औपनिवेशिकवाद का वैश्विक स्वरूप

  • 19वीं सदी तक यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश हिस्सों को अपने अधीन कर लिया था।
  • इस काल को ‘नव-औपनिवेशिक युग’ (Age of New Imperialism) कहा जाता है।
  • इसमें औपनिवेशिक शक्तियाँ न केवल भू-भागों पर शासन करती थीं, बल्कि सांस्कृतिक प्रभुत्व और आर्थिक नियंत्रण के माध्यम से भी अपना वर्चस्व बनाए रखती थीं।

उपनिवेशउन्मूलन (Decolonization)

‘उपनिवेश-उन्मूलन’ (Decolonization) का अर्थ है, औपनिवेशिक शासन का अंत और उपनिवेशों का स्वतंत्र एवं स्वशासी राष्ट्रों के रूप में उदय।

  • यह वह ऐतिहासिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के उपनिवेश यूरोपीय साम्राज्यों से मुक्त होकर अपने राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर पुनः नियंत्रण प्राप्त करते हैं।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध (1939–45) के बाद औपनिवेशिक शक्तियों की आर्थिक और सैन्य क्षमता काफी कमजोर हो गई थी।
  • उसी समय उपनिवेशों में राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता आंदोलनों और आत्मनिर्णय (Self-Determination) की मांग तेज़ी से उभरकर सामने आई।
  • संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थापना (1945) ने भी विश्व को स्वतंत्रता और समानता के नए आदर्शों से परिचित कराया।

उपनिवेशउन्मूलन के कारण

(1) राष्ट्रीय आंदोलन (National Movements)

  • भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम, घाना, केन्या, नाइजीरिया आदि देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों ने औपनिवेशिक शासन की नींव हिला दी।
  • स्थानीय जनता ने अहिंसक आंदोलन, विद्रोह और जनसंघर्षों के माध्यम से स्वराज्य की मांग उठाई।
  • गांधी, नेहरू, सुकर्णो, क्वामे एनक्रूमा, और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने जन-जागरण में निर्णायक भूमिका निभाई।

(2) विश्वयुद्धों का प्रभाव (Impact of World Wars)

  • दोनों विश्वयुद्धों ने यूरोपीय साम्राज्यों को आर्थिक रूप से कमजोर किया।
  • एशिया और अफ्रीका के सैनिकों ने युद्धों में भाग लेकर राजनीतिक जागरूकता प्राप्त की।
  • औपनिवेशिक शक्तियाँ अब अपने साम्राज्यों को बनाए रखने की स्थिति में नहीं थीं।

(3) संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय दबाव

  • संयुक्त राष्ट्र ने स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार को मानव अधिकारों का मूल अंग घोषित किया।
  • उपनिवेशों की स्वतंत्रता को अंतरराष्ट्रीय नैतिक दायित्व माना गया।
  • अमेरिका और सोवियत संघ ने भी औपनिवेशिक शासन का विरोध किया, हालांकि अपने-अपने भू-राजनीतिक हितों के अनुसार।

(4) आर्थिक कारक

  • उपनिवेशों को बनाए रखना यूरोपीय देशों के लिए अब लाभदायक नहीं रहा।
  • युद्धोत्तर पुनर्निर्माण (Post-war Reconstruction) के लिए उन्हें अपने देश की अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा।
  • उपनिवेशों में शिक्षा और संचार के प्रसार से आर्थिक आत्मनिर्भरता की आकांक्षा बढ़ी।

उपनिवेशउन्मूलन की प्रक्रिया (Process of Decolonization)

  1. शांतिपूर्ण मार्ग (Peaceful Transition): कुछ देशों ने बातचीत और संवैधानिक उपायों के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त की जैसे भारत (1947), श्रीलंका (1948), घाना (1957)।
  2. सशस्त्र संघर्ष (Armed Struggle): कई देशों में स्वतंत्रता हिंसक संघर्षों और क्रांतियों के माध्यम से मिली, जैसे इंडोनेशिया, अल्जीरिया, केन्या, वियतनाम।
  3. क्रमिक स्वायत्तता (Gradual Autonomy): कुछ उपनिवेशों को पहले ‘डोमिनियन स्टेटस’ या सीमित स्वशासन मिला और बाद में पूर्ण स्वतंत्रता दी गई। जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड।

उपनिवेशउन्मूलन के परिणाम (Consequences)

(1) राजनीतिक परिणाम: विश्व मानचित्र पर नये राष्ट्रों का उदय हुआ।

  • एशिया और अफ्रीका में राष्ट्रीय राज्यों (Nation States) की स्थापना हुई।
  • स्वतंत्रता के बाद इन देशों में लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना का प्रयास किया गया, परंतु अनेक स्थानों पर सत्तावादी शासन भी उभरा।

(2) आर्थिक परिणाम: उपनिवेशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने की प्रक्रिया शुरू की।

  • प्रारंभिक वर्षों में आर्थिक निर्भरता (Economic Dependence) बनी रही — जिसे ‘नव-औपनिवेशिकता’ (Neo-colonialism) कहा गया।
  • अंतरराष्ट्रीय सहायता और निवेश पर निर्भरता बढ़ी।

(3) सांस्कृतिक परिणाम: शिक्षा, भाषा और प्रशासन में औपनिवेशिक प्रभाव बना रहा।

  • राष्ट्रवाद और स्वदेशी संस्कृति के पुनरुद्धार का आंदोलन शुरू हुआ।
  • राष्ट्रीय पहचान (National Identity) की खोज एक निरंतर प्रक्रिया बन गई।

नवऔपनिवेशिकता (Neo-Colonialism)

उपनिवेशों ने राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली, परंतु आर्थिक और सांस्कृतिक निर्भरता बनी रही। विकसित देशों ने निवेश, व्यापार, तकनीकी सहायता और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से इन पर नियंत्रण बनाए रखा।

  • अर्थशास्त्री क्वामे एनक्रूमा ने इसे ‘नए रूप में साम्राज्यवाद’ (Imperialism in disguise) कहा।

उपनिवेशउन्मूलन का वैश्विक महत्व

  • इस प्रक्रिया ने विश्व राजनीति को दो ध्रुवों पश्चिमी पूंजीवादी और पूर्वी साम्यवादी खेमों में बाँट दिया।
  • नव-स्वतंत्र देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था शीतयुद्ध की राजनीति से दूरी बनाकर स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना।
  • इससे वैश्विक राजनीति में एशिया और अफ्रीका की आवाज़ सशक्त होकर उभरी।

उपनिवेशउन्मूलन और उत्तरऔपनिवेशिक विचारक

लेखक / विचारकप्रमुख सिद्धांत / कृतिमुख्य विचार
फ्रांत्ज़ फैनॉन (Frantz Fanon)“The Wretched of the Earth” (1961)उपनिवेशवाद केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि मानसिक और सांस्कृतिक दमन है। मुक्ति के लिए हिंसक संघर्ष आवश्यक बताया।
अल्बर्ट मेमी (Albert Memmi)“The Colonizer and the Colonized”औपनिवेशिक संबंध परस्पर निर्भरता का जाल है — शोषक और शोषित दोनों एक अस्वस्थ संबंध में बंधे हैं।
एडवर्ड सईद (Edward Said)“Orientalism” (1978)पश्चिमी ज्ञान और साहित्य ने “पूर्व” को एक ‘असभ्य, रहस्यमय और पिछड़े’ रूप में गढ़ा — यह वैचारिक औपनिवेशिकता का रूप है।
होमी के. भाभा (Homi K. Bhabha)Hybridity Theoryउपनिवेशित समाजों की संस्कृति मिश्रित (Hybrid) होती है — न पूरी तरह औपनिवेशिक, न पूरी तरह स्वदेशी।
गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक (Gayatri Chakravorty Spivak)“Can the Subaltern Speak?” (1988)उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हाशिए के लोग (Subalterns) अपनी आवाज़ खुद व्यक्त कर सकते हैं या औपनिवेशिक ढाँचे ही उन्हें परिभाषित करते हैं।
क्वामे एनक्रूमा (Kwame Nkrumah)“Neo-Colonialism: The Last Stage of Imperialism” (1965)राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद भी आर्थिक नियंत्रण के रूप में नव-औपनिवेशिकता जारी है।
महात्मा गांधी (M.K. Gandhi)“Hind Swaraj” (1909)आत्मनिर्भरता और नैतिक स्वराज का सिद्धांत — औपनिवेशिकता केवल बाहरी शासन नहीं, बल्कि मानसिक दासता से मुक्ति की प्रक्रिया भी है।
जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru)“Discovery of India”उन्होंने भारतीय इतिहास को औपनिवेशिक व्याख्याओं से मुक्त करने और स्वदेशी दृष्टिकोण से समझने पर बल दिया।
अमर्त्य सेन (Amartya Sen)Capability Approachउन्होंने कहा कि विकास का वास्तविक मापदंड स्वतंत्रता और सामर्थ्य है, न कि औपनिवेशिक शैली की आर्थिक वृद्धि।

निष्कर्ष

उपनिवेश-उन्मूलन केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि यह औपनिवेशिक मानसिकता, सांस्कृतिक प्रभुत्व और आर्थिक निर्भरता से मुक्ति का संघर्ष भी था।
आज भी यह प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है, अनेक विकासशील देश नवऔपनिवेशिक संरचनाओं से संघर्ष कर रहे हैं। स्वतंत्रता का अर्थ केवल झंडा फहराना नहीं, बल्कि अपने समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति पर आत्मनिर्भर नियंत्रण स्थापित करना है।

UGC NET Political Science – Previous Year MCQs

(1) ‘The Wretched of the Earth’ पुस्तक किसने लिखी है?

  1. Albert Memmi
  2. Frantz Fanon
  3. Edward Said
  4. Homi K. Bhabha

Ans: Frantz Fanon

UGC NET 2019 (Shift-II)


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