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कंगारू समाप्ति

कंगारू समापन ब्रिटिश संसदीय परंपरा का एक विशिष्ट प्रावधान है, जिसमें सदन का अध्यक्ष कुछ चुनिंदा संशोधनों/प्रस्तावों को ही चर्चा के लिए चुनता है और शेष प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कराई जाती। इस प्रक्रिया का उद्देश्य विधायी कार्यवाही को सरल, त्वरित और अधिक प्रभावी बनाना है। इसे “Kangaroo” इसलिए कहा जाता है क्योंकि अध्यक्ष एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर “छलांग” लगाते हुए चलते हैं, अर्थात् सभी प्रस्तावों से नहीं गुजरते।

यह तरीका तब उपयोगी माना जाता है जब किसी विधेयक पर अत्यधिक संख्या में संशोधन प्रस्तुत किए जाते हैं, जिससे नियमित चर्चा में भारी समय व्यतीत हो सकता है। इस स्थिति में कंगारू समापन से सदन का समय बचता है और विधेयक समय पर पारित हो सकता है।

हालाँकि, इसके साथ कुछ लोकतांत्रिक चिंताएँ भी जुड़ी हैं। चूँकि अध्यक्ष यह तय करते हैं कि कौन-से संशोधन महत्वपूर्ण हैं और किन्हें छोड़ दिया जाए, इसलिए विपक्ष या छोटे दलों के अनेक सुझाव बहस से बाहर हो सकते हैं। इससे समावेशी विमर्श, विधायी पारदर्शिता, तथा जवाबदेही कमजोर पड़ सकती है।

भारतीय संसद में “Kangaroo Closure” शब्द औपचारिक रूप से प्रयुक्त नहीं होता, परंतु इसके समान उद्देश्य वाले प्रावधान—जैसे Closure Motion और Guillotine Procedure—कभी-कभी समय प्रबंधन के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह संसदीय कार्यकुशलता और लोकतांत्रिक विमर्श के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।


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