राजनीतिक दल अपने विरोधियों की आलोचना का समर्थन तो करते हैं, लेकिन जब वही आलोचना उनके नेताओं पर होती है, तो वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर एक टिप्पणी की है। उसके बाद समर्थकों ने उनके कॉमेडी शो के आयोजन स्थल पर हमला कर दिया। हालांकि, बाद में कुछ नेताओं ने इस हमले की निंदा की और कामरा के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का समर्थन किया। भारत में अक्सर ही ऐसा देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति किसी नेता या राजनीतिक दल की आलोचना करता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई या हिंसक प्रतिक्रिया की जाती है।
मुद्दा क्या है?
- यदि भारत के लोकतंत्र को मजबूत करना है, तो हमारे नेताओं को इतना असंवेदनशील नहीं होना चाहिए कि किसी हास्य कलाकार द्वारा की गई आलोचना से नाराज होकर प्रतिक्रिया दें। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री का मज़ाक उड़ाने पर शिवसैनिकों द्वारा कॉमेडी शो के आयोजन स्थल पर हमला किया गया। हालाँकि, कुछ नेताओं ने इस हमले की निंदा की और कॉमेडियन कुणाल कामरा के अभिव्यक्ति के अधिकार की पुष्टि की, लेकिन बड़ी समस्या यह है कि भारत में लगभग हर राजनीतिक नेता आलोचना या व्यंग्य को सहन करने में असमर्थ रहता है।
- राजनीतिक दल अपने विरोधियों की आलोचना का समर्थन तो करते हैं, लेकिन जब वही आलोचना उनके नेताओं पर होती है, तो वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। यह स्थिति लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक मानी जाती है।
- भारत में नेताओं और राजनीतिक दलों को आलोचना सहन करने की आदत डालनी होगी, क्योंकि लोकतंत्र में सभी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। जब तक इस मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा, तब तक स्वतंत्र अभिव्यक्ति खतरे में रहेगी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 ) पर प्रश्नचिह्न
यह मामला अपने आप में प्रथम मामला नही था बल्कि इसे पहले भी इस तरह के कई मामले हो चुके है जो भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) के दमन और नेताओं की आलोचना सहने की क्षमता की कमी को दर्शाते हैं। ये मामले बताते हैं कि चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो, वे आलोचना को दबाने के लिए कानूनी कार्रवाई या पुलिस का सहारा लेते हैं। यह मामले निम्नलिखित है;
- स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर टिप्पणी की। इसके बाद शिवसेना (शिंदे गुट) के कार्यकर्ताओं ने उनके शो के आयोजन स्थल पर हमला कर दिया। यह घटना राजनीतिक असहिष्णुता (Political Intolerance) को दर्शाती है। लोकतंत्र में हास्य और व्यंग्य को स्वीकार किया जाना चाहिए, लेकिन यहाँ पर शारीरिक हिंसा और डराने-धमकाने की रणनीति अपनाई गई।
- “गद्दार” और “आधुनिक औरंगज़ेब” टिप्पणी विवाद- जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब किसी ने एकनाथ शिंदे को “आधुनिक औरंगज़ेब” कहा, तो उसके खिलाफ कार्रवाई हुई।
- इसी तरह, आदित्य ठाकरे को “बेबी पेंगुइन” कहने वाले व्यक्ति को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अब, जब शिंदे सीएम हैं, तब वही शिवसेना (उद्धव गुट) कामरा के “गद्दार” कहने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रही है। यह दोहरा मापदंड (Double Standards) दिखाता है। जो दल सत्ता में होता है, वह आलोचना को दबाने के लिए कानूनों का इस्तेमाल करता है, और जब विपक्ष में आता है, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देता है।
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने के कारण, दिल्ली पुलिस ने भाजपा नेता तजिंदर बग्गा को गिरफ्तार कर लिया। अब राजनीतिक आलोचना के कारण विपक्षी नेताओं पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति आम हो गई है। जब भाजपा सरकार में होती है, तो आलोचकों के खिलाफ केस दर्ज होते हैं, और जब AAP सत्ता में आई, तो उसने भी यही किया।
- व्यवसायी रवि श्रीनिवासन ने कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए ट्वीट किया। इस ट्वीट के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। यहाँ भी सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के खिलाफ आरोप लगाने वालों को दबाने की कोशिश की गई। इस केस ने सोशल मीडिया पर बोलने की आज़ादी पर सवाल खड़े किए।
- तमिलनाडु के YouTuber सवुक्कन शंकर ने मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और उनके परिवार पर आलोचनात्मक टिप्पणी की। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। यह मामला भी सत्ता की आलोचना को दबाने का एक उदाहरण है। अगर सोशल मीडिया पर आलोचना के कारण किसी को गिरफ्तार किया जाता है, तो यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
अनुच्छेद 19 क्या है?
अनुच्छेद 19 भारतीय नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो लोकतंत्र की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। हालाँकि, ये अधिकार कुछ संवैधानिक प्रतिबंधों के अधीन हैं ताकि समाज में सामंजस्य बना रहे और राष्ट्र की सुरक्षा बनी रहे।
- बेन ओकरी , कवि और उपन्यासकार- ‘लोकतंत्र असहमति के अधिकार पर आधारित है, लोगों के विरोधी रुख रखने के अधिकार पर। हमारे समाजों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आवश्यकता है ताकि हम उन सबसे बुरे अत्याचारों से बच सकें जो सरकारें अपने नागरिकों पर कर सकती हैं।’
- सलमान रुश्दी , उपन्यासकार और प्रोफेसर- ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है? अपमान करने की स्वतंत्रता के बिना, इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।’
- केनान मलिक , लेखक, व्याख्याता और प्रसारक- “आप ऐसा नहीं कह सकते!” सत्ता में बैठे लोगों की प्रतिक्रिया अक्सर यही होती है कि उनकी शक्ति को चुनौती दी जाती है। यह स्वीकार करना कि कुछ बातें नहीं कही जा सकतीं, यह स्वीकार करना है कि सत्ता के कुछ रूपों को चुनौती नहीं दी जा सकती।’
- अरुंधति रॉय , लेखिका– ‘वास्तव में “ध्वनिहीन” जैसी कोई चीज़ नहीं होती। केवल जानबूझकर चुप करा दिए गए लोग या अनसुने लोग ही होते हैं।’
अनुच्छेद 19(1) के तहत भारत के नागरिकों को निम्नलिखित छह स्वतंत्रताएँ दी गई हैं:
- 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)
- 19(1)(b) – शांतिपूर्ण सभा का अधिकार (Right to Assemble Peacefully)
- 19(1)(c) – संघ बनाने का अधिकार (Right to Form Associations or Unions)
- 19(1)(d) – देश के किसी भी भाग में जाने की स्वतंत्रता (Right to Move Freely Throughout India)
- 19(1)(e) – किसी भी भाग में बसने और रहने का अधिकार (Right to Reside and Settle in Any Part of India)
- 19(1)(g) – किसी भी व्यवसाय, व्यापार या पेशे को अपनाने का अधिकार (Right to Practice Any Profession or Business)
अनुच्छेद 19(2) से 19(6): इन अधिकारों पर प्रतिबंध
हालाँकि, ये अधिकार पूर्णतः असीमित नहीं हैं। सरकार को कुछ परिस्थितियों में इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया गया है:
19(2) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
- देश की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मित्रता
- सार्वजनिक व्यवस्था (Public Order)
- शालीनता और नैतिकता (Morality and Decency)
- न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court)
- मानहानि (Defamation)
- उत्तेजना (Incitement to an Offense)
19(3) – शांतिपूर्ण सभा पर प्रतिबंध
- यदि यह सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने की संभावना हो।
19(4) – संघ बनाने के अधिकार पर प्रतिबंध
- यदि संघ राष्ट्र की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हो।
19(5) – कहीं भी रहने और बसने के अधिकार पर प्रतिबंध
- यदि यह अधिकार आदिवासी समुदायों की रक्षा या सार्वजनिक हित के विरुद्ध हो।
19(6) – व्यवसाय या व्यापार पर प्रतिबंध
- यदि यह समाज के लिए हानिकारक हो, जैसे जुआ, मानव तस्करी, मादक पदार्थों का व्यापार आदि।
न्यायपालिका द्वारा सम्बन्धित महत्वपूर्ण फैसले
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है।
- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66A को असंवैधानिक घोषित कर दिया क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन कर रहा था।
- के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): अदालत ने कहा कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) भी अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान
- भारत को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन के मामले में 33 देशों में से 24वाँ स्थान मिला है। हालाँकि, भारत में अधिकांश नागरिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन सरकारी नीतियों की आलोचना को समर्थन देने में भारत वैश्विक औसत से पीछे है।
- अमेरिका स्थित स्वतंत्र थिंक टैंक “द फ्यूचर ऑफ फ्री एक्सप्रेशन” द्वारा किए गए इस अध्ययन में “दुनिया में कौन मुक्त भाषण का समर्थन करता है?” शीर्षक से रिपोर्ट प्रकाशित की है।
- अक्टूबर 2024 में हुए इस अध्ययन में पाया गया कि 2021 के बाद से अधिकांश देशों में मुक्त भाषण के समर्थन में गिरावट आई है। लोकतांत्रिक देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़राइल और जापान में यह गिरावट अधिक देखी गई।
- द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच के कार्यकारी निदेशक जैकब मचंगमा ने कहा: “स्वतंत्र अभिव्यक्ति केवल एक कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक खुली बहस की संस्कृति और असहमति के प्रति सहिष्णुता पर निर्भर करती है।”
भारत में मुक्त भाषण की वास्तविकता बनाम धारणा
- रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कुछ देशों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति सार्वजनिक समर्थन और वास्तविक स्थिति में अंतर है।
- भारत, हंगरी और वेनेजुएला उन देशों में से हैं जहां वास्तविक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोगों की स्वीकृति के मुकाबले बहुत कम है।
- रिपोर्ट के अनुसार, “ये सभी लोकतांत्रिक क्षरण (democratic backsliding) के उदाहरण हैं, जहाँ पहले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित राजनीतिक स्वतंत्रता का उच्च सम्मान किया जाता था।”
निष्कर्ष
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल एक कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा है। इसे बनाए रखना न केवल सरकारों की जिम्मेदारी है, बल्कि नागरिकों, मीडिया और न्यायपालिका की भी ज़िम्मेदारी है। जब तक आलोचना को स्वीकार करने की परिपक्वता नहीं आएगी, तब तक भारत में लोकतंत्र पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाएगा। पिछले कुछ वर्षों में, राजनीतिक असहिष्णुता और आलोचना को दबाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। कुणाल कामरा के मामले से लेकर सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारियों तक, कई घटनाएँ दर्शाती हैं कि सत्ता में मौजूद दल आलोचना सहन नहीं कर पाते और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करने की कोशिश करते हैं। यह समस्या केवल किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक प्रवृत्ति बन गई है, जिसमें विभिन्न दल जब सत्ता में होते हैं, तो आलोचना को दबाते हैं और जब विपक्ष में होते हैं, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। वैश्विक रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति कमजोर हो रही है। सार्वजनिक समर्थन के बावजूद, सरकारें आलोचना को सहन करने में असफल साबित हो रही हैं। इससे लोकतांत्रिक क्षरण (Democratic Backsliding) की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जहाँ नागरिकों के अधिकार धीरे-धीरे सीमित किए जा रहे हैं।