भारत की विदेश नीति और रक्षा रणनीति में भू-राजनीतिक समीकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चीन द्वारा अपनाई गई “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” (String of Pearls) नीति और इसके जवाब में भारत की “नेकलेस ऑफ डायमंड्स” (Necklace of Diamonds) रणनीति, दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन और भू-राजनीतिक प्रभुत्व की बड़ी रणनीतियाँ हैं।
चीन हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति पर काम कर रहा है, जबकि भारत इसे संतुलित करने के लिए “नेकलेस ऑफ डायमंड्स” नीति पर अमल कर रहा है। दोनों नीतियाँ दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन की लड़ाई का हिस्सा हैं।
- String of Pearls (मोती की माला) – यह चीन की हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में प्रभाव बढ़ाने की रणनीति है।
- Necklace of Diamonds (हीरों की माला) – यह भारत की जवाबी रणनीति है, जिससे वह चीन को काउंटर करता है।
दोनों नीतियाँ हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) और भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) में रणनीतिक शक्ति संतुलन को प्रभावित करती हैं।
String of Pearls (मोती की माला) – चीन की रणनीति
String of Pearls चीन की वह रणनीति है, जिसमें वह हिंद महासागर क्षेत्र में कई रणनीतिक बंदरगाह (Strategic Ports) और सैन्य ठिकानों (Military Bases) का निर्माण कर रहा है। इस नीति के तहत, चीन दक्षिण एशिया और अफ्रीका में प्रभाव बढ़ा रहा है।
इस नीति का उद्देश्य:
- चीन को कच्चे तेल और व्यापार मार्गों की सुरक्षा प्रदान करना।
- भारत को घेरने और उसकी रणनीतिक स्थिति को कमजोर करना।
- चीन की नौसैनिक शक्ति (Naval Power) को बढ़ाना।
- एशिया में अपने प्रभाव क्षेत्र (Sphere of Influence) को मजबूत करना।
चीन ने अपनी “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स“ रणनीति के तहत कई देशों में निवेश और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।
- ग्वादर बंदरगाह, पाकिस्तान: चीन ने इस बंदरगाह में भारी निवेश किया है और इसे चाइना–पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) से जोड़ा है, जिससे उसे अरब सागर तक सीधी पहुँच मिलती है।
- हम्बनटोटा बंदरगाह, श्रीलंका: श्रीलंका ने भारी कर्ज के चलते इस बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए चीन को लीज पर दे दिया, जिससे चीन को हिंद महासागर में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बिंदु प्राप्त हुआ।
- कयुकफ्यू बंदरगाह, म्यांमार: चीन इस बंदरगाह का उपयोग अपने व्यापार और तेल आपूर्ति के लिए कर रहा है, जिससे उसे मलक्का जलडमरूमध्य की निर्भरता कम करने में मदद मिलती है।
- डोरालेह बंदरगाह, जिबूती: यह अफ्रीका में चीन का पहला विदेशी नौसैनिक अड्डा है, जो चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और समुद्री सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है।
- माले, मालदीव: चीन ने यहाँ बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें पुल, हवाई अड्डे और अन्य निर्माण शामिल हैं, जिससे वह हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
- 2022 में चीन ने सोलोमन द्वीप समूह के साथ सुरक्षा समझौता किया, जिससे प्रशांत क्षेत्र में तनाव बढ़ गया।
Necklace of Diamonds (हीरों की माला) – भारत की रणनीति
Necklace of Diamonds भारत की जवाबी रणनीति है, जिसमें वह चीन को रणनीतिक और सैन्य ठिकानों से घेरने का प्रयास कर रहा है। भारत अपने मित्र देशों के साथ मिलकर ऐसे स्थानों पर अपने नौसैनिक और कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ा रहा है, जहाँ से चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।
इस नीति का उद्देश्य:
- चीन के “String of Pearls” का जवाब देना।
- हिंद महासागर में भारत की समुद्री शक्ति (Maritime Power) को मजबूत करना।
- मित्र देशों के साथ सुरक्षा साझेदारी बनाकर चीन की विस्तारवादी नीति को रोकना।
- भारत के व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
भारत ने चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स“ रणनीति के जवाब में अपनी “नेकलेस ऑफ डायमंड्स“ नीति को मजबूत किया है, जिसके तहत वह विभिन्न देशों के साथ नौसैनिक सहयोग और बंदरगाहों तक पहुंच बढ़ा रहा है।
- चाबहार बंदरगाह, ईरान: भारत ने इस बंदरगाह का विकास किया ताकि पाकिस्तान और चीन को बायपास कर अफगानिस्तान और मध्य एशिया से व्यापार किया जा सके। यह भारत की सामरिक रणनीति का अहम हिस्सा है।
- डिएगो गार्सिया द्वीप, ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र: भारत और अमेरिका इस द्वीप पर नौसैनिक सहयोग कर रहे हैं, जिससे हिंद महासागर में भारत की सामरिक पकड़ मजबूत होती है।
- ड्योकम बंदरगाह, ओमान: 2018 में भारत को इस बंदरगाह तक सैन्य पहुंच की अनुमति मिली, जिससे उसकी नौसेना की पश्चिम एशिया में गतिविधियाँ आसान हुईं।
- साबांग बंदरगाह, इंडोनेशिया: भारत ने इंडोनेशिया के साथ समझौता कर इस बंदरगाह पर नौसैनिक सहयोग बढ़ाया, जिससे मलक्का जलडमरूमध्य पर रणनीतिक पकड़ मजबूत हुई।
- रियूनियन द्वीप, फ्रांस: भारत-फ्रांस नौसेना सहयोग इस द्वीप पर मजबूत हुआ, जिससे हिंद महासागर में फ्रांस और भारत की रणनीतिक साझेदारी बढ़ी।
- सिंगापुर और जापान: भारत ने इन दोनों देशों के साथ नौसैनिक सहयोग को बढ़ाया, जिससे दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर में उसकी उपस्थिति मजबूत हुई।
- भारत ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर QUAD गठबंधन बनाया, ताकि चीन की विस्तारवादी गतिविधियों को संतुलित किया जा सके।
- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के विकास पर जोर दिया जा रहा है, जिससे भारत हिंद महासागर में चीन की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ा सके।
String of Pearls बनाम Necklace of Diamonds
- “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” का मुख्य उद्देश्य हिंद महासागर में चीन का वर्चस्व स्थापित करना और भारत को घेरना है, जबकि “नेकलेस ऑफ डायमंड्स” रणनीति का उद्देश्य चीन के प्रभाव को संतुलित करना और अपने नौसैनिक सहयोग को मजबूत बनाना है।
- चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति मुख्य रूप से पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार और जिबूती जैसे देशों पर केंद्रित है, जहाँ उसने बंदरगाहों और सैन्य अड्डों में निवेश किया है। दूसरी ओर, भारत की नेकलेस ऑफ डायमंड्स रणनीति ईरान, ओमान, इंडोनेशिया, जापान और अमेरिका जैसे देशों के साथ सैन्य और नौसैनिक सहयोग पर केंद्रित है।
- चीन को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़े देशों का समर्थन प्राप्त है, जबकि भारत QUAD (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का गठबंधन) और अन्य मित्र देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
- चीन ने जिबूती, ग्वादर (पाकिस्तान) और हम्बनटोटा (श्रीलंका) में सैन्य अड्डे विकसित किए हैं। वहीं, भारत ने ड्योकम (ओमान), चाबहार (ईरान) और साबांग (इंडोनेशिया) में अपनी सैन्य और नौसैनिक उपस्थिति को मजबूत किया है।
- इन दोनों रणनीतियों के टकराव से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं, और भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता आने वाले वर्षों में और अधिक गहराने की संभावना है।
भारत को क्या करना चाहिए?
चीन की “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स“ नीति के जवाब में भारत की “नेकलेस ऑफ डायमंड्स“ रणनीति एक प्रभावी कदम है, लेकिन इसे और मजबूत करने के लिए भारत को कई अहम कदम उठाने होंगे।
नौसेना को और मजबूत करना
- भारतीय नौसेना को Blue Water Navy के रूप में विकसित करना, जिससे वह दूर-दराज के क्षेत्रों में प्रभावी रूप से संचालन कर सके।
- Aircraft Carriers, Nuclear Submarines और आधुनिक युद्धपोतों की संख्या बढ़ाना।
- समुद्री सर्विलांस के लिए Drones और Satellite Technology का अधिकतम उपयोग करना।
मित्र देशों के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाना
- QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे समूहों में सक्रिय भूमिका निभाना।
- फ्रांस, रूस, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ सैन्य अभ्यास और रक्षा समझौते बढ़ाना।
- मालाबार और वरुण जैसे नौसैनिक अभ्यासों को और उन्नत बनाना।
हिंद महासागर में सुरक्षा और कूटनीतिक सहयोग को मजबूत करना
- अंडमान–निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में नौसैनिक ठिकानों को उन्नत करना।
- चाबहार, ड्योकम, साबांग जैसे रणनीतिक बंदरगाहों में भारत की उपस्थिति बढ़ाना।
- छोटे द्वीपीय देशों (मालदीव, सेशेल्स, मॉरीशस) के साथ सुरक्षा सहयोग को और गहरा करना।
भारत के सामने चुनौतियाँ
चीन की आक्रामक आर्थिक और सैन्य रणनीति
- चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से गरीब देशों को कर्ज में डालकर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
- चीन की बढ़ती नौसेना ताकत और कृत्रिम द्वीपों का निर्माण भारत के लिए चुनौती है।
रक्षा बजट और संसाधन
- भारत को अपनी नौसेना के लिए अधिक फंडिंग और रिसर्च & डेवलपमेंट (R&D) पर ध्यान देना होगा।
- चीन की तुलना में भारत की रक्षा निर्माण क्षमता अभी भी सीमित है।
क्षेत्रीय देशों का झुकाव
- पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों का झुकाव चीन की ओर बढ़ रहा है।
- भारत को इन देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना होगा।
निष्कर्ष
भारत और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता (Strategic Rivalry) आने वाले वर्षों में और तेज़ होने की संभावना है। हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दोनों देश अपनी-अपनी रणनीतियों पर काम कर रहे हैं।
चीन अपनी “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स“ नीति के तहत पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार और जिबूती जैसे देशों में बंदरगाह और सैन्य अड्डे विकसित कर रहा है, जिससे वह भारत को चारों ओर से घेर सके। दूसरी ओर, भारत अपनी “नेकलेस ऑफ डायमंड्स“ रणनीति के तहत ईरान, ओमान, इंडोनेशिया, जापान और अमेरिका जैसे देशों के साथ नौसैनिक और कूटनीतिक सहयोग को मज़बूत कर रहा है।
इस प्रतिस्पर्धा में भारत को अपनी नौसेना को और सशक्त बनाना, मित्र देशों के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाना, और हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग को गहरा करना होगा। QUAD, इंडो–पैसिफिक गठबंधन, और रणनीतिक सैन्य साझेदारी जैसी पहल भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगी। मजबूत नौसेना, प्रभावी कूटनीति और वैश्विक साझेदारी ही भारत को इस प्रतिस्पर्धा में विजयी बनाएंगे।