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गांधीजी और अंबेडकर जी के विचारों में अंतर

गांधीजी और अंबेडकर जी के विचारों में कई महत्वपूर्ण अंतर थे, खासकर छुआछूत, जाति व्यवस्था, और समाज सुधार के संदर्भ में। नीचे हिंदी में उनके मुख्य विचारों का अंतर बताया गया है:


1. जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था के बारे में:

गांधीजी का विचार:

  • गांधीजी ने वर्ण व्यवस्था को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया, जो मूल रूप से कार्य-विभाजन पर आधारित थी।

  • वे छुआछूत के सख्त विरोधी थे, लेकिन जाति व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त करने की वकालत नहीं करते थे।

  • उन्होंने अस्पृश्यों को “हरिजन” (भगवान के लोग) कहा और समाज में उनके उत्थान के लिए कार्य किए।

अंबेडकर का विचार:

  • डॉ. अंबेडकर जाति और वर्ण व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे।

  • उन्होंने इसे शोषण और भेदभाव की व्यवस्था बताया और इसे खत्म करने की बात कही।

  • उन्होंने कहा कि जब तक जाति व्यवस्था है, तब तक बराबरी संभव नहीं है।


2. छुआछूत और सामाजिक भेदभाव पर विचार:

गांधीजी:

  • छुआछूत को “पाप” मानते थे।

  • उन्होंने इसे समाज का दोष माना और सुधार का रास्ता चुना।

  • उन्होंने हिंदू धर्म के भीतर सुधार की कोशिश की।

अंबेडकर:

  • छुआछूत को हिंदू धर्म की देन मानते थे।

  • उनका मानना था कि हिंदू धर्म में रहते हुए दलितों की मुक्ति संभव नहीं है।

  • इसलिए उन्होंने हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया।


3. समाधान का तरीका:

गांधीजी:

  • सुधारवाद के पक्षधर थे।

  • उन्होंने नैतिकता, आत्मशुद्धि और समाज की अंतरात्मा को जगाने की बात कही।

अंबेडकर:

  • क्रांतिकारी बदलाव के पक्ष में थे।

  • उनका मानना था कि कानून और संविधान के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाना ज़रूरी है।


4. पूना समझौता (1932):

  • जब ब्रिटिश सरकार ने दलितों को अलग निर्वाचिका (Separate Electorate) देने का प्रस्ताव रखा, तो गांधीजी ने विरोध करते हुए आमरण अनशन शुरू किया।

  • अंबेडकर इस प्रस्ताव के समर्थन में थे क्योंकि वह इसे दलितों के राजनीतिक अधिकारों के लिए ज़रूरी मानते थे।

  • अंततः पूना समझौता हुआ, जिसमें अलग निर्वाचिका की जगह आरक्षण की व्यवस्था की गई।


समानताएँ :

  • दोनों ही सामाजिक अन्याय के विरोधी थे।

  • दोनों ने दलितों के उत्थान के लिए प्रयास किए।

  • दोनों का अंतिम उद्देश्य – समानता पर आधारित समाज की स्थापना था।

विषयमहात्मा गांधी के विचारडॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार
जाति व्यवस्थावर्ण व्यवस्था को कार्य-विभाजन मानते थे       जाति व्यवस्था को अन्यायपूर्ण और समाप्त करने योग्य   माना
छुआछूतछुआछूत को पाप माना, सुधार की कोशिश की                छुआछूत को हिंदू धर्म की बुराई माना, उन्मूलन की मांग की
दलितों के लिए दृष्टिकोण“हरिजन” कहकर सम्मान देने का प्रयासदलितों को राजनीतिक, सामाजिक अधिकार दिलाने पर ज़ोर
धार्मिक विचारहिंदू धर्म में सुधार चाहते थे                        हिंदू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया
समाधान का तरीकाआत्मशुद्धि, नैतिकता और सुधार के समर्थक     संविधान, कानून और शिक्षा से परिवर्तन के पक्षधर
पूना समझौताअलग निर्वाचिका का विरोध किया      अलग निर्वाचिका के पक्ष में थे

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