• उत्तर-औपनिवेशिकता (Post-colonialism) की प्रमुख विचारक हैं।उनका जन्म 1942 में हुआ था। उन्होंने उपनिवेश और उपनिवेशित के संबंधों को समझने के लिए विसंरचनावादी (Deconstructionist) पद्धति का इस्तेमाल किया।
• वह मार्क्सवादी, नारीवादी और विसंरचनावादी सभी विचारों से जुड़ी रही हैं। उन्हें पहचान मिली जब उन्होंने फ्रांसीसी दार्शनिक जाक देरिदा (Jacques Derrida) की रचना “De la grammatologie” का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया और उस पर टिप्पणी लिखी।
मुख्य विचार
Can the Subaltern Speak?”
• स्पिवाक ने उपनिवेशवाद, स्त्रीवाद (Feminism), और पहचान की राजनीति पर महत्वपूर्ण लेखन किया। उनका प्रसिद्ध लेख “Can the Subaltern Speak?” 1988 में आया, जिसमें उन्होंने सवाल उठाया कि क्या समाज के दबे-कुचले वर्ग (Subaltern) अपनी बात खुद कह सकते हैं?
• वह कहती हैं कि जब भी कोई उनके बारे में बोलता है, तो वह आवाज़ भी सत्ता के ढांचे में ही होती है। वह भारतीय समाज, विशेष रूप से स्त्रियों और दलितों की आवाज़ को सामने लाने का प्रयास करती हैं।
साहित्यिक आलोचना और योगदान
• स्पिवाक का लेखन साहित्य, राजनीति और दर्शन के संगम पर आधारित है।
• उन्होंने भारतीय साहित्य का गहराई से अध्ययन किया और भारतीय भाषाओं से कई महत्वपूर्ण अनुवाद किए।
• वह कहती हैं कि औपनिवेशिक काल में जो सत्ता के रूप रहे, उन्हें साहित्य और भाषा के ज़रिये चुनौती दी जा सकती है।
• उन्होंने समाज में नारी की स्थिति, गरीबी, जाति, और हिंसा पर भी बात की।
• गायत्री स्पिवाक एक ऐसी विचारक हैं, जो साहित्य, समाज, इतिहास और राजनीति को जोड़कर यह समझने की कोशिश करती हैं कि समाज में कौन-कौन सी आवाजें दबा दी जाती हैं, और क्यों।
प्रमुख रचनाए
• Can the Subaltern Speak? (1988, republished in various editions)
• In Other Worlds: Essays in Cultural Politics (1987)
• A Critique of Postcolonial Reason: Toward a History of the Vanishing Present (1999)
• Death of a Discipline (2003)
• The Post-Colonial Critic: Interviews, Strategies, Dialogues (1990)
• Outside in the Teaching Machine (1993)
• An Aesthetic Education in the Era of Globalization (2012)
• Nationalism and the Imagination (2010)
• Who Sings the Nation-State? Language, Politics, Belonging (with Judith Butler, 2007)
• Imaginary Maps (Translation of Mahasweta Devi’s short stories, 1995)