गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement-NAM) 121 देशों का एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंच है। यह एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों का सामूहिक प्रयास है, जिनका उद्देश्य वैश्विक राजनीति में अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता स्थापित करना है।
वर्ष 2025 एशिया-अफ्रीका शिखर सम्मेलन यानी बांडुंग सम्मेलन की 70वीं वर्षगांठ का प्रतीक है, जिसने NAM की नींव रखी थी। इस सम्मेलन ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South–South Cooperation) की नई परिकल्पना को जन्म दिया, जिसने वैश्विक दक्षिण (Global South) को विश्व पटल पर अपनी सामूहिक आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान किया।
हालांकि बदलते वैश्विक परिदृश्य, भिन्न राष्ट्रीय हितों, वैकल्पिक मंचों के उदय, नेतृत्व की कमी और निष्क्रियता के कारण NAM की आज की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

परिचय
NAM की शुरुआत शीत युद्ध के दौरान हुई जब नवनिर्मित स्वतंत्र राष्ट्रों ने न तो अमेरिका (पूंजीवादी गुट) और न ही सोवियत संघ (समाजवादी गुट) के साथ औपचारिक रूप से जुड़ने का निर्णय लिया। इसका अर्थ यह नहीं था कि वे किसी से लाभ नहीं लेंगे बल्कि यह कि वे किसी विचारधारा से वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध नहीं रहेंगे।
आंदोलन की शुरुआत 1955 में एशिया-अफ्रीका सम्मेलन (बांडुंग सम्मेलन) में हुई, जिसमें 29 एशियाई और अफ्रीकी देशों ने भाग लिया। इसका औपचारिक गठन 1961 में बेलग्रेड सम्मेलन में हुआ, जिसका नेतृत्व भारत, युगोस्लाविया, मिस्र, घाना और इंडोनेशिया ने किया।
मूल दर्शन (Core Philosophy)
गुटनिरपेक्ष नीति पांच सिद्धांतों यानी पंचशील पर आधारित थी:
1. एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का परस्पर सम्मान
2. एक-दूसरे के आंतरिक एवं सैन्य मामलों में हस्तक्षेप न करना
3. पारस्परिक आक्रमण का अभाव
4. समानता और पारस्परिक लाभ
5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और आर्थिक सहयोग
उद्देश्य (Objectives)
- बहुपक्षवाद: वैश्विक संस्थाओं के लोकतांत्रीकरण और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पुनर्गठन का समर्थन, ताकि विकासशील देशों को अधिक आवाज मिले।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग: तकनीकी, आर्थिक व सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना।
- संप्रभुता और हस्तक्षेप-निषेध: एकतरफा प्रतिबंधों, बाहरी हस्तक्षेपों और शक्तिशाली राष्ट्रों द्वारा आर्थिक दबावों का विरोध।
- वैश्विक चुनौतियाँ: गरीबी उन्मूलन, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे मुद्दों का समाधान।
NAM विश्व मंच पर विकासशील देशों की सामूहिक आवाज़ के रूप में कार्य करता है, जो आर्थिक सहयोग, निरस्त्रीकरण और न्यायपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संबंधों की वकालत करता है।
सदस्यता मानदंड (Membership Criteria)
1. देश को स्वतंत्र नीति अपनानी चाहिए जो विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक प्रणालियों वाले राज्यों के सह-अस्तित्व पर आधारित हो।
2. वह स्वतंत्रता आंदोलनों का सुसंगत समर्थन करता हो।
3. वह किसी बहुपक्षीय सैन्य गठबंधन का सदस्य न हो।
4. यदि वह किसी महाशक्ति से द्विपक्षीय सैन्य समझौता करे तो वह शीत युद्ध जैसे शक्ति-संघर्ष परिप्रेक्ष्य में न किया गया हो।
5. यदि देश ने किसी विदेशी शक्ति को सैन्य अड्डा प्रदान किया है तो वह शक्ति-संघर्ष की परिस्थिति में नहीं हुआ हो।
उपलब्धियाँ (Achievements)
- स्वतंत्रता की आवाज़: NAM ने स्व-निर्णय की मांग करने वाले देशों के लिए सबसे प्रभावशाली नैतिक एवं कूटनीतिक मंच के रूप में कार्य किया, जिसने ब्रिटेन, फ्रांस, पुर्तगाल जैसे औपनिवेशिक शक्तियों को अलग-थलग कर दिया।
- मुक्ति आंदोलनों का समर्थन: दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की समाप्ति और स्वतंत्र फिलिस्तीन की स्थापना का जोरदार समर्थन किया।
- सैन्य तनाव में कमी: अमेरिका या सोवियत गुट में शामिल न होकर शीत युद्ध के भौगोलिक विस्तार को सीमित किया।
- परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन: दोनों महाशक्तियों के बीच हथियारों की दौड़ को खत्म करने की मांग की और संसाधनों को विकास सहायता में लगाने का आह्वान किया।
- नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO): 1970 के दशक में NAM ने विश्व बैंक और IMF जैसे संस्थानों के अधिक समतामूलक सुधार की दिशा में पहल की।
चुनौतियाँ (Challenges)
- प्रासंगिकता का ह्रास: शीत युद्ध की समाप्ति के बाद इसकी वैचारिक जड़ें कमजोर हुईं।
- आंतरिक असमानता व विभाजन: विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों और नीतिगत विविधताओं के कारण सर्वसम्मति बनाना कठिन रहा।
- नेतृत्व का अभाव: युगोस्लाविया जैसे संस्थापक देशों के विघटन तथा नए करिश्माई नेतृत्व की कमी ने आंदोलन को कमजोर किया।
- प्रभावहीनता का आरोप: आंदोलन की कार्रवाइयाँ अधिकतर प्रतिक्रियात्मक रहीं और ठोस परिणाम नहीं मिले।
- वैकल्पिक मंचों का उदय: BRICS, SCO, G20 जैसे समूहों के उदय ने NAM की भूमिका सीमित कर दी।
समकालीन प्रासंगिकता (Contemporary Relevance)
- पंचशील के सिद्धांत आज भी बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था की रक्षा हेतु समान रूप से आवश्यक हैं।
- NAM संयुक्त राष्ट्र के बाद सबसे बड़ा मंच है, जो लगभग दो-तिहाई सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनकर पश्चिमी प्रभुत्व और नव-औपनिवेशवाद के विरोध में खड़ा है।
- संगठन अब आर्थिक असमानता, गरीबी और सामाजिक अन्याय के मुद्दों पर केंद्रित है।
- यह बहुपक्षीय सहयोग, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के संरक्षण हेतु सक्रिय रूप से काम करता है।
- NAM विकासशील देशों को संयुक्त राष्ट्र मंच पर एकजुट होकर अपनी स्थिति समन्वित करने का अवसर देता है।
आगे की राह (Way Forward)
1. स्थायी सचिवालय की स्थापना: समन्वय और निर्णयों के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक।
2. नियमित समीक्षा तंत्र: लक्ष्यों और उपलब्धियों के मूल्यांकन हेतु ताकि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सुदृढ़ किया जा सके।
3. गैर-संरेखण की पुनर्परिभाषा: इसे निष्पक्षता के बजाय “रणनीतिक स्वायत्तता” के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए।
4. साझेदारी निर्माण: आसियान, अफ्रीकी संघ और G77 जैसे संगठनों से सहयोग NAM के प्रभाव को बढ़ा सकता है।
5. संरचनात्मक सुधार और पुनर्ब्रांडिंग: NAM को आधुनिक कूटनीति की आवश्यकताओं के अनुसार “Southern Solidarity Organisation” जैसे नए रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया गया है।
निष्कर्ष
तेजी से विकसित हो रहे बहुध्रुवीय वैश्विक परिदृश्य में ग्लोबल साउथ को एक निष्पक्ष, न्यायसंगत और समावेशी विश्व व्यवस्था के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। इस संदर्भ में NAM आज भी वैश्विक दक्षिण के लिए एक प्रभावी और प्रासंगिक मंच बना हुआ है, जो बहुपक्षवाद, सामाजिक-आर्थिक न्याय और शक्ति असंतुलन के प्रतिरोध की दिशा में कार्यरत है।
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