गुन्नार मिर्डाल की पुस्तक Asian Drama
पृष्ठभूमि और संदर्भ
Asian Drama: An Inquiry into the Poverty of Nations (1968) तीन खंडों में प्रकाशित हुई।
मिर्डाल, जो एक स्वीडिश अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता थे, ने दक्षिण एशिया (विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका) के विकास की बाधाओं को ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश की।
उनका मुख्य प्रश्न था: “गरीबी क्यों बनी रहती है, और इसे तोड़ने के लिए क्या करना चाहिए?”
प्रष्ठभूमि
गुन्नार मिर्डल ने 1974 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार जीता।1 लेकिन इससे पहले भी उनके पास कई जीवनकाल की उपलब्धियाँ थीं। वह स्वीडिश परंपरा में एक शानदार आर्थिक सिद्धांतकार थे,2 जो मूर्तिभंजक बन गए और अर्थशास्त्र के पद्धतिगत आधार पर सवाल उठाए; स्टॉकहोम स्कूल के संस्थापक जिनके पास मैक्रोइकॉनॉमिक्स पर अंतर्दृष्टि (स्वीडिश में प्रकाशित) थी, जो बाद में कीन्स के जनरल थ्योरी में पाई गई; स्वीडिश कल्याणकारी राज्य के बौद्धिक और राजनीतिक संस्थापकों में से एक; और स्मारकीय एन अमेरिका डिलेमा: द नेग्रो प्रॉब्लम एंड मॉडर्न डेमोक्रेसी के लेखक, जिसने अमेरिका में डिसेग्रेगेशन की नींव रखने में अपनी भूमिका निभाई (मिर्डल 1944)। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, उन्होंने यूरोप के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग के प्रमुख के रूप में आयरन कर्टन के पार आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को संभाला इस महान कृति के प्रकाशन के बाद वे दो दशक तक जीवित रहे और बाद के वर्षों में अपने स्वास्थ्य के बिगड़ने से पहले, विकास पर बहस में पूरी तरह से शामिल रहे। वास्तव में, उनका नोबेल व्याख्यान (मायर्डल 1975) लगभग पूरी तरह से इसी विषय पर समर्पित था।
प्रमुख अवधारणा – Soft State
मिर्डाल का सबसे प्रभावशाली विचार “सॉफ्ट स्टेट” का था।
सॉफ्ट स्टेट मतलब ऐसा देश जहाँ –
नीति और कानून तो हैं, पर उनका ठीक से पालन नहीं होता।
अफसरशाही और राजनेता अपने हितों के लिए कानून तोड़ते हैं।
भ्रष्टाचार, जाति व्यवस्था और निजी हित सार्वजनिक नीतियों पर हावी रहते हैं।
मिर्डाल ने कहा कि जब तक राज्य कठोर (Strong State) नहीं बनेगा, तब तक विकास योजनाएँ ज़मीन पर असर नहीं दिखाएँगी।
चक्रवर्ती संचयी कारण (Circular Cumulative Causation)
मिर्डाल ने समझाया कि गरीबी के कारण एक-दूसरे से जुड़े और खुद को मज़बूत करते हैं:
खराब शिक्षा → कम उत्पादकता → और अधिक गरीबी → शिक्षा पर और कम निवेश → और गहराता संकट।
यानी गरीबी केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक और संस्थागत बाधाओं का जाल है।
इस चक्र को तोड़ने के लिए बहु-आयामी और समन्वित नीतियाँ ज़रूरी हैं।
सामाजिक-राजनीतिक बाधाएँ
मिर्डाल ने दिखाया कि दक्षिण एशिया में –
जाति और वर्गीय विभाजन,
उपनिवेशकालीन संस्थाओं की जड़ता,
बढ़ती जनसंख्या,
और भ्रष्ट नौकरशाही –
ये सब विकास को धीमा कर देते हैं।
नीतियाँ बनती हैं, पर जमीन पर लागू नहीं हो पातीं।
नियोजन (Planning) पर दृष्टि
भारत जैसे देशों में पंचवर्षीय योजनाओं को मिर्डाल ने “उम्मीद की किरण” कहा, पर आलोचना भी की:
योजना तो बनती है, पर आँकड़े ग़लत होते हैं।
प्रभावशाली वर्ग अपने हित साध लेते हैं।
नौकरशाही की अक्षमता और भ्रष्टाचार योजना के लक्ष्य को विफल कर देते हैं।
समाधान की दृष्टि
मिर्डाल ने कहा कि विकास के लिए ज़रूरी है:
भूमि सुधार,
जातिगत असमानता को समाप्त करना,
शिक्षा में निवेश बढ़ाना,
सशक्त और ईमानदार शासन।
उन्होंने “प्रबुद्ध नेतृत्व” (Enlightened Elite) पर भरोसा जताया, जो लोक कल्याण को प्राथमिकता दे।
निराशावाद और सीमाएँ
मिर्डाल ने स्वयं माना कि एशियाई देशों में राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक क्षमता कमजोर है, इसलिए व्यापक सुधार कठिन हैं।
उनका दृष्टिकोण काफ़ी निराशावादी था – पर व्यावहारिक भी, क्योंकि उन्होंने समस्याओं की जड़ों को सामने रखा।
360° दृष्टि से सारांश
गरीबी सिर्फ़ आर्थिक समस्या नहीं; यह सामाजिक, राजनीतिक और संस्थागत जटिलताओं का परिणाम है।
“सॉफ्ट स्टेट” के बिना नीति सफल नहीं हो सकती।
चक्रवर्ती कारण दिखाता है कि क्यों अकेली नीति विफल रहती है।
योजना बनाते समय जमीनी सच्चाइयों को समझना ज़रूरी है।
विकास के लिए मज़बूत, ईमानदार और पारदर्शी शासन अनिवार्य है।
मुख्य बिंदु
सॉफ्ट स्टेट की परिभाषा और आज के संदर्भ में प्रासंगिकता।
गरीबी के चक्रवर्ती कारणों को उदाहरणों सहित बताना।
नियोजन की आलोचना और सुझाव।
सामाजिक सुधार की ज़रूरत।
आज भी क्यों Asian Drama पढ़ना प्रासंगिक है।
निष्कर्ष:
मिर्डाल का Asian Drama एक गहरी समाजशास्त्रीय दृष्टि देता है, जो केवल आर्थिक नहीं, बल्कि समग्र (360°) रूप में विकास की समस्याओं को देखता है।
Asian Drama को दूसरे क्लासिक विकासशील देशों पर लिखी किताबों से तुलना
Gunnar Myrdal – Asian Drama (1968)
फोकस: दक्षिण एशिया की गरीबी की जड़ें – समाज, संस्कृति, संस्थाएँ और राजनीति।
मुख्य अवधारणाएँ: Soft State, Circular Cumulative Causation।
दृष्टिकोण: गहराई से समाजशास्त्रीय और संस्थागत; काफ़ी निराशावादी।
समाधान: व्यापक सामाजिक सुधार + मज़बूत प्रशासन।
आलोचना: बहुत निराशावादी; बाद में एशियाई देशों की प्रगति ने इसे आंशिक रूप से गलत साबित किया।
Albert O. Hirschman – The Strategy of Economic Development (1958)
फोकस: विकासशील देशों में आर्थिक विकास की रणनीति।
मुख्य अवधारणा: Unbalanced growth – विकास के लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों को प्राथमिकता दो, ताकि वहाँ से बाकी क्षेत्रों में विकास की लहर पहुँचे।
दृष्टिकोण: ज्यादा आर्थिक (कम समाजशास्त्रीय)।
तुलना: जहाँ मिर्डाल ने संस्थागत और सामाजिक जटिलताओं पर ज़ोर दिया, Hirschman ने सीमित संसाधनों के कुशल प्रयोग की रणनीति पर बल दिया।
W.W. Rostow – The Stages of Economic Growth: A Non-Communist Manifesto (1960)
फोकस: विकास को पाँच चरणों में बाँटा – परंपरागत समाज से लेकर उच्च उपभोग के समाज तक।
मुख्य विचार: सभी देश एक जैसी विकास यात्रा तय करते हैं।
दृष्टिकोण: रैखिक और आशावादी।
तुलना: मिर्डाल के मुकाबले ज्यादा आशावादी; मिर्डाल ने कहा कि सामाजिक बाधाएँ इस रैखिक रास्ते को रोक देती हैं।
Arthur Lewis – The Theory of Economic Growth (1955)
फोकस: औद्योगीकरण, श्रम का हस्तांतरण (Dual Sector Model)।
मुख्य विचार: कृषि क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम के जाने से विकास होगा।
दृष्टिकोण: आर्थिक संरचनात्मक।
तुलना: Lewis ने संस्थाओं और संस्कृति पर कम ध्यान दिया, जबकि मिर्डाल ने इन पर ज़ोर दिया।
Amartya Sen – Development as Freedom (1999)
फोकस: विकास केवल आय वृद्धि नहीं, बल्कि व्यक्ति की स्वतंत्रता बढ़ाना।
मुख्य अवधारणा: Capability approach – शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक अवसर ही असली विकास हैं।
दृष्टिकोण: मानव केंद्रित।
तुलना: मिर्डाल की तरह Sen भी संस्थाओं और सामाजिक सुधारों पर बल देते हैं, पर Sen का स्वर ज्यादा आशावादी और सकारात्मक है।
Gunnar Myrdal vs. Gunnar Myrdal ही
मिर्डाल की ही दूसरी किताब An American Dilemma (1944) में उन्होंने अमेरिका में नस्लभेद की जड़ों को संस्थागत और सामाजिक दृष्टि से समझाया।
तुलना: दोनों में मिर्डाल ने समाज की गहराई से समीक्षा की; पर Asian Drama में दृष्टिकोण ज्यादा निराशावादी है, जबकि An American Dilemma में कुछ सुधार की संभावना दिखती है।
संक्षेप में तुलना:
मिर्डाल की Asian Drama: संस्थागत, सामाजिक बाधाओं पर सबसे गहन चर्चा; दृष्टिकोण निराशावादी।
Hirschman: रणनीति और प्राथमिकता पर बल।
Rostow: रैखिक चरण मॉडल, आशावादी।
Lewis: आर्थिक संरचना पर बल।
Sen: स्वतंत्रता और क्षमताओं पर बल, सबसे मानवीय दृष्टिकोण।
मिर्डाल का विश्लेषण आज भी प्रासंगिक है क्योंकि उन्होंने केवल आर्थिक नहीं, बल्कि समाज, राजनीति और संस्कृति की जड़ों में विकास की बाधाएँ देखीं, जबकि कई अन्य विद्वानों का दृष्टिकोण अधिकतर आर्थिक या चरणबद्ध रहा