गेल ओम्वेड्ट (Gail Omvedt) का जन्म 2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनियापोलिस में हुआ। वे एक समाजशास्त्री, मानवाधिकार कार्यकर्ता और राजनीतिक विचारक थीं, जिन्होंने भारतीय समाज और राजनीति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ओम्वेड्ट का अध्ययन मुख्य रूप सेजाति व्यवस्था, दलित आंदोलन, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय पर केंद्रित था। उन्होंने 1983 में भारतीय नागरिकता प्राप्त की और महाराष्ट्र के सांगली जिले के कासेगांव में स्थायी रूप से निवास किया। उनका निधन 25 अगस्त 2021 में हुआ।
ओम्वेड्ट का जीवन और कार्य यह दर्शाता है कि किसी भी समाज की संरचनाओं और असमानताओं को समझने के लिए गहन अध्ययन, अनुभव और सामाजिक सक्रियता आवश्यक होती है।
ओम्वेड्ट के राजनीतिक और सामाजिक विचार
1. जाति और वर्ग का विश्लेषण
ओम्वेड्ट ने भारतीय समाज में जाति और वर्ग के संबंधों को गहन रूप से समझा। उन्होंने देखा कि भारतीय समाज में जाति न केवल सामाजिक पहचान का माध्यम है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं की भी गारंटी देती है। उनके अनुसार:
ओम्वेड्ट ने यह भी उल्लेख किया कि जातिगत भेदभाव ने भारतीय समाज में महिलाओं, दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अवसर सीमित कर दिए हैं।
2. डॉ. भीमराव अंबेडकर और दलित आंदोलन
ओम्वेड्ट का अनुसंधान मुख्य रूप से दलित अधिकारों और अंबेडकर विचारधारा पर केंद्रित था। उनके दृष्टिकोण में:
ओम्वेड्ट ने दलित आंदोलन को समझते समय सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों की दृष्टि से देखा। उनके अनुसार, दलित राजनीति का उद्देश्य केवल राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं में समानता लाना है।
3. महिला सशक्तिकरण और लिंग समानता
ओम्वेड्ट का एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र था महिला अधिकार और सशक्तिकरण। उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण किया और देखा कि:
ओम्वेड्ट ने महिला आंदोलन और दलित आंदोलन के बीच समानताओं और अंतर को भी समझा। उनके अनुसार, दोनों ही सामाजिक असमानताओं के खिलाफ संघर्ष हैं, लेकिन दलित महिलाओं का संघर्षविशेष रूप से जाति और लिंग दोनों के दबावों के खिलाफ है।
4. संरचनात्मक दृष्टिकोण
ओम्वेड्ट ने भारतीय समाज को जाति, वर्ग और लिंग के दृष्टिकोण से संरचनात्मक रूप से देखा। उनके अनुसार:
ओम्वेड्ट के प्रमुख योगदान
गेल ओम्वेड्ट की प्रमुख रचनाएँ
निष्कर्ष
गेल ओम्वेड्ट का जीवन और कार्य भारतीय समाज में असमानताओं और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है। उनका विश्लेषण और दृष्टिकोण आज भी दलित अधिकार, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में प्रासंगिक हैं। उनका योगदान समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और सामाजिक न्याय के अध्ययन में अनमोल है।
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