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चिकन नेक या सिलीगुड़ी कॉरिडोर क्यों चिंतित है भारत

चिकन नेक क्या है?

 

चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सहयोग से भारत के खिलाफ एक रणनीतिक घेरा बनाने की कोशिश कर रहा है। लेख का मुख्य केंद्र है भारत का सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है। चीन इस क्षेत्र में भूटान, नेपाल और बांग्लादेश को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत की सामरिक स्थिति कमजोर की जा सके। चिकन नेक को लेकर चीन की यह गतिविधियाँ खबरों में हैं क्योंकि यह क्षेत्र भारत की सुरक्षा के लिहाज से सबसे नाजुक स्थानों में से एक है। अगर यह बाधित होता है, तो भारत का पूरा उत्तर-पूर्व हिस्सा मुख्यभूमि से कट सकता है। यह सिर्फ भूगोल नही बल्कि भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए अत्यंत संवेदनशील स्थान है।

चिकन नेक क्या है?

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को शेष देश से जोड़ने वाली एक पतली सी पट्टी है; जिसे सिलीगुड़ी कॉरिडोर या आम भाषा में ‘चिकन नेक’ कहा जाता है। यह क्षेत्र सामरिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है क्योंकि इसकी चौड़ाई मात्र 20–22 किलोमीटर है। यह कॉरिडोर सिक्किम, अरुणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड जैसे राज्यों को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।

     

चिकन नेक कॉरिडोर के साथ समस्याएं?

  • चीन नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में लगातार आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक दखल बढ़ा रहा है।
  • हाल ही में रिपोर्ट्स आई हैं कि चीन ने भूटान सीमा के पास सड़कों और गांवों का निर्माण किया है।
  • इससे भारत को यह आशंका है कि डोकलाम जैसी स्थिति फिर से उत्पन्न हो सकती है, जो 2017 में हुआ था।
  • चीन “String of Pearls” नीति के तहत पहले ही हिंद महासागर में भारत को घेर रहा है, अब वह थलमार्ग से भी भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है।
  • चिकन नेक केवल 22 किमी चौड़ा है। अगर यह बाधित होता है, तो पूरा उत्तर-पूर्व भारत मुख्य भारत से कट सकता है।
  • चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ मिलकर भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से को अस्थिर करना चाहता है। यह भारत की एकता और सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।
  • भारत में आगामी आम चुनाव और सुरक्षा के मुद्दे हमेशा गर्म रहते हैं। ऐसे समय में चीन की कोई भी गतिविधि खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में तुरंत राजनीतिक और सामरिक बहस का हिस्सा बन जाती है।

चिकन नेक के लिए भारत क्यों चिंतित है?

  1. चिकन नेक कॉरिडोर भारत की सुरक्षा के लिए बेहद संवेदनशील है।
  2. चीन कूटनीतिक और भू-राजनीतिक तरीकों से भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है।
  3. भारत के लिए आवश्यक है कि वह पूर्वोत्तर राज्यों का आधारभूत ढांचा, संचार व्यवस्था और सैन्य मौजूदगी मजबूत करे।
  4. डोकलाम जैसे क्षेत्रों में चीन की घुसपैठ की कोशिशें भी इसी रणनीति का हिस्सा हैं।

चिकन नेक भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

चिकन नेक केवल एक भौगोलिक गलियारा नहीं है, बल्कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता, रणनीतिक संतुलन, और पूर्वोत्तर की सुरक्षा का मेरुदंड है। इसकी रक्षा और वैकल्पिक मार्गों का निर्माण भारत की प्राथमिकताओं में शामिल है।

सामरिक (Strategic) महत्व

  • यह कॉरिडोर भारत के 7 पूर्वोत्तर राज्यों (जिन्हें “सेवन सिस्टर्स” कहा जाता है) — जैसे अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा — को शेष भारत से जोड़ता है।
  • इसकी सीमा चीन, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल से सटे हुए हैं, जिससे यह क्षेत्र भू-राजनीतिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील बन जाता है।
  • 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही इस क्षेत्र को विशेष सामरिक निगरानी में रखा गया है।

संपर्क और परिवहन (Connectivity & Transport)

  • सड़क, रेल और संचार के लगभग सभी मुख्य मार्ग यहीं से होकर गुजरते हैं, जिससे सैन्य रसद और नागरिक आपूर्ति निर्बाध रूप से पूर्वोत्तर तक पहुंचाई जाती है।
  • अगर यह कॉरिडोर किसी कारणवश अवरुद्ध हो जाए, तो पूर्वोत्तर भारत का सम्पर्क टूट सकता है, जिससे देश की अखंडता और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

भूराजनीतिक (Geopolitical) महत्व

  • चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश पर दावा और डोकलाम जैसे क्षेत्रों में बार-बार घुसपैठ की घटनाएं इस इलाके की रणनीतिक संवेदनशीलता को बढ़ा देती हैं।
  • हाल ही में बांग्लादेश के लालमोनीहाट में चीन को एयरबेस बनाने का कथित न्योता भी इस इलाके को चर्चा में ले आया है।
  • यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का केंद्र भी है, जो पूर्वोत्तर को ASEAN देशों से जोड़ने की कोशिश करती है।

आर्थिक और विकासात्मक महत्व

  • भारत सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक विकास के लिए कई योजनाएं चला रही है। इस कॉरिडोर से ही उन परियोजनाओं के लिए माल और संसाधनों की आपूर्ति होती है।
  • यह क्षेत्र पर्यटन, हस्तशिल्प, बांस उद्योग, और जैविक कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है।

भारत के लिए वैकल्पिक मार्ग

सिलीगुड़ी कॉरिडोर का इलाका सामरिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि यह भारत के मुख्य भाग को उसके उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ने वाला एकमात्र और बेहद संकरा भू-भाग है। जिससे इसकी सामरिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।

भारतीय सेना में डीजी इंफ्रेंट्री रहे लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी (रिटायर्ड) कहते हैं कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर संवेदनशील है लेकिन कोई खतरे वाली बात नहीं है। उसके विकल्प पर काम हो रहा है।

  • कालादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट, जो कोलकाता से म्यांमार के सितवे पोर्ट होते हुए मिजोरम तक पहुँचने वाला एक वैकल्पिक संपर्क मार्ग है। इस प्रोजेक्ट में तीन तरह के रास्तों का इस्तेमाल किया जाएगा समुद्री, नदी और ज़मीनी।
    • कोलकाता से समुद्र मार्ग द्वारा म्यांमार के सितवे पोर्ट तक,
    • फिर वहां से कालादान नदी के जरिये आंतरिक जल मार्ग का प्रयोग,
    • और अंततः म्यांमार से सड़क मार्ग के माध्यम से भारत के मिजोरम राज्य से जुड़ाव।
  • भारतम्यांमारथाईलैंड त्रिपक्षीय हाईवे पर भी काम चल रहा है, जो मणिपुर से होते हुए म्यांमार और फिर थाईलैंड तक व्यापार और रणनीतिक संपर्क को मज़बूत करेगा।
  • बांग्लादेश के जरिए रेल और सड़क संपर्क, जिसमें त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच कई मार्ग सक्रिय हो चुके हैं और कुछ विकसित किए जा रहे हैं।
  • BBIN मोटर व्हीकल एग्रीमेंट (भारत, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश) के तहत सीमा पार परिवहन को बढ़ावा देने की योजना है। यद्यपि भूटान ने इस पर अस्थायी आपत्ति जताई थी, बाकी देश इस पर आगे बढ़ रहे हैं। अंततः, भारत सरकार आंतरिक संपर्क को मज़बूत करने के लिए मेघालय, शिलांग और गुवाहाटी जैसे मार्गों को बेहतर बना रही है, ताकि किसी संकट के समय पर इनका उपयोग वैकल्पिक मार्ग के रूप में किया जा सके।
  • इन सभी परियोजनाओं का उद्देश्य न केवल रणनीतिक सुरक्षा को सुदृढ़ करना है, बल्कि पूर्वोत्तर भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास को भी गति देना है। हालांकि यह एक रणनीतिक समाधान है, लेकिन इसकी निर्माण गति धीमी है और इसके पूरा होने में अभी समय लग सकता है। फिर भी, यह परियोजना भविष्य में सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को कम कर सकती है और भारत की सामरिक स्थिति को और मजबूत बना सकती है।

निष्कर्ष

भारत का सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे आमतौर पर ‘चिकन नेक’ कहा जाता है, केवल एक भौगोलिक पट्टी नहीं बल्कि देश की रणनीतिक सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंडता और पूर्वोत्तर के विकास की जीवनरेखा है। यह क्षेत्र भू-राजनीतिक दृष्टि से इतना संवेदनशील है कि इसकी चौड़ाई केवल 20–22 किलोमीटर है और यह भारत के 7 पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है।

चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की नीतिगत नजदीकियां, और चीन द्वारा नेपाल, भूटान, और बांग्लादेश में रणनीतिक आधार बनाने की कोशिशें इस कॉरिडोर को और अधिक सुरक्षा-जोखिमग्रस्त बना देती हैं। डोकलाम जैसी घटनाएं पहले ही इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को उजागर कर चुकी हैं, और हाल में लालमोनीहाट में चीनी एयरबेस का मुद्दा भारत के लिए नए खतरे की घंटी है।

हालांकि भारत कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट, भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाईवे, और BBIN पहल जैसे वैकल्पिक मार्गों पर काम कर रहा है, लेकिन इनका पूर्ण विकास अभी शेष है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता को घटाना और पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा, आपूर्ति और विकास को सुनिश्चित करना है।

अतः भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह इस संवेदनशील गलियारे की सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक मजबूत, और साथ ही विकल्पों को तेज़ी से विकसित करे, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखा जा सके। यह न केवल देश की भौगोलिक अखंडता का प्रश्न है, बल्कि भारत के भविष्य की रणनीतिक स्थिरता का भी केंद्रबिंदु है।

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