हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु स्थित गंगैकोंडा चोलपुरम् में ‘आदि थिरुवथिरै’ उत्सव के समापन समारोह में भाग लिया। यह उत्सव सम्राट राजेन्द्र चोल प्रथम की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया गया। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने चोल वंश की ऐतिहासिक उपलब्धियों को रेखांकित किया और इसे आधुनिक भारत के विकास और एकता के दृष्टिकोण से जोड़ा।
चोल वंश
- चोल वंश एक प्राचीन तमिल साम्राज्य था, जो दक्षिण भारत में 9वीं शताब्दी (संस्थापक: विजयालय) से लेकर 13वीं शताब्दी तक प्रमुख रहा।
- राजराजा चोल और उनके पुत्र राजेन्द्र चोल के नेतृत्व में चोल साम्राज्य अपने सैनिक, समुद्री और सांस्कृतिक उत्थान के शिखर पर पहुँचा।
- उनकी सीमाएं मालदीव से लेकर गंगा नदी (बांग्लादेश) तक फैली थीं और उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भी उपनिवेश स्थापित किए।
हार्ड पावर (सैन्य शक्ति) बनाम सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक शक्ति)
- चोलों के पास विकट नौसेना और सैन्य बल था जिससे उन्होंने दक्षिण एशिया (विशेषकर श्रीलंका, मालदीव, इंडोनेशिया) तक विजय प्राप्त की।
- लेकिन सिर्फ युद्ध नहीं, उन्होंने वहाँ भारतीय संस्कृति, धर्म (हिंदू-शैव), स्थापत्य, भाषा, और प्रशासनिक पद्धति भी पहुँचाई, यही है उनकी सॉफ्ट पावर।
दक्षिण–पूर्व एशिया में चोलों की विरासत
कंबोडिया
- अंगकोरवाट मंदिर और अन्य स्थापत्य कृतियाँ भारतीय (विशेषतः द्रविड़ और नागर) स्थापत्य पर आधारित हैं।
- शैव और वैष्णव धर्म, संस्कृत भाषा, और भारतीय रीति-नीति यहाँ की सांस्कृतिक जड़ों में समाहित हैं।
इंडोनेशिया (जावा और सुमात्रा)
- चोलों ने श्रिविजय साम्राज्य पर आक्रमण किया, लेकिन वहाँ के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी किया।
- आज भी इंडोनेशिया की मुद्रा पर गणेश जी की छवि मिलती है – यह भारत के स्थायी सांस्कृतिक प्रभाव का प्रतीक है।
सॉफ्ट पावर की परिभाषा और चोलों का योगदान
सॉफ्ट पावर एक ऐसा प्रभाव है जो बिना बल प्रयोग के संस्कृति, मूल्यों, भाषा और परंपरा के माध्यम से होता है।
Joseph Nye (1990) के अनुसार, सॉफ्ट पावर वह है जो ‘अन्य को आकर्षित करे, बाध्य नहीं।’
चोल वंश ने दक्षिण भारत की सीमाओं से बाहर जाकर:
- भारतीय धर्मों को फैलाया (विशेषकर शैव परंपरा)
- भारतीय स्थापत्य कला और मंदिर निर्माण शैली को स्थापित किया
- भाषा (संस्कृत और तमिल) और साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया
सॉफ्ट पावर का आज के भारत को लाभ
- आज जब भारत ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया से संबंध मजबूत कर रहा है, तो चोलों द्वारा रोपित यह सांस्कृतिक विरासत बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है।
- सांस्कृतिक समानता और ऐतिहासिक जुड़ाव के कारण भारत को इस क्षेत्र में राजनयिक और व्यापारिक बढ़त मिल रही है। उदाहरण: भारत-वियतनाम, भारत-थाईलैंड के सांस्कृतिक संबंधों को भारत की सॉफ्ट पावर नीति के तहत बार-बार रेखांकित किया जाता है।
लोकतांत्रिक परंपराएँ – कुडवोलाई प्रणाली
प्रधानमंत्री मोदी ने चोलों की कुडवोलाई प्रणाली को विशेष रूप से रेखांकित किया और इसकी तुलना मैग्ना कार्टा (1215 ई.) और यूरोपीय प्रबोधन युग की लोकतांत्रिक अवधारणाओं से की।
कुडवोलाई प्रणाली की विशेषताएँ
- ‘कुडवोलाई’ एक प्रकार की मतदान पद्धति थी जिसमें नामों को ताड़पत्र पर लिखकर एक मटके में डाला जाता था।
- एक निष्पक्ष बालक द्वारा सार्वजनिक रूप से चयन किया जाता था, जिससे पारदर्शिता और ईमानदारी सुनिश्चित होती थी।
- उम्मीदवारों को भूमि कर चुकाने वाला होना चाहिए। उम्र 35–70 वर्ष होनी चाहिए। तथा वेदों या प्रशासनिक ज्ञान में पारंगत हो।
- अपराध, ऋण चुकता न करना, शराब सेवन या भाई-भतीजावाद जैसे दोषी व्यक्ति अयोग्य घोषित किए जाते थे।
- इस प्रणाली में ईश्वरीय इच्छा और नागरिक कर्तव्य का संगम माना जाता था।
प्रशासनिक विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन
- चोल काल में ग्राम सभाएँ (Sabha – ब्राह्मण गाँवों के लिए; Ur – अन्य गाँवों के लिए) आर्थिक, न्यायिक और धार्मिक मामलों का प्रबंधन करती थीं।
व्यापारी संघों (जैसे मणिग्रामम और अय्यवोले) ने व्यापार और शासन में सक्रिय भागीदारी निभाई।
राजनीतिक एवं सांस्कृतिक राज्यशक्ति (Statecraft)
- राजेन्द्र चोल ने गंगा जल लाकर अपनी राजधानी में स्थापित किया, जिससे उन्होंने विजय और सांस्कृतिक शक्ति को दर्शाया।
- उनकी जल प्रबंधन, सेना, और व्यापारिक दृष्टि को आज के भारत की विकास रणनीति से जोड़ा गया।
उस युग में लोकतंत्र की सीमाएँ
हालांकि यह प्रणाली अपने समय से कहीं आगे थी, फिर भी इसमें कुछ सीमाएँ थीं:
- स्त्रियाँ, भूमिहीन मजदूर और निचली जातियाँ इन प्रक्रियाओं से वंचित थीं।
- यह दर्शाता है कि सामाजिक समावेशन (inclusivity) उस समय अधूरा था।
चोल विरासत और समकालीन भारत
- राष्ट्रीय सुरक्षा: चोलों की नौसेना शक्ति को ध्यान में रखते हुए PM मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देकर भारत की समुद्री सुरक्षा नीति को मजबूती से प्रस्तुत किया।
- आर्थिक रणनीति: चोलों के व्यापारिक कौशल और जल प्रबंधन को आधुनिक विकास योजनाओं का मॉडल बताया गया।
- सांस्कृतिक एकता: काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसी पहलें भारत की विविधता में एकता को दर्शाती हैं। शैव सिद्धांत और तिरुमूलर का संदेश ‘अनबे शिवम्’ (प्रेम ही शिव है) को वैश्विक संकटों का समाधान बताया गया।
- सांस्कृतिक पुनरुद्धार: 2014 से अब तक भारत ने 600 से अधिक प्राचीन कलाकृतियाँ वापस लाई हैं, जिनमें से 36 तमिलनाडु की हैं।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री मोदी ने चोल सम्राटों की उपलब्धियों को आधुनिक भारत के आत्मविश्वास, राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हुए एक प्रेरक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। चोलों की लोकतांत्रिक परंपराएँ, प्रशासनिक दक्षता और सांस्कृतिक समन्वय भारत के लिए न केवल ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि आधुनिक शासन की दिशा में मार्गदर्शक सिद्धांत भी हैं। यह विचारधारा पश्चिमी लोकतंत्र की अवधारणाओं का एक भारतीय विकल्प प्रस्तुत करती है।