जीन-फ्रांस्वा लियोतार्द (Jean-François Lyotard) का जन्म 10 अगस्त 1924 को वर्साय (Versailles), फ्रांस में हुआ और 21 अप्रैल 1998 को पेरिस में उनका निधन हुआ। वे 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक थे। उन्हें विशेष रूप से उत्तर-आधुनिकतावाद (Postmodernism) के प्रमुख विचारक के रूप में जाना जाता है।
• लियोतार्द का नाम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने आधुनिक युग की उस सोच को चुनौती दी, जिसमें यह माना जाता था कि ज्ञान, सत्य और प्रगति सार्वभौमिक (universal) होते हैं। उन्होंने कहा कि आज का समय ऐसा है, जहाँ लोग बड़े-बड़े आख्यानों (Grand Narratives) या महान सिद्धांतों पर विश्वास नहीं करते। इसके बजाय, लोग छोटे-छोटे आख्यानों (Little Narratives) और अलग-अलग दृष्टिकोणों की ओर ध्यान देते हैं।
प्रारम्भिक जीवन
• बचपन में लियोतार्द के कई सपने थे।
• कभी वे साधु (monk) बनना चाहते थे।
• कभी उन्हें चित्रकला (painter) में रुचि थी।
• कभी वे इतिहासकार (historian) बनने की सोचते थे।
• उन्होंने पेरिस के मशहूर विश्वविद्यालय Sorbonne से पढ़ाई की और 1950 में Agrégation (एक तरह की शिक्षण डिग्री) प्राप्त की।
• पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अल्जीरिया के कॉन्स्टेंटाइन (Constantine) शहर के एक विद्यालय में अध्यापन शुरू किया।
राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता
1954 में लियोतार्द Socialisme ou Barbarie (सोशलिज़्म या बर्बरता)नामक संगठन से जुड़े। यह एक एंटी-स्टालिनिस्ट समाजवादी समूह था।
• यहाँ उन्होंने कई निबंध और लेख लिखे, जिनमें उन्होंने फ्रांस द्वारा अल्जीरिया में किए जा रहे उपनिवेशवादी शोषण की कड़ी आलोचना की।
• उनके लेखन में सामाजिक न्याय और उपनिवेशवाद विरोधी दृष्टिकोण साफ दिखाई देता है।
शैक्षणिक जीवन
• 1966 में उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय (University of Paris X, Nanterre) में दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू किया।
• 1970 में वे पेरिस VIII (Vincennes–Saint-Denis) विश्वविद्यालय चले गए और 1987 तक वहाँ अध्यापन किया।
• 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने फ्रांस से बाहर भी पढ़ाया।
• 1993 में वे University of California, Irvine में फ्रेंच विभाग में प्रोफेसर बने।
• 1995 में उन्होंने Emory University, Atlanta (USA) में फ्रेंच और दर्शनशास्त्र दोनों पढ़ाया।
लियोतार्द की प्रमुख कृतियाँ और विचार
1. Discourse, Figure (1971)
• इस पुस्तक में उन्होंने भाषा (linguistic signs) और कला (painting, sculpture) के अर्थ के बीच अंतर समझाया।
• उनका तर्क था कि तर्क (reason) हमेशा भाषा के माध्यम से काम करता है, लेकिन कला का अर्थ केवल तर्क से नहीं समझा जा सकता।
• उदाहरण: एक पेंटिंग का सौंदर्य या भावनात्मक प्रभाव हमेशा तर्क से परे रहेगा।
2. Libidinal Economy (1974)
• यह किताब 1968 के पेरिस छात्र आंदोलन से काफी प्रभावित थी।
• इसमें उन्होंने इच्छा (desire) और तर्क (reason) के बीच तनाव की बात की।
• उनका कहना था कि इंसानी इच्छाएँ कभी भी पूरी तरह तर्क से नियंत्रित नहीं की जा सकतीं।
3. The Postmodern Condition (1979)
यह उनकी सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली किताब मानी जाती है।
• इसमें उन्होंने कहा कि उत्तर-आधुनिक युग (Postmodern Age) में लोग अब Grand Narratives यानी बड़े आख्यानों पर विश्वास नहीं करते।
• Grand Narratives का मतलब है वह बड़े सिद्धांत जिनसे दुनिया और इतिहास को पूरी तरह समझाने की कोशिश की जाती है, जैसे
• तर्क (Reason)
• सत्य (Truth)
• प्रगति (Progress)
• स्वतंत्रता (Freedom)
• लियोतार्द के अनुसार, लोग अब इनसे निराश हो चुके हैं।
• इसके बजाय, अब छोटे आख्यान (Little Narratives) महत्वपूर्ण हो गए हैं, जैसे –
• रोज़मर्रा की ज़िंदगी की कहानियाँ
• हाशिए पर रहने वाले समुदायों (marginalized groups) के अनुभव
• स्थानीय स्तर के सत्य
सरल शब्दों में, लियोतार्द ने कहा कि अब दुनिया को समझने का कोईएक बड़ा सत्य नहीं है। हर व्यक्ति और हर समूह का अपना सत्य और अपनी कहानी है।
4. The Differend: Phrases in Dispute (1983)
• इस कृति में लियोतार्द ने लैंग्वेज गेम्स (Language Games) की अवधारणा का इस्तेमाल किया।
• यह विचार विट्गेंश्टाइन (Ludwig Wittgenstein) से लिया गया था।
• उनका कहना था कि अलग-अलग विचारधाराएँ या भाषाई रूप अपने-अपने नियमों पर चलते हैं।
• इनके बीच कोई साझा आधार नहीं होता, इसलिए इन्हें एक सामान्य “सत्य” या “तर्क” से नहीं नापा जा सकता।
• इसलिए राजनीति का मुख्य काम यह होना चाहिए कि ऐसी विविधता (heterogeneity) और भिन्नता (dissensus) को सम्मान दिया जाए।
लियोतार्द और उत्तर-आधुनिकतावाद
• लियोतार्द को अक्सर उत्तर-आधुनिक दर्शन (Postmodern Philosophy) का सबसे बड़ा प्रवक्ता माना जाता है।
• उन्होंने दिखाया कि आधुनिकता (Modernity) के वादे जैसे प्रगति, विज्ञान, सत्य अधूरे और अपूर्ण रहे।
• अब समाज छोटे आख्यानों, अलग-अलग अनुभवों और विविध दृष्टिकोणों से बना है।
• इस सोच ने साहित्य, समाजशास्त्र, राजनीति और कला सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया।
लियोतार्द का महत्व
1. ज्ञान की नई परिभाषा – उन्होंने ज्ञान को स्थिर और सार्वभौमिक न मानकर बहुलतावादी (pluralistic) बताया।
2. राजनीतिक दृष्टिकोण – उन्होंने राजनीति में विविधता और असहमति (dissensus) को महत्व दिया।
3. हाशिए की आवाज़ें – उन्होंने कहा कि छोटे आख्यान, यानी कमजोर और हाशिए पर रहने वाले लोगों की कहानियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
4. कला और भाषा का महत्व – उन्होंने तर्क से परे कला और भाषा की जटिलता को रेखांकित किया।
निष्कर्ष
• जीन-फ्रांस्वा लियोतार्द 20वीं शताब्दी के उन दार्शनिकों में गिने जाते हैं जिन्होंने आधुनिकता की नींव को चुनौती दी। उनका कहना था कि अब ऐसा कोई एक बड़ा आख्यान (Grand Narrative) नहीं बचा, जो पूरी दुनिया को समझा सके। आज का युग छोटे आख्यानों, बहुलता और भिन्नताओं का युग है।
• उनकी सोच से हमें यह सीख मिलती है कि हर समुदाय, हर संस्कृति और हर व्यक्ति की अपनी कहानी और सत्य होता है, जिसे सम्मान देना जरूरी है।