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टैरिफ डिप्लोमेसी: व्यापार से ज़्यादा सत्ता का खेल

टैरिफ वार

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया। चीन और अन्य देशों के साथ व्यापार घाटे को लेकर ट्रंप प्रशासन ने भारी शुल्क लगाकर विदेशी वस्तुओं के आयात को हतोत्साहित करने का प्रयास किया। हालांकि इसे आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन असल में यह एक राजनीतिक चाल है, जिससे घरेलू जनता को यह दिखाया जा सके कि सरकार देश के हितों की रक्षा कर रही है।

क्या है टैरिफ संकट

  • पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की व्यापारिक नीतियों को लेकर एक नया कदम उठाया था, जिसे उन्होंने “रेसिप्रोकल टैरिफ” (परस्पर शुल्क नीति) कहा। ट्रंप का मानना था कि अमेरिका अन्य देशों से जो व्यापार करता है, उसमें अमेरिका को घाटा हो रहा है, क्योंकि बाकी देश अमेरिकी वस्तुओं पर भारी टैक्स लगाते हैं, जबकि अमेरिका उनके उत्पादों को बिना या कम शुल्क पर स्वीकार करता है।
  • उदाहरण के तौर पर उन्होंने भारत और चीन का जिक्र किया – जैसे भारत मोटरसाइकिलों पर 100% शुल्क लगाता है जबकि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर बहुत कम टैक्स लगाता है। ऐसे असमान कर ढांचे को खत्म करने के लिए उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ की बात की, यानी अगर कोई देश अमेरिकी सामान पर 100% टैक्स लगाए, तो अमेरिका भी उनके उत्पादों पर उतना ही टैक्स लगाएगा।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इन टैरिफ हमलों के कारण व्यापार बाधित हुआ है और यह विकासशील देशों की आर्थिक प्रगति में भी बाधा बन रहा है। संरक्षणवाद की यह नीति वैश्विक व्यापार को पीछे धकेल रही है और विश्व बाजार में अनिश्चितता बढ़ा रही है।
  • नई व्यापार नीतियों के कारण पारंपरिक व्यापार संधियों पर भी असर पड़ा है। यह स्थिति दुनिया को फिर से व्यापार संतुलन की नई दिशा खोजने को मजबूर कर रही है। ट्रंप प्रशासन की नीतियों से यह सवाल उठता है कि क्या हर देश अब अपने हितों के लिए टैरिफ का सहारा लेगा? इससे वैश्विक व्यापार के खुलेपन पर खतरा मंडरा रहा है।
  • भारत जैसे देशों के लिए भी यह समय अत्यधिक रणनीति और सतर्कता का समय है। भारत को अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए चीन और अमेरिका दोनों के साथ संतुलन बनाना होगा। टैरिफ के बढ़ते चलन को देखते हुए भारत को अपनी निर्यात नीतियों पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है।

विश्वविद्यालयों और नीति निर्माताओं के लिए यह एक अध्ययन का विषय बन गया है कि टैरिफ की यह लहर वैश्विक अर्थव्यवस्था को किस दिशा में ले जा रही है। वर्तमान समय में जब आर्थिक चुनौतियाँ पहले से मौजूद हैं, टैरिफ जैसे नीतिगत निर्णय स्थिति को और जटिल बना रही हैं।

अंततः, टैरिफ अब सिर्फ एक आर्थिक उपकरण नहीं, बल्कि एक राजनीतिक हथियार बन चुका है, जिसका उपयोग देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में किया जा रहा है।

टैरिफ का राजनीतिक प्रभाव

  • टैरिफ लगाने से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भार बढ़ा क्योंकि विदेशी वस्तुएं महंगी हो गईं।
  • अमेरिकी कंपनियों ने भी इससे नुकसान उठाया क्योंकि उनके कच्चे माल की लागत बढ़ गई। इसके बावजूद ट्रंप प्रशासन ने इसे राष्ट्रहित में उठाया गया कदम बताया।
  • चीन के साथ व्यापार युद्ध में अमेरिका ने लगभग 60 अरब डॉलर की वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाया, और चीन ने भी जवाबी कार्रवाई की। इससे विश्व व्यापार की स्थिरता को झटका लगा। वैश्विक सप्लाई चेन बाधित हुई और विश्व बाजारों में अनिश्चितता बढ़ी।
  • भारत जैसे देश भी अमेरिकी टैरिफ नीति से अछूते नहीं रहे। अमेरिका ने भारत से आने वाले कुछ उत्पादों पर शुल्क लगाया, और इसके बदले भारत ने भी अपने टैरिफ बढ़ा दिए।
  • यह नीति केवल व्यापार संतुलन साधने के लिए नहीं थी, बल्कि इसके पीछे घरेलू राजनीति में बढ़त हासिल करने की मंशा थी। ऐसे कदमों से चुनावी समर्थन जुटाया गया, खासकर उन इलाकों में जहां औद्योगिक नौकरियां प्रभावित हुई थीं।

यह स्थितियां स्पष्ट करती है कि वैश्विक व्यापार में टैरिफ अब आर्थिक साधन कम, राजनीतिक हथियार अधिक बन चुके हैं।

ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) का अंत

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग दोनों ने स्पष्ट रूप से वैश्वीकरण की दिशा में गिरावट की बात कही है। इन्होने इंगित किया कि अमेरिकी संरक्षणवाद की नीति और ट्रम्प द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ (शुल्क) के कारण अब देश घरेलू उत्पादन और स्थानीय व्यापार को प्राथमिकता दे रहे हैं।

अब ग्लोबलाइजेशन से लोगों को ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा और यह समय घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने का है। वहीं, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 60 से अधिक देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (आपसी कर) लगा दिए हैं, जिससे वैश्विक व्यापार में गिरावट और शेयर बाजारों में भारी नुकसान देखा जा रहा है।

  • शेयर बाजार में गिरावट: अमेरिका, जापान, भारत सहित कई देशों में बड़ी गिरावट देखी गई।
  • जवाबी कार्रवाइयाँ: चीन, यूरोप, ब्राजील आदि ने भी जवाबी टैरिफ या विरोध की घोषणा की।
  • भारत की डायमंड इंडस्ट्री पर असर: निर्यात घटने की आशंका।

सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग ने भी चेताया कि ग्लोबलाइजेशन और फ्री ट्रेड का युग खत्म हो रहा है, जिससे छोटे देशों को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है, खासकर सिंगापुर जैसे व्यापार-निर्भर राष्ट्रों को। ट्रम्प के टैरिफ से चीन, भारत, वियतनाम जैसे देशों को भी भारी नुकसान हुआ है। चीन ने जवाब में 34% टैरिफ लगाया, जिससे ट्रेड वॉर की स्थिति बन गई है।

  • लॉरेंस वोंग ने कहा कि यह नया युग “खतरनाक और अस्थिर” होगा।
  • वैश्विक सप्लाई चेन पर गहरा असर पड़ेगा।

इस घटनाक्रम का असर भारत की डायमंड इंडस्ट्री से लेकर अमेरिका, यूरोप और ब्राज़ील के बाजारों तक फैल गया है। जहां अमेरिका में शेयर बाजार 5 ट्रिलियन डॉलर तक गिरा, वहीं फ्रांस और कनाडा ने अमेरिका के साथ व्यापार रोकने या जवाबी टैक्स लगाने की बात कही है।

इस सबके बीच ग्लोबलाइजेशन की मूल अवधारणा – कि देश मिल-जुलकर व्यापार करेंगे, सस्ते विदेशी उत्पाद उपलब्ध होंगे, और रोजगार बढ़ेगा – अब एक संकट में है। देश अब खुद को आत्मनिर्भर बनाने की ओर बढ़ रहे हैं और यह नई नीति दुनिया की आर्थिक स्थिरता और सप्लाई चेन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

क्या थी ग्लोबलाइजेशन की मूल अवधारणा

ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) की मूल अवधारणा यह है कि दुनिया के विभिन्न देश एक-दूसरे से आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से जुड़ें, ताकि संसाधनों, तकनीक, विचारों और व्यापार का मुक्त और तेज़ आदान-प्रदान हो सके।

  • इसका मुख्य उद्देश्य विश्वव्यापी व्यापार को प्रोत्साहन देना, विकासशील देशों को वैश्विक बाज़ार से जोड़ना, उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना, रोज़गार के नए अवसर पैदा करना, सूचना और संचार के माध्यमों का वैश्विक विस्तार करना, शिक्षा, स्वास्थ्य और विज्ञान में सहयोग करना था।

लेकिन वर्तमान परिदृश्य में, देश ग्लोबलाइजेशन की इन मूल अवधारणाओं से हटकर “नेशनलिज़्म” (राष्ट्रवादी सोच) और “प्रोटेक्शनिज़्म” (घरेलू उद्योगों की रक्षा) की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे वैश्वीकरण की यह परिकल्पना संकट में है।

भारत को लाभ या नुकसान?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने “रेसिप्रोकल टैरिफ” नीति अपनाई, जिससे भारत-अमेरिका व्यापार प्रभावित हुआ। भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में मोटरसाइकिल, दवाइयां, कृषि उत्पाद आदि शामिल हैं, जिन पर अमेरिका ने ज्यादा शुल्क लगाकर भारतीय व्यापार को मुश्किल बना दिया। वहीं भारत द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए शुल्क को ट्रंप ने अनुचित बताया था।

  • आंकड़ों के अनुसार, भारत का अमेरिका से व्यापार 2020 में घटकर 5 अरब डॉलर रह गया था, लेकिन अब यह धीरे-धीरे पुनः बढ़ रहा है।
  • भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है और दोनों देशों के बीच व्यापार 2023-24 में और बढ़ने की संभावना है। हालांकि, ट्रंप की नीति के कारण कई भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिया गया, जिससे भारत को नुकसान हुआ। लेकिन इसके साथ ही भारत ने भी अमेरिका पर शुल्क लगाकर जवाब दिया, जिससे कुछ हद तक संतुलन बना।
  • वर्तमान हालातों को ध्यान में रख कर भारत को अपनी रणनीति बदलनी चाहिए और ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए जहां वह अमेरिका को प्रतिस्पर्धा दे सकता है, जैसे फार्मा, ऑटोमोबाइल, आईटी और कृषि उत्पाद। इसके साथ ही नीति में स्थिरता और तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता है ताकि भारत वैश्विक बाज़ार में टिक सके।

टैरिफ एक राजनीतिक रणनीति

  • आमतौर पर टैरिफ (शुल्क) को आर्थिक उपाय के रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य देश की घरेलू अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि टैरिफ का उपयोग राजनीतिक हथियार की तरह किया जा रहा है। यह विशेष रूप से तब स्पष्ट हुआ है जब शक्तिशाली देश अमेरिका ने शुल्क को राजनयिक दबाव बनाने और नीतिगत बदलाव लाने के लिए अपनाया।
  • डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल में अमेरिका ने “रेसिप्रोकल टैरिफ” का सहारा लेकर न सिर्फ भारत बल्कि चीन, यूरोप और अन्य व्यापारिक साझेदारों पर भी दबाव बनाया। इसका मुख्य उद्देश्य केवल व्यापार घाटा कम करना नहीं था, बल्कि राजनीतिक संदेश देना और अपने घरेलू समर्थकों को यह दिखाना था कि वे “अमेरिकी हितों की रक्षा” कर रहे हैं।
  • इस प्रकार, टैरिफ केवल आर्थिक साधन नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति और शक्ति संतुलन का हिस्सा बन चुका है। यह राजनीतिक इच्छा, चुनावी लाभ और भू-राजनीतिक रणनीति का औजार है, जिससे देशों की नीतियों और रिश्तों को प्रभावित किया जाता है।
  • ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि विकासशील देश केवल आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि रणनीतिक सूझबूझ के साथ इन शुल्क नीतियों का जवाब दें।

निष्कर्ष

कई लेखको ने अमेरिका की इस नीति को “खूबसूरत चीज़” कहा क्योंकि यह अमेरिका की रक्षा करने और नौकरियों को वापस लाने का तरीका है। उन्होंने दावा किया कि इससे अमेरिकी जनता को फायदा होगा और विदेशी उत्पादों की निर्भरता घटेगी। परन्तु यह नीति ग्लोबलाइजेशन के उसूलों के खिलाफ है। जहां पूरी दुनिया मुक्त व्यापार की ओर जा रही थी, ट्रंप की नीति “प्रोटेक्शनिज़्म” (रक्षात्मक आर्थिक नीति) की ओर लौटने जैसा था। यह एक ऐसा बदलाव था जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सीमित कर सकता था और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है। यह कहा जा सकता है कि ट्रंप का यह कदम अमेरिका को तो तात्कालिक रूप से लाभ दे सकता है, लेकिन इससे ग्लोबल ट्रेड सिस्टम में असंतुलन पैदा हो गया है। यदि सभी देश यही नीति अपना रहे है जो विश्व व्यापार में संकट उत्पन्न कर रहा है।

 

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अमेरिका द्वारा नए टैरिफ़