हाल ही में तेलंगाना भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने “आरक्षण के भीतर आरक्षण“ (Reservation within Reservation) के तहत अनुसूचित जातियों (SC) के लिए आरक्षण का उप-श्रेणीकरण (sub-categorisation) नियम लागू किया है। ताकि SC वर्ग के अंदर मौजूद सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर किया जा करना।
तेलंगाना में अनुसूचित जाति उप–श्रेणीकरण क्या है?
अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2025″ के अंतर्गत, तेलंगाना में अनुसूचित जाति (SC) समुदायों के भीतर सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण का पुनर्गठन किया गया है। यह नीति इस धारणा पर आधारित है कि SC वर्ग के सभी समुदाय एक समान सामाजिक स्थिति में नहीं हैं। और कुछ उप-जातियाँ अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठा चुकी हैं, जबकि कुछ अब भी गंभीर वंचना में हैं। इस नीति का उद्देश्य न्यायोचित आरक्षण करना है, जो सबसे अधिक वंचित हैं, उन्हें अधिक लक्षित समर्थन मिल सके। केवल जाति नाम नहीं, बल्कि वास्तविक सामाजिक स्थिति के आधार पर नीति लागू करना है। यह नीति डॉ. अंबेडकर के दृष्टिकोण के अनुरूप – “समान अवसर, समान भागीदारी” के उद्देश्य को पूरा करेगा।
- तेलंगाना के मुख्यमंत्री श्री ए. रेवंत रेड्डी ने यह ऐतिहासिक निर्णय दिया।
- अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल, 2025 को तेलंगाना के राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हुई।
- यह अधिनियम 14 अप्रैल, 2025 को तेलंगाना राज्य राजपत्र (Gazette) में प्रकाशित किया गया।
- यह दिनांक विशेष रूप से प्रतीकात्मक है क्योंकि 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती थी, जिससे नीति को सामाजिक न्याय के मूल दर्शन से जोड़ा गया।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उप-वर्गीकृत समूहों को तत्काल प्रभाव से आरक्षण का लाभ मिलने लगे।
अनुसूचित जातियों (SC) का तीन वर्गों में विभाजन
– ग्रुप I, II और III
वर्ग | उप–जातियों की संख्या | आरक्षण प्रतिशत | स्थिति |
ग्रुप-I | 15 | 1% | अत्यंत पिछड़ी जातियाँ |
ग्रुप-II | 18 | 9% | सीमित लाभ प्राप्त जातियाँ |
ग्रुप-III | 26 | 5% | अपेक्षाकृत लाभप्राप्त जातियाँ |
ग्रुप–I
- इस वर्ग में 15 उप-जातियों को शामिल किया गया है जिन्हें “अत्यंत पिछड़ी जातियाँ” माना गया है।
- इन्हें 1 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है। हालाँकि ये उप-जातियाँ राज्य की कुल आबादी का केवल 0.5 प्रतिशत हैं, फिर भी सरकार ने इन्हें 1 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय किया है।
- इस निर्णय का उद्देश्य है कि इन अत्यंत पिछड़े उप-वर्गों को शिक्षा और रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें, ताकि वे समाज की मुख्यधारा में आ सकें।
ग्रुप–II
- कुल 59 उप-जातियों में से 18 उप-जातियाँ, जिन्हें अब तक बहुत सीमित लाभ प्राप्त हुए है, उन्हें ग्रुप-II में रखा गया है।
- इन जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है। यह वर्ग उन जातियों को लक्षित करता है जो पूरी तरह पिछड़ी तो नहीं हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिले।
ग्रुप–III
- इस वर्ग में 26 उप-जातियों को शामिल किया गया है जिन्हें अब तक अपेक्षाकृत बेहतर अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं।
- इन्हें 5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। ये वे जातियाँ हैं जो SC वर्ग के भीतर काफी समय से प्रमुख लाभार्थी रही हैं और सामाजिक-शैक्षणिक रूप से आगे हैं।
हालाँकि तेलंगाना में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षण वर्ष 2011 की जनगणना पर आधारित है, लेकिन वर्तमान में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 17.5% है, इसलिये सरकार अगली जनगणना के आँकड़े उपलब्ध होने पर इसमें विस्तार करने पर विचार करने की योजना बना रही है।
सुप्रीम कोर्ट का 2024 का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त, 2024 को एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया कि अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-classification) करना संविधान के अनुरूप है।
पजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में कोर्ट ने कहा कि इन समुदायों के भीतर सबसे हाशिए पर पड़े और पिछड़े वर्गों को अलग से आरक्षण देना वैध और न्यायसंगत है।
इससे राज्यों को यह अधिकार मिला कि वे SC/ST वर्गों के अंदर उप-श्रेणीकरण करके सबसे वंचित समूहों को लक्षित लाभ प्रदान कर सकें। तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए इस निर्णय कानूनी रूप से एक मजबूत आधार प्रदान किया है।
आरक्षण हेतु संवैधानिक पहल
अनुच्छेद | विवरण |
अनुच्छेद 14 | समानता का अधिकार; उचित वर्गीकरण की अनुमति, बशर्ते वह बोधगम्य और उद्देश्यपूर्ण हो। |
अनुच्छेद 15(4) और 15(5) | राज्य को शैक्षिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार। |
अनुच्छेद 16(4) | राज्य की सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की अनुमति। |
अनुच्छेद 341(1) | SC की अधिसूचना राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल से परामर्श के बाद। |
अनुच्छेद 341(2) | संसद को अनुसूचित जातियों की सूची में परिवर्तन करने का अधिकार। |
तेलंगाना में SC उप-श्रेणीकरण का निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है, लेकिन इसके संवैधानिक और सामाजिक प्रभावों पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अन्य राज्य इस मॉडल को अपनाते हैं या नहीं, और इस निर्णय को न्यायालय द्वारा देखा जा है।
समर्थन और विरोध में प्रतिक्रियाएं
तेलंगाना सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों (SC) के आरक्षण में उप-श्रेणीकरण (sub-categorization) को लेकर हाल ही में उठाए गए कदमों पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। इस निर्णय के समर्थन और विरोध में विभिन्न तर्क प्रस्तुत किए गए हैं।
समर्थन के तर्क
- राज्य सरकार का मानना है कि SC समुदाय के भीतर कुछ उप-जातियाँ आरक्षण के लाभों से वंचित रह गई हैं। उप-श्रेणीकरण से इन उप-जातियों को अधिक अवसर मिलेंगे, जिससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित होगा।
- मदिगा समुदाय, जो लंबे समय से उप-श्रेणीकरण की मांग कर रहा था, इस निर्णय का स्वागत कर रहा है। MRPS प्रमुख मंडा कृष्णा मदिगा ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया है।
विरोध के तर्क
- माला समुदाय के नेताओं ने इस निर्णय का विरोध करते हुए इसे उनके आरक्षण अधिकारों में कटौती के रूप में देखा है। उन्होंने SC आरक्षण को जनसंख्या के अनुपात में देने की मांग की है।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित SC सूची में हस्तक्षेप करता है, जो राज्यों को उप-श्रेणीकरण की अनुमति नहीं देता।
- कुछ आलोचकों का तर्क है कि यह निर्णय आगामी चुनावों में SC समुदाय के समर्थन को हासिल करने के लिए राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
क्या होगा राजनीतिक असर?
तेलंगाना में कांग्रेस सरकार का यह फैसला राहुल गांधी की उस पहल से की गयी है , जिसमें उन्होंने कहा है, कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। यह फैसला बिहार, कर्नाटक, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी कांग्रेस को बढ़त दिला सकता है, जहां जाति जनगणना और आरक्षण का मुद्दा गरम है। दूसरा, तेलंगाना सरकार ने घोषणा की है कि 2026 की जनगणना के बाद एससी के लिए आरक्षण को और बढ़ाया जाएगा। यह डेटा भविष्य में सरकार की नीतियां तय करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष
तेलंगाना में अनुसूचित जातियों के उप-श्रेणीकरण (Sub-categorisation of SCs) को लागू करना सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक और साहसिक पहल है। यह कदम डॉ. भीमराव अंबेडकर के उस दर्शन के अनुरूप है जिसमें उन्होंने समान अवसर और समान भागीदारी पर बल दिया था। इस नीति के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि आरक्षण का लाभ उन समुदायों तक भी पहुँचे जो अब तक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सबसे अधिक वंचित रहे हैं।
यह निर्णय न केवल न्यायसंगत आरक्षण प्रणाली को संस्थागत रूप देता है, बल्कि यह यह भी संकेत देता है कि “समान व्यवहार” की बजाय “उचित व्यवहार” (equitable treatment) की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के 2024 के निर्णय से मिले संवैधानिक समर्थन ने इस नीति को कानूनी वैधता भी प्रदान की है, जिससे अन्य राज्य भी प्रेरित हो सकते हैं।
हालाँकि, इस नीति को लेकर समर्थन और विरोध दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं जबकि राजनीतिक दृष्टिकोण से यह निर्णय कांग्रेस पार्टी की “हिस्सेदारी” की नई नीति को सुदृढ़ कर सकता है, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ जातीय असमानता और सामाजिक न्याय के मुद्दे गहराई से जुड़े हुए हैं।
अंततः यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र में “समावेशी विकास” (inclusive development) की ओर एक सार्थक कदम है, जो अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल प्रस्तुत कर सकता है, बशर्ते इसके क्रियान्वयन में संवैधानिक मर्यादाओं और सामाजिक संतुलन का यथोचित ध्यान रखा जाए।