• थॉमस कुह्न ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई शुरू की और उनका मुख्य विषय भौतिक विज्ञान (physics) था। उन्होंने 1943 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, 1949 तक उन्होंने भौतिकी में अपनी मास्टर और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर ली थी
• उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब उन्होंने हार्वर्ड में इतिहास के छात्रों के लिए विज्ञान की एक क्लास पढ़ानी शुरू की। इस दौरान, उन्होंने अरस्तू जैसे पुराने वैज्ञानिकों की लिखी किताबें पढ़ीं। शुरुआत में उन्हें अरस्तू की बातें समझ नहीं आईं, लेकिन बाद में उन्हें अचानक समझ आ गया कि अरस्तू अपनी दुनिया के हिसाब से सही थे। इस अनुभव ने कुह्न को विज्ञान के इतिहास पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया।
थॉमस कुह्न की किताब द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रेवोल्यूशंस का मुख्य विचार यह है कि विज्ञान सीधा-सीधा आगे नहीं बढ़ता, बल्कि इसमें बड़े-बड़े बदलाव आते हैं जिन्हें प्रतिमान बदलाव (paradigm shifts) कहते हैं।
द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रेवोल्यूशंस: मुख्य विचार
1. सामान्य विज्ञान और प्रतिमान (Normal Science and Paradigms)
• कुह्न के अनुसार, ज़्यादातर समय विज्ञान एक प्रतिमान (paradigm) के अंदर ही चलता है। प्रतिमान एक तरह का ढाँचा या सोचने का तरीका है जिसे वैज्ञानिक समुदाय सही मानता है। इसमें कुछ मुख्य नियम, सिद्धांत और तरीके शामिल होते हैं। इस समय में, वैज्ञानिक इस ढाँचे को मानते हुए छोटी-छोटी पहेलियाँ सुलझाते हैं, जिसे कुह्नसामान्य विज्ञान कहते हैं।
• उदाहरण: सदियों तक, न्यूटन के नियम (गति और गुरुत्वाकर्षण के) ही भौतिक विज्ञान का मुख्य प्रतिमान थे। वैज्ञानिक इन नियमों का इस्तेमाल करके ग्रहों की चाल और चीज़ों की गति को समझते थे। वे इन नियमों पर सवाल नहीं उठाते थे।
2. दिक्कतें और संकट (Anomalies and Crisis)
• धीरे-धीरे, वैज्ञानिकों को कुछ ऐसी बातें पता चलने लगती हैं जो उनके मौजूदा प्रतिमान के नियमों से मेल नहीं खातीं। ये छोटी-छोटीदिक्कतें होती हैं। पहले वैज्ञानिक इन्हें नज़रअंदाज़ करते हैं या सोचते हैं कि यह उनकी गलती है।
• लेकिन जब ये दिक्कतें बहुत ज़्यादा हो जाती हैं और उन्हें सुलझाया नहीं जा सकता, तो विज्ञान का क्षेत्र संकट में आ जाता है। इस समय वैज्ञानिक सोचने लगते हैं कि शायद उनका मुख्य ढाँचा ही गलत है।
• उदाहरण: सदियों तक यह माना जाता था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है (भू-केंद्रित मॉडल)। लेकिन जब ग्रहों की चाल को और बारीकी से देखा गया, तो पता चला कि कुछ ग्रह कभी-कभी उल्टी दिशा में चलते हैं। यह एक बड़ी दिक्कत थी।
3. वैज्ञानिक क्रांतियाँ (Scientific Revolutions)
• जब संकट गहराता है, तो एक नया प्रतिमान सामने आता है जो पिछली सारी दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा सकता है। जब वैज्ञानिक समुदाय पुराने प्रतिमान को छोड़कर इस नए को अपना लेता है, तो इसे ही कुह्न वैज्ञानिक क्रांति कहते हैं।
• उदाहरण: जब भू-केंद्रित मॉडल की दिक्कतें बहुत ज़्यादा हो गईं, तोकोपरनिकस ने एक नया मॉडल पेश किया जिसमें सूर्य केंद्र में था (सूर्य-केंद्रित मॉडल)। इस नए मॉडल ने ग्रहों की चाल को बहुत आसानी से समझा दिया। हालांकि, इसे तुरंत स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन धीरे-धीरे इसने पुरानी सोच को पूरी तरह से बदल दिया।
4. अतुलनीयता (Incommensurability)
• कुह्न का एक और ज़रूरी विचार यह है कि दो अलग-अलग प्रतिमान इतने अलग होते हैं कि उनकी सीधी तुलना नहीं की जा सकती। वैज्ञानिक जो एक प्रतिमान में काम करते हैं, वे दुनिया को बिल्कुल अलग तरीके से देखते हैं।
• उदाहरण: न्यूटन ने माना था कि समय और जगह बिलकुल स्थिर (absolute) हैं। लेकिन आइंस्टीन ने कहा कि समय और जगह बदलती हैं और देखने वाले पर निर्भर करती हैं। यह सिर्फ एक छोटा सा बदलाव नहीं था, बल्कि यह दुनिया को देखने का बिलकुल नया तरीका था।
5. विज्ञान सीधी लाइन में नहीं बढ़ता
• इस पूरी बात का निचोड़ यह है कि विज्ञान कोई सीधी लाइन नहीं है जिसमें ज्ञान बस जुड़ता जाता है। कुह्न के अनुसार, वैज्ञानिक प्रगति में कई अचानक बदलाव आते हैं जहाँ एक पुराना तरीका पूरी तरह से खत्म हो जाता है और उसकी जगह एक बिलकुल नया तरीका ले लेता है।
• यह चक्र चलता रहता है: सामान्य विज्ञान → दिक्कतें → संकट →क्रांति → फिर से नया सामान्य विज्ञान।
• यह किताब दिखाती है कि विज्ञान सिर्फ तथ्यों को इकट्ठा करने का नाम नहीं है, बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वैज्ञानिक किस तरह से सोचते और काम करते हैं।