दक्षिण एशिया की जटिल भू-राजनीतिक संरचना में संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के बीच का त्रिकोणीय संबंध एक जटिल और बहुस्तरीय सम्स्याबन गयी है। यह समीकरण केवल वर्तमान रणनीतिक हितों पर आधारित नहीं, बल्कि वैचारिक संघर्षों, राष्ट्रीय हितों और ऐतिहासिक विरासतों से भी प्रभावित है।
अस्थिर भू–दृश्य
हाल के घटनाक्रम, विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी, ने इन पुराने गठबंधनों पर नई रोशनी डाली है। इससे नए तनावों, उभरते दरारों, और राष्ट्रों की नई रणनीतिक पहचानों का निर्माण हो रहा है।
- इस अस्थिर भू-दृश्य में तीनों देश भारत, अमेरिका और पाकिस्तान – कूटनीति, सुरक्षा और प्रभाव के खतरनाक पानी में अपना-अपना संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं। वे पुराने संबंधों की पुनः समीक्षा कर रहे हैं और बदलती वैश्विक व्यवस्था में अपनी नई भूमिका तय करने के प्रयास में लगे हैं।
अमेरिका का झुकाव (The U.S. Pivot)
- ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति पारंपरिक कूटनीति से बिल्कुल अलग है।
वह दीर्घकालिक सिद्धांतों की जगह तात्कालिक रणनीतिक लाभों को प्राथमिकता देता है। - ट्रंप की लेन-देन आधारित (transactional) शैली ने पाकिस्तान के साथ एक नई सक्रियता विकसित की है।
उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनिर के साथ प्रतीकात्मक लंच और भारत-पाक के बीच शांति कराने के कई दावों के ज़रिए शीत युद्ध युग की ‘रियलपॉलिटिक’ अपनाई है। - अंत: अमेरिका “शॉर्टकट डिप्लोमेसी” को अपना रहा हैं, जो पूर्ववर्ती रणनीतिक साझेदारियों की कीमत पर भी तैयार है।
अमेरिका की भूमिका और भारत की दुविधा
- ट्रंप प्रशासन की रणनीति में “offshore balancing” और तात्कालिक सौदे प्रमुख हैं, जिससे भारत के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक स्थिरता पर भरोसा करना कठिन हो गया है।
- अमेरिका का तालिबान से समझौता और पाकिस्तान को बढ़ती भूमिका देना, भारत के पश्चिमी मोर्चे की सुरक्षा के लिए चुनौती बना।
- भारत-अमेरिका में व्यापार समझौता, 5G, और रक्षा तकनीक साझेदारी पर भी ठहराव आया है।
अमेरिका–पाकिस्तान संबंधों का पुनरुद्धार
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में नया मोड़ आया है जैसे:-
- अमेरिका ने अफगानिस्तान व ईरान मामलों में पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका को फिर से अहम मानना शुरू किया है।
- इससे पाकिस्तान को भारत के खिलाफ राजनयिक और रणनीतिक संतुलन बनाने में नया बल मिला है।
- $397 मिलियन की सहायता से पाकिस्तान के F-16 बेड़े के रख-रखाव को मंज़ूरी दी है।
- ट्रंप द्वारा पाकिस्तान को “असाधारण साझेदार” कहे जाने से संकेत मिलता है कि वॉशिंगटन अब पाकिस्तान को फिर से एक रणनीतिक सहयोगी मान रहा है।
- पाकिस्तान की सेना को, खासकर ईरान से जुड़े मामलों में, एक सूचित वार्ताकार (interlocutor) के रूप में पेश किया जा रहा है।
- यह रणनीतिक बदलाव, आतंकवाद-विरोधी साझेदारी और चीन से जुड़ी चिंताओं के आधार पर बनी भारत-अमेरिका मित्रता को कमजोर कर सकता है।
भारत के लिए रणनीतिक बदलाव
भारत और ट्रंप प्रशासन की शुरुआती निकटता पाकिस्तान के आतंकवाद पर दोहरे रवैये की साझा निंदा पर आधारित थी। लेकिन अब, पाकिस्तान के साथ अमेरिका के बढ़ते समीकरणों ने भारत को निराश किया है।
भारत ने “नई सामान्य स्थिति (New Normal)” की घोषणा की, जिसमें:
- कठोर सैन्य प्रतिशोध
- वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कूटनीति दोनों शामिल हैं।
साथ ही, पाकिस्तान अपने भूगोल की केंद्रीयता (दक्षिण, पश्चिम और मध्य एशिया से जुड़ाव) का लाभ उठाकर अमेरिका के लिए रणनीतिक अपरिहार्यता का दावा कर रहा है।
- अर्थव्यवस्था, खनिज (rare earths) समझौते, और व्यक्तिगत कूटनीति इसके प्रमुख उपकरण बन गए हैं।
दक्षिण एशिया में अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के बीच का त्रिकोणीय समीकरण तेजी से बदलते हुए भू-राजनीतिक संदर्भों, अवसरवादी रणनीतियों और वैचारिक टकरावों से भरा हुआ है।
भारत की बहु–संरेखण रणनीति (Multi-Alignment Strategy)
- भारत अब परंपरागत गुटों में बंधने की बजाय “issue-based alignment” यानी मुद्दा आधारित साझेदारियों पर ज़ोर दे रहा है।
- इसका उद्देश्य: सभी प्रमुख शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन) के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना, ताकि भारत किसी एक ध्रुव से बंधा न रह जाए।
अमेरिका की संतुलन नीति
आज संयुक्त राज्य अमेरिका एक रणनीतिक असमंजस (Strategic Ambivalence) की स्थिति में है।
- एक ओर, भारत की इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भूमिका, और Quad जैसे रणनीतिक ढाँचों में उसकी सक्रिय भागीदारी, अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीतिक प्राथमिकताओं को दर्शाती है।
- दूसरी ओर, ट्रंप प्रशासन का झुकाव व्यक्तिगत कूटनीति और व्यापारिक सौदों की ओर अधिक है, जिससे वैचारिक प्रतिबद्धताएँ और संस्थागत साझेदारियाँ कमजोर होती दिख रही हैं।
- अमेरिका यदि भारत और पाकिस्तान को समान स्तर (Hyphenation) पर देखता है, तो यह भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को ठेस पहुंचा सकता है और उसे क्षेत्र में अमेरिका का प्राकृतिक लोकतांत्रिक साझेदार मानने की धारणा को कमजोर कर सकता है।
- पाकिस्तान की विदेश नीति में प्रासंगिकता केवल उसकी भौगोलिक स्थिति पर आधारित नहीं है, बल्कि उसकी सेना द्वारा कूटनीतिक चातुर्य (personal diplomacy) के प्रभावी उपयोग पर भी निर्भर है।
- अमेरिका के रणनीतिक हलकों में पाकिस्तान को अब भी एक “आवश्यक गियर” (vital cog) माना जाता है, जिससे पाकिस्तान को यह विश्वास मिलता है कि वह भारत के बढ़ते प्रभाव को संतुलित कर सकता है, भले ही वह आर्थिक या जनसंख्या के मामले में भारत से पीछे हो।
भारत का लाभ: “Swing Power” के रूप में उभरना
- रणनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भारत की ताकत “स्विंग पावर” बनने में है यानी वह अमेरिका, रूस और चीन के बीच बैलेंस बनाकर अपनी कूटनीतिक सौदेबाज़ी की शक्ति बढ़ा सकता है।
- RIC जैसे मंच भारत को Indo-Pacific और यूरेशियाई क्षेत्र दोनों में रणनीतिक साझेदारियों को संतुलित करने का अवसर देते हैं।
RIC त्रिकोण: भारत का संतुलन साधने का मंच
RIC (Russia-India-China) त्रिकोणीय समूह भारत को निम्नलिखित अवसर देता है:
- यूरेशिया क्षेत्र में रणनीतिक भूमिका निभाने का अवसर।
- संयुक्त राष्ट्र और WTO जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार के लिए समर्थन जुटाना।
- अफगानिस्तान और आर्कटिक जैसे क्षेत्रों में नवीन भागीदारी के लिए साझा मंच।
RIC ने G20 सम्मेलन के दौरान 5G साझेदारी का प्रस्ताव भी रखा था, जो अमेरिका के रणनीतिक हितों के खिलाफ था, इससे भारत को दोनों पक्षों से लाभ लेने की स्थिति बनती है।
निष्कर्ष
भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच का त्रिकोणीय समीकरण स्थायी नहीं, बल्कि परिवर्तनशील और प्रसंग-आधारित है। भारत को इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में अपनी रणनीति को लचीलापन और आत्मनिर्भरता के साथ संतुलित करना होगा।
रणनीतिक स्वायत्तता, बहुपक्षीय मंचों पर सक्रियता और आंतरिक शक्ति का सशक्तीकरण भारत को इस त्रिकोणीय असंतुलन में एक स्थिर और विश्वसनीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के त्रिकोणीय संबंधों में स्पष्ट शक्ति असंतुलन और अवसरवाद दिखाई देता है।
भारत को चाहिए कि वह:
- बहुपक्षीय मंचों (जैसे RIC, SCO) में अपनी भूमिका बढ़ाए,
- अमेरिका से साझेदारी बनाए रखे पर रणनीतिक स्वतंत्रता को न छोड़े,
- और अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार गठबंधनों में लचीलापन बनाए रखे।
इस बहु-संरेखण नीति से भारत एक महाद्वीपीय शक्ति (Continental Power) और वैश्विक नीति निर्धारण में निर्णायक भागीदार के रूप में उभर सकता है।