सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की 2030 की समय-सीमा में अब केवल एक-तिहाई समय शेष है, ऐसे में वैश्विक सहयोग को नए रूप में सोचने की तात्कालिकता पहले से कहीं अधिक है। इसी दिशा में दक्षिण–दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (SSTC) एक आशाजनक ढांचा है, जो एकजुटता, पारस्परिक सम्मान और साझा सीख पर आधारित है।
1978 में ब्यूनस आयर्स कार्य योजना (BAPA) के माध्यम से औपचारिक रूप से प्रारंभ हुआ SSTC आज विकास के लिए एक अहम साधन बन चुका है। यह बदलती वैश्विक परिस्थितियों में किफायती, दोहराने योग्य और संदर्भानुकूल समाधान प्रदान करता है।
दक्षिण–दक्षिण एवं त्रिकोणीय सहयोग क्या है?
दक्षिण-दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग (एसएसटीसी) एक सहयोग पद्धति है जिसमें वैश्विक दक्षिण के दो या दो से अधिक देश शामिल होते हैं, और इसे किसी तीसरे पक्ष, आमतौर पर एक बहुपक्षीय संस्था और/या एक उभरते हुए दाता द्वारा सुगम बनाया जाता है। इस सहयोग पद्धति में आमतौर पर तकनीकी या वित्तीय संसाधनों का प्रावधान शामिल होता है, जो पिछली उत्तर-दक्षिण सहयोग पद्धति का पूरक है।
सतत विकास के भविष्य को आकार देने में एसएसटीसी का महत्व बढ़ता जा रहा है। एसएसटीसी का महत्व भागीदार देशों के बीच पारस्परिक लाभ, सहयोगात्मक समस्या-समाधान और बढ़ी हुई आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता में निहित है। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण वैश्विक दक्षिण के देशों को साझा विकास चुनौतियों का सामूहिक रूप से सामना करने और अनुकूलित समाधानों की ओर अग्रसर होने में सक्षम बनाता है। एसएसटीसी प्रौद्योगिकी और ज्ञान के हस्तांतरण को सुगम बनाता है, वैश्विक गतिविधियों में समावेशिता को बढ़ावा देता है, और सतत विकास के लिए एक सहयोगात्मक आत्मनिर्भर दृष्टिकोण का समर्थन करता है। ऐसा करके, यह अंतर्राष्ट्रीय विकास उद्देश्यों को आगे बढ़ाने और विकासशील देशों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।
SSTC का विकास और महत्व
पारंपरिक सहायता मॉडल से भिन्न, SSTC समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धांतों पर आधारित है, जहाँ विकासशील देश एक-दूसरे के अनुभवों से सीखते हैं।
- भू-राजनीतिक अस्थिरता, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती असमानताओं के इस दौर में इसका महत्व और बढ़ गया है।
- यह ढांचा संसाधनों को साझा करके और सामूहिक ताकत को जोड़कर अधिक टिकाऊ समाधान प्रदान करता है, खासकर तब जब मानवीय और विकास कार्यों के लिए फंडिंग लगातार घट रही है।
- त्रिकोणीय सहयोग (Triangular Cooperation) इस मॉडल को और विस्तारित करता है, क्योंकि यह विकासशील देशों को पारंपरिक दाताओं, उभरती अर्थव्यवस्थाओं, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र से जोड़ता है। इस विविध साझेदारी से पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता बढ़ती है।
SSTC में भारत की दर्शन और नेतृत्व
- भारत की विकास दर्शनशास्त्र ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) पर आधारित है। यही भावना भारत की SSTC में नेतृत्वकारी भूमिका को परिभाषित करती है।
- भारत ने हमेशा संप्रभुता, समावेशन और बहुपक्षीय सहयोग का समर्थन किया है।
भारत की भूमिका: दक्षिण–दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग में नेतृत्व
- क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करना
- India-UN Global Capacity-Building Initiative के माध्यम से भारत अन्य ग्लोबल साउथ देशों को कौशल प्रशिक्षण, पायलट परियोजनाओं और संस्थागत सहयोग उपलब्ध कराता है।
- 56 देशों में 75+ परियोजनाएँ विशेषकर LDCs और SIDS में लागू की जा रही हैं।
- वित्तीय सहयोग – India-UN Development Partnership Fund
- 2017 में $150 मिलियन से स्थापित यह फंड जलवायु सहनशीलता, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता जैसे क्षेत्रों में परियोजनाओं को वित्त पोषण करता है।
- अफ्रीका, कैरिबियन और दक्षिण-पूर्व एशिया तक इसका विस्तार हुआ है।
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का प्रचार
- आधार और UPI जैसे स्केलेबल डिजिटल समाधान साझेदार देशों में पहुँचाए गए।
- ज़ाम्बिया और लाओ PDR में डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफ़ॉर्म, नेपाल में सप्लाई चेन नवाचार।
- UPI अब भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मॉरिशस, मालदीव, UAE सहित कई देशों में अपनाया जा रहा है।
- क्षेत्रीय नेटवर्क और राजनीतिक नेतृत्व
- Voice of Global South Summit की मेज़बानी कर भारत विकासशील देशों की आवाज़ को वैश्विक स्तर पर उठाता है।
- G20 की अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता दिलाना भारत की कूटनीतिक भूमिका का प्रमाण है।
- कृषि और खाद्य सुरक्षा में नवाचार
- ICRISAT और DAKSHIN पहल के जरिये क्लाइमेट–स्मार्ट खेती, राइस फोर्टिफिकेशन, सतत् ड्राईलैंड खेती और सप्लाई चेन सुधार को बढ़ावा।
- जर्मनी के सहयोग से अफ्रीका में कृषि और जलवायु सहनशीलता परियोजनाओं हेतु ज्ञान प्रदाता के रूप में कार्य।
- बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय भूमिका
- संयुक्त राष्ट्र के SSTC दिवस और विभिन्न मंचों पर नवाचार, जलवायु सहनशीलता और समावेशी विकास को आगे बढ़ाना।
- व्यापार नीति और विकास सहयोग हेतु विशेष कोष स्थापित करने की अनुशंसा।
- श्रीलंका के लिये IMF ऋण पुनर्गठन को समर्थन देने वाला पहला देश बनकर व्यावहारिक सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया।
भारत और विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP): नवाचार का मॉडल
भारत और WFP का छह दशकों से चला आ रहा सहयोग दिखाता है कि SSTC कैसे वैश्विक समाधान पैदा कर सकता है।
प्रमुख पहलें:
- अनापुरती (Grain ATMs) – खाद्यान्न वितरण की दक्षता बढ़ाने के लिए।
- सप्लाई चेन सुधार – सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए।
- महिला–नेतृत्व वाले ‘टेक–होम राशन’ कार्यक्रम – बड़े पैमाने पर पोषण सुधार हेतु।
- चावल फोर्टिफिकेशन परियोजनाएँ – आहार की गुणवत्ता सुधारने हेतु।
ये नवाचार स्थानीय होने के बावजूद वैश्विक स्तर पर लागू किए जा रहे हैं।
SSTC का वित्तपोषण और विस्तार
स्थायी प्रगति के लिए मजबूत संस्थाओं और पूर्वानुमेय वित्तपोषण की आवश्यकता है।
- पिछले 30 वर्षों में, 47 सरकारों ने UN Fund for South-South Cooperation को समर्थन दिया है, जिससे 155 देशों को लाभ मिला।
- India-UN Fund ने LDCs (कम से कम विकसित देश) और SIDS (छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य) में विशेष योगदान किया है।
- 2024 में केवल WFP ने ग्लोबल साउथ देशों और निजी क्षेत्र से $10.9 मिलियन जुटाए, जो Zero Hunger (SDG 2) के लिए SSTC परियोजनाओं में लगे।
- नेपाल में चावल फोर्टिफिकेशन और लाओस में विकास परियोजनाएँ इसके उदाहरण हैं।
SSTC वैश्विक विकास सहयोग को किस प्रकार रूपांतरित कर रहा है?
- एकजुटता और समानता के माध्यम से सशक्तीकरण: SSTC विकासशील देशों के बीच आपसी सम्मान, एकजुटता, समता और साझा सीख के सिद्धांतों पर आधारित है।
- पारंपरिक सहायता मॉडल के विपरीत, यह बिना किसी शर्त के राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वामित्व का सम्मान करता है तथा समान लोगों के बीच वास्तविक साझेदारी को बढ़ावा देता है।
- यह दृष्टिकोण ग्लोबल साउथ में राजनीतिक और आर्थिक आत्मनिर्भरता का निर्माण करता है, जो 1978 की ब्यूनस आयर्स कार्य योजना का एक प्रमुख सिद्धांत रहा है।
- वैश्विक आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना: ग्लोबल साउथ के देशों ने हाल की वैश्विक आर्थिक वृद्धि में आधे से अधिक योगदान दिया है।
- दक्षिण–दक्षिण व्यापार अब विश्व व्यापार का एक–चौथाई से अधिक है और दक्षिण से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह वैश्विक प्रवाह का लगभग एक–तिहाई है।
- SSTC इन गतिशीलताओं को साझा विकास परिणामों के लिये उपयोग करता है।
- किफायती, विस्तारित करने योग्य और संदर्भ–विशिष्ट विकास समाधान: SSTC जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और डिजिटल वित्त जैसी चुनौतियों के लिये स्थानीय रूप से उपयुक्त समाधान प्रदान करता है।
- यह सहयोग कम लागत वाले नवाचारों के पुनरुत्पादन को सक्षम बनाता है, जैसे भारत की आधार डिजिटल ID प्रणाली और UPI भुगतान मॉडल, जिन्हें अन्य विकासशील देशों के साथ साझा किया गया है।
- ऐसे समाधान स्थानीय वास्तविकताओं पर आधारित होते हैं और धारणीय विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
- संस्थागत और प्रौद्योगिकी क्षमताओं को सुदृढ़ करना: दक्षिण-दक्षिण साझेदारियाँ संस्थागत क्षमताओं, प्रौद्योगिकी ज्ञान और संसाधन जुटाने की शक्ति को दृढ़ करती हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष ने 56 देशों में 75 परियोजनाओं का समर्थन किया है, जिनमें खाद्य सुरक्षा (राइस फोर्टिफिकेशन/चावल पौष्टिकीकरण), नेपाल और लाओस में आपूर्ति शृंखलाएँ तथा डिजिटल गवर्नेंस नवाचार शामिल हैं।
- कोस्टा रिका, डोमिनिकन गणराज्य और जर्मनी एक त्रिकोणीय साझेदारी के माध्यम से कोरल रीफ पुनर्स्थापन पर सहयोग कर रहे हैं, जो वित्त, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता और सामुदायिक प्रथाओं को मिलाकर कैरेबियन क्षेत्र में रीफ की संधारणीयता और समुद्री जैवविविधता को बढ़ावा देता है।
- पारंपरिक उत्तर–दक्षिण सहयोग का पूरक और विस्तार: SSTC, उत्तर–दक्षिण सहयोग का विकल्प नहीं बल्कि उसका पूरक है।
- त्रिकोणीय सहयोग में दक्षिणी देश विकसित देशों या बहुपक्षीय समर्थन के साथ मिलकर कार्य करते हैं और संसाधनों का संयोजन करके बड़े प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- भारत, फ्राँस और UAE ने एक त्रिपक्षीय साझेदारी बनाई है, जिसका फोकस सौर और परमाणु ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता संरक्षण और हिंद महासागर क्षेत्र में रक्षा सहयोग पर है।
- यह सहयोग क्षमता निर्माण और नवाचार के विस्तार को सक्षम बनाता है, साथ ही दक्षिणी नेतृत्व और प्राथमिकताओं का सम्मान करता है।
- त्रिकोणीय सहयोग में दक्षिणी देश विकसित देशों या बहुपक्षीय समर्थन के साथ मिलकर कार्य करते हैं और संसाधनों का संयोजन करके बड़े प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
- वैश्विक विकास एजेंडों में SSTC का मुख्यधारा में लाना: SSTC को संयुक्त राष्ट्र की नीतियों और विकास रूपरेखाओं में तेज़ी से संस्थागत रूप दिया जा रहा है तथा 60 से अधिक प्रस्तावों और परिणाम दस्तावेजों में इसके महत्त्व को मान्यता प्रदान की गई है।
- संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएँ विकासशील देशों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य, जलवायु कार्रवाई, सामाजिक संरक्षण आदि क्षेत्रों में सदस्य देशों को समर्थन देने के लिये वैश्विक स्तर पर SSTC रणनीतियों को एकीकृत कर रही हैं।
- क्षेत्रीय एकीकरण और दक्षिण–दक्षिण नेटवर्क को बढ़ावा देना: SSTC उन्नत व्यापार, प्रौद्योगिकी विनिमय और सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से ग्लोबल साउथ के बीच क्षेत्रीय एकीकरण और सहयोग को बढ़ावा देता है।
- यह सहयोगात्मक नेटवर्क बनाता है जो साझा ज्ञान और विकास समाधानों को बढ़ाता है, जो भू–राजनीतिक अस्थिरता और COVID-19 महामारी जैसी वैश्विक चुनौतियों के बीच महत्त्वपूर्ण है।
भारत दक्षिण–दक्षिण और त्रिकोणीय सहयोग को आगे बढ़ाने में क्या भूमिका निभाता है?
- क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने में नेतृत्व: भारत ने अन्य ग्लोबल साउथ देशों के साथ भारतीय सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने हेतु इंडिया–यूएन ग्लोबल कैपेसिटी–बिल्डिंग इनिशिएटिव लॉन्च किया।
- यह कौशल प्रशिक्षण, ज्ञान विनिमय, पायलट परियोजनाएँ और संस्थागत सहयोग को सुविधाजनक बनाता है ताकि धारणीय विकास लक्ष्यों (SDG) को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा सके।
- भारतीय तकनीकी सहयोग कार्यक्रम अब 56 देशों में 75 से अधिक परियोजनाओं का समर्थन करते हैं, विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीप राज्यों में।
- इंडिया–यूएन डेवलपमेंट पार्टनरशिप फंड के माध्यम से योगदान: वर्ष 2017 में $150 मिलियन के योगदान के साथ स्थापित यह फंड ग्लोबल साउथ में मांग-आधारित और रूपांतरणकारी परियोजनाओं का समर्थन करता है।
- विषयगत क्षेत्रों में जलवायु सहनशीलता, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता शामिल हैं।
- वित्तपोषित परियोजनाएँ अफ्रीका, कैरिबियन और दक्षिण पूर्व एशिया में विस्तृत हैं, जो भारत की वित्तीय और विकासात्मक प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
- समान विकास के लिये डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को बढ़ावा: भारत आधार और UPI जैसे स्केलेबल डिजिटल उपकरणों/साधनों का उपयोग करके साझेदार देशों में डिजिटल वित्त का समर्थन करता है।
- इन पहलों में ज़ाम्बिया और लाओ PDR में डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफार्म और नेपाल में सप्लाई चेन नवाचार शामिल हैं, जो समावेशी विकास में भारत की प्रौद्योगिकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाती हैं।
- कई ग्लोबल साउथ देश UPI एकीकरण को अपनाया या इसका परीक्षण किया है, जिनमें भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मॉरिशस, मालदीव एवं UAE शामिल हैं तथा कतर, सिंगापुर और मलेशिया में भी इसके विस्तार की प्रक्रिया जारी है।
- क्षेत्रीय नेटवर्कों को संस्थागत बनाना और सशक्त करना: भारत वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करता है, जिससे यह विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में अपनी भूमिका को दृढ़ता प्रदान करता है।
- G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने G20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता प्राप्त की, जिससे अफ्रीका और अन्य दक्षिणी देशों का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ा।
- नवोन्मेषी कृषि और खाद्य सुरक्षा पहल: ICRISAT और DAKSHIN (Development and Knowledge Sharing Initiative) के साथ साझेदारी के माध्यम से, भारत कृषि नवाचार और क्लाइमेट-स्मार्ट खेती को बढ़ावा देता है।
- राइस फोर्टिफिकेशन, सप्लाई चेन सुधार और सतत् ड्रीलैंड खेती जैसी परियोजनाएँ ग्लोबल साउथ में भारत के खाद्य सुरक्षा और कृषि संधारणीयता में योगदान को दर्शाती हैं।
- उदाहरण के लिये, जर्मनी के सहयोग से, भारत अफ्रीका में कृषि और जलवायु सहनशीलता परियोजनाओं के लिये ज्ञान प्रदाता के रूप में कार्य करता है।
- बहुपक्षीय मंचों में ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं हेतु समर्थन: भारत सक्रिय रूप से संयुक्त राष्ट्र दक्षिण–दक्षिण और त्रिपक्षीय सहयोग दिवस (SSTC) जैसी पहलों को बढ़ावा देता है, जो नवोन्मेषी सहयोग, जलवायु सहनशीलता और सामाजिक–आर्थिक विकास पर ज़ोर देती हैं।
- यह बढ़े हुए वित्त पोषण और समावेशी शासन के लिये समर्थन करता है और व्यापार नीति समर्थन हेतु $2.5 मिलियन से अधिक आवंटन वाले समर्पित विकास कोष की अनुशंसा करता है। उदाहरण के लिये, भारत पहला देश था जिसने जनवरी 2023 में श्रीलंका की ऋण पुनर्गठन योजना का समर्थन करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को लिखित वित्तीय आश्वासन प्रदान किया।
SSTC की प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय
- सॉल्यूशंस लैब की स्थापना
- UNOSSC फ्रेमवर्क (2022–2025) के अनुसार ऐसी लैब का निर्माण, जो समन्वय, सह–डिज़ाइन और परियोजनाओं के विस्तार में मदद करे।
- यह नवाचार, ज्ञान साझा करने, क्षमता निर्माण और तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा देगी।
- अनुकूलित वित्तीय तंत्र और मिश्रित वित्त
- डेब्ट स्वैप, मिश्रित वित्त और सतत वित्त मॉडल से वित्तीय अंतर को पाटना।
- इंडिया-यूएन डेवलपमेंट पार्टनरशिप फंड और IBSA फंड जैसे सफल उदाहरण, जो स्वास्थ्य, जलवायु और डिजिटल ढाँचे में संसाधन जुटाते हैं।
- संस्थागत और प्रौद्योगिकी क्षमता निर्माण
- परियोजनाओं के डिज़ाइन, क्रियान्वयन और स्थिरता में सुधार।
- संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य आपातकाल और डिजिटल गवर्नेंस पर वैश्विक स्तर के प्रशिक्षण व प्रमाणन कार्यक्रम।
- वैश्विक ढाँचे में एकीकरण
- SSTC को अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंडा और UN की रणनीतिक योजनाओं में मुख्यधारा का हिस्सा बनाना।
- इससे न केवल संरेखण व सामंजस्य बढ़ेगा बल्कि इसे पारंपरिक मॉडल का पूरक दृष्टिकोण भी माना जाएगा।
- बहु–हितधारक साझेदारियाँ
- सहयोग को केवल सरकारों तक सीमित न रखकर निजी क्षेत्र, नागरिक समाज और शिक्षाविदों को जोड़ना।
- डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग जैसी पहलें (जैसे तुर्की व पुर्तगाल) इसके उदाहरण हैं।
- डिजिटल नवाचार और तकनीकी हस्तांतरण
- डिजिटल साधनों का विस्तार और तकनीक साझा करके डिजिटल विभाजन को कम करना।
- भारत की आधार और UPI प्रणाली को साझेदार देशों तक पहुँचाना इसका सफल उदाहरण है।
- महिला, युवा और संवेदनशील वर्गों का सशक्तीकरण
- समावेशी कार्यक्रम, जो नेतृत्व, डिजिटल कौशल और हाशिये पर रहने वाले वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करें।
- महिलाओं और युवाओं के लिये लक्षित कार्यक्रम SSTC को अधिक न्यायसंगत और सतत् बनाते हैं।
- विशेष ध्यान SIDS और LDC पर
- छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य और सबसे कम विकसित देशों के लिये विशेष सहयोग, क्योंकि वे जलवायु व आर्थिक चुनौतियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं।
इस प्रकार SSTC केवल संसाधन साझा करने का ढाँचा नहीं है, बल्कि यह विकासशील देशों को आत्मनिर्भर, नवाचारी और समावेशी विकास की ओर ले जाने वाला साधन है।
साझेदारी की नई भावना की ओर
- 2025 का UN Day for South-South and Triangular Cooperation का थीम है – New Opportunities and Innovation through SSTC.
- यह हमें याद दिलाता है कि आगे की चुनौतियों के लिए तकनीकी समाधान ही पर्याप्त नहीं होंगे; समानता, नवाचार और पारस्परिक जवाबदेही पर आधारित नई साझेदारी की जरूरत है।
- SSTC सिर्फ एक कूटनीतिक साधन नहीं है, यह परिवर्तनकारी मार्ग है।
निष्कर्ष
- SSTC की यात्रा यह दिखाती है कि विकासशील देशों की एकजुटता वैश्विक प्रभाव पैदा कर सकती है।
- भारत ने नवाचार, वित्तपोषण और कूटनीति के माध्यम से इस मॉडल की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित किया है।
- लेकिन SDGs की प्राप्ति के लिए केवल बिखरी हुई सफलताएँ पर्याप्त नहीं हैं, इसके लिए वैश्विक साझेदारियों के सामूहिक नवीनीकरण की आवश्यकता है।
- SSTC इस साझा यात्रा में दिशा और आधार दोनों प्रदान करता है – हमें एक अधिक समावेशी, लचीले और सतत भविष्य की ओर ले जाते हुए।