in

दिव्यांगता अधिकार अब मूल अधिकार – सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन कीपीठ ने 4 मार्च 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में विकलांगताके आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार को मौलिकअधिकार के रूप में मान्यता दी। यह निर्णयविकलांगव्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016’ (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के अनुरूप है औरजो न्यायिक सेवा भर्ती में नेत्रहीन उम्मीदवारों की भागीदारी कोअनुमति देता है।

 

न्यायालय का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा नियम, 1994 और राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 की कुछप्रावधानों को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) के अनुरूप नहीं मानते हुएभेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करने का निर्देश दिया।इस फैसले ने दिव्यांग व्यक्तियों, विशेष रूप सेदृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के न्यायिक सेवाओं में शामिल होनेके अधिकार को मजबूत किया।
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 के नियम 6A कोरद्द कर दिया गया, क्योंकि यह नियम दृष्टिबाधितअभ्यर्थियों को, उनकी शैक्षिक योग्यता के बावजूद, न्यायिक सेवा में आवेदन करने से वंचित करता था।न्यायालय ने आदेश दिया कि इन नियमों को RPwDअधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुरूप संशोधितकिया जाए।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दृष्टिबाधित उम्मीदवारों कोन्यायिक सेवा से बाहर करना संविधान के तहत दिए गएसमानता (अनुच्छेद 14) और भेदभाव के प्रतिषेध (अनुच्छेद15) के अधिकारों का उल्लंघन है।
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार कोएक परोपकारआधारित दृष्टिकोण के बजायअधिकारआधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससेदिव्यांग व्यक्तियों को रोज़गार में समान अवसर मिलसकें।
इंद्रा साहनी मामले का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा किदृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए चयन प्रक्रिया में अलगकटऑफ निर्धारित किया जाना चाहिए।
यदि पर्याप्त संख्या में दिव्यांग उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) केलिए दी गई छूट की तरह दिव्यांगजनों के लिए भी पात्रतामानदंड में राहत दी जा सकती है।

इस निर्णय का लाभ

समावेशिता:न्यायिक प्रणाली में दिव्यांगजनों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

समान अवसर: यह निर्णय न्यायिक सेवा सहित सभी सार्वजनिक सेवाओं में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समान अवसर की गारंटी देता है।

संवैधानिक मूल्य: संविधान में निहित समानता और भेदभाव विरोधी सिद्धांतों को मजबूत किया गया है।

 

 

भारत में दिव्यांगजनों की जनसांख्यिकीय स्थिति

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 2.68 करोड़(26.8 मिलियन) दिव्यांगजन हैं, जो कुल जनसंख्या का2.21% है।
पुरुष दिव्यांगजन: 1.5 करोड़ (56%)
महिला दिव्यांगजन: 1.18 करोड़ (44%)
शहरी क्षेत्रों में दिव्यांगता की दर: 2.17%
ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगता की दर: 2.24%

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के मुताबिक, दिव्यांगता के 21 प्रकार हैं. इनमें से कुछ विकलांगताओं के बारेमें जानकारीः

1. दृष्टिहीनता
2. दृष्टिबाधिता
3. श्रवण विकार
4. चलनसम्बन्धी विकलांगता
5. बौनापन
6. बौद्धिक विकलांगता
7. मानसिक बीमारी
8. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर
9. सेरेब्रल पाल्सी
10. मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफ़ी

 

दिव्यांगजनों के लिए संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और विधि कासमान संरक्षण।
अनुच्छेद 19: स्वतंत्र रूप से आवाजाही, पेशा, निवास, अभिव्यक्ति का अधिकार।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें गरिमापूर्ण जीवन शामिल है।
अनुच्छेद 41: राज्य की यह ज़िम्मेदारी है कि बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी और दिव्यांगता के मामलों मेंसार्वजनिक सहायता प्रदान की जाए।
11वीं अनुसूची (Panchayati Raj) के प्रविष्टि 26: सामाजिक कल्याण, जिसमें दिव्यांगजनों की देखभालऔर पुनर्वास शामिल है।
अनुच्छेद 243-G: पंचायतों को सामाजिक न्याय सुनिश्चितकरने का अधिकार देता है।
12वीं अनुसूची (Urban Local Bodies) प्रविष्टि 9: कमजोर वर्गों, विशेषकर दिव्यांग व्यक्तियों की सुरक्षासुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 243-W: नगर पालिकाओं को समाज के कमजोरवर्गों के कल्याण की ज़िम्मेदारी सौंपता है।

 

दिव्यांगजनों से संबंधित ऐतिहासिक मामले 

भारत में दिव्यांगजनों के अधिकारों को संरक्षित और सुदृढ़ करनेके लिए समयसमय पर विभिन्न न्यायिक निर्णयों ने महत्वपूर्णभूमिका निभाई है। इन फैसलों ने समानता, गौरवपूर्ण जीवन, और सामाजिक समावेशन के अधिकार को सशक्त किया है।

सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन, 2009: सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) एक महिला के व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद21) का हिस्सा है। यह फैसला मानसिक रूप से मंदव्यक्तियों के स्वतंत्र निर्णय और प्रजनन अधिकार कोबरकरार रखता है। महिला की गरिमा और स्वतंत्रता कीरक्षा के लिए, मानसिक रूप से मंद महिलाओं को भीगर्भधारण जारी रखने या समाप्त करने का अधिकार है।
भारत सरकार बनाम रवि प्रकाश गुप्ता, 2010: सुप्रीम कोर्टने कहा कि पूर्व निर्धारित शारीरिक मानदंड का उपयोगदिव्यांगजनों को आरक्षण से वंचित करने के लिए नहींकिया जा सकता। दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को समानअवसर प्रदान किया जाना चाहिए। यह निर्णयदिव्यांगजनों के लिए निष्पक्ष नियुक्ति और समान रोजगारके अधिकार की पुष्टि करता है।
भारत संघ बनाम राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ, 2013: सुप्रीम कोर्टने स्पष्ट किया कि यह आरक्षण नीति सभी कैडर क्षमता मेंरिक्तियों पर लागू होगी, कि केवल पहचान किए गएपदों पर। सरकार को निर्देश दिया कि सभी विभागों मेंदिव्यांगजनों के लिए 3% आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
डीफ कर्मचारी कल्याण संघ बनाम भारत संघ, 2013: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को श्रवण बाधित कर्मचारियों कोसमान परिवहन भत्ता देने का निर्देश दिया। अदालत ने कहाकि दिव्यांग व्यक्तियों के बीच भेदभाव संविधान केअनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। यहफैसला सुनिश्चित करता है कि सरकार सभी दिव्यांगकर्मचारियों के साथ समान व्यवहार करे।
ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, 2024: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी दिव्यांग उम्मीदवार कीकार्यात्मक क्षमताओं का मूल्यांकन कठोर पात्रता मानदंडसे अधिक महत्वपूर्ण है। शारीरिक कमी के बावजूद यदिकोई उम्मीदवार अपने दायित्वों को पूरा कर सकता है, तोउसे अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता।

दिव्यांगजनों हेतु सरकारी योजनाएँ

अनुदान (दिव्यांग पेंशन) योजना
PM-DAKSH (दिव्यांग कौशल विकास और पुनर्वासयोजना)
सुगम्य भारत अभियान
शादीप्रोत्साहन योजना
दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना
कृत्रिम अंग/ सहायक उपकरण योजना
दुकान निर्माण/संचालन ऋण योजना
दिव्यांग व्यक्तियों को सहायक उपकरण और सहायताउपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये सहायता
दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप

 

दिव्यांगजनों की चुनौतियाँ

दिव्यांगता पर विश्व रिपोर्ट के अनुसार, परिवहनप्रणालियोंनिर्मित पर्यावरण में दुर्गमतासमाज में स्वतंत्ररूप से कार्य करने की दिव्यांगजनों की क्षमता कोमहत्त्वपूर्ण रूप से सीमित करती है। 
दिव्यांगजनों को अक्सर रोज़गार, शिक्षा और पर्याप्त आयप्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके अपने अधिकारों का पूर्णतः प्रयोग करने मेंबाधा उत्पन्न होती है।
सुनने, बोलने, पढ़ने या लिखने में अक्षम दिव्यांगजनों कोगैरमौखिक संचार कौशल की अनुपस्थिति जैसेगैरप्रभावी संचार चैनलों के कारण प्रभावी संचार मेंकठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
दिव्यांग महिलाओं को लिंग और दिव्यांगता के आधारपर दोहरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससेशिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुँचसीमित हो जाती है।
असुविधाजनक समयसारिणी और सुलभ उपकरणों कीकमी जैसी चुनौतियाँ आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्यदेखभाल कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में बाधा डालती हैं।

 

निष्कर्ष

भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिव्यांगता के खिलाफ भेदभाव कोमौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना एक ऐतिहासिक कदमहै। इस निर्णय से दिव्यांगजनों के लिए समान अवसर, सम्मानजनक जीवन, और सामाजिक समावेशन की दिशा मेंएक नई राह खुलती है।

What do you think?

“The Other” in Postcolonial Theory

III विश्व युद्ध की ओर चीन-अमेरिका (Open list) (0 submissions)