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नवीन लोक प्रशासन (NPA) NPA का उद्भव एवं विकास

New Public Administration (NPA) Origin and development of NPA

NPA का उद्भव

1960 के दशक के अंत तक अमेरिकी समाज अनेक समस्याओं से ग्रस्त था। इन समस्याओं में वियतनाम युद्ध से निराशा, जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण समस्याएँ, बढ़ते हुए सामाजिक संघर्ष और आर्थिक संकट शामिल थे। इन परिस्थितियों ने बुद्धिजीवियों की युवा पीढ़ी को राजनीतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं की प्रतिक्रिया की प्रभावोत्पादकता (क्षमता) पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए प्रेरित किया।

  • प्रशासन में दक्षता और अर्थव्यवस्था के संबंध में गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गईं। यह महसूस किया गया कि अशांत वातावरण में उत्पन्न असंतोष शासन में मूल्यों और सार्वजनिक प्रयोजन की वापसी की मांग करता है।
  • इसलिए मानवीय और मूल्यपरक प्रशासन का सुझाव दिया गया। यह माना गया कि सेवाग्राहियों की आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेह होना और सेवा-वितरण में सामाजिक समानता सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसी चिंतन से नवीन लोक प्रशासन (New Public Administration – NPA) का उदय हुआ।

मिनोब्रुक सम्मेलन और नवीन लोक प्रशासन का विकास

1) मिनोब्रुक सम्मेलन का पृष्ठभूमि

  • 1967-68 के दौरान अमेरिका में लोक प्रशासन को बहुविषयक लोकनीति और सामाजिक समानता देने के उद्देश्य से कई प्रयास किए गए।

प्रमुख घटनाएँ:

    1. लोक सेवा के लिए उच्च शिक्षा पर हनी रिपोर्ट (1966)।
    2. लोक प्रशासन के सिद्धांत और व्यवहार पर फिलाडेल्फिया सम्मेलन (1967)।
    3. प्रथम मिनोब्रुक सम्मेलन (1968)।
    4. द्वितीय मिनोब्रुक सम्मेलन (1988)।

2) हनी रिपोर्ट (1966)

  • जॉन हनी (सिराक्यूज़ विश्वविद्यालय) ने लोक प्रशासन के अध्ययन की स्थिति का मूल्यांकन किया।

सामने आई समस्याएँ:

  • विषय के स्तर पर अनिश्चितता और भ्रम।
  • विश्वविद्यालय विभागों के पास अपर्याप्त निधि।
  • संस्थागत कमियाँ।
  • विद्वानों और व्यवहारिक प्रशासकों के बीच संचार का अभाव।

सुझाव:

  • सरकार और व्यवसाय से संसाधन जुटाना।
  • लोक प्रशासन में उच्च अध्ययन को प्रोत्साहित करना।
  • विश्वविद्यालय विभागों और सरकार को जोड़ना (प्रोफेसरों की नियुक्ति सरकारी पदों पर और इसके विपरीत)।
  • लोक सेवा शिक्षा पर राष्ट्रीय आयोग की स्थापना करना।

3) फिलाडेल्फिया सम्मेलन (1967)

अध्यक्ष: जेम्स सी. चार्ल्सवर्थ।

मुख्य दृष्टिकोण:

  • लोक प्रशासन के दायरे में लचीलापन लाना ताकि इसका विकास हो सके।
  • नीति और प्रशासन के बीच की विभाजन रेखा निरर्थक मानी गई।
  • गरीबी, बेरोजगारी, पर्यावरण आदि जैसी सामाजिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देना।
  • सामाजिक समानता, दक्षता, जवाबदेही और जन-भागीदारी पर जोर।
  • प्रशासनिक नैतिकता और प्रशिक्षण की आवश्यकता।

प्रथम मिनोब्रुक सम्मेलन (1968)

1960 के दशक में अमेरिका में सामाजिक और राजनीतिक अशांति व्याप्त थी।

  • परिवार, चर्च, मीडिया, पेशा और सरकार जैसी संस्थाओं के प्रति अमेरिकी जनता का विश्वास घट रहा था।
  • अश्वेत अमेरिकियों को समृद्धि में हिस्सा नहीं दिया जा रहा था।

इस पृष्ठभूमि में ड्वाइट वाल्डो के मार्गदर्शन में युवा विद्वानों ने मिनोब्रुक सम्मेलन आयोजित किया।

उद्देश्य

  • लोक प्रशासन के बदलते दृष्टिकोणों का विश्लेषण करना।
  • इसे सामाजिक सरोकारों के प्रति उत्तरदायी बनाना।
  • लोक प्रशासन को सुधार और परिवर्तन का एजेंट मानना।

प्रमुख मुद्दे (मिनोब्रुक परिप्रेक्ष्य)

  1. लोक प्रशासन में लोकनीति दृष्टिकोण को अपनाना।
  2. दक्षता और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक समानता को प्रमुख लक्ष्य मानना।
  3. प्रशासकों को केवल कार्यान्वयनकर्ता नहीं, बल्कि मूल्यपरक और नैतिक जिम्मेदार माना गया।
  4. जहाँ आवश्यक हो, सरकारी एजेंसियों की कटौती की जाए।
  5. सरकार को केवल विकास नहीं बल्कि परिवर्तन को भी प्रबंधित करना होगा।
  6. सक्रिय और सहभागी नागरिकता को प्रशासन का अंग बनाना।
  7. पदानुक्रम (Hierarchy) की अवधारणा की उपयोगिता पर प्रश्न उठाया गया।
  8. कार्यान्वयन (Implementation) को नीति-निर्माण की प्रक्रिया का मुख्य भाग माना गया।
  9. प्रशासन को लोकतांत्रिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता पर बल।

नवीन लोक प्रशासन (NPA) के लक्ष्य

नवीन लोक प्रशासन के विद्वानों ने पाँच प्रमुख लक्ष्यों पर बल दिया, जिन्हें लोक प्रशासन को ध्यान देना चाहिए:

  1. प्रासंगिकता (Relevance): परंपरागत रूप से लोक प्रशासन का ध्यान दक्षता और अर्थव्यवस्था पर केंद्रित था।
  • सम्मेलन ने माना कि लोक प्रशासन को समकालीन समस्याओं और मुद्दों (जैसे गरीबी, बेरोजगारी, पर्यावरण) के प्रति प्रासंगिक होना चाहिए।
  • पाठ्यक्रम में बदलाव की ज़रूरत ताकि यह वास्तविक जीवन की आवश्यकताओं से जुड़ सके।
  1. मूल्य (Values): मूल्य-तटस्थ (Value-neutral) दृष्टिकोण को अस्वीकार किया गया।
  • न्याय, स्वतंत्रता, समानता और नैतिकता पर ज़ोर दिया गया।
  • मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से समाज के वंचित वर्गों का कल्याण संभव होगा।
  • निकोलस हेनरी (1975) के अनुसार: ‘नवीन लोक प्रशासन का स्वर नैतिक स्वर है।’
  1. सामाजिक समानता (Social Equity): 1960 के दशक की सामाजिक अशांति ने यह विश्वास मजबूत किया कि प्रशासन का प्राथमिक उद्देश्य सामाजिक समानता होना चाहिए।
  • सम्मेलन ने वितरणात्मक न्याय (Distributive Justice) और समानता को लोक प्रशासन का बुनियादी मुद्दा माना।
  • फ्रेडरिकसन (1971) ने कहा: यदि लोक प्रशासन अल्पसंख्यकों की समस्याओं के समाधान हेतु काम नहीं करेगा तो अंततः वही प्रशासन उन्हें दबाने का साधन बन जाएगा।
  1. परिवर्तन (Change): पारंपरिक लोक प्रशासन को यथास्थिति-उन्मुख माना जाता था।
  • नवीन लोक प्रशासन ने इसे परिवर्तन और नवाचार के प्रति उन्मुख बनाया।
  • प्रशासक को परिवर्तन का एजेंट माना गया।
  1. ग्राहक उन्मुखता (Client Orientation): पहली बार मिनोब्रुक सम्मेलन (1968) में इसे लक्ष्य के रूप में पहचाना गया।
  • नौकरशाही को जनता-उन्मुख होना चाहिए।
  • ग्राहक की ज़रूरतों और संवेदनशीलता को प्रशासन का केंद्र बिंदु बनाया गया।

नवीन लोक प्रशासन (NPA) की प्रमुख विशेषताएँ

रॉबर्ट टी. गोलेम्बिवस्की के अनुसार (NPA के पाँच लक्ष्य)

  1. मानव स्वभाव को लचीला और परिपूर्ण होने योग्य मानना।
  2. अनुशासन का केंद्रीय विषय प्रासंगिकता और मूल्य होना।
  3. सामाजिक समानता को मानव विकास का मार्गदर्शक बनाना।
  4. पारंपरिक प्रशासन के संगठन-केन्द्रित दृष्टिकोण के बजाय संबंधपरक दृष्टिकोण।
  5. नवाचार और परिवर्तन पर बल।

ड्वाइट वाल्डो के अनुसार (सकारात्मक पहलू)

  • मानक सिद्धांत, दर्शन, सामाजिक सरोकार और सक्रियता की ओर एक आंदोलन।
  • ग्राहक-उन्मुख नौकरशाही।
  • प्रतिनिधिक नौकरशाही।

फ्रेडरिकसन के अनुसार (विशेषताएँ)

  • अधिक सार्वजनिक उन्मुख।
  • कम वर्णनात्मक, अधिक अनुदेशात्मक।
  • यथास्थिति बनाए रखने से अधिक वास्तविकता बदलने की प्रवृत्ति।
  • नीतियों पर प्रभाव डालने और उन्हें लागू करने की क्षमता।
  • संस्थाओं की अपेक्षा अधिक ग्राहक-उन्मुख।
  • कम तटस्थ, अधिक मानकपरक।

NPA की आलोचना

  • इसे सकारात्मकवाद-विरोधी (Anti-positivist), सिद्धांत-विरोधी (Anti-theoretic) और प्रबंधन-विरोधी (Anti-management) कहा गया।
  • कैंपबेल के अनुसार: यह केवल समाज की नई समस्याओं के प्रति उत्तरदायी है, पुराने से अलग।
  • गोलेम्बिवस्की ने कहा: ‘शब्दों में क्रांति है, पर कौशल और तकनीक में यथास्थिति।’
  • कार्टर और डफी ने संदेह जताया कि क्या वास्तव में सामाजिक समानता प्रशासन का स्थापित उद्देश्य बन पाई है।
  • डन और फोज़ौनी के अनुसार: इसने प्रशासन में केवल परिवर्तन का भ्रम (illusion of paradigm shift) पैदा किया।

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