जॉन रॉल्स ने हमारे समय में राजनीतिक दर्शन के पुनरुत्थान में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ विचारकों ने उनकी सिद्धांत प्रणाली को अपने चिंतन का प्रारंभिक बिंदु बनाया और आगे ले जाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए, थॉमस पोग्गे ने वैश्विक गरीबी से निपटने के संदर्भ में रॉल्स से प्रेरणा ली, और अमर्त्य सेन ने अपनी क्षमता और कार्य-सम्बंधी सिद्धांतों को विकसित किया। दूसरी ओर, सामुदायिकतावादी विचारक (communitarian thinkers) ने रॉल्स की कड़ी आलोचना की। माइकल सैंडल ने ‘स्वतंत्र स्व’ (unencumbered self) की अवधारणा को नकारा और आलस्डेयर मैकइंटायर ने ‘कथा-आधारित स्व’ (narrative self) का विचार रखा।
I : कैरोल पेटमैन
कैरोल पेटमैन का रॉल्स पर दृष्टिकोण सीधे-सीधे अस्वीकारात्मक है, जो लगभग उपेक्षा की सीमा तक पहुँचता है। लेकिन यह अपने आप में अत्यंत रोचक है। उनकी पुस्तक The Sexual Contract (1988) सामाजिक अनुबंध सिद्धांत पर एक ऐतिहासिक प्रहार मानी जाती है।
पेटमैन लिखती हैं कि ‘यौन अनुबंध (sexual contract) का कभी उल्लेख नहीं किया जाता। यह अनुबंध सिद्धांत का दबी हुई परत है। पारंपरिक अनुबंध को आज जिस रूप में समझा जाता है, वह अधूरी कहानी है। असली राजनीतिक उत्पत्ति का वर्णन तभी पूरा हो सकता है जब यौन अनुबंध को सामने लाया जाए।’
उनका कहना है कि पारंपरिक अनुबंध सिद्धांत यह मानता है कि राजनीतिक अधिकार का एक ही स्रोत है – अनुबंध। लेकिन इस सिद्धांत में यह भी निहित है कि पुरुषों का महिलाओं पर अधिकार प्राकृतिक है। यानी, पुरुष ही स्वतंत्र और समान ‘व्यक्ति’ माने जाते हैं। महिलाएँ तो जन्म से ही अधीनता में रहती हैं।
रॉल्स की ‘मूल स्थिति’ (original position) पर पेटमैन तीखी टिप्पणी करती हैं। उनके अनुसार, रॉल्स ऐसी स्थिति रचते हैं जिसमें सभी व्यक्ति निर्लैंगिक (sexless) माने जाते हैं और उन्हें अपने लिंग की जानकारी नहीं होती। इस प्रकार, ‘मूल स्थिति’ इतनी अमूर्त और तार्किक हो जाती है कि वहाँ कुछ घटित ही नहीं होता।
इसके विपरीत, हॉब्स से शुरू होकर पारंपरिक अनुबंध विचारकों ने ‘प्रकृति की अवस्था’ (state of nature) को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया, जहाँ पुरुष और महिलाएँ साथ रहते हैं, यौन संबंध बनाते हैं और परिवार रचते हैं। पेटमैन कहती हैं कि रॉल्स ने इसे पूरी तरह दरकिनार कर दिया।
उनका तर्क है कि राजनीतिक अधिकार की असली उत्पत्ति की कहानी गायब है। पिता का अधिकार (father-right) और यौन अधिकार (sex-right) मिलाकर इसे छिपा दिया गया। इसीलिए उन्हें इसे उजागर करने के लिए फ़िल्मर और फ्रायड तक का सहारा लेना पड़ता है।
पेटमैन के अनुसार, इतिहास भर में अनुबंध सिद्धांत ने स्त्रियों की दासता को जारी रखा है। पत्नी को वह ‘ग़ुलाम से बेहतर नहीं’ मानती हैं और कहती हैं कि श्रम बाज़ार में भी महिलाओं का शोषण और भेदभाव लगातार होता आया है।
II : सुसान ओकिन
कैरोल पेटमैन की तुलना में सुसान ओकिन की आलोचना सीधी, स्पष्ट और कहीं अधिक सहानुभूतिपूर्ण है। वे रॉल्स की Justice, Gender, and the Family (1989) में इस बात पर ज़ोर देती हैं कि राजनीतिक दर्शन प्रायः एक छिपे हुए लैंगिक–संरचित परिवार (gender-structured family) को मानकर चलता है और भाषा के स्तर पर झूठी ‘लैंगिक निष्पक्षता’ (gender-neutrality) दिखाता है।
उनके अनुसार, परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत ने ‘निजी जीवन’ (घर और परिवार) और ‘सार्वजनिक जीवन’ (राजनीति और बाज़ार) के बीच एक कृत्रिम विभाजन किया। परिणामस्वरूप परिवार राजनीति का विषय ही नहीं माना गया और महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखा गया। विडंबना यह रही कि पुरुष राजनीति में सक्रिय हो सके क्योंकि घर और बच्चों की देखभाल महिलाओं के हिस्से आई।
ओकिन कहती हैं कि आज भी जब न्याय की बात की जाती है, तो महिलाओं के अनुभव और उनकी स्थिति को नज़रअंदाज़ किया जाता है। और जब ‘लैंगिक-निरपेक्ष शब्दावली’ का प्रयोग किया जाता है, तो यह वास्तव में महिलाओं की वास्तविकताओं को और भी ढक देती है।
उनके शब्दों में:
‘स्त्रीवादी चुनौतियों के प्रति केवल शब्दावली बदलकर दी गई प्रतिक्रियाएँ झूठी सहिष्णुता दिखाती हैं। तथाकथित लैंगिक–निरपेक्ष शब्द अक्सर यह छिपा देते हैं कि वास्तव में व्यक्तियों का जीवन, जब तक वे लैंगिक–संरचित समाज में रहते हैं, उनके लिंग पर ही निर्भर करता है।’
परिवार और न्याय का प्रश्न
ओकिन रॉल्स के ‘परिवार और न्याय’ पर विचारों को गहराई से परखती हैं। A Theory of Justice में रॉल्स परिवार को समाज की बुनियादी संस्थाओं (basic structure) में गिनते तो हैं, लेकिन उसके भीतर न्याय की चर्चा लगभग गायब है।
उनके अनुसार, यह रॉल्स की एक बड़ी कमी है। अगर परिवार भी बुनियादी संस्था है, तो उसके भीतर समानता और न्याय की परख क्यों नहीं की जानी चाहिए? रॉल्स परिवार को ‘स्वाभाविक रूप से न्यायपूर्ण’ मान लेते हैं, लेकिन ओकिन कहती हैं कि यह मान्यता बिल्कुल अवास्तविक है।
वे लिखती हैं कि परिवार न तो चर्च या विश्वविद्यालय जैसा स्वैच्छिक संगठन है, जहाँ सदस्यता स्वेच्छा से ली या छोड़ी जा सकती है। बल्कि, कोई भी व्यक्ति जन्म से ही परिवार का हिस्सा होता है। इसीलिए परिवार की संरचना को न्याय के सिद्धांतों से परखना अनिवार्य है।
आंतरिक न्याय (Internal Justice) की उपेक्षा
ओकिन का आरोप है कि रॉल्स ने परिवार के आंतरिक न्याय (internal justice) को नज़रअंदाज़ किया। उदाहरण के लिए, ‘मूल स्थिति’ में जो व्यक्ति निर्णय लेते हैं, उन्हें ‘परिवार का मुखिया’ माना गया है। ऐसे में अन्य सदस्य विशेषकर पत्नियाँ और बच्चे प्रतिनिधित्व से बाहर रह जाते हैं।
बच्चों के बारे में रॉल्स यह कहते हैं कि वे अस्थायी रूप से ‘असमानता और सीमित स्वतंत्रता’ के अधीन रहते हैं क्योंकि वे अपरिपक्व हैं। ओकिन इस तर्क को नकारती हैं और कहती हैं कि यह केवल आदर्श परिवारों में लागू हो सकता है, न कि उन परिवारों में जहाँ उपेक्षा या हिंसा होती है। वहाँ तो राज्य को हस्तक्षेप करके बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
महिलाओं की स्थिति
ओकिन यह भी दिखाती हैं कि पत्नी या अन्य वयस्क सदस्य, जो परिवार के ‘मुखिया’ नहीं हैं, उन्हें ‘मूल स्थिति’ में जगह ही नहीं मिलती। यानी रॉल्स के न्याय सिद्धांत में महिलाओं को अदृश्य बना दिया गया है।
इसलिए ओकिन का निष्कर्ष है कि यदि रॉल्स वास्तव में अपने सिद्धांतों के प्रति वफादार रहना चाहते हैं, तो उन्हें परिवार और लिंग को न्याय के ढाँचे में शामिल करना होगा। अन्यथा, उनका पूरा सिद्धांत अधूरा रह जाएगा।
III. मार्था नुसबाम
मार्था नुसबाम भी रॉल्स (Rawls) के परिवार और महिलाओं व बच्चों के अधिकारों पर दृष्टिकोण को लेकर उतनी ही चिंतित हैं। लेकिन वह ‘क्षमताओं का दृष्टिकोण’ (Capabilities Approach) की समर्थक हैं। इसी कारण वह रॉल्स से कई बिंदुओं पर सहमत तो हैं, पर एक अलग दृष्टि से। साथ ही, वह राज्य को क्षमताओं के संवर्धन हेतु अधिक हस्तक्षेप करने के लिए चुनौती देती हैं। अपनी पुस्तक Women and Human Development में नुसबाम प्रस्तावित करती हैं कि —
‘मानव की बुनियादी क्षमताओं को रॉल्स के ‘प्राइमरी गुड्स’ (primary goods) का विकल्प बनाया जाए और व्यक्ति की राजनीतिक संकल्पना को एरिस्टोटेलियन/मार्क्सवादी दृष्टि से समझा जाए, जिसमें मानव को अनेक जीवनगत क्रियाओं की आवश्यकता होती है और इनका आकार तर्कशीलता व संबंध (affiliation) से होता है।’
उनके अनुसार यह दृष्टि रॉल्स के विचारों से काफी मेल खाती है, पर यह शारीरिक व मानसिक दोनों तरह की निर्भरता की देखभाल के लिए आवश्यक सकारात्मक समर्थन आसानी से प्रदान करती है।
नुसबाम रॉल्स के इस कथन को चुनौती देती हैं कि परिवार समाज की मूल संरचना का हिस्सा तो है, लेकिन न्याय के सिद्धांत सीधे तौर पर परिवार के आंतरिक ढांचे पर लागू नहीं होते। वह तीन प्रश्न उठाती हैं—
- परिवार एक मूलभूत संस्था है या स्वैच्छिक?
यदि परिवार समाज की बुनियादी संरचना है, तो इसे चर्च या विश्वविद्यालय जैसे स्वैच्छिक संस्थानों की तरह कैसे माना जा सकता है? परिवार तो जन्म से ही हर व्यक्ति पर गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए यह अलग है। - पश्चिमी परिवार की संकीर्ण धारणा:
रॉल्स पश्चिमी नाभिकीय परिवार (nuclear family) को स्वाभाविक मानते हैं। परंतु नुसबाम भारत के गाँवों की सामूहिकता, विस्तृत परिवार, महिलाओं के समूह, इज़राइल के किब्बुत्ज़ आदि का उदाहरण देती हैं और कहती हैं कि बच्चों के पालन-पोषण के अनेक रूप हैं। फिर केवल पश्चिमी परिवार क्यों? - परिवार का राज्य द्वारा निर्माण:
आधुनिक समाजों में परिवार राज्य का ही निर्माण है। राज्य ही कानून बनाकर तय करता है कि परिवार किसे कहेंगे, विवाह/तलाक क्या होगा, माता-पिता की जिम्मेदारियाँ क्या होंगी। इसलिए इसे चर्च या विश्वविद्यालय जैसा ‘प्राकृतिक’ संगठन नहीं माना जा सकता।
नुसबाम का तर्क है कि रॉल्स समूहों (जैसे परिवार) को ‘प्राकृतिक’ मानकर राज्य-हस्तक्षेप से बचाना चाहते हैं, जबकि उनका (नुसबाम का) दृष्टिकोण किसी भी समूह को ‘प्रकृति से दिया हुआ’ नहीं मानता। समूह तभी मान्य हैं जब वे क्षमताओं का विकास करते हों।
इसलिए यदि भारत के महिला समूह या सामूहिक जीवन (collectives) महिलाओं व बच्चों की बेहतर सुरक्षा कर सकते हैं, तो राज्य को इन्हें समर्थन देना चाहिए। रॉल्स का ‘आंतरिक और बाह्य नियम’ (internal vs. external regulation) का भेद भी अर्थहीन है। विवाह, तलाक, शिक्षा आदि से जुड़े कानून परिवार के अंदरूनी मामलों से ही जुड़े हैं। घरेलू हिंसा या वैवाहिक बलात्कार को भी अपराध की तरह देखा जाना चाहिए।
नुसबाम कहती हैं कि क्षमताओं के विकास हेतु केवल बाहरी प्रतिबंध (external constraints) पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर राज्य को परिवार के ढांचे को बदलने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए।
तुलनात्मक दृष्टि
पैटमैन, ओकिन और नुसबाम – तीनों नारीवादी विचारकों का मुख्य प्रश्न समान है:
क्या रॉल्स के न्याय के सिद्धांत महिलाओं और बच्चों के लिए अधिकार, स्वतंत्रता और समान अवसर सुनिश्चित करते हैं?
- पैटमैन रॉल्स की ‘original position’ को निरर्थक मानती हैं और कहती हैं कि यह पितृसत्तात्मक ढांचे को छुपाता है।
- ओकिन अपेक्षाकृत सहानुभूतिपूर्ण हैं और मानती हैं कि रॉल्स की ‘original position’ का उपयोग नारीवादी आलोचना में किया जा सकता है।
- नुसबाम परिवार की न्यायसंगतता पर जोर देती हैं और बताती हैं कि रॉल्स पश्चिमी परिवार को स्वाभाविक मानकर गलती करते हैं, जबकि परिवार हमेशा राज्य द्वारा गढ़ा जाता है।
फिर भी, नुसबाम मानती हैं कि उनके और रॉल्स के विचार निकट हैं, क्योंकि दोनों मानव गरिमा और व्यक्ति की महत्ता को मूल मानते हैं।
निष्कर्ष
तीनों नारीवादी विचारक रॉल्स के उदारतावाद से गहरा संवाद रखते हैं। वे उसकी आलोचना भी करते हैं और उससे प्रेरणा भी लेते हैं।
- पैटमैन: स्वतंत्र समाज का अर्थ केवल अनुबंध आधारित व्यवस्था नहीं हो सकता। यौन अनुबंध (sexual contract) की आलोचना से वह बताती हैं कि स्त्रियों की दासता आज भी जारी है।
- ओकिन: एक न्यायपूर्ण समाज वही होगा जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों घर और बाहर के कार्य समान रूप से साझा करें। उनका आदर्श है ‘एक ऐसा भविष्य जिसमें लिंग (gender) का महत्व आँखों के रंग जितना मामूली हो।’
- नुसबाम: क्षमताओं का दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं और कहती हैं कि राज्य को सक्रिय रूप से हस्तक्षेप कर स्त्रियों व बच्चों की क्षमताओं को विकसित करना चाहिए। उन्होंने दस ‘मौलिक क्षमताएँ’ सूचीबद्ध की हैं, जैसे—जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, भावनाएँ, तर्क, खेल, पर्यावरण पर नियंत्रण आदि।
अंततः, इन तीनों विचारकों की आलोचनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि रॉल्स का उदारतावाद यदि वास्तव में सार्वभौमिक न्याय का आधार बनना चाहता है, तो उसे परिवार और लिंग-संबंधी संरचनाओं को गंभीरता से संबोधित करना होगा। केवल पश्चिमी नाभिकीय परिवार पर आधारित दृष्टिकोण आज की बहुविविध और वैश्विक समाज में पर्याप्त नहीं है।