1. अवधारणा:
नारीवाद इस विचार पर आधारित है कि समाज में स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में हीन और अलाभकारी स्थिति में रखी गई हैं। यह लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हुए स्त्रियों की समानता, स्वतंत्रता और अधिकारों की माँग करता है। नारीवादी मानते हैं कि जैविक अंतर (सेक्स) को सामाजिक भूमिकाओं (जेंडर) का आधार बनाना तर्कसंगत नहीं है।
2. ऐतिहासिक विकास:
नारीवाद एक आधुनिक विचारधारा है जिसकी शुरुआत फ्रांसीसी क्रांति और अमेरिका के सेनेका फॉल्स सम्मेलन (1848) से मानी जाती है। 20वीं शताब्दी में इसे व्यापक पहचान मिली और 1970 के दशक में यह एक संगठित विचारधारा बना। 1990 के दशक में यह पूरी तरह स्थापित हो गया।
3. प्रमुख धाराएँ:
- उदारवादी नारीवाद: कानूनी सुधार और सार्वजनिक क्षेत्र में समानता पर बल (प्रमुख विचारक: मेरी वोल्स्टनक्राफ्ट, जे.एस. मिल, बेट्टी फ्रीडन)।
- आमूल परिवर्तनवादी नारीवाद: सामाजिक ढाँचे में गहरे बदलाव की माँग (प्रमुख विचारक: सिमोन द बुआ, वर्जीनिया वूल्फ, केट मिलेट)।
- समाजवादी नारीवाद: स्त्रियों के शोषण का कारण पूँजीवादी व्यवस्था को मानते हैं (प्रमुख विचारक: फ्रेडरिक एंगेल्स, शीला रोबाथम)।
4. भारत में नारीवाद:
भारतीय नारीवाद का विकास तीन चरणों में हुआ—
- प्रथम चरण (1850-1915): सामाजिक सुधार (सती प्रथा, बाल विवाह आदि के विरोध)
- द्वितीय चरण (1915-1947): स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी
- तृतीय चरण (1947–वर्तमान): सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समानता की माँग
प्रमुख भारतीय नारीवादी विचारक: सावित्रीबाई फुले, पंडिता रमाबाई, निवेदिता मेनन, वृंदा करात आदि।
5. चुनौतियाँ:
लैंगिक पूर्वाग्रह, सामाजिक रूढ़ियाँ, नारीवाद की विविध धाराओं के बीच मतभेद, और पितृसत्ता की गहरी जड़ें प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
6. संभावनाएँ:
शिक्षा, कानूनी अधिकार, सामाजिक जागरूकता और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं के कारण नारीवाद ने महिलाओं की स्थिति में सुधार किया है। उद्देश्य पुरुषों के समान बनाना नहीं, बल्कि समान अधिकार और अवसर देना है।
महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत रूप से सशक्त बनाना ताकि वे अपने जीवन के निर्णय स्वयं ले सकें और समाज में समान अवसर प्राप्त कर सकें। यह नारीवाद से जुड़ा है, लेकिन इसका फोकस महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उनकी क्षमताओं को बढ़ाने और उन्हें नेतृत्व की भूमिकाओं में लाने पर है।
प्रमुख पहलू:
1. शिक्षा: शिक्षा तक पहुंच महिला सशक्तिकरण का आधार है। भारत में, 2023 तक महिलाओं की साक्षरता दर लगभग 70% है (NSSO), लेकिन पुरुषों (84%) से अभी भी कम है। योजनाएं जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ इस अंतर को कम करने का प्रयास कर रही हैं।
2. आर्थिक स्वतंत्रता: महिलाओं को रोजगार और उद्यमिता के अवसर देना महत्वपूर्ण है। सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) और स्वयं सहायता समूह (SHG) जैसे प्रयासों ने ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाया है। उदाहरण के लिए, भारत में 80 लाख से अधिक SHG हैं, जो 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को जोड़ते हैं (NRLM, 2024)।
3. कानूनी अधिकार: महिलाओं के लिए कानून जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 2013 सुरक्षा और समानता सुनिश्चित करते हैं। हालांकि, कार्यान्वयन में चुनौतियां बनी हुई हैं।
4. राजनीतिक भागीदारी: पंचायती राज में 33% आरक्षण ने स्थानीय स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर केवल 14% सांसद महिलाएं हैं (लोकसभा, 2024)।
5. सांस्कृतिक बदलाव: रूढ़ियों को तोड़ना, जैसे लैंगिक भेदभाव और बाल विवाह, सशक्तिकरण के लिए जरूरी है।
भारत में स्थिति:
• प्रगति: मातृ मृत्यु दर 2014-16 में 130 से घटकर 2020 में 97 प्रति लाख जीवित जन्म हो गई (SRS, 2023)। महिलाओं की उच्च शिक्षा में भागीदारी भी बढ़ी है (AISHE, 2023)।
• चुनौतियां: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी केवल 23% है (PLFS, 2023), और लैंगिक हिंसा एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
नारीवाद (Feminism) और महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) के बीच अंतर
नारीवाद और महिला सशक्तिकरण दोनों ही महिलाओं के उत्थान और समानता से जुड़े हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण, उद्देश्य और दायरे में अंतर है। नीचे इनके बीच प्रमुख अंतरों को संक्षेप में समझाया गया है:
1. परिभाषा और अवधारणा:
• नारीवाद (Feminism): यह एक वैचारिक और सामाजिक आंदोलन है जो लैंगिक समानता के लिए लड़ता है। यह पितृसत्तात्मक संरचनाओं, सामाजिक रूढ़ियों और सांस्थानिक असमानताओं को चुनौती देता है जो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम अवसर या अधिकार देती हैं। नारीवाद व्यापक और सैद्धांतिक है, जो समाज के ढांचे को बदलने पर केंद्रित है।
• महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment): यह एक व्यावहारिक प्रक्रिया है जो महिलाओं को अपनी क्षमताओं, संसाधनों और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करने पर केंद्रित है। इसका लक्ष्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, उनकी आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत स्थिति को मजबूत करना है।
2. उद्देश्य:
• नारीवाद: इसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और समाज में मौजूद संरचनात्मक असमानताओं (जैसे कानून, संस्कृति, या नीतियां) को खत्म करना है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच समान अधिकारों और अवसरों की वकालत करता है।
• महिला सशक्तिकरण: इसका फोकस महिलाओं को व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से सशक्त बनाना है ताकि वे अपने जीवन को बेहतर बना सकें। यह शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और नेतृत्व जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने पर जोर देता है।
3. दायरा:
• नारीवाद: यह एक वैश्विक और सैद्धांतिक आंदोलन है, जो न केवल महिलाओं बल्कि समाज के सभी लैंगिक समूहों (जैसे ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी) के लिए समानता की बात करता है। यह इंटरसेक्शनल हो सकता है, जिसमें नस्ल, वर्ग, और धर्म जैसे कारकों को शामिल किया जाता है।
• महिला सशक्तिकरण: यह अधिक व्यावहारिक और महिलाओं पर केंद्रित है। यह विशिष्ट समुदायों या क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति सुधारने पर ध्यान देता है, जैसे भारत में स्वयं सहायता समूह (SHG) या बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएं।
4. दृष्टिकोण:
• नारीवाद: यह समाज की गहरी संरचनाओं को बदलने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए, यह कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव, यौन हिंसा, या सांस्कृतिक रूढ़ियों जैसे मुद्दों को उठाता है और उनके खिलाफ नीतिगत और सामाजिक बदलाव की मांग करता है।
• महिला सशक्तिकरण: यह अधिक प्रत्यक्ष और परिणाम-उन्मुख है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, या माइक्रोफाइनेंस प्रदान करना ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें।
5. उदाहरण:
• नारीवाद: भारत में निर्भया आंदोलन (2012) नारीवादी आंदोलन का हिस्सा था, जिसने यौन हिंसा के खिलाफ कड़े कानूनों और सामाजिक जागरूकता की मांग की।
• महिला सशक्तिकरण: सुकन्या समृद्धि योजना या महिला ई-हाट जैसी पहल, जो महिलाओं को आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने पर केंद्रित हैं।
सारांश:
• नारीवाद एक वैचारिक आंदोलन है जो लैंगिक समानता के लिए समाज की संरचनाओं को बदलने पर केंद्रित है।
• महिला सशक्तिकरण एक व्यावहारिक प्रक्रिया है जो महिलाओं को व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने पर जोर देती है।
नारीवाद सैद्धांतिक ढांचा प्रदान करता है, जबकि महिला सशक्तिकरण उस ढांचे को जमीन पर लागू करने का एक तरीका है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन उनका फोकस और दृष्टिकोण अलग है।