नेपाल सरकार ने हाल ही में लगभग 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म (जैसे X, व्हाट्सऐप, यूट्यूब) पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस कदम से नाराज़ होकर युवाओं, खासकर जनरेशन-Z ने काठमांडू और अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। विरोध इतना उग्र हुआ कि प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा। सरकार को मजबूर होकर सोशल मीडिया बैन हटाना ही पड़ा।
नेपाल के आंदोलनों का इतिहास और कारण
नेपाल के इतिहास से पता चलता है कि वहाँ का लोकतंत्र बार-बार जनआंदोलन के ज़रिये पुनर्जीवित हुआ है। चाहे 1990 का राजशाही-विरोध हो, 2006 का पूर्ण लोकतंत्र की स्थापना हो या 2025 का डिजिटल स्वतंत्रता आंदोलन हर बार जनता की शक्ति ने शासन को बदलने पर मजबूर किया है।
1960 का जनआंदोलन (जनआंदोलन I)
नेपाल में 1960 से राजा महेन्द्र और बाद में राजा बीरेन्द्र के अधीन पंचायती व्यवस्था लागू थी, जिसमें बहुदलीय लोकतंत्र पर प्रतिबंध था।
- 18 फ़रवरी 1990 को विपक्षी दलों (नेपाली कांग्रेस और वामपंथी संगठनों) ने मिलकर जनआंदोलन शुरू किया। और यह मांगे रखी कि निरंकुश राजशाही की समाप्ति और बहुदलीय लोकतंत्र की बहाली हो।
- यह आन्दोलन भी हफ्तों चले जनआंदोलन के बाद अप्रैल 1990 में राजा बीरेन्द्र को झुकना पड़ा। संविधान संशोधन कर बहुदलीय लोकतंत्र बहाल किया गया और नेपाल संवैधानिक राजतंत्र बना।
(स्रोत: AajTak, 9 सितम्बर 2025)
2006 का जनआंदोलन (जनआंदोलन II)
- 2001 में राजा बीरेन्द्र की हत्या के बाद राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता संभाली और लोकतंत्र को दरकिनार कर पूर्ण राजशाही स्थापित करने की कोशिश की। अप्रैल 2006 में नागरिक समाज, सात-पार्टी गठबंधन और माओवादी आंदोलन ने मिलकर विशाल विरोध प्रदर्शन किए।
- उनकी प्रमुख मांग थी कि संसद की बहाली और राजशाही की शक्तियों को खत्म किया जाये।
- परिणामस्वरुप राजा ज्ञानेन्द्र को सत्ता छोड़नी पड़ी और संसद बहाल हुई। बाद में 2008 में नेपाल पूरी तरह गणतंत्र घोषित हो गया।
2025 का Gen Z आंदोलन
- सितम्बर 2025 में नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे X, व्हाट्सऐप, यूट्यूब) पर प्रतिबंध लगाया। इस बैन से गुस्साए युवाओं, खासकर Gen Z ने काठमांडू और अन्य शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
- इनकी प्रमुख मांग थी किडिजिटल स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार का अंत और पारदर्शी लोकतांत्रिक शासन निर्मित हो। लेकिन हिंसक झड़पें हुई और प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा और सोशल मीडिया बैन हटाना पड़ा।
आंदोलनों के मुख्य कारण
- निरंकुश सत्ता का विरोध: चाहे राजशाही हो या सेंसरशिप, जनता ने हमेशा अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- लोकतांत्रिक आज़ादी की मांग: हर आंदोलन में जनता का उद्देश्य लोकतंत्र और स्वतंत्रता की बहाली रहा।
- युवा शक्ति का योगदान: 1990 और 2006 में छात्र-युवा अग्रणी रहे, और 2025 में भी Gen Z ने नेतृत्व किया।
- सामाजिक–आर्थिक असमानताएँ: बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और असमान विकास ने जनता को सड़कों पर उतरने को मजबूर किया।
ओली के इस्तीफ़े के बाद भारत–नेपाल संबंधों में संभावित परिवर्तन
के.पी. शर्मा ओली का भारत–नेपाल संबंधों पर प्रभाव हमेशा मिश्रित रहा है। उनके इस्तीफ़े के बाद परिदृश्य में कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
राजनीतिक विश्वास का पुनर्निर्माण
- ओली के कार्यकाल में भारत–नेपाल संबंध कई बार तनावपूर्ण रहे, खासकर सीमा विवाद (कालापानी–लिपुलेख मुद्दा) के बाद।
- नई सरकार भारत के साथ विश्वास बहाली की दिशा में पहल कर सकती है।
- द्विपक्षीय वार्ताओं में नए सिरे से सकारात्मक माहौल बनने की संभावना है।
आर्थिक और व्यापारिक सहयोग में तेजी
- नेपाल भारत पर ईंधन, दवाइयाँ, खाद्यान्न और बिजली आपूर्ति के लिए निर्भर है।
- ओली की जगह नई नेतृत्व टीम भारत के साथ आर्थिक साझेदारी को और मज़बूत कर सकती है।
- सीमा व्यापार और पारगमन समझौतों में सुधार संभव है।
रणनीतिक संतुलन (भारत बनाम चीन)
- ओली पर अक्सर यह आरोप लगता रहा कि वे नेपाल को चीन के करीब ले जाते हैं।
- नई सरकार भारत–चीन के बीच संतुलन नीति अपनाने की कोशिश करेगी, लेकिन शुरुआती दौर में भारत को प्राथमिकता दी जा सकती है।
जन–जन के रिश्ते मजबूत होना
- नेपाल में हाल के Gen Z आंदोलन ने लोकतंत्र और स्वतंत्रता की मांग को और तेज़ किया है।
- भारत इस जनभावना को देखते हुए लोग–से–लोग संबंधों (People-to-People ties) को मज़बूत कर सकता है – जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार सहयोग।
सुरक्षा और सीमा प्रबंधन
- अशांति के बाद भारत अपनी सीमा सुरक्षा को और मज़बूत करेगा।
- साथ ही, नेपाल से आतंरिक स्थिरता बहाल होने पर सीमा–पार सहयोग (जैसे आतंकवाद-विरोधी और अपराध रोकथाम) को बेहतर किया जा सकता है।
निष्कर्ष
ओली के इस्तीफ़े के बाद भारत–नेपाल संबंधों में सकारात्मक बदलाव की संभावना अधिक है।
नई सरकार भारत के साथ विश्वास बहाली, आर्थिक सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दे सकती है।
हालाँकि, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नेपाल का अगला नेतृत्व भारत और चीन के बीच किस तरह का संतुलन बनाता है।