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नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन : वर्तमान आवश्यकता

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट, 2021 के कई प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह चार महीनों के भीतर नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन आकी स्थापना करे। यह आयोग ट्रिब्यूनल सदस्यों की नियुक्ति, उनके कार्यकाल, सेवा शर्तें और कामकाज में पारदर्शिता तथा न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा कि वर्तमान कानून न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और इसके प्रावधान ट्रिब्यूनलों की कार्यक्षमता तथा उनके स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं। इसलिए न्याय तंत्र में न्यायाधिकरणों की संरचनात्मक समस्याओं को दूर करने के लिए एक स्वतंत्र और सुदृढ़ संस्थान की आवश्यकता है जो ट्रिब्यूनलों के समस्त प्रशासनिक और न्यायिक पहलुओं की देखरेख कर सके।

नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की उत्पत्ति और महत्व:

नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की कल्पना सुप्रीम कोर्ट के 1997 के एक ऐतिहासिक निर्णय, एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ, में पहली बार सामने आई थी। इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि ट्रिब्यूनलों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए उन्हें एक स्वतंत्र निकाय द्वारा नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। भारत में ट्रिब्यूनलों की स्थापना इसलिए हुई थी ताकि न्यायपालिका पर काम के बोझ को कम किया जा सके और विशेष विषयों में विशेषज्ञता के आधार पर विवादों का त्वरित समाधान किया जा सके। किन्तु विभिन्न ट्रिब्यूनलों में नियुक्ति प्रक्रिया के अभाव, राजनीतिक या प्रशासनिक हस्तक्षेप, सेवा शर्तों में असंगति और संसाधनों की कमी ने उनकी स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर प्रश्न चिह्न लगा दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के रूप में एक स्वतंत्र संस्था का प्रस्ताव रखा जो ट्रिब्यूनलों की सभी आवश्यक व्यवस्थाओं, नियुक्ति, अनुशासन और प्रशासनिक प्रबंधन की निगरानी करेगी।

नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के पक्ष में तर्क :

  • नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के समर्थक इसके कई फायदे बताते हैं। सबसे पहली बात तो यह कि यह आयोग ट्रिब्यूनलों की नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाएगा जिससे योग्य और अनुभवी व्यक्तियों का चयन सुनिश्चित होगा। इससे राजनीतिक या प्रशासनिक दखल का खतरा कम होगा और न्याय प्रक्रिया की स्वतंत्रता कायम रहेगी।
  • दूसरा, इस कमीशन के माध्यम से सभी ट्रिब्यूनलों के लिए एक समान प्रशासनिक ढांचा तैयार होगा, जिससे कार्यप्रणाली में एकरूपता आएगी और न्यायिक कार्यों की गुणवत्ता सुधरेगी।
  • तीसरा, न्यायपालिका पर बढ़ते मामलों के बोझ को कम करते हुए न्यायालयीन प्रक्रिया में तेजी लाई जा सकेगी। नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की स्थापना से न्यायाधिकरणों को उनके संसाधन, वेतन, सेवा शर्तों और अनुशासन के प्रबंधन में स्वायत्तता प्राप्त होगी, जिससे वे अपने कार्यों में अधिक प्रभावी और स्वतंत्र बनेंगे।
  • यह आयोग ट्रिब्यूनलों की कार्यक्षमता बढ़ाने और उनके निगरानी तंत्र को मजबूत बनाने में एक मील का पत्थर साबित होगा।

नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के खिलाफ तर्क:

  • हालांकि, नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन के विरोध भी कम नहीं हैं। आलोचकों का कहना है कि इस तरह के केंद्रीकृत निकाय के गठन से न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है, खासकर यदि आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में राजनीतिक दखल हो।
  • पइसके अलावा, एक बड़ा संस्थागत ढांचा बनते ही निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल और धीमी हो सकती है, जो न्याय की त्वरितता के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
  • आलोचकों का यह भी तर्क है कि विभिन्न ट्रिब्यूनलों के काम में व्यापक विविधता और जटिलता होती है, जिनको एक समान आयोग के द्वारा नियंत्रित करना उनकी विशिष्टताओं के अनुसार नहीं हो पाएगा।
  • इसके साथ ही, एक नए आयोग के लिए संवैधानिक या विधायी मंजूरी के अभाव, प्रशासनिक खर्च और अधिग्रहित अधिकारों के दुरुपयोग की चिंताएं भी इस विरोध का हिस्सा हैं।
  • विरोधी यह मानते हैं कि बिना पर्याप्त स्वतंत्रता, पारदर्शिता और जवाबदेही के यह कमीशन सिर्फ एक और नौकरशाही निकाय ही बनकर रह जाएगा।

आज की परिस्थिति में नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की जरूरत :

वर्तमान समय में नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की स्थापना भारत के न्यायिक सुधारों की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। देश में न्यायिक प्रणाली पर लगातार बढ़ता कार्यभार, मामलों की लंबित संख्या, न्याय में विलंब और न्याय पहुंचाने में असंतोष इस बात का संकेत हैं कि समयानुकूल सुधार अत्यंत आवश्यक है। ट्रिब्यूनल सिस्टम की स्थापना तभी सार्थक हो पाएगी जब वह पूरी तरह स्वतंत्र, प्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह हो। नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन इसी उद्देश्य को साधने के लिए आवश्यक है। इससे न केवल न्यायपालिका का दबाव कम होगा बल्कि न्याय के लिए आम नागरिकों की पहुंच और विश्वास भी बढ़ेगा। ट्रिब्यूनल सिस्टम में सुधार न्यायिक प्रक्रिया को अधिक सक्षम, त्वरित और उचित बनाने का अवसर प्रदान करता है। इसके बिना, ट्रिब्यूनल सिस्टम की मौजूदा कमियां जैसे मनमानी नियुक्तियां, सेवा शर्तों में असमानता और कार्यन्यायिक देरी बनी रहेंगी।

निष्कर्ष

नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन की स्थापनात्मक आवश्यकता आज के न्यायिक परिवेश में स्प्ष्ट है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और हालिया फैसले न्याय व्यवस्था में ट्रिब्यूनलों की भूमिका को पुनः स्थापित करने और उन्हें सशक्त बनाने के संदर्भ में निर्णायक महत्व रखते हैं। एक स्वतंत्र और सक्षम नेशनल ट्रिब्यूनल कमीशन न्याय के लिए नागरिकों के भरोसे को मजबूती देगा और न्यायपालिका की कार्यक्षमता बढ़ाने में सहायक होगा। इसके बिना न्यायाधिकरणों की समसामयिक चुनौतियों का समाधान करना संभव नहीं होगा। इसलिए सरकार, न्यायपालिका और समाज को मिलकर इस आयोग की स्थापना को प्राथमिकता देनी होगी जिससे न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सके। न्याय के इस नवीनीकरण से देश के संवैिधानिक लोकतंत्र को सुदृढ़ता भी प्राप्त होगी।


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