पंचायती राज मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल ने अपनी रिपोर्ट में ‘प्रधानपति’ की प्रथा पर रोक लगाने के लिए सख्त दंड देने की अनुशंसा की है।महिला प्रतिनिधियों की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु इसरिपोर्ट में नीतिगत सुधार, तकनीकी हस्तक्षेप और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
पंचायती राज से सम्बंधित तथ्य :-
▪ 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 नेपंचायती राज प्रणाली को संवैधानिक दर्जा दिया।
▪ पंचायतों का गठन भारतीय संविधान के 11वें अनुसूची में वर्णित 29 विषयों पर कार्य करने के लिए किया गया है।
▪ पंचायत प्रणाली में त्रिस्तरीय संरचना होती है
▪ अनुच्छेद 243D के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), पिछड़े वर्ग (OBC) और महिलाओं के लिए पंचायतों में सीटों का आरक्षण अनिवार्य है।
▪ प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
▪ पंचायतों के चुनाव राज्य चुनाव आयोग द्वारा कराए जाते हैं।
▪ 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
▪ इस दिन 1993 में 73वें संविधान संशोधन को लागू किया गया था।
▪ पंचायतों को राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर वित्तीय संसाधन प्रदान किए जाते हैं।
▪ राजस्थान और आंध्र प्रदेश पंचायती राज प्रणाली लागू करने वाले पहले राज्य थे।
▪ बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में प्रधान पति की समस्या अधिक देखी जाती है।
▪ सरकार राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान और e-Gram Swaraj जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से पंचायतों के डिजिटलीकरण औरसशक्तिकरण को बढ़ावा देती है।
रिपोर्ट का शीर्षक “पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं की भागीदारीऔर प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व को समाप्त करना” है।
कौन है ‘प्रधान पति‘?
प्रधान पति जिसे ‘सरपंच पति’ या ‘मुखिया पति’ भी कहा जाता है, एकसामाजिक-राजनीतिक समस्या है, जिसमें निर्वाचित महिला पंचायतप्रतिनिधियों (Women Elected Representatives – WER) के स्थानपर उनके पति या पुरुष रिश्तेदार सत्ता का वास्तविक संचालन करते हैं।
महिला सशक्तिकरण हेतु संवैधानिक पहल
महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण और समावेशी ग्रामीण विकासकी दिशा में संवैधानिक पहल संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत पंचायती राज संस्थाओं (PRI) में महिलाओं कीराजनीतिक भागीदारी और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्यसे एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया। इसप्रावधान को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में 21 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों ने पहल करते हुए पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं केलिए 50% तक आरक्षण लागू किया है।
वर्तमान में, पंचायती राज व्यवस्था के तीनों स्तरों (ग्राम पंचायत, पंचायतसमिति, जिला परिषद) पर देश की लगभग 2.63 लाख पंचायतों में 32.29 लाख निर्वाचित प्रतिनिधियों (ER) में से 15.03 लाख (46.6%) महिलाएंनिर्वाचित हैं।
पंचायती राज के विभिन्न स्तरों पर प्रतिनिधित्व:
पंचायत स्तर
कुल पंचायतें
महिला प्रतिनिधि (46.5%)
ग्राम पंचायत
2,23,550
1,04,055
पंचायत समिति (ब्लॉक)
26,300
12,241
जिला परिषद
13,150
6,120
यह आंकड़ा महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है। इसके बावजूद, पितृसत्तात्मक मानदंड, कानूनी संरक्षण उपायों के अपर्याप्त कार्यान्वयनऔर सामाजिक-सांस्कृतिक अवरोध जैसे कारक पंचायती राज संस्थाओंमें महिलाओं की प्रभावी भागीदारी और नेतृत्व की राह में महत्वपूर्ण बाधाएंबने हुए हैं। ये चुनौतियाँ महिलाओं के वास्तविक सशक्तिकरण कीप्रक्रिया को सीमित करती हैं और उनकी स्वायत्तता को प्रभावित करती हैं।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
▪ प्रॉक्सी नेतृत्व पर कठोर दंड: पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) मेंनिर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पुरुष रिश्तेदारोंद्वारा प्रॉक्सी के रूप में कार्य करने की पुष्टि होने पर ‘अनुकरणीयदंड’ लागू करने की सिफारिश की गई है। इसका उद्देश्य महिलाप्रतिनिधियों की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित करना है।
▪ संरचनात्मक और नीतिगत सुधार: समिति ने पंचायत और वार्ड स्तर परलैंगिक-विशिष्ट कोटा लागू करने की सिफारिश की है। इसकेअतिरिक्त, केरल मॉडल को अपनाते हुए प्रॉक्सी नेतृत्व के विरुद्धप्रयासों को पहचान देने के लिए वार्षिक ‘एंटी-प्रधान पति’ पुरस्कारस्थापित करने की भी सिफारिश की गई है।
▪ महिला लोकपाल की नियुक्ति: प्रॉक्सी नेतृत्व और अन्य संबंधितशिकायतों के निवारण के लिए महिला लोकपाल की नियुक्ति काप्रस्ताव रखा गया है। इससे महिलाओं को अपनी शिकायतें दर्जकराने और न्याय प्राप्त करने में सुविधा होगी।
▪ सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह: महिला प्रधानों के अधिकारों कोसशक्त करने के लिए ग्राम सभाओं में सार्वजनिक शपथ ग्रहणसमारोह आयोजित करने का सुझाव दिया गया है। इससे उनकीस्थिति को औपचारिक और सार्वजनिक मान्यता मिलेगी।
▪ महिला पंचायत प्रतिनिधियों का संघ: महिला पंचायत प्रतिनिधियों कोसहकर्मी समर्थन और सामूहिक निर्णय-प्रक्रिया में सहयोग देने केलिए उनके एक संघ के गठन की सिफारिश की गई है। इससेमहिला नेताओं के बीच नेटवर्किंग और अनुभव साझा करने कीसंस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।
▪ तकनीकी हस्तक्षेप: समिति ने कौशल को बढ़ावा देने के लिये आभासीवास्तविकता (VR) सिमुलेशन प्रशिक्षण के साथ रियल टाइमविधिक एवं शासन सहायता हेतु स्थानीय भाषाओं में कृत्रिमबुद्धिमत्ता (AI) संचालित क्वेरी-संचालित मार्गदर्शन का प्रस्ताव रखाहै।
प्रधान पति की समस्या को हल करने में चुनौतियाँ :-
पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) में महिलाओं के लिए आरक्षण के कारणउनकी संख्यात्मक भागीदारी बढ़ी है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणाऔर राजस्थान जैसे उत्तरी राज्यों में उनकी प्रभावी भागीदारी अभी भीसीमित है। इन क्षेत्रों में निर्णय-निर्माण प्रक्रिया पर पुरुषों का नियंत्रणअधिक है, जिससे महिला प्रतिनिधियों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता बाधितहोती है। सामाजिक रूप से जड़ें जमा चुकी पितृसत्ता और प्रशासनिकउपेक्षा के कारण निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को वास्तविक शक्ति सेवंचित रखा जाता है। अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि केवल प्रतीकात्मकमुखिया की भूमिका निभाती हैं, जबकि उनके पति या पुरुष रिश्तेदार सत्ताऔर प्रशासनिक निर्णयों पर नियंत्रण रखते हैं। महिला पंचायतप्रतिनिधियों को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, धमकियाँ औरसामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिससे वे शासन औरनिर्णय-प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने से हतोत्साहित होती हैं।
इसलिए समिति ने महिलाओं की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित करने केलिए संरचनात्मक और नीतिगत सुधार, महिला लोकपाल की नियुक्ति, और सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह जैसे उपायों की सिफारिश की है।साथ ही, महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने औरजागरूकता अभियान चलाने पर ज़ोर दिया है।
निष्कर्ष
पंचायती राज संस्थाओं में ‘प्रधान पति’ की प्रथा महिलाओं के राजनीतिकसशक्तिकरण और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की भावना के खिलाफहै। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत महिलाओं कोपंचायतों में आरक्षण देकर नेतृत्व में भागीदारी सुनिश्चित की गई, लेकिनपितृसत्तात्मक संरचना, प्रॉक्सी नेतृत्व, और प्रशासनिक उदासीनता केकारण उनकी स्वायत्तता अब भी बाधित है। पंचायती राज मंत्रालय द्वारागठित समिति ने इस समस्या से निपटने के लिए अनुकरणीय दंड, महिलालोकपाल की नियुक्ति, और सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह जैसे ठोसउपायों की सिफारिश की है। इसके अतिरिक्त, तकनीकी समाधान औरप्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से महिला प्रतिनिधियों की नेतृत्व क्षमताको सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। हालाँकि, प्रॉक्सीनेतृत्व की समस्या का समाधान केवल कानूनी दंड से संभव नहीं है। इसकेलिए सामाजिक मानसिकता में परिवर्तन, लैंगिक समानता की शिक्षा, औरमहिला पंचायत प्रतिनिधियों के लिए संरचनात्मक समर्थन जैसे व्यापकप्रयासों की आवश्यकता है।
प्लीज वाच /रीड
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