हाल ही में भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) ने हरियाणा को 8,500 क्यूसेक पानी देने का निर्णय लिया, जिससे पंजाब में हंगामा मच गया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने खुद जाकर डैम के गेट बंद करवा दिए। इसके कारण 1966 से पंजाब और हरियाणा के गठन के बाद से चला आ रहा जल विभाजन का विवाद वर्तमान राजनीति का विषय बन गया है।
मुद्दा क्या है?
- पानी के बंटवारे को लेकर लंबे समय से दोनों राज्यों के बीच विवाद है, खासकर सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर। यह विषय कई बार आंदोलन, कोर्ट केस और राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।
- क्योंकि हरियाणा को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) से 8,500 क्यूसेक पानी देने का फैसला हुआ, जबकि पहले 4,000 क्यूसेक दिया जा रहा था। पंजाब ने इसका विरोध किया और डैम के गेट बंद करवा दिए।
- यह सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर का मामला दशकों पुराना है। हरियाणा चाहती है कि उसे भी सतलुज नदी से पानी मिले, जबकि पंजाब इसका विरोध करता रहा है।
जल विवाद क्या होता है?
- अंतरराज्यीय जल विवाद (causes of inter-state water dispute) तब होता है जब दो या दो से अधिक राज्य दो या दो से अधिक राज्यों से होकर बहने वाली नदियों के उपयोग, वितरण और नियंत्रण के बारे में असहमत होते हैं।
- भारत की सभी प्रमुख नदी घाटियाँ और इसकी कुछ मध्यम नदी घाटियाँ अंतर्राज्यीय प्रकृति की हैं।
- इसलिए, एक अंतर्राज्यीय नदी पर एक राज्य द्वारा परियोजनाओं के विकास से अन्य बेसिन राज्यों के हित प्रभावित हो सकते हैं।
जल विभाजन पर संवैधानिक प्रावधान
- भारत में अंतर्राज्यीय जल विवाद (inter state water disputes) अंतर्राज्यीय नदी बेसिन जल के उपयोग, वितरण और नियंत्रण पर असहमति के कारण उत्पन्न होते हैं। भारत में अंतर्राज्यीय जल विवाद (inter state water disputes) आज भारतीय संघवाद में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है। राज्यों के बीच जल विवादों को हल करने के लिए, भारतीय संसद ने 1956 में अंतर-राज्य नदी जल विवाद (ISRWD) अधिनियम पारित किया, और विभिन्न अंतर-राज्य जल विवाद न्यायाधिकरण स्थापित किए गए।
- पंजाब और हरियाणा के अतिरिक्त कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी विवाद और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से जुड़ा कृष्णा नदी जल विवाद भारत में बहुचर्चित है।
अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों का समाधान अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के अंतर्गत होता है।
- यदि कोई राज्य सरकार जल विवाद को लेकर केंद्र सरकार से अनुरोध करती है और केंद्र को लगता है कि विवाद बातचीत से नहीं सुलझ सकता, तो जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया जाता है।
- 2002 में अधिनियम में संशोधन कर सरकारिया आयोग की सिफारिशों को शामिल किया गया।
2002 में अधिनियम में संशोधन के अनुसार
- जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिए अधिकतम 1 वर्ष की समय-सीमा तय की गई।
- न्यायाधिकरण को निर्णय देने के लिए 3 वर्ष (और विशेष परिस्थितियों में 2 वर्ष का अतिरिक्त समय) की सीमा निर्धारित की गई।
- न्यायाधिकरण के निर्णय को अंतिम और बाध्यकारी घोषित किया गया।
- निर्णय को लागू करने के लिए एक केंद्रीय प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान जोड़ा गया।
अन्य संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 246 संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों के विषय को संबोधित करता है।
केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों के विभाजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
- संघ सूची (सूची-1)
- राज्य सूची (सूची-2)
- समवर्ती सूची (सूची-3)
राज्य सूची की प्रविष्टि 17 के अनुसार, जल से जुड़े विषय जैसे; जल आपूर्ति, सिंचाई, नहरें, जल निकासी, तटबंध, जल संग्रहण और जल विद्युत का प्रबंधन राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- संघ सूची की प्रविष्टि 56 यह प्रावधान करती है कि यदि किसी नदी या नदी घाटी का विकास और नियंत्रण सार्वजनिक हित में जरूरी हो, तो संसद उस विषय पर कानून बना सकती है। यह विशेष रूप से अंतर-राज्यीय नदियों के लिए लागू होता है।
अनुच्छेद 262 (1): किसी भी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल का उपयोग, वितरण या नियंत्रण संसद या केंद्रीय कानून द्वारा बनाए गए कानूनी प्रावधान का विषय हो सकता है जो यह नियंत्रित करेगा कि विवादों या शिकायतों का समाधान कैसे किया जाएगा।
अनुच्छेद 262(2): इस अनुच्छेद में जो कुछ भी कहा गया है, उसके बावजूद, संसद, कानून द्वारा, प्रावधान कर सकती है कि 262 खंड (1) में निर्दिष्ट किसी भी तरह के विवाद या शिकायत पर न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही किसी अन्य अदालत का अधिकार क्षेत्र होगा।
भारतीय संसद ने उपरोक्त संवैधानिक प्रावधानों के तहत चार अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियमों (inter state water dispute act in hindi) को अधिनियमित किया है, जिनमें से तीन सूची-I की प्रविष्टि 56 के तहत हैं:
- नदी बोर्ड अधिनियम 1956
- बेतवा नदी बोर्ड अधिनियम 1976
- ब्रह्मपुत्र बोर्ड अधिनियम 1980
और एक अनुच्छेद 262 के तहत
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956
जल विवाद न्यायाधिकरण क्या है?
- जल विवाद ट्रिब्यूनल 1956 (Water Disputes Tribunal 1956 in hindi) के अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम (inter state water dispute act 2019 upsc in hindi) द्वारा शासित एक अर्ध-न्यायिक संस्था है और इसे विवादित पक्षों के बीच जल विवाद के निर्णय को हल करने जैसे मुद्दों से निपटने के लिए स्थापित किया गया है।
- 1956 के अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि राज्य सरकारें जल विवाद के निपटारे के लिए अधिकरण के लिए केंद्र से संपर्क कर सकती हैं।
- केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा जल विवाद के न्यायनिर्णयन के लिए एक जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना करेगी। जल विवाद न्यायाधिकरण (inter state water dispute tribunal list in hindi) का निर्णय अंतिम और शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी है।
भारत में सक्रिय नदी जल विवाद न्यायाधिकरण
- कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना 1990 में की गई थी, जिसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी शामिल हैं। इसने 2007 में निर्णय दिया, जिसे 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधित किया।
- कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण दो चरणों में गठित हुआ; पहला 1969 में और दूसरा 2004 में। जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।
- गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन 1969 में हुआ था और इसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल थे।
- महादयी (मांडोवी) जल विवाद न्यायाधिकरण 2010 में गठित हुआ, जिसमें गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच विवाद था। इसका निर्णय 2018 में आया लेकिन मामला अब भी न्यायिक समीक्षा में है।
- व्यास-रावी जल विवाद (पंजाब-हरियाणा-राजस्थान के बीच) विशेष रूप से सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर जारी है। हालांकि इसके लिए कोई नया न्यायाधिकरण नहीं बना है, पर यह मामला सर्वोच्च
अंतर–राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017 इसका उद्देश्य भारत में नदी जल विवादों को अधिक प्रभावी, समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से सुलझाना है।
- इस विधेयक को 2017 में लोकसभा में पेश किया गया था, और इसके प्रमुख प्रावधानों को 2019 में संशोधित विधेयक के रूप में फिर से प्रस्तुत किया गया। वर्तमान में, यह विधेयक संसद में लंबित है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- एक स्थायी और स्वतंत्र न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव, जिससे हर विवाद के लिए नया न्यायाधिकरण बनाने की आवश्यकता न पड़े।
- न्यायाधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, और छह सदस्य (तीन न्यायिक + तीन तकनीकी विशेषज्ञ) होंगे।
- न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होगा; उसे राजपत्र में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- जल विवाद आने पर पहले “विवाद समाधान समिति (Dispute Resolution Committee – DRC)” बनाई जाएगी।
- DRC को 1 वर्ष + 6 माह (अधिकतम) में विवाद सुलझाने का प्रयास करना होगा।
- समाधान न होने पर मामला न्यायाधिकरण को भेजा जाएगा।
- न्यायाधिकरण को 3 वर्ष में निर्णय देना होगा, जिसमें5 वर्ष का अतिरिक्त समय पुनर्विचार के लिए हो सकता है।
- प्रत्येक नदी घाटी के लिए पारदर्शी डेटा बैंक और सूचना प्रणाली स्थापित करने हेतु एक राष्ट्रीय एजेंसी गठित की जाएगी।
आगे का रास्ता
- केंद्र सरकार को निष्पक्ष भूमिका निभाकर दोनों राज्यों को बातचीत के लिए एक साथ लाना चाहिए, न कि पक्षपाती रवैया अपनाना।
- जल जैसे संवेदनशील विषय पर राजनीति और वोटबैंक की बजाय सहयोग और समाधान को प्राथमिकता दी जाए।
- एक निष्पक्ष और विशेषज्ञों से युक्त जल आयोग या ट्रिब्यूनल दोनों राज्यों की बातें सुनकर वैज्ञानिक और न्यायिक तरीके से निर्णय हो सकता है।
- दोनों राज्यों को पारदर्शिता के साथ पानी की उपलब्धता और उपयोग का डेटा साझा करना चाहिए। इससे भ्रम और अविश्वास दूर होंगे।
- नई तकनीकों जैसे ड्रिप इरिगेशन, रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और वॉटर रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जाए ताकि पानी की मांग कम हो।
- यदि कोर्ट ने इस विषय में कोई आदेश या दिशा-निर्देश दिए हैं, तो दोनों राज्यों को उसका सम्मान करना चाहिए।
- स्थायी समाधान के लिए एक संयुक्त स्थायी समिति बनाई जाए जो हर साल समीक्षा करे और ज़रूरत के अनुसार सुधार सुझाए।
Basic source: Indian Express