
1 जनवरी को आइवरी कोस्ट से, 26 दिसंबर को चाड से, और 3 दिसंबरको सेनेगल से फ्रांसीसी सैनिको के वापसी की घोषणाए हुई थी। इन देशोका तर्क था कि फ़्रांस की उपस्थिति उनके देश की राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए“असंगत“ है। अब तीन अन्य पश्चिम अफ्रीकी देश माली, नाइजर औरबुर्किना फासो ने भी फ्रांसीसी सैनिकों की वापसी की मांग शुरू कर दी है।यह् मांगे इन क्षेत्र में ‘फ्रांकसाफ्रीक‘ के घटते प्रभाव को उजागर कर रही है।
शब्द ‘फ्रांकसाफ्रीक‘ का अर्थ
‘फ्रांकसाफ्रीक‘ (Françafrique) शब्द उस नीति का प्रतीक है जिसकेतहत फ्रांस ने अपने पूर्व उपनिवेशों के साथ गहरे राजनीतिक, आर्थिक, और सैन्य संबंध बनाए है । हालांकि, यह व्यवस्था अक्सर पश्चिमअफ्रीकी देशों की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता पर सवाल खड़े करती रहीहै। अब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपनी इस रणनीति (‘फ्रांकसाफ्रीक‘ )को बदलते हुए अपने सैन्य प्रभाव को खत्म करने और आर्थिक वराजनयिक संबंधों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।
संप्रभुता और क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य
पश्चिम अफ्रीका के देशों ने लंबे समय तक फ्रांस के साथ आर्थिक औरसैन्य सहयोग बनाए रखा, लेकिन अब वे इस संबंध को असंतुलित औरअपनी स्वायत्तता में बाधक मानने लगे हैं। फ्रांस के प्रभाव को कम करनेकी यह प्रक्रिया उनके आत्मनिर्भरता के प्रयासों का हिस्सा है। चाड, सेनेगल और आइवरी कोस्ट जैसे देशों का अपने संप्रभुता अधिकारों परजोर दिया है जो वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव है। उनकेऔपनिवेशिक अतीत और लंबे समय तक बाहरी शक्तियों पर निर्भरता कोसमाप्त करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सभी देश अबक्षेत्रीय एकता को प्रोत्साहित करने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनीआवाज को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।
क्या पश्चिमी अफ्रीका में फ्रांस का प्रभाव समाप्त हो रहा है?
पश्चिमी अफ्रीका में फ्रांस का प्रभाव धीरे–धीरे कमजोर हो रहा है। बढ़तीफ्रांस–विरोधी भावना, क्षेत्रीय अस्थिरता, और रूस–चीन जैसे बाहरीखिलाड़ियों के बढ़ते प्रभाव ने स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।हालाँकि फ्रांस का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभाव अब भी महत्वपूर्णहै, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए फ्रांस को नई रणनीतियाँ अपनानीहोंगी।
कारण

नए साझेदारों की तलाश: रूस, चीन
पश्चिमी अफ्रीका में माली, बुर्किना फासो, और नाइजर जैसे देशों द्वाराफ्रांसीसी प्रभाव को हटाने और रूस के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार करने कीप्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। रूस ने इन देशों में Wagner Group जैसे निजी सैन्य ठेकेदारों के ज़रिए इन देशों को समर्थन देना शुरू कियाहै। रूस द्वारा पश्चिमी दखल के बिना संप्रभुता का विचार को बढ़ावा दियागया है, जो इन देशों में लोकप्रिय हो रहा है। रूस ने प्रोपेगैंडा अभियानोंऔर सामाजिक मीडिया के ज़रिए खुद को एक ‘पश्चिमी विकल्प‘ के रूपमें प्रस्तुत किया है। रूस मुख्य रूप से सुरक्षा और सैन्य समर्थन पर केंद्रितहै, वहीं चीन ने आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचे में निवेश करके अपनाप्रभाव बढ़ाया है। चीन ने पश्चिमी अफ्रीका के देशों में सड़कों, पुलों, ऊर्जापरियोजनाओं, और टेक्नोलॉजी में भारी निवेश किया है। चीन की बेल्टएंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना ने इस क्षेत्र में नई संभावनाएँ पैदाकी हैं। वही माली, नाइजर, और बुर्किना फासो में फ्रांस को असफल सैन्यभागीदार के रूप में देखा जाता है। रूस की सुरक्षा और चीन की आर्थिकनीतियाँ इस क्षेत्र को फ्रांस से दूर ले जा रही हैं। यदि फ्रांस अपनीरणनीतियों को स्थानीय जरूरतों के अनुसार नहीं बदलेगा, तो उसकाप्रभाव और कमजोर हो सकता है।
निष्कर्ष
फ्रांसीसी सैनिकों की वापसी न केवल अफ्रीका में शक्ति संतुलन बदलरही है, बल्कि वैश्विक भू–राजनीतिक परिदृश्य को भी नई दिशा में ले जारही है। यह केवल अफ्रीका के लिए सीमित नहीं है, बल्कि यूरोप, रूस, चीन, और अन्य वैश्विक शक्तियों के बीच नया समीकरण तैयार कर रहाहै। इस क्षेत्र में रूस और चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उपरोक्तअवसरो का लाभ उठाया है। इसलिए यूरोप के लिए यह आवश्यक है किवह अफ्रीका के साथ पारस्परिक लाभकारी साझेदारी के नए मॉडल परकाम करे।
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