पहलगाम आतंकी हमला
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बाइसारन घास के मैदान में एक भयानक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए, जिनमें दो विदेशी पर्यटक (संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल से) और दो स्थानीय लोग शामिल थे। यह हमला कश्मीर घाटी में हाल के वर्षों में सबसे घातक नागरिक हमलों में से एक था। आतंकवादी संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF), जो पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक सहयोगी है, ने इस हमले की जिम्मेदारी ली।
हमलावरों ने पर्यटकों के बीच घुसपैठ की और पाइन जंगलों से निकलकर गोलीबारी शुरू की, जिसमें पिकनिक कर रहे लोग, घोड़े की सवारी करने वाले और खाने की दुकानों पर मौजूद लोग निशाना बने। प्रारंभिक जांच में पता चला कि हमले में पाकिस्तानी और स्थानीय कश्मीरी आतंकवादी शामिल थे। हमले के बाद, भारत सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को जांच सौंपी, और अनंतनाग में सबूत इकट्ठा करने और संदिग्धों की पहचान करने के लिए टीमें तैनात की गईं।
भारत की प्रतिक्रिया
पहलगाम हमले के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सऊदी अरब यात्रा को छोटा कर दिल्ली में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक बुलाई। इस बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ कई कठोर कदम उठाए गए, जिनमें सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित करना शामिल था।
सिंधु जल संधि का निलंबन
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि, छह नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, और सतलज) के पानी के बंटवारे को नियंत्रित करती है। इस संधि के तहत:
• भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, और सतलज) पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है।
• पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, और चेनाब) का लगभग 80% पानी मिलता है, जो उसकी कृषि और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत ने 23 अप्रैल 2025 को घोषणा की कि संधि को “तत्काल प्रभाव से निलंबित” किया जाएगा, जब तक कि पाकिस्तान “सीमा पार आतंकवाद का समर्थन विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से बंद नहीं करता”। इस निलंबन का मतलब है:
• भारत अब पाकिस्तान के साथ जल प्रवाह डेटा साझा नहीं करेगा, जो बाढ़ की तैयारी और जल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है।
• भारत पश्चिमी नदियों पर जलाशयों का निर्माण या संशोधन कर सकता है, बिना पाकिस्तान को सूचित किए।
• किशनगंगा और रतले जैसे परियोजनाओं पर निरीक्षण और डिज़ाइन प्रतिबंध अब लागू नहीं होंगे।
पाकिस्तान पर प्रभाव
सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान की कृषि, जो इसके अर्थव्यवस्था का 25% हिस्सा और ग्रामीण आजीविका का 70% हिस्सा है, के लिए महत्वपूर्ण है। संधि का निलंबन निम्नलिखित प्रभाव डाल सकता है:
• कृषि संकट: पाकिस्तान की 90% सिंचाई सिंधु बेसिन पर निर्भर है। पानी की कमी से फसल उत्पादन में कमी, खाद्य असुरक्षा, और आर्थिक अस्थिरता हो सकती है।
• जल संकट: पाकिस्तान पहले से ही जल की कमी, भूजल की कमी, और सीमित जल भंडारण क्षमता (केवल 14.4 मिलियन एकड़-फीट) का सामना कर रहा है।
• बाढ़ और सूखा जोखिम: जल प्रवाह डेटा साझा न करने से बाढ़ की तैयारी और सूखे की रोकथाम में बाधा आएगी।
हालांकि, भारत के पास वर्तमान में पश्चिमी नदियों के पानी को पूरी तरह रोकने के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की कमी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े जलाशयों का निर्माण करने में वर्षों लग सकते हैं। इसलिए, यह कदम अभी के लिए एक दबाव रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को “जल युद्ध” और “युद्ध का कार्य” करार दिया है। पाकिस्तान ने निम्नलिखित जवाबी कदम उठाए:
• 1972 की शिमला संधि को निलंबित करना।
• भारतीय विमानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद करना।
• विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानूनी चुनौती देने की घोषणा।
• रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि सिंधु नदी पर कोई भी संरचना बनाने की कोशिश को “भारतीय आक्रामकता” माना जाएगा और उसका जवाब दिया जाएगा।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने हमले में पाकिस्तान की संलिप्तता से इनकार किया और इसे “स्वतंत्रता सेनानियों” का काम बताया।
भारत के अन्य कदम
सिंधु जल संधि के निलंबन के अलावा, भारत ने निम्नलिखित कदम उठाए:
• अटारी-वाघा सीमा चौकी को बंद करना।
• पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सभी प्रकार के वीजा निलंबित करना, जिसमें मेडिकल वीजा को 29 अप्रैल तक की छूट दी गई।
• पाकिस्तानी उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 करने का आदेश।
• भारतीय सेना को पूर्ण कार्रवाई की स्वतंत्रता दी गई।
निष्कर्ष
पहलगाम आतंकी हमला और सिंधु जल संधि का निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। भारत का यह कदम आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख को दर्शाता है, लेकिन यह पाकिस्तान की जल और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है। हालांकि, भारत के बुनियादी ढांचे की सीमाओं के कारण तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक परियोजनाएं क्षेत्रीय भू-राजनीति को बदल सकती हैं।