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पहल्गाम में आतंकी हमला: एक सुनियोजित हिंसा

पहल्गाम में आतंकी हमला

कश्मीर के पहल्गाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई, जिनमें ज़्यादातर पर्यटक थे। इस आतंकवादी हमले ने देश और दुनिया की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। यह आतंकवादी हमला केवल एक आकस्मिक हिंसा नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक संकेत था, जिसका उद्देश्य रणनीतिक स्थिरता को बाधित करना, एक पुनर्जीवित होते कश्मीर की छवि को धूमिल करना, और भारत की कूटनीतिक स्थिति को चुनौती देना था। यद्पि यह हमला उस समय हुआ जब कश्मीर में पर्यटन की वापसी हो रही थी और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस भारत की यात्रा पर थे।

गृह मंत्री अमित शाह ने हमले के बाद कहा, “भारत आतंकवाद के आगे नहीं झुकेगा,”

हमले के पीछे क्या मकसद था?

  • इस हमले का स्थान बैसरन है, जिसे ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ कहा जाता है। इस हमले में लक्ष्य केवल आम नागरिक नहीं थे, बल्कि कश्मीर को एक सुरक्षित, पुनर्जीवित पर्यटन स्थल के रूप में प्रस्तुत करने की धारणा को नष्ट करना था। सुंदरता और शांति के स्थान पर खून-खराबे की वीभत्स तस्वीरें जनता के मन में भय और मानसिक आघात बैठाने के लिए थीं।
  • इसकी टाइमिंग भी राजनीतिक सोच को दर्शाती है। जब भारत की वैश्विक कूटनीति गति पकड़ रही थी, तब यह हमला फिर से अंतरराष्ट्रीय ध्यान को पुराने तनावों की ओर मोड़ने का एक प्रयास था।
  • 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, भारत ने कश्मीर को अपनी मुख्यधारा में शामिल कर राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास की दिशा में कदम उठाए हैं। पाकिस्तान को डर है कि अगर कश्मीर में शांति और विकास हुआ, तो उसका नैरेटिव पूरी तरह खत्म हो जाएगा। इसलिए वह अस्थिरता फैलाने के लिए आतंकी हमलों का सहारा लेता है।
  • पाकिस्तान अब धीरे-धीरे अपने पारंपरिक सहयोगियों से दूरी में है जैसे; अमेरिका के साथ 2021 में अफगानिस्तान से वापसी के बाद पाकिस्तान की रणनीतिक उपयोगिता घट गई। खाड़ी देश और चीन अब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को लेकर विश्वसनीयता कम होती जा रही है। ऐसे में पाकिस्तान सैन्य और आतंकी गतिविधियों के ज़रिए ध्यान खींचने की कोशिश कर सकता है, ताकि वैश्विक मंच पर पुनः भूमिका पा सके।
  • पश्चिमी सीमा पर बलूचिस्तान में लगातार विरोध और हिंसा चल रही है। इसके अलावा टीटीपी जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तान की सेना पर ही हमले कर रहे हैं। ऐसे में भारत के खिलाफ हमला करके पाकिस्तान राष्ट्रीय एकता का नकली भाव जगाने की कोशिश कर सकता है।

प्रॉक्सी युद्ध और पाकिस्तान की भूमिका

  • इस हमले की ज़िम्मेदारी “द रेसिस्टेंस फ्रंट” नाम के एक आतंकी संगठन ने ली है। यह संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लिए काम करता है।
  • TRF का वर्ष 2020 में उदय हुआ। इसेगृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 में विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के तहत आतंकवादी संगठन घोषित किया गया था।
  • वर्ष 2018 में लश्कर के शीर्ष नेतृत्व का खत्म होना और वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द किये जाने के उद्देश्य से इसका उदय हुआ।
  • पाकिस्तान अक्सर ऐसे आतंकवादी समूहों का इस्तेमाल करता है जो नाम से तो अलग लगते हैं, लेकिन असल में पाकिस्तान के इशारे पर काम करते हैं। इससे वह हमला करवाने के बाद भी यह कह सकता है कि उसका इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसे “संभाव्य इनकार” (plausible deniability) कहा जाता है।
  • पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर, जो पहले ISI के प्रमुख भी थे, अब फिर से उसी पुरानी रणनीति पर चल रहे हैं यानी भारत को बार-बार उकसाना, लेकिन ऐसा ना करना जिससे युद्ध शुरू हो जाए। इसका मकसद भारत पर लगातार दबाव बनाए रखना है।

खुफिया और सुरक्षा में चूक

  • पहल्गाम, जो अमरनाथ यात्रा का एक अहम रास्ता है और एक मशहूर टूरिस्ट जगह भी है, वहाँ सुरक्षा में बड़ी चूक हुई है।
    इस इलाके में पहले से ही सुरक्षा के लिए निवेश किया गया था, लेकिन फिर भी वहाँ ड्रोन या किसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी नहीं थी।
  • इसका मतलब है कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी तैयारियों में लापरवाही रही है। ऐसी जगह, जहाँ हर साल लाखों लोग आते हैं, वहाँ सुरक्षा का इतना कमजोर होना बहुत गंभीर बात है।

हमले के बाद भारत का 5 सूत्री कार्य योजना

  • सिंधु जल संधि का निलंबन: भारत ने वर्ष 1960 की सिन्धु जल संधि को तब तक के लिये निलंबित कर दिया है जब तक कि पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं कर देता है।
  • यह भारत के दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है जिसमें जल विज्ञान संबंधी लाभ को दबाव के साधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
  • अटारी-वाघा सीमा चेक पोस्ट को बंद करना: भारत ने पंजाब के अटारी में एकीकृत चेक पोस्ट (आईसीपी) को बंद कर दिया है जिससे लोगों और वस्तुओं की आवाजाही निलंबित हो गई है। केवल वैध दस्तावेज़ो के साथ सीमा पार करने वाले व्यक्तियों को ही 1 मई 2025 तक लौटने की अनुमति दी जाएगी।
  • पाकिस्तान के लिये सार्क वीज़ा छूट योजना रद्द करना: भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिये  दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) वीज़ा छूट योजना (SVES) को रद्द कर दिया है।
  • पहले से जारी सभी SVES वीज़ा निरस्त माने जाएंगे ।
  • पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों का निष्कासन: नई दिल्ली में पाकिस्तान के रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति  घोषित कर दिया गया है और उन्हें भारत से बाहर जाना होगा। भारत इस्लामाबाद से अपने सलाहकारों को भी वापस बुलाएगा।
  • राजनयिक कार्मिकों की संख्या में कमी: भारत 1 मई 2025 तक इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या को 55 से घटाकर 30 कर देगा।
  • यह कूटनीतिक भागीदारी में स्पष्ट गिरावट का संकेतक है जिसका उद्देश्य आधिकारिक स्तर पर द्विपक्षीय वार्ता को रोकना है।

कश्मीरी जनता पीड़ित है दोषी नहीं

  • हमें यह समझना होगा कि कश्मीर की आम जनता इस तरह की हिंसा की साथी नहीं है, बल्कि वे खुद इसके शिकार हैं। यह हमला सिर्फ लोगों की जान लेने के लिए नहीं किया गया था, बल्कि इसका मकसद घाटी और बाकी भारत के बीच जो नज़दीकियाँ बन रही थीं, उन्हें तोड़ना था।
  • आज का कश्मीरी युवा आतंक नहीं, बल्कि पढ़ाई, नौकरी और शांति चाहता है।
    अगर हम हर कश्मीरी को शक की नजर से देखने लगें, तो हम उसी वर्ग को खो देंगे जो लंबे समय की शांति और भरोसे की नींव बन सकता है।
  • इसलिए ज़रूरी है कि उन्हें डर या संदेह से नहीं, भरोसे और विकास के साथ जोड़ा जाए।

भारत में आतंकवाद: उत्पत्ति, कारण और उद्देश्य

  • भारत में आतंकवाद का उद्भव एक जटिल ऐतिहासिक, राजनीतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि में हुआ। विशेषकर 1979 के बाद पाकिस्तान ने एक संगठित रणनीति के तहत भारत को अस्थिर करने की नीति अपनाई, जिसका मूल उद्देश्य था “Blitz India” यानी भारत के टुकड़े करना।
  • पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने इस उद्देश्य के लिए दो प्रमुख आतंकी संगठनों को खड़ा किया: लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद
  • इन संगठनों को विशेष रूप से कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में आतंक फैलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इन्हें पूर्ण रूप से प्रशिक्षण, हथियार और वित्तीय मदद दी गई।

आतंकवाद को धार्मिक जामा पहनाना

  • इन संगठनों की विचारधारा को धार्मिक वैधता प्रदान करने की कोशिश की गई। इसके लिए एक नारा दिया गया; “Terrorism is a duty and assassination is Sunnah”
    यहाँ ‘सुन्ना’ का अर्थ है पैगंबर का मार्ग, जिससे आतंक को एक पवित्र कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।

अफगानिस्तान और वैश्विक संदर्भ

  • उसी समय (1980 के दशक में), अफगानिस्तान में सोवियत संघ की घुसपैठ हुई, जिसे रोकने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार के रूप में चुना।
    अमेरिकी गुप्तचर संस्था CIA ने भी पाकिस्तान के सहयोग से दो कट्टरपंथी संगठनों को खड़ा किया: अलकायदा और तालिबान
  • इस प्रकार अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों ही कट्टर इस्लामी आतंकवाद के अड्डे बन गए, जिनका असर भारत पर भी पड़ा।

आतंकवाद के लक्षित उद्देश्य

  • इन संगठनों का मकसद केवल क्षेत्रीय हिंसा नहीं, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रतीकों पर हमला करना है।

मार्च 2001: अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की मूर्तियों को ध्वस्त किया गया और सांस्कृतिक विरासत पर हमला।

  • सितंबर 2001: अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हमले और  वैश्विक अर्थव्यवस्था और सत्ता के प्रतीक पर हमला।
  • दिसंबर 2001: भारतीय संसद पर हमला और लोकतंत्र के प्रतीक पर हमला।
  • नवंबर 2008 (26/11): मुंबई में आतंकी हमला और भारत की आर्थिक राजधानी को लक्ष्य बनाकर अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने की कोशिश।

भविष्य में ठोस रणनीति की ज़रूरत

  • भारत ने अब तक आतंकवादी हमलों का जवाब अक्सर तुरंत और भावनाओं के आधार पर दिया है।
    हमले के बाद निंदा करना और थोड़ी-बहुत जवाबी कार्रवाई करना ज़रूरी तो है, लेकिन इससे पाकिस्तान की रणनीति में कोई बदलाव नहीं आया।
  • अब ज़रूरत है एक मजबूत, लंबी अवधि की रणनीति की, जिसे सिर्फ सरकारें नहीं, बल्कि पूरे देश की राजनीतिक पार्टियाँ मिलकर अपनाएं।
  • एक पुरानी रणनीति है; डिटरेंस थ्योरी, यानी दुश्मन को इस डर से रोकना कि अगर उसने हमला किया, तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। इसमें सिर्फ धमकी नहीं, बल्कि सच में ऐसा सिस्टम बनाना होता है जिससे दुश्मन को लगातार नुक़सान हो।

भारत को अब:

  • पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करना होगा,
  • पानी जैसे साझा संसाधनों पर फिर से सोचने की ज़रूरत है,
  • और पाकिस्तान के अंदर चल रहे आतंकी संगठनों को गुप्त तरीकों से कमजोर करना होगा।

ये कोई खतरनाक कदम नहीं, बल्कि वो ज़रूरी रणनीतियाँ हैं जो बाकी देश पहले से इस्तेमाल कर रहे हैं।

निष्कर्ष

पहल्गाम में हुआ आतंकी हमला न केवल निर्दोष पर्यटकों पर कायराना वार था, बल्कि यह भारत की एकजुटता, उसकी विकासशील छवि, और वैश्विक कूटनीतिक प्रगति के विरुद्ध एक गहरा षड्यंत्र था। परन्तु आज का भारत न तो 1990 का भारत है और न ही वह अब केवल निंदा करके चुप बैठने वाला राष्ट्र है। लेकिन फिर भी, मात्र प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक सक्रियता की आवश्यकता है। अब यह आवश्यक हो गया है कि भारत:

  1. कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करे,
  2. सुरक्षा प्रणाली में डिजिटल और तकनीकी सुधार करे,
  3. आंतरिक सामाजिक समरसता को बनाकर रखे, जिससे कश्मीरी जनता को भी राष्ट्रनिर्माण में सहभागी बनाया जा सके,
  4. जल और वाणिज्यिक संधियों पर पुनर्विचार कर दबाव की नीति अपनाए,
  5. और आतंकी ढाँचों को लक्षित करने वाली गुप्त रणनीतियाँ अपनाए।

भारत को यह समझना होगा कि आतंकवाद एक युद्ध नहीं, बल्कि लंबी चलने वाली ‘विचारधारा आधारित लड़ाई’ है, जिसमें सिर्फ सेना नहीं, बल्कि समाज, शासन, और कूटनीति सभी की साझेदारी जरूरी है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कश्मीरी जनता को भरोसे और विकास के मार्ग से जोड़ना, न केवल भारत की एकता को मज़बूत करेगा, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ी नैतिक जीत भी सिद्ध होगी।

 

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