पुस्तक “Why the Constitution Matters” भारत के संविधान की समकालीन प्रासंगिकता, सामाजिक-राजनीतिक महत्व और न्यायिक विवेक की व्यापक पड़ताल प्रस्तुत करती है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने लगभग पच्चीस वर्षों के न्यायिक अनुभव और संवैधानिक विमर्श के आधार पर भारतीय संविधान के मूल्यों, सिद्धांतों और चुनौतियों का विश्लेषण किया है। यह पुस्तक केवल कानूनी विशेषज्ञों के लिए नहीं, बल्कि हर विचारशील नागरिक, छात्र, शिक्षाविद् और लोकतंत्र के प्रहरी के लिए आवश्यक है क्योंकि इसमें संविधान की भूमिका को ‘सशक्त लोकतंत्र’, ‘न्याय और समानता’ तथा ‘नागरिक अधिकारों की रक्षा’ के केन्द्रीय बिंदु के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ अपने अनुभवों के आधार पर बताते हैं कि संविधान कोई मात्र कानूनी दस्तावेज़ नहीं है, यह जीवन्त मार्गदर्शक है जो समाज और राज्य को नैतिक दिशा देने का कार्य करता है.पुस्तक की शुरुआत समाज-सुधारकों, संविधान सभा और स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि के विश्लेषण से होती है, जिसमें डॉ. अंबेडकर, गांधी, नेहरू तथा अन्य विविध समुदायों द्वारा संविधान निर्माण की बहस, उसकी बहुलता और समावेशिता के बिंदुओं को उजागर किया गया है।
“We the People” की भावना पुस्तक के आरंभिक अध्यायों में बार-बार दोहराई जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संविधान केवल सत्ता या सरकार के लिए नहीं बल्कि आम जनता के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बना है। लेखक ने संविधान में निहित मौलिक अधिकारों – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता, धर्म की आज़ादी, निजता जैसे विषयों को कई ऐतिहासिक केसों की मदद से स्पष्ट किया है। विशेष रूप से Puttaswamy (Right to Privacy) केस, Navtej Singh Johar (LGBTQ अधिकार), Sabarimala केस (लैंगिक समानता) जैसे निर्णयों में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की संवैधानिक समझ और प्रगतिशील दृष्टि का प्रभाव देखा जाता है।
इनमें उन्होंने असहमति, लोकतांत्रिक बहस और अल्पसंख्यक अधिकारों को भी प्रमुखता दी है.पुस्तक के कई अध्यायों में संविधान की व्याख्या और न्यायिक स्वतंत्रता का महत्व बताया गया है। इसमें न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पढ़ाई, समाज और अदालत के रिश्ते, नागरिक हिस्सेदारी व उत्तरदायित्व पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। न्यायिक स्वतंत्रता, संविधान की व्याख्या, अदालत का संवाद, dissent अर्थात असहमति का अधिकार – सभी को उदाहरण और केसों के माध्यम से समझाया गया है।
Aadhaar, Habeas Corpus, Article 370, Electoral Bond जैसे मुद्दों पर संविधान के सिद्धांत किस प्रकार सामाजिक, क्षेत्रीय और राजनीतिक हितों की रक्षा करते हैं, पुस्तक में इसका स्पष्ट साक्ष्य मिलता है। अदालत ने हमेशा संविधान के ‘silent provisions’ यानी उन जगहों पर विवेकपूर्ण व्याख्या की है जहां संविधान ने प्रत्यक्ष निर्देश नहीं दिया, और इससे लोकतंत्र, विविधता तथा सामाजिक न्याय को सदा मजबूती मिली है.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की यह कृति सामाजिक-आर्थिक बदलाव, अल्पसंख्यक और हाशिए के वर्गों की चिंता को constitution के माध्यम से जोड़ती है। लेखन में सामाजिक विविधता, लैंगिक सहिष्णुता व आधुनिकता की संवैधानिक भूमिका का विश्लेषण है। तकनीकी विकास, डेटा सुरक्षा, पर्यावरण, डिजिटल न्याय प्रणाली आदि समकालीन विषयों पर भी पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है।
यहां संविधान को एक ऐसे जीवंत दस्तावेज़ के रूप में रेखांकित किया गया है जिसमें समय के साथ बदलाव की ताकत और समाज की जरूरतों के साथ परस्पर तालमेल जोड़ने की क्षमता है। लेखक ने विविधता, बहुलता, समाज के सबसे कमजोर तबके की सुरक्षा, और नागरिक अधिकारों को संवैधानिकता के केंद्र में रखा है.पुस्तक के विशिष्ट उदाहरणों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और न्यायिक सक्रियता का उल्लेख है।
Right to Privacy केस में संविधान की धारा 21 के क्षेत्रीय विस्तार को समझाया गया है। LGBTQ अधिकारों की पुष्टि करने वाले फैसले में संविधान की आधुनिकता और प्रगतिशीलता को उजागर किया गया है। Sabarimala केस में धार्मिक आस्था बनाम लैंगिक समानता के सवाल का संवैधानिक समाधान प्रस्तुत किया गया है। साथ ही Aadhaar पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के dissenting judgment ने डेटा संरक्षण और नागरिक अधिकारों की रक्षा को दोहराया।
इन सभी केसों के माध्यम से पुस्तक यह बताती है कि संविधान जीवन के हर पहलू में नागरिक अधिकारों की रक्षा, सामाजिक न्याय और समानता का अनुपालन सुनिश्चित करता है.छात्रों के लिए यह पुस्तक विशेष उपयोगी है क्योंकि इसमें जटिल कानूनी सिद्धांतों को बुझाने वाली भाषा में प्रस्तुत किया गया है, साथ ही केस स्टडी, उदाहरण और तर्कयुक्त विश्लेषण, UPSC, राज्य सेवा, कानून, राजनीति विज्ञान जैसे सभी परीक्षाओं में अनुसंधान के लिए आदर्श सामग्री उपलब्ध कराती है। संविधान को नागरिक सहभागिता, जागरूकता व लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व से जोड़ना पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है।
विद्यार्थी इस पुस्तक की सहायता से मौलिक अधिकार, न्यायिक कार्यवाही, लोकतंत्र की जटिलताएँ और सामाजिक विविधता को समझ सकते हैं, जिससे उनके तर्कशीलता, विश्लेषण और उत्तर लेखन कौशल में भी वृद्धि होगी.पुस्तक समाज के हर वर्ग के लिए जरूरी है क्योंकि इससे संविधान का सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक महत्व समझ आता है। लेखक ने लोकतंत्र, न्याय, समानता, आज़ादी की अवधारणाओं को नयी पीढ़ी के लिए सुलभ बना दिया है, जिससे संविधान की रक्षा, सुधार और बदलाव की जरूरत को पाठक आत्मसात कर सके। “Why the Constitution Matters” वास्तव में संविधान की व्याख्या और सामाजिक दिशा का जीवंत ग्रंथ है, जिसमें न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ का अनुभव, दृष्टि और संवैधानिक चेतना पूरी तरह समाहित है।
पुस्तक में वर्णित प्रमुख केस:
- सबसे पहला और महत्वपूर्ण केस है Right to Privacy को लेकर Puttaswamy फैसला, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। इस केस का उपयोग पुस्तक में आधुनिक समय में जीवन की गरिमा और निजता के अधिकार को समझाने के लिए किया गया है। यह मामला दर्शाता है कि संविधान व्यक्तित्व और स्वतंत्रता की रक्षा को सर्वोपरि मानता है और राज्य की दखलअंदाजी को सीमित करता है। इसके माध्यम से लेखक ने संवैधानिक मूल्यों की स्थिरता और न्यायपालिका की रक्षक भूमिका पर बल दिया है।
- दूसरा महत्वपूर्ण केस Navtej Singh Johar vs Union of India है, जिसमें समलैंगिकता को अपराध से मुक्त किया गया। इस फैसले द्वारा संविधान में समानता और मानवाधिकारों के प्रति समर्पित दृष्टिकोण को स्थापित किया गया। पुस्तक में इस केस का प्रयोग सामाजिक न्याय, समानता और बहुलता को समझाने के लिए हुआ है, जो संविधान की जीवंतता और उसमें समावेशी सोच को दर्शाता है।
- Sabarimala मंदिर मामला पुस्तक में लैंगिक समानता व धार्मिक आस्था के बीच संवैधानिक दृष्टिकोण को समझाने के लिए उद्धृत है। यह केस भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों और धार्मिक प्रथाओं के लोकतांत्रिक संश्लेषण का एक संवेदनशील उदाहरण पेश करता है। इसे संविधान की लचीली संरचना और न्यायपालिका के संतुलनकारी फैसले के रूप में दर्शाया गया है।
- Electoral Bond Scheme और अनुच्छेद 370 जैसे मामलों का प्रयोग संविधान के संघीय स्वरूप, लोकतांत्रिक प्रथाओं, और राजनीतिक स्वायत्तता के मुद्दों को व्याख्यायित करने के लिए किया गया है। इन केसों ने यह दर्शाया कि संविधान किस प्रकार विभिन्न राजनीतिक हितों और सामाजिक चरित्रों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
- अदालत के dissenting judgments, जैसे Aadhaar मामले में चंद्रचूड़ का मत भी पुस्तक में प्रमुखता से उद्धृत है। यह dissent नागरिक अधिकारों की रक्षा, डेटा सुरक्षा और लोकतांत्रिक असहमति की गरिमा को उजागर करता है। इस dissent के जरिए संविधान में असहमति और विवाद की सहिष्णुता को भी महत्व दिया गया है।