सूहास पलशीकर भारतीय राजनीति के एक गहरे अध्येता और विश्लेषक हैं, जिन्होंने ‘पोस्ट-कांग्रेस युग’ में भारतीय चुनावी राजनीति और राज्यों की भूमिका को समझने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- वे पुणे विश्वविद्यालय (Savitribai Phule Pune University) में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर रह चुके हैं।
- इन्होने भारतीय राजनीति, विशेषकर चुनावी राजनीति (Electoral Politics) और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है।
- भारतीय संघीय राजनीति और राज्यों की पार्टी प्रतिस्पर्धा पर उनका गहरा शोध रहा है।
- वे लोकनीति (Lokniti-CSDS) नामक शोध नेटवर्क से जुड़े हैं, जो भारत में चुनावी अध्ययन और राजनीति पर सर्वे करता है।
- उनके लेख भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियों और पार्टी राजनीति की दिशा पर केंद्रित होते हैं।
पोस्ट–कांग्रेस युग
सूहास पलशीकर और उनके सह-शोधकर्ताओं (योगेंद्र यादव, के.सी. सूरी) ने बताया कि भारतीय राजनीति अब उस दौर में पहुँच गई है जहाँ:
- कांग्रेस–सिस्टम का अंत
- 1950 से 1989 तक कांग्रेस राजनीति की केंद्रीय धुरी थी।
- 1989 के बाद कांग्रेस का प्रभुत्व टूट गया और राजनीति बहुदलीय (multi-party) हो गई।
- यह बदलाव स्थायी है, इसलिए इसे ‘पोस्ट-कांग्रेस युग’ कहा जाता है।
- राज्यों में राजनीति का केंद्रीकरण
- पहले राष्ट्रीय राजनीति से राज्यों की राजनीति तय होती थी।
- अब उल्टा है, राज्यों की राजनीतिक गतिशीलता राष्ट्रीय राजनीति को तय करती है।
- यानी ‘केंद्र से राज्य’ नहीं बल्कि ‘राज्यों से केंद्र’ की दिशा में राजनीति बहने लगी है।
- पार्टी प्रतिस्पर्धा की विविधता
अलग-अलग राज्यों में अलग पैटर्न हैं:
- कहीं दो-दलीय प्रतिस्पर्धा (जैसे राजस्थान, पंजाब)।
- कहीं बहु-दलीय लेकिन स्थिर प्रतिस्पर्धा (जैसे बिहार, महाराष्ट्र)।
- कहीं बहु-दलीय और अस्थिर प्रतिस्पर्धा (जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड)।
यही विविधता भारतीय राजनीति की नई पहचान है।
- क्षेत्रीय दलों का महत्व
- क्षेत्रीय दल अब सिर्फ़ राज्य की राजनीति नहीं करते, बल्कि केंद्र की सरकार बनाने और गिराने में भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
- इसलिए भारतीय राजनीति अब ‘राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय’ की बजाय ‘संघीय बहुलता’ (federal plurality) बन चुकी है।
- नया राष्ट्रीय परिदृश्य
- कांग्रेस का स्थान अब भाजपा ने ले लिया है। लेकिन भाजपा भी अकेली सर्वशक्तिशाली नहीं है; कई राज्यों में उसे भी क्षेत्रीय दलों से समझौता करना पड़ता है।
- इसलिए पलशीकर मानते हैं कि ‘पोस्ट-कांग्रेस युग’ का मतलब है स्थायी बहुदलीय प्रतिस्पर्धा और राज्यों की निर्णायक भूमिका।
महत्वपूर्ण किताबें
- Indian Democracy (2017)
- Party Competition in Indian States: Electoral Politics in Post-Congress Polity (2014, Oxford University Press)
- Understanding Contemporary India: Critical Perspectives (2010, Pearson)
- Indian Democracy: Meanings and Practices (2007)
- Contextualising Secularism: The Indian Experience (2005)
- From Politics of Marginality to Politics of Hindutva (1990s–2000s)
- Democracy and Society in India
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