in ,

भारत की सामरिक स्वायत्तता: बहुध्रुवीय विश्व में भारत के समक्ष अवसर और चुनौतियां

India’s Strategic Autonomy in a Multipolar World

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में आज जिस शब्द ने सबसे अधिक महत्व अर्जित किया है, वह है सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)। यह केवल एक सैद्धांतिक अवधारणा नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति का केंद्रीय स्तंभ है। जैसे-जैसे वैश्विक व्यवस्था बहुध्रुवीय (multipolar) होती जा रही है और शक्ति-संतुलन बदल रहा है, भारत को अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए अत्यधिक सावधानी और कुशलता के साथ कदम उठाने पड़ रहे हैं।

भारत की सामरिक स्वायत्तता का अर्थ केवल तटस्थता (neutrality) नहीं है, बल्कि इसका अभिप्राय है, स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता, राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा, और किसी भी महाशक्ति के प्रभाव में आए बिना वैश्विक राजनीति में सक्रिय भागीदारी।

भारत की सामरिक स्थिति: स्वायत्तता या संरेखण?

भारत बहुध्रुवीय और अस्थिर विश्व व्यवस्था में अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने में गहराई से विश्वास करता है। हाल के वर्षों में भारत ने ‘डी-हाइफ़नेशन नीति’ (De-hyphenation Policy) अपनाई है, जिसका अर्थ है कि वह प्रत्येक देश से द्विपक्षीय संबंध स्थापित करता है, बिना इस दबाव में आए कि वे एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं।

  • भारत की विदेश नीति अब मुद्दों पर आधारित और गुटनिरपेक्ष है। यही कारण है कि भारत एक ही समय में BRICS, QUAD, SCO और IPEF जैसे मंचों में सक्रिय भूमिका निभा सकता है। इसके साथ ही, भारत स्वयं को ‘ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ’ (Global North & South) के बीच एक पुल (Bridge) के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है। यह नीति भारत को किसी विशेष गुट से जुड़ने के बजाय स्वतंत्र नेतृत्व की स्थिति प्रदान करती है।
  • भारत अपनी रक्षा अवसंरचना (Defence Infrastructure) के लिए बड़े पैमाने पर रूस पर निर्भर है, वहीं उसकी बढ़ती आर्थिक और तकनीकी आवश्यकताएँ पश्चिमी देशों के सहयोग से पूरी होती हैं। यही कारण है कि भारत दोनों शक्ति-गुटों के बीच समान दूरी और तटस्थता बनाए रखता है।
  • आलोचक भारत की इस नीति को ‘रणनीतिक अनिर्णय’ (Strategic Indecision) कहते हैं, जबकि समर्थक इसे ‘सुरक्षित संतुलन (Hedging Strategy)’ का नाम देते हैं।

सामरिक स्वायत्तता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत की सामरिक स्वायत्तता की जड़ें गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement – NAM) में मिलती हैं। शीतयुद्ध काल (1947–1991) में जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक टकराव चरम पर था, तब भारत ने किसी भी गुट में शामिल होने से इंकार किया।

  • 1955 का बांडुंग सम्मेलन (इंडोनेशिया) भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की दिशा में ऐतिहासिक कदम था।
  • नेहरू के पंचशील सिद्धांत – आपसी सम्मान, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता और शांति की नीति – भारत की विदेश नीति के आधार बने।

लेकिन शीतयुद्ध के बाद और विशेषकर 1991 की आर्थिक उदारीकरण नीति के बाद, भारत ने सामरिक स्वायत्तता को नए सिरे से परिभाषित किया। आज यह केवल गुटनिरपेक्षता का पर्याय नहीं रहा, बल्कि यह बहुध्रुवीय दुनिया में संतुलन साधने की कला बन चुका है।

बिखरती हुई वैश्विक व्यवस्था को समझना/Understanding the Fragmenting World Order

आज की दुनिया ‘असमान बहुध्रुवीयता (Asymmetrical Multipolarity)’ की ओर बढ़ रही है। इसका अर्थ है कि शक्ति का वितरण संतुलित (Balanced) नहीं है, बल्कि असमान है। इसका नतीजा यह है कि न तो कोई एक महाशक्ति है और न ही शक्ति का वितरण बराबर-बराबर है।

  • अमेरिका का वर्चस्व अब स्पष्ट रूप से घट रहा है।
  • लेकिन उसकी जगह किसी एक नई महाशक्ति ने नहीं ली है।
  • इस कारण से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बिखरी हुई (Fragmented) और प्रतिस्पर्धी (Competitive) बन गई है।

इसके साथ ही, मध्यम शक्ति वाले देशों (Middle Powers) जैसे तुर्की, भारत, ब्राज़ील और इंडोनेशिया का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। ये देश किसी एक ध्रुव पर पूरी तरह निर्भर नहीं हैं, बल्कि अपने क्षेत्रीय और वैश्विक हितों को आगे बढ़ाने में अधिक सक्रिय हो रहे हैं। इससे वैश्विक व्यवस्था अधिक लचीली (Fluid) और बहुवचनवादी (Pluralistic) बनती जा रही है।

आज BRICS, QUAD, SCO और AUKUS जैसे मंच वैश्विक प्रशासन (Global Governance) की अलग-अलग दृष्टि प्रस्तुत कर रहे हैं।

  • ये संगठन आपस में सहयोग की बजाय कई बार समानांतर ढाँचे (Parallel Structures) तैयार करते हैं।
  • इस कारण एकीकृत वैश्विक नेतृत्व (Unified Global Leadership) का अभाव दिखाई देता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध (2022) या हालिया ईरान-इज़राइल संघर्ष इस सच्चाई को उजागर करते हैं कि आज की दुनिया में कोई स्थिर वैश्विक सुरक्षा ढाँचा (Stable Global Security Framework) मौजूद नहीं है।

स्विंग पावर के रूप में भारत

भारत को अक्सर एक ‘स्विंग पावर’ कहा जाता है।

  • इसका मतलब यह है कि भारत का रुख (Position) कई बार शक्ति संतुलन को झुका सकता है।
  • इससे भारत को रणनीतिक लाभ (Strategic Leverage) मिलता है, लेकिन इसके साथ-साथ उस पर दबाव भी बढ़ जाता है कि वह किसी एक पक्ष का समर्थन करे।

आज की बदलती व्यवस्था केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी बड़े परिवर्तन हो रहे हैं।

  1. प्रतिबंधों (Sanctions) और निर्यात नियंत्रण (Export Controls) का इस्तेमाल विदेश नीति के औज़ार (Tools of Foreign Policy) के रूप में बढ़ रहा है।
  2. महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों (Critical Technologies) — जैसे सेमीकंडक्टर्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI Tools), ऊर्जा आपूर्ति — पर नियंत्रण कड़ा हो रहा है।
  3. टैरिफ़ और गैरटैरिफ़ अवरोध (Tariffs & Non-Tariff Barriers) वैश्विक व्यापार पर असर डाल रहे हैं।
  4. वैश्विक मुक्त व्यापार (Free Trade) की जगह अब आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) और सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) को प्राथमिकता दी जा रही है।

इसके चलते नई रणनीतियाँ उभर रही हैं:

  • फ्रेंडशोरिंग (Friendshoring): भरोसेमंद देशों में उत्पादन शिफ्ट करना।
  • नियरशोरिंग (Nearshoring): उत्पादन को अपने नज़दीकी क्षेत्रों में स्थानांतरित करना।
  • रीशोरिंग (Reshoring): उत्पादन को वापस अपने ही देश में लाना।

इस पृष्ठभूमि में भारत ने स्वयं को एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र (Alternative Manufacturing Hub) के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया है।

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और भारत की चुनौतियाँ

आज की वैश्विक व्यवस्था में कई नए आयाम जुड़ चुके हैं:

  1. अमेरिका का घटता वर्चस्व : शीतयुद्ध के बाद अमेरिका अकेला महाशक्ति था, परंतु अब चीन और रूस जैसी शक्तियाँ चुनौती पेश कर रही हैं।
  2. चीन का उदय : चीन आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ी विनिर्माण शक्ति है। उसका बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) एशिया, अफ्रीका और यूरोप में नए शक्ति-संतुलन बना रहा है।
  3. रूस की आक्रामक विदेश नीति : यूक्रेन युद्ध (2022) के बाद रूस और पश्चिमी देशों के बीच टकराव गहरा गया है।
  4. नए वैश्विक मंच : G20, BRICS, क्वाड (Quad), शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंच बहुध्रुवीयता को और गहरा कर रहे हैं।

भारतअमेरिका संबंध

भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं।

  • 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 191 अरब डॉलर तक पहुँच गया, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक संबंध है।
  • रक्षा क्षेत्र में 2008 का सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट और 2022 का iCET (Initiative on Critical and Emerging Technologies) भारत-अमेरिका सहयोग की नींव हैं।
  • अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है।

फिर भी भारत अमेरिका की नीति से पूर्णतः प्रभावित नहीं है। उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखा।

भारतरूस संबंध

भारत और रूस का संबंध ऐतिहासिक रूप से गहरा है।

  • रक्षा क्षेत्र में 60% से अधिक हथियार रूस से आते हैं।
  • रूस, भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है।
  • 2022 में भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद में 700% की वृद्धि की।

हालांकि, यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने भारत को संतुलन साधने की चुनौती दी।

भारतचीन संबंध

भारत-चीन संबंध सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों से भरे हैं।

  • 2022 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 135 अरब डॉलर तक पहुँचा, लेकिन यह व्यापार असंतुलित है (भारत का आयात 101 अरब डॉलर, निर्यात केवल 34 अरब डॉलर)।
  • सीमा विवाद (गलवान घाटी, 2020) ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ा दिया है।
  • भारत क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति के माध्यम से चीन की आक्रामक नीतियों का संतुलन साधने का प्रयास कर रहा है।

बहुध्रुवीय मंचों पर भारत की भूमिका

  1. BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका)
    • BRICS देशों का संयुक्त GDP दुनिया का 31.5% है (2023)।
    • भारत ने BRICS बैंक (New Development Bank) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. G20
    • 2023 में भारत ने G20 की अध्यक्षता की और ‘One Earth, One Family, One Future’ का नारा दिया।
    • इसमें डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस जैसे मुद्दों पर भारत ने नेतृत्व किया।
  3. क्वाड (Quad) – अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का समूह, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास करता है।

वैश्विक दक्षिण में भारत की शक्तिप्रक्षेपण रणनीति

लंबे समय से भारत स्वयं को वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ के रूप में प्रस्तुत करता आया है। वैश्विक दक्षिण उन देशों का समूह है जो विकासशील या उभरती अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जैसे – एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश। भारत का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था तभी न्यायपूर्ण और टिकाऊ होगी, जब वैश्विक शासन (Global Governance) में समानता और समावेशिता (Equity & Inclusivity) सुनिश्चित की जाएगी।

भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व व्यापार संगठन (WTO), और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसे IMF और वर्ल्ड बैंक में संरचनात्मक सुधार (Structural Reforms) किए जाएँ।

  • भारत का तर्क है कि मौजूदा ढाँचे अभी भी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की शक्ति-संतुलन की सोच पर आधारित हैं।
  • परंतु आज की बहुध्रुवीय दुनिया में विकासशील देशों की आवाज़ को भी समान महत्व मिलना चाहिए।

भारत ने अपनी सॉफ्ट पावर को वैश्विक दक्षिण में कूटनीतिक औज़ार (Diplomatic Tool) के रूप में इस्तेमाल किया है।

  • विकास सहायता (Development Aid): अफ्रीकी और एशियाई देशों में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाओं में निवेश।
  • क्षमता निर्माण (Capacity Building): तकनीकी प्रशिक्षण, छात्रवृत्ति और मानव संसाधन विकास कार्यक्रम।
  • वैक्सीन कूटनीति (Vaccine Diplomacy): कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने ‘वैक्सीन मित्र (Vaccine Maitri)’ पहल के तहत 100 से अधिक देशों को टीके उपलब्ध कराए।
  • डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure – DPI): आधार, UPI और कोविन जैसे डिजिटल मॉडल अन्य देशों के लिए साझा किए जा रहे हैं।

भारत ने विशेष रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रिश्तों को मजबूत करने पर ध्यान दिया है।

  • अफ्रीकी देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाओं को बढ़ावा।
  • हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सागर नीति (SAGAR Doctrine – Security and Growth for All in the Region) के तहत सुरक्षा और विकास साझेदारी।
  • लैटिन अमेरिका के देशों के साथ ऊर्जा और व्यापार सहयोग।

भारत ने 2023 में अपनी G20 अध्यक्षता का उपयोग वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को वैश्विक मंच तक पहुँचाने में किया।

  • इसका सबसे बड़ा परिणाम था अफ्रीकी संघ (African Union) को स्थायी सदस्य (Permanent Member) के रूप में G20 में शामिल करना।
  • इससे भारत की छवि केवल एक क्षेत्रीय शक्ति (Regional Power) के रूप में नहीं, बल्कि एक सभ्यतागत राष्ट्र (Civilizational State) और विकास भागीदार (Development Partner) के रूप में भी स्थापित हुई।

भारत का लक्ष्य केवल एक क्षेत्रीय शक्ति बनना नहीं है, बल्कि वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करना है।

  • यह नेतृत्व साझेदारी (Partnership) और समानता (Equity) पर आधारित है, न कि वर्चस्व (Hegemony) पर।
  • भारत चाहता है कि वह ‘विकासशील देशों की आवाज़’ के रूप में उभरे और आने वाले दशकों में उन्हें विकास, तकनीक और वैश्विक मंचों पर प्रतिनिधित्व दिलाने का मार्गदर्शक बने।

भारत की सामरिक स्वायत्तता के आर्थिक आयाम

  • FDI : 2022-23 में भारत में 71 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया।
  • ऊर्जा सुरक्षा : भारत अपनी 85% तेल की जरूरत आयात से पूरी करता है। इसलिए मध्य एशिया, खाड़ी देशों और रूस के साथ ऊर्जा सहयोग आवश्यक है।
  • प्रौद्योगिकी और रक्षा : अमेरिका, फ्रांस और रूस से अत्याधुनिक रक्षा तकनीक प्राप्त करते हुए भारत आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे बढ़ा रहा है।

भारत की चुनौतियाँ

  1. सीमा विवाद : चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ सीमा तनाव।
  2. ऊर्जा निर्भरता : तेल और गैस के आयात पर भारी निर्भरता।
  3. भूराजनीतिक दबाव : अमेरिका और रूस दोनों के बीच संतुलन साधने की कठिनाई।
  4. आंतरिक चुनौतियाँ : गरीबी, बेरोजगारी और तकनीकी पिछड़ापन।

भविष्य की दिशा

भारत की सामरिक स्वायत्तता को मजबूत बनाने के लिए कुछ ठोस कदम आवश्यक हैं:

  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (Defence Indigenisation) को बढ़ाना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाना ताकि ऊर्जा निर्भरता कम हो।
  • डिजिटल कूटनीति और AI तकनीक का इस्तेमाल।
  • अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में नए साझेदार बनाना।

निष्कर्ष

भारत की सामरिक स्वायत्तता केवल विदेश नीति का एक नारा नहीं, बल्कि यह 21वीं सदी में भारत की सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और वैश्विक नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है। बहुध्रुवीय दुनिया में भारत को न तो किसी गुट का हिस्सा बनना है और न ही किसी महाशक्ति की छाया में रहना है।

भारत का लक्ष्य है; ‘विश्वगुरु’ के रूप में संतुलित, स्वतंत्र और जिम्मेदार नेतृत्व प्रदान करना।

(Source: The Hindu)

What do you think?

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का योगदान एवं दर्शन

रोनाल्ड एल. वॉट्स का संघवाद संबंधी दृष्टिकोण