in ,

बांग्लादेश-पाकिस्तान गठजोड़ का नया दौर और भारत

हाल ही में बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में तेजी से सुधार और नए सहयोग की शुरुआत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव ला दिया है। बांग्लादेश में पिछले साल हुए राजनीतिक परिवर्तन के बाद पाकिस्तान ने अपनी विदेश नीति में नये सिरे से ढाका के साथ संबंधों को पुनर्जीवित करने की ठानी है। इस नई साझेदारी का व्यापक प्रभाव न केवल दोनों देशों की द्विपक्षीय गतिशीलताओं पर पड़ रहा है, बल्कि भारत के लिए भी यह एक चुनौती और चिंता का विषय बन गया है। इस लेख में बांग्लादेश-पाकिस्तान के नये गठजोड़ के अनेक आयामों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें शिक्षा, आर्थिक सहयोग, सुरक्षा, कूटनीति, और क्षेत्रीय स्थिरता के पहलू शामिल हैं।

सबसे पहले, शिक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग के क्षेत्र में हुई नई प्रगति उल्लेखनीय है। सितंबर 2025 तक दोनों देशों ने ‘पाकिस्तान-बांग्लादेश नॉलेज कॉरिडोर’ स्थापित किया है, जिससे बांग्लादेश के 500 से अधिक छात्रों को पाकिस्तान में उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान किए जाएंगे, जिनमें विशेष रूप से मेडिकल क्षेत्र के छात्र शामिल हैं। इसके साथ ही, प्रशासनिक और सरकारी अधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु सांझा कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। यह पहल दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक समझ को बढ़ाने के साथ-साथ दीर्घकालिक मित्रता का प्रतीक है। इसके अलावा राजनयिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीजा छूट, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले छह समझौते भी हुए हैं।

आर्थिक क्षेत्र में दोनों देशों ने 1971 के बाद पहली बार प्रत्यक्ष व्यापार शुरू किया है। इसमें बांग्लादेश ने पाकिस्तान से चावल का आयात शुरू किया, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस व्यापार से बांग्लादेश को कम कीमत पर जरूरी खाद्य सामग्री मिलेगी जबकि पाकिस्तान को अपने आर्थिक संकट के बीच निर्यात का नया मार्ग मिलेगा। हालांकि, भारत के लिए यह एक चुनौती के रूप में सामने आता है क्योंकि बांग्लादेश पहले एक बड़ा निर्यातक और व्यापारिक साझेदार भारत था। अब, पाकिस्तान के साथ बढ़ रहे आर्थिक रिश्ते भारत की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा और आर्थिक दबदबे को प्रभावित कर सकते हैं। यह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) में भी भारत के प्रभुत्व को कमजोर कर सकता है, जिससे चीन के प्रभाव को अवसर मिलेगा।

सुरक्षा और कूटनीतिक दृष्टिकोण से यह गठजोड़ भारत के लिए चिंता की बात है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच बढ़ती सैन्य तथा खुफिया सहयोग न केवल भारत की सीमावर्ती सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करता है, बल्कि दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक अस्थिरता का कारण भी बन सकता है। साथ ही, रिपोर्टें हैं कि पाकिस्तान की आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अब बांग्लादेश में सक्रिय हो रहा है और अपनी भर्ती प्रक्रिया शुरू कर चुका है। यह भारत के चार हजार किलोमीटर से अधिक सीमा साझा करने वाले बांग्लादेश के लिए सुरक्षा चुनौती को और बढ़ाता है। बांग्लादेश के खुफिया तंत्र की इस खतरे की पहचान न होना एक चिंताकारी स्थिति है।

कूटनीतिक रूप से, पाकिस्तान के विदेश मंत्री की 13 साल बाद बांग्लादेश की यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत का संकेत दिया है। इस दौरे के दौरान दोनों देशों ने कई उच्चस्तरीय बातचीत की और क्षेत्रीय सहयोग व स्थिरता के महत्व को स्वीकार किया। हालांकि, इतिहास की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों में अभी भी पुरानी गलतफहमियां और विवादित मसले मौजूद हैं, जिनका समाधान समय की आवश्यकता है। भारत के नजरिए से यह गठजोड़ उसकी ‘पड़ोसी नीति’ और क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति के लिए एक नए प्रकार की चुनौती उत्पन्न करता है।

भारत-बांग्लादेश के पारंपरिक गहरे संबंधों पर यह नया विरोधाभासी गठजोड़ असर डाल सकता है। बांग्लादेश की 94 प्रतिशत सीमा भारत से मिलती है और वह कई वस्तुओं और खाद्यान्नों के लिए भारत पर निर्भर है। अगर बांग्लादेश- पाकिस्तान सहयोग बढ़ता है, तो यह भारत के आर्थिक तथा सामरिक हितों के लिए नकारात्मक हो सकता है। इसके अलावा, भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत व्यापारिक संबंध हैं जिन्हें यह गठजोड़ प्रभावित कर सकता है। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में भारत के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता, और इस नए गठजोड़ के चलते बांग्लादेश को चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है क्योंकि पाकिस्तानी वस्तुएं भारत की तुलना में महंगी तथा अस्थिरता के कारण जोखिम भरी हो सकती हैं।

हालांकि, यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश खुद एक ‘इंडिया-लॉक्ड’ राष्ट्र है, जहां क्षेत्रीय रणनीति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत की भूमिका अत्यंत अहम है। इसलिए, यह पूर्णतः संभव नहीं कि बांग्लादेश भारत से संबंधों को पूरी तरह समाप्त कर पाकिस्तान के साथ पूरी तरह जुड़ जाए। बांग्लादेश के पास भारत के सहयोग के बिना अपनी आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा जरूरतों को पूरा करना कठिन होगा। इसलिए, इस क्षेत्रीय गठजोड़ की जटिलताओं को समझना और भारत के लिए नतीजों पर सावधानीपूर्वक नजर रखना आवश्यक है।

अवरुद्ध राजनीतिक गतिरोध और पाकिस्तान बांग्लादेश के धार्मिक और सामाजिक आयामों में भी इस गठजोड़ के प्रभाव देखे जा सकते हैं। पाकिस्तान की ओर से बांग्लादेशी छात्रों को स्कॉलरशिप देने की योजना, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के समझौते, और प्रशासनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने दोनों देशों के नागरिकों के बीच भावनात्मक संबंधों को पुनः स्थिर करने की कोशिश की है। यह कदम क़िस्म के तौर पर दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शांति और सहयोग की संभावनाओं को बढ़ावा देने वाला हो सकता है यदि इसे किसी चरमपंथी एजेंडा से अलग रखा गया। हालांकि संगठनात्मक और राजनीतिक बाधाएं अभी भी इसे रोक सकती हैं।

इस गठजोड़ के परिप्रेक्ष्य में भारत के लिए जरूरी है कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को और भी मजबूत करे। क्षेत्रीय सहयोग, जैसे BIMSTEC और SAARC के प्रमाणीकरण और विकास पर ध्यान बढ़ाए। इसके साथ ही भारत को बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती विवादों और आतंकवादियों की गतिविधियों पर सतर्क रहना होगा। गुप्तचरी तंत्र को दुरुस्त करना, सीमाओं की सुरक्षा सख्त करना, और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए रणनीतिक समझौतों में भागीदारी बढ़ाना आवश्यक होगा।

निष्कर्षतः, बांग्लादेश-पाकिस्तान के बीच यह नया गठजोड़ क्षेत्रीय राजनीति में परिवर्तन की ओर संकेत करता है जिसमें भारत को एक सतत और समग्र रणनीति अपनानी होगी। यह गठजोड़ न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करता है, बल्कि दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन, आर्थिक साझेदारी, और सुरक्षा संरचनाओं के संदर्भ में भी भारत के लिए महत्वपूर्ण विषय है। भारत को इस स्थिति का संपूर्ण और संवेदनशील विश्लेषण कर सावधानीपूर्वक कूटनीतिक गतिरोधों को संभालना होगा ताकि क्षेत्र में स्थिरता, समृद्धि और सहयोग बनी रहे।


Discover more from Politics by RK: Ultimate Polity Guide for UPSC and Civil Services

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

What do you think?

युरेशियन आर्थिक संघ एवं भारत

एंटोनियो ग्राम्शी और प्रिजन नोटबुक्स: मुख्य विचार