बुज़ान ने कहा कि सुरक्षा केवल हथियारों या सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि अस्तित्व का प्रश्न है व्यक्ति, समाज और राज्य तीनों स्तरों परउनकी यह पुस्तक सुरक्षा अध्ययन के क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी ग्रंथ (Paradigm Shift) के रूप में मानी जाती है, जिसने सैन्य-केंद्रित सुरक्षा से मानव-केंद्रित सुरक्षा की ओर दिशा मोड़ी।
इन सभी रचनाओं में केंद्रीय विचार यही है सुरक्षा एक सामाजिक और राजनीतिक निर्माण है, न कि केवल सैन्य प्रतिक्रिया।
सुरक्षा अध्ययन की पारंपरिक सीमाएँ: बुज़ान से पहले सुरक्षा को परिभाषित करने का कार्य यथार्थवाद (Realism) और नव-यथार्थवाद (Neorealism) के दायरे में था।
इन परंपराओं के अनुसार
इस दृष्टिकोण की सीमाएँ
बुज़ान ने इन सीमाओं को चुनौती दी और कहा कि सुरक्षा को मानव अस्तित्व, सामाजिक पहचान और वैश्विक आपसी निर्भरता के संदर्भ में समझना होगा।
पुस्तक का केंद्रीय तर्क: सुरक्षा एक बहु-स्तरीय अवधारणा
स्तर इकाई सुरक्षा का स्वरूप
मानव मानव अस्तित्व शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक भय
राज्य राष्ट्रीय संप्रभुता शासन, सीमाएँ, वैधता
अंतरराष्ट्रीय प्रणाली वैश्विक व्यवस्था शक्ति संतुलन, सहयोग, संस्थाएँ
इन तीनों स्तरों के बीच गहरी पारस्परिकता (Interdependence) है।उदाहरण के लिए, यदि राज्य असुरक्षित है तो व्यक्ति भी असुरक्षित होगा, और यदि समाज अस्थिर है तो राज्य की वैधता भी खतरे में पड़ेगी।
सुरक्षा का पुनर्परिभाषण: पाँच आयामी ढाँचा (Five Sectors of Security)
बुज़ान की सबसे बड़ी देन है सुरक्षा को पाँच परस्पर जुड़े आयामों में विभाजित करना
1. सैन्य सुरक्षा (Military Security): राज्य की भौगोलिक सीमाओं और संप्रभुता की रक्षा से संबंधित युद्ध, हथियारों की होड़, और सैन्य गठबंधनों का अध्ययन।
2. राजनीतिक सुरक्षा (Political Security): राज्य की वैधता, शासन-प्रणाली, और विचारधारात्मक स्थिरता। आंतरिक राजनीतिक संकट या वैचारिक असहमति राज्य की असुरक्षा बढ़ा सकती है।
3. आर्थिक सुरक्षा (Economic Security): संसाधनों, उत्पादन और वितरण की स्थिरता। आर्थिक निर्भरता और वैश्विक पूँजी प्रवाह सुरक्षा के नए आयाम बनते हैं।
4. सामाजिक सुरक्षा (Societal Security): पहचान, संस्कृति, धर्म और भाषा की रक्षा। किसी समुदाय की सांस्कृतिक असुरक्षा भी राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न कर सकती है।
5. पर्यावरणीय सुरक्षा (Environmental Security) पारिस्थितिक संतुलन, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा। आज की वैश्विक राजनीति में यह नया ‘Existential Threat’ बन चुका है।
इस ढाँचे के माध्यम से बुज़ान ने दिखाया कि सुरक्षा केवल युद्ध की तैयारी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थायित्व की भी खोज है।
‘Fear’ की अवधारणा: भय और असुरक्षा की मनोवैज्ञानिक राजनीति
बुज़ान के शीर्षक में प्रयुक्त शब्द Fear बहुत प्रतीकात्मक है। उनके अनुसार भय ही सुरक्षा विमर्श की जड़ है व्यक्ति, समाज और राज्य का भय।
यह भय दो प्रकार का होता है
1. बाह्य भय (External Fear): दूसरे राज्यों या शक्तियों से उत्पन्न खतरे।
2. आंतरिक भय (Internal Fear): वैधता संकट, सामाजिक विभाजन, शासन अस्थिरता।
राज्य इन दोनों प्रकार के भय के बीच संतुलन साधने की कोशिश करता है। यही कारण है कि बुज़ान के लिए सुरक्षा केवल सैन्य शक्ति का मामला नहीं, बल्कि राजनीतिक मनोविज्ञान (political psychology) का भी प्रश्न है।
सुरक्षा दुविधा (Security Dilemma) और संरचनात्मक असुरक्षा
बुज़ान ने क्लासिकल सुरक्षा दुविधा को नया अर्थ दिया। उन्होंने कहा कि जब कोई राज्य अपनी सुरक्षा के लिए सैन्य विस्तार करता है, तो उसका पड़ोसी उसे खतरा मानकर प्रतिक्रिया देता है परिणामस्वरूप भय और अविश्वास का चक्र जारी रहता है।
यह स्थिति केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं रहती यह राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों को भी प्रभावित करती है। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि सुरक्षा को केवल प्रतिस्पर्धा से नहीं, बल्कि संरचनात्मक संवाद (structural dialogue) और साझा विश्वास (mutual trust) से मजबूत किया जाना चाहिए।
कोपेनहेगन स्कूल और सामाजिक सुरक्षा का विचार
बैरी बुज़ान के बारे में
बैरी बुज़ान (Barry Buzan) ब्रिटिश विद्वान हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन में विशेष रूप से सुरक्षा अध्ययन (Security Studies) और Copenhagen School of Security की अवधारणाओं को विकसित किया। वे London School of Economics (LSE) और बाद में Copenhagen Peace Research Institute (COPRI) से जुड़े रहे।उनका प्रमुख योगदान यह था कि उन्होंने सुरक्षा की बहुआयामी (multidimensional) और बहु-स्तरीय (multilevel) संरचना प्रस्तुत की।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
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