संघवाद में केंद्र और राज्यों के बीच सत्ता का बंटवारा हमेशा चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में, कई मुद्दों ने इस बहस को और तेज कर दिया है। उत्तर और दक्षिण भारत के राज्यों के बीच जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटों का संतुलन एक बड़ा मुद्दा बन गया है। तमिलनाडु केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रहा है, जबकि केंद्र तमिलनाडु पर शिक्षा नीति को राजनीतिक मुद्दा बनाने का आरोप लगा रहा है। कुछ राज्य तेज़ी से विकसित हो रहे हैं, तो कुछ राज्यों की प्रगति धीमी है। ऐसे में, आर्थिक और प्रशासनिक फैसलों का संतुलन जरूरी है।
संघवाद क्या है?
संघवाद एक राजनीतिक सिद्धांत और शासन प्रणाली है जिसमें सत्ता का वितरण केंद्र और राज्यों (या अन्य घटक इकाइयों) के बीच संवैधानिक रूप से किया जाता है। यह प्रणाली स्वशासन (Self-Governance) और साझा शासन (Shared Governance) दोनों को जोड़ती है, जिससे विभिन्न राजनीतिक इकाइयों की स्वायत्तता बनी रहती है और एकता भी सुनिश्चित होती है। संघवाद में दो स्तरों की सरकार होती है; एक सामान्य (केंद्र) सरकार और दूसरी घटक (राज्य) सरकार। दोनों स्तरों की सरकारें संविधान के अनुसार कार्य करती हैं और उनके पास अपने-अपने क्षेत्र में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती है।
क्यों आवश्यक है संघवाद
आधुनिक युग में संघीय व्यवस्था बड़े और विविध देशों में लोकतंत्र को बनाए रखने और विभिन्न समुदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए आवश्यक है। संघवाद न केवल एक प्रशासनिक प्रणाली है, बल्कि यह एक राजनीतिक दर्शन भी है, जिसका उद्देश्य सत्ता के विकेंद्रीकरण के माध्यम से नागरिकों की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करना है।
प्रमुख तत्व
- संघवाद में केंद्र और राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से कुछ अधिकारों का प्रयोग करती हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में मिलकर काम करती हैं।
- कुछ शक्तियाँ केंद्र सरकार को दी जाती हैं (जैसे रक्षा और विदेश नीति), जबकि अन्य शक्तियाँ राज्य सरकारों के पास होती हैं (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य)।
- कुछ शक्तियाँ समवर्ती सूची में होती हैं, जिनका प्रयोग दोनों कर सकते हैं (जैसे कर लगाना)।
- संघीय व्यवस्था एक लिखित संविधान पर आधारित होती है, जो केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों और शक्तियों का स्पष्ट विभाजन करती है।
- संघीय व्यवस्था विविध समुदायों की पहचान और स्वायत्तता को बनाए रखते हुए पूरे देश की एकता को बढ़ावा देती है।
- संघवाद में सत्ता एक ही केंद्र में न होकर, विभिन्न स्तरों पर वितरित होती है, जैसे केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकार।
संघीय प्रणालियों के प्रकार
- होल्डिंग टूगेदर फेडरेशन (Holding Together Federation): यह संघीय व्यवस्था उस स्थिति में बनती है, जब एक बड़ा राष्ट्र अपनी क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने के लिए स्वयं को विभिन्न घटकों में विभाजित करता है। इस प्रणाली में सत्ता का विकेंद्रीकरण होता है, लेकिन अधिकांश शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास रहती हैं। इसमें संघ के घटक राज्यों की स्वायत्तता सीमित होती है। उदाहरण: भारत, स्पेन, बेल्जियम।
- कमिंग टूगेदर फेडरेशन (Coming Together Federation): इस व्यवस्था में कई स्वतंत्र या स्वायत्त राज्य एक-दूसरे के साथ मिलकर एक बड़ा संघ बनाते हैं। इसमें राज्यों को अधिक स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्राप्त होती है। इस प्रकार का संघीय ढांचा मुख्य रूप से रक्षा, व्यापार और आर्थिक लाभ के लिए गठित होता है। उदाहरण: संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड।
- असममित संघ (Asymmetrical Federation): इसमें सभी घटक इकाइयों को समान शक्तियाँ प्राप्त नहीं होती हैं। कुछ राज्यों या क्षेत्रों को विशेष सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, या राजनीतिक कारणों से अतिरिक्त अधिकार मिलते हैं। यह व्यवस्था प्रायः उन क्षेत्रों में लागू की जाती है, जहाँ विशिष्ट पहचान या संवेदनशीलता होती है। उदाहरण: कनाडा (क्यूबेक प्रांत), रूस (चेचन्या), इथियोपिया (टाइग्रे क्षेत्र)।
भारतीय संघवाद
भारतीय संघवाद एक अद्वितीय राजनीतिक ढांचा है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संवैधानिक विभाजन होता है। भारतीय संघवाद की नींव संविधान के विभिन्न भागों और अनुच्छेदों में निहित है। जिसमें संघीय और एकात्मक दोनों विशेषताएँ मौजूद हैं। इसे कभी-कभी “अर्द्ध–संघीय प्रणाली (Quasi-Federal System)” भी कहा जाता है क्योंकि इसमें संघवाद और एकात्मकता के मिश्रित तत्व हैं।
संविधान में संघवाद से संबंधित प्रमुख अनुच्छेद
संविधान का अनुच्छेद | विवरण |
अनुच्छेद 1 | भारत को “राज्यों का संघ (Union of States)” कहा गया है। यह दर्शाता है कि भारत की संघीय संरचना असंगठित राज्यों का संकलन नहीं है। |
अनुच्छेद 2 | नए राज्यों की प्रविष्टि और गठन की प्रक्रिया। |
अनुच्छेद 3 | राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन और नए राज्यों का निर्माण। |
अनुच्छेद 131 | केंद्र और राज्यों के बीच विवाद के निपटान के लिए सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र। |
अनुच्छेद 245-263 | केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण। |
अनुच्छेद 246 | तीन सूचियों (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची) के अनुसार कानून बनाने की शक्ति। |
अनुच्छेद 249 | राष्ट्रीय हित में संसद को राज्य सूची में कानून बनाने की शक्ति। |
अनुच्छेद 256-263 | केंद्र-राज्य संबंध और प्रशासनिक शक्तियों का वितरण। |
अनुच्छेद 280 | वित्त आयोग की स्थापना और कार्य। |
अनुच्छेद 352-360 | आपातकालीन प्रावधान, जिसमें संघीय ढांचे में एकात्मकता का प्रावधान। |
अनुच्छेद 356 | राष्ट्रपति शासन (राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता)। |
अनुच्छेद 368 | संविधान संशोधन प्रक्रिया, जिसमें संघीय ढांचे में परिवर्तन। |
भारतीय संघवाद की विशेषताएँ
- असममित संघवाद (Asymmetrical Federalism); अनुच्छेद 370 (विलुप्त): जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा। अनुच्छेद 371: पूर्वोत्तर राज्यों और अन्य क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान।
- सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism); केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग के लिए अंतर्राज्यीय परिषद (Inter-State Council, अनुच्छेद 263)।
- राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism); वित्तीय संसाधनों का विभाजन और वित्त आयोग (Finance Commission, अनुच्छेद 280)।
- द्विस्तरीय शासन प्रणाली (Two-Tier Government System); भारत में केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वायत्त रूप से कार्य करती हैं।
- शक्तियों का वितरण (Distribution of Powers);अनुच्छेद 246 के तहत विधायी शक्तियों का वितरण तीन सूचियों में किया गया है:
- संघ सूची (Union List): केंद्र सरकार के अधीन (100 विषय)।
- राज्य सूची (State List): राज्य सरकारों के अधीन (61 विषय)।
- समवर्ती सूची (Concurrent List): दोनों के साझा अधिकार क्षेत्र में (52 विषय)।
- आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions);अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपातकाल), 356 (राज्य आपातकाल), और 360 (वित्तीय आपातकाल) के तहत केंद्र सरकार को अतिरिक्त शक्तियाँ मिलती हैं।
भारतीय संघवाद विशेषज्ञों ने अलग–अलग शब्दों से संदर्भित किया है:
- के.सी. व्हीयर (KC Wheare) ने इसे ‘अर्द्ध-संघीय’ (Quasi-federal) कहा।
- ग्रैनविल ऑस्टिन (Granville Austin) ने इसे ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative federalism) कहा, जहाँ राष्ट्रीय अखंडता एवं एकता की आवश्यकता रहती है।
- मॉरिस जोन्स (Morris Jones) ने इसे सौदेबाज़ी शक्ति युक्त संघवाद’ (Bargaining Federalism) के रूप में परिभाषित किया।
- आइवर जेनिंग (Ivor Jenning) ने इसे ‘केंद्रीकरण की प्रवृत्ति युक्त संघवाद’ (Federalism with Centralizing tendency) कहा।
संघवाद और राजनीति
संघीय ढांचे में राज्यों को स्वायत्तता (अलग अधिकार) मिलनी चाहिए, लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियाँ कई बार इसे प्रभावित करती हैं। एक मुख्यमंत्री सिर्फ राज्य का प्रमुख नहीं होता, बल्कि वह अपनी पार्टी का नेता भी होता है। इससे कई बार राज्य की नीतियाँ पार्टी के हिसाब से तय होती हैं, न कि जनता की जरूरतों के अनुसार। जीएसटी (GST) एक अच्छा उदाहरण माना जाता है, जहाँ सभी राज्यों को एक साथ मिलकर निर्णय लेना पड़ता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे सामूहिक फैसले सभी राज्यों के लिए फायदेमंद होते हैं?
क्या किया जा सकता है?
- राज्यों को अधिक स्वायत्तता मिले ताकि वे अपने विकास से जुड़े फैसले खुद ले सकें।
- राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप कम हो ताकि संघीय व्यवस्था सही ढंग से काम करे।
- संघवाद को आर्थिक और प्रशासनिक स्तर पर संतुलित किया जाए ताकि सभी राज्यों को समान अवसर मिलें।
- राष्ट्रवादी भावनाओं और राजकोषीय संघवाद का अगर अच्छी तरह से उपयोग किया जाता है, तो संघवाद के लिए एक उपयुक्त वातावरण बन सकता है।
- समृद्ध राज्यों को गरीब राज्यों के साथ बोझ साझा करने का तरीका खोजना चाहिए।
- अगर मौजूदा तनावों पर बातचीत करनी है, और संघ के साथ सामूहिक लड़ाई जीतनी है, तो राज्यों को राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए समझौते करने होंगे।
अंत: संघवाद केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक चुनौती भी है। इसे सही तरीके से संतुलित करना जरूरी है ताकि देश में सभी राज्यों का विकास समान रूप से हो सके।
संघवाद को सुदृढ़ करने की आवश्यकता
- समाज, संस्कृति, भाषा, और धर्म की विविधता को बनाए रखने और समरूपीकरण के दबाव का सामना करने के लिए।
- राज्यों और उप-राष्ट्रीय इकाइयों की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने और केंद्रीकरण को नियंत्रित करने के लिए।
- स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नीति निर्माण को बढ़ावा देकर सेवा वितरण और प्रशासन की दक्षता में वृद्धि के लिए।
- सभी क्षेत्रों और समुदायों में संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित कर संतुलित विकास को प्रोत्साहित करने के लिए।
- संवाद और परामर्श के माध्यम से सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय और सहयोग को मजबूत करने के लिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय संघवाद एक संवैधानिक संरचना है जो विविधता और एकता के बीच संतुलन स्थापित करती है। वर्तमान समय में, आर्थिक असमानता, भाषाई विवाद और राजनीतिक हस्तक्षेप संघीय ढांचे के लिए चुनौती बने हुए हैं। इसे सुदृढ़ करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच संवाद, सहयोग और संवैधानिक मूल्यों का सम्मान आवश्यक है। संघवाद का उद्देश्य एकता में विविधता (Unity in Diversity) बनाए रखना है, जो भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है।