अनुच्छेद 17 भारतीय संविधान के भाग–III (मौलिक अधिकार) में आता है और यह भारत में सदियों से चली आ रही सामाजिक बुराई अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त करता है। यह न केवल अस्पृश्यता को हर रूप में प्रतिबंधित करता है, बल्कि इसके पालन को कानूनी अपराध भी घोषित करता है। इसका उद्देश्य समानता और सामाजिक न्याय को मजबूत करना है।
अनुच्छेद 17 का प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने और सभी के लिए समान व्यवहार को बढ़ावा देने से संबंधित है। यह एक अधिक न्यायसंगत और सम्मानजनक समाज के निर्माण के लिए कार्य करता है।
- समानता को बढ़ावा: यह जाति के आधार पर भेदभाव करने वाली प्रथाओं को गैरकानूनी घोषित करके समानता के सिद्धांत पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य एक अधिक समावेशी समाज प्रदान करना है जहाँ व्यक्तियों के साथ उनकी जाति के कारण भेदभाव या अनुचित व्यवहार न किया जाए।
- हाशिए पर स्थित समुदायों का सशक्तिकरण: अस्पृश्यता की प्रथा पर अंकुश लगाकर यह हाशिए पर स्थित समुदायों के उत्थान का समर्थन करता है, तथा उन्हें सार्वजनिक स्थानों, सेवाओं और अवसरों तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है, जो पहले उन्हें अस्वीकार कर दिए गए थे।
- जाति–आधारित भेदभाव में कमी: यह जाति से संबंधित गहराई से जड़ें जमाए सामाजिक पदानुक्रमों और पूर्वाग्रहों को चुनौती देता है, तथा जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा में कमी लाने में योगदान देता है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन: समय के साथ, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 सभी व्यक्तियों के लिए उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि के बावजूद सम्मान और गरिमा को प्रोत्साहित करके अधिक समतावादी दृष्टिकोण की ओर सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देने से संबंधित है।
लागू करने के कानूनी प्रावधान
- नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955
- अनुच्छेद 17 को लागू करने के लिए बनाया गया।
- अस्पृश्यता के किसी भी रूप को अपराध घोषित करता है।
- पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा और न्याय दिलाने का प्रावधान करता है।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- SC/ST समुदाय के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए।
- विशेष अदालतों के माध्यम से त्वरित न्याय।
- कठोर सजा का प्रावधान।
न्यायालय के महत्वपूर्ण फैसले
- जय सिंह बनाम भारत संघ (1977) व देवराजैया बनाम बी. पद्मना (1958)
- ‘अस्पृश्यता’ का मतलब सिर्फ छूने से मना करना नहीं है।
- इसका असली मतलब है जाति के आधार पर सामाजिक रोक–टोक।
- सामान्य सामाजिक बहिष्कार (जो जाति से जुड़ा न हो) इसमें शामिल नहीं है।
- पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)
- अगर कोई निजी व्यक्ति भी अनुच्छेद 17 का उल्लंघन करे,
तो सरकार को तुरंत दखल देना पड़ेगा। - सरकार की जिम्मेदारी हमेशा बनी रहती है, चाहे पीड़ित खुद आवाज उठाए या नहीं।
- कर्नाटक राज्य बनाम अप्पा बालू इंगले (1993)
- अदालत ने अस्पृश्यता को ‘आधुनिक दासता’ कहा।
- केस में आरोप था कि किसी को जाति के कारण बोरवेल से पानी लेने से रोका गया।
- इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018) – सबरीमाला केस
- महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर रोक को सामाजिक बहिष्कार माना गया।
- अदालत ने कहा लिंग या उम्र के आधार पर भेदभाव भी अनुच्छेद 17 के खिलाफ है।
सामाजिक महत्व
- समानता के सिद्धांत को मजबूत करता है।
- ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को सार्वजनिक स्थानों और अवसरों में समान अधिकार देता है।
- सामाजिक पूर्वाग्रह और जातिगत हिंसा को चुनौती देता है।
- समाज में सम्मान और बराबरी की सोच विकसित करता है।
चुनौतियाँ
- कुछ क्षेत्रों में आज भी अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव जारी है।
- कानून का सख्ती से पालन और जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता के बिना सामाजिक बदलाव मुश्किल है।
- जातिगत दीवारें तोड़ने के लिए सामुदायिक सहभागिता जरूरी है।
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