in ,

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का महत्व

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान नागरिकों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने तथा राष्ट्र के प्रति उनके सामाजिक और नैतिक दायित्वों को स्पष्ट करने का एक अनूठा प्रयास है। अधिकार और कर्तव्य एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। किसी भी अधिकार के साथ उससे जुड़ा हुआ कोई न कोई कर्तव्य भी होता है। जहां अधिकारों का पालन जरूरी है, वहीं कर्तव्यों की भी समुचित पूर्ति आवश्यक है। घर हो, समाज हो या देश, हर स्थान पर अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का निर्वाह भी समान रुचि और प्रतिबद्धता से होना चाहिए। भारतीय संविधान ने इसी तर्क को समझते हुए भाग IV-A में मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान किया है।मौलिक कर्तव्यों का इतिहास अपेक्षाकृत नया है। इन्हें संविधान में 1976 के 42वें संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया, जो स्वरण सिंह समिति की सिफारिशों पर आधारित था। प्रारंभ में इन मौलिक कर्तव्यों की संख्या दस थी, जिसे 2002 में 86वें संविधान संशोधन के तहत ग्यारह किया गया। इसमें माता-पिता या अभिभावकों की जिम्मेदारी जोड़ी गई कि वे छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा के उचित अवसर प्रदान करें। भारत ने मूलत: जापान के संविधान से मौलिक कर्तव्यों का विचार लिया था, लेकिन भारतीय संदर्भ में इसे नई दिशा दी गई।मौलिक कर्तव्य संविधान में बाध्यकारी रूप से शामिल हैं, परंतु इनके उल्लंघन पर कोई कानूनी दंड प्रायः निर्धारित नहीं है। बावजूद इसके, इनका महत्व न्यायालयों द्वारा कई बार स्वीकार किया गया है। अधिकारों के समान मौलिक कर्तव्यों को निभाना नागरिकों की जिम्मेदारी है, और यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो उसके अधिकारों की मांग न्यायालयों में कमजोर पड़ सकती है। न्यायालय इन कर्तव्यों को अस्पष्ट कानूनी प्रावधानों की व्याख्या करते समय मार्गदर्शक सिद्धांत मानता है और किसी भी कानून की संवैधानिकता जांचते वक्त मौलिक कर्तव्यों को भी विचार में लेता है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A में ग्यारह मौलिक कर्तव्य सूचीबद्ध हैं। इनमें सबसे प्रथम और महत्वपूर्ण कर्तव्य है संविधान का सम्मान करना तथा राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान का सम्मान करना। यह कर्तव्य राष्ट्रीय एकता और नागरिकता के आधारस्तंभ का काम करता है। भारत एक विशाल संघराज्य है, जिसमें विविध भाषाएं, संस्कृतियां, धर्म और जातियां हैं, लेकिन हमारा संविधान, ध्वज और गान इन्हें एक सूत्र में पिरोते हैं। संविधान और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान न केवल असामाजिक गतिविधि है, बल्कि राष्ट्र के प्रति अवमानना भी है। एक सजग नागरिक को न केवल अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, बल्कि ऐसे किसी भी कृत्य को रोकने का प्रयास भी करना चाहिए जो संविधान और राष्ट्र के सम्मान को ठेस पहुंचाए।अगला महत्वपूर्ण कर्तव्य है उन महान आदर्शों को अपनाना और उनके अनुसरण में रहना जिनसे हमारा स्वतंत्रता संग्राम प्रेरित था। हमारे पूर्वजों ने इस देश की आज़ादी के लिए बड़ा बलिदान दिया। यह हमारा कर्तव्य है कि हम न केवल उनके बलिदान को याद रखें, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता, अहिंसा, भाईचारे और विश्वशांति जैसे आदर्शों को भी अपने जीवन में आत्मसात करें। इससे हम राष्ट्र के विभिन्न खंडित स्वरूपों से ऊपर उठकर एकीकृत भारत का निर्माण कर पाएंगे।स्वतंत्रता के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक पर देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा का कर्तव्य भी निहित है। देश की सीमा और संप्रभुता की रक्षा करना एक सर्वोच्च नागरिक दायित्व है। आधुनिक युग में यह जरूरत केवल सेना की नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब भी देश को आवश्यकता हो, हर नागरिक को राष्ट्र सेवा में तत्पर रहना चाहिए। भाईचारे का भाव कायम रखते हुए विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करना भी हमारा दायित्व है। महिलाओं की गरिमा की रक्षा के साथ-साथ उनके प्रति हो रहे अन्याय और अपमानजनक प्रथाओं को समाप्त करना भी इसी भाव का विस्तरण है।भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और संवर्द्धन करना भी मौलिक कर्तव्यों में शामिल है। हमारा सांस्कृतिक धरोहर विश्व की समृद्ध विरासत का हिस्सा है, जिसे संजोकर रखना हर नागरिक का नैतिक दायित्व है। ये धरोहर न केवल भूतकाल के गौरवशाली क्षणों का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने का माध्यम भी हैं। ऐतिहासिक स्मारकों, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक परंपराओं को नुकसान, नष्ट या विकृत होने से बचाना आवश्यक है।

प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसके सुधार की जिम्मेदारी भी प्रत्येक नागरिक पर है। पेड़- पौधों, नदियों, जंगलों और वन्यजीवों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि मानव जीवन का आधार इन्हीं संसाधनों पर निर्भर है। बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षरण ने हमारे अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। अतः स्वच्छता, वृक्षारोपण, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण जैसे कार्यों में सहयोग करने वाला नागरिक देश का सच्चा सम्मान करता है।वैज्ञानिक सोच, मानवता और सुधार की भावना को बढ़ावा देना भी मौलिक कर्तव्य के तहत आता है। विज्ञान और प्रगति की गति को बनाए रखने के लिए हमें जांच-परख और नवाचार के लिए सदैव तत्पर रहना है। साथ ही मानवता की रक्षा और संवेदनशीलता भी विज्ञान के साथ जुड़ी होनी चाहिए, ताकि तकनीकी विकास से मानव जीवन का स्तर बेहतर हो।सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा और हिंसा से परहेज करना भी मूलत: नागरिकों का नियम होना चाहिए। यह देश की समृद्धि और शांति की आधारशिला है कि उसका आम नागरिक हिंसात्मक कार्यों में संलिप्त न हो और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे। हिंसा और तोड़फोड़ न केवल व्यवस्था को बाधित करती है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और विकास को भी रोकती है।व्यक्ति और समाज के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करना राष्ट्र की सफलता की कुंजी है। यह केवल व्यक्तिगत ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी आवश्यक है कि हम अपने कर्तव्यों और दायित्वों को सर्वोत्तम रूप से निभाएं। देश की तरक्की के लिए निरंतर प्रयासरत रहना और उत्कृष्टता का लक्ष्य रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।माता-पिता अथवा अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को उचित शिक्षा के अवसर प्रदान करें। शिक्षित नागरिक ही किसी राष्ट्र के विकास और प्रगति का आधार होते हैं। शिक्षित युवा समाज के हित में बेहतर निर्णय लेने और राष्ट्र की उन्नति में योगदान देने में सक्षम होते हैं।मौलिक कर्तव्यों का नागरिक जीवन में महत्व व्यापक है। ये कर्तव्य नागरिकों को उनकी जिम्मेदारी का आभास कराते हैं, जिससे वे अपने अधिकारों का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय हितों के लिए कार्य करते हैं। यह न केवल देश की एकता और अखंडता को स्थिर करता है, बल्कि सामाजिक अनुशासन, नागरिक जागरूकता और देशभक्ति की भावना भी विकसित करता है। संविधान की रक्षा और उसे मानने वाले नागरिक ही एक सशक्त लोकतंत्र की नींव रखते हैं।न्यायालयों ने भी मौलिक कर्तव्यों को संवैधानिक मामलों के निर्णय में महत्वपूर्ण मान्यता दी है। कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौलिक कर्तव्य और मौलिक अधिकार समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। जहाँ मौलिक अधिकार नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं, वहीं मौलिक कर्तव्य उन्हें राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी याद दिलाते हैं। न्यायपालिका ने अदालती फैसलों में मौलिक कर्तव्यों को कानून की व्याख्या और संविधान की मर्यादा बनाए रखने के लिए सहायक सिद्धांत के रूप में उपयोग किया है।जो नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, वे न केवल अपना कर्तव्य निभाते हैं, बल्कि पूरे समाज एवं राष्ट्र की उन्नति की नींव भी मजबूत करते हैं। यदि प्रत्येक व्यक्ति संप्रभुता, समानता और रक्षा के अपने दायित्वों को समझेगा तथा उनका पालन करेगा, तो देश के विकास में बाधाएं स्वतः ही समाप्त हो जाएंगी। मौलिक कर्तव्यों की अनदेखी से समाज में नैतिक पतन, बिखराव और अव्यवस्था होती है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है। इसलिए, नागरिकों को अपने अधिकारों की तरह ही कर्तव्यों की भी पूरी जानकारी होनी चाहिए।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मौलिक कर्तव्य केवल व्यक्तिगत दायित्व नहीं हैं, बल्कि वे सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी के स्तंभ हैं। उनका उद्देश्य एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जहां सभी नागरिक अपने-अपने क्षेत्रों में श्रेष्ठता का प्रयास करें, दूसरे के अधिकारों का सम्मान करें, और देश की एकता-अखंडता में योगदान दें। यही वह भावना है जो एक बहुलतावादी और लोकतांत्रिक देश को मजबूत बनाती है।अंत में यह कहा जा सकता है कि मौलिक कर्तव्यों का सही और पूर्णतः पालन भारत को विश्व में एक मजबूत, समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण राष्ट्र के रूप में स्थापित करेगा। संविधान ने प्रत्येक नागरिक पर यह जिम्मेदारी डालकर न केवल अधिकार दिए हैं, बल्कि उनसे अपेक्षित कर्तव्यों के बारे में भी जागरूकता बढ़ाई है। यदि हम सब मिलकर अपने कर्तव्यों को निभाएंगे, तो हमारे अधिकार स्वतः सुरक्षित होंगे और हम एकजुट, अनुशासित और प्रगति की ओर अग्रसर देश का निर्माण करेंगे। यह मूलमंत्र तभी सच्चा और सार्थक होगा जब हम अपने दैनिक जीवन में इसे अपनाएं और राष्ट्रीय विकास में भागीदार बनें।

भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों से जुड़े न्यायिक मामलों की जानकारी निम्नलिखित बिंदुओं में दी जा रही है:

  1. एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1983): सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 51A(g) के तहत शिक्षा संस्थानों में प्रति सप्ताह कम से कम एक घंटे पर्यावरण संरक्षण और सुधार पर पढ़ाई अनिवार्य करने का आदेश दिया। साथ ही केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मुफ्त पाठ्य सामग्री वितरित करने और देशभर में स्वच्छता अभियानों का आयोजन करने का निर्देश दिया गया।
  2. एआईआईएमएस छात्र संघ बनाम एआईआईएमएस (2001): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक कर्तव्यों को मौलिक अधिकारों के समान महत्व देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने संस्थागत आरक्षण को आर्टिकल 14 के उल्लंघन के चलते रद्द करते हुए कहा कि मौलिक कर्तव्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
  3. अरुणा रॉय बनाम भारत संघ (2002): राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा चुनौती के समय कोर्ट ने कहा कि समरसता और सभी समुदायों के मूल्यों को बढ़ावा देना संविधान के अनुच्छेद 51A(e) के अनुरूप है। इसलिए यह धार्मिक अध्यापन के विरुद्ध नहीं माना गया।
  4. भारत सरकार बनाम जॉर्ज फिलिप (2007): इस मामले में सरकारी कर्मचारी द्वारा अवकाश अवधि के बाद अनुपस्थिति को अनुच्छेद 51A(j) के तहत अनुशासनहीनता माना गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि कर्मचारियों को उत्कृष्टता की दिशा में अनुशासन बनाए रखना अनिवार्य है।
  5. डॉ. दसारथी बनाम आंध्र प्रदेश (1985): कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह व्यक्तिगत और सामाजिक क्षेत्र में उत्तमता के लिए प्रयासरत रहे ताकि राष्ट्र निरंतर उन्नति करे।
  6. बिजो एमैनुएल बनाम केरल राज्य: तीन बच्चों को स्कूल से निकालने का मामला जब उन्होंने धार्मिक विश्वास के चलते राष्ट्रीय गान नहीं गाया। सुप्रीम कोर्ट ने उनके सम्मान के लिए खड़े होने को अपराध नहीं माना और बच्चों के पक्ष में फैसला दिया।
  7. जावेद बनाम हरियाणा राज्य: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों के साथ मौलिक कर्तव्यों को भी एक साथ पढ़ना चाहिए, क्योंकि वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। मौलिक कर्तव्यों का पालन न होना मौलिक अधिकारों के हनन का कारण बन सकता है।
  8. रामलीला मैदान घटना संबंधी मामला: कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। केवल अधिकारों या केवल कर्तव्यों को महत्व देने से असंतुलन पैदा हो सकता है।
  9. एन. के. बाजपेयी बनाम भारत संघ: कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि संविधान का भाग III (मौलिक अधिकार), भाग IV (राज्य नीति के निर्देशात्मक सिद्धांत), और भाग IV-A (मौलिक कर्तव्य) एक धागे में जुड़े हैं और व्याख्या में सभी का ध्यान रखा जाना चाहिए।
  10. श्री रघुनाथ मिश्रा बनाम भारत संघ: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक कर्तव्यों को केवल कानूनी दंडित करने योग्य नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि सामाजिक दंड द्वारा भी उनका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सरकार को मौलिक कर्तव्यों के पालन के लिए सुधारात्मक कानून और जागरूकता अभियान बनाना चाहिए।
  11. श्री दुर्गा दत्त द्वारा दायर याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मौलिक कर्तव्यों के पालन के लिए नियम और नीति बनाकर नागरिकों के लिए प्रोत्साहन योजनाएं तैयार करने का निर्देश दिया। याचिका में कहा गया कि मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को साथ-साथ देखा जाना चाहिए, क्योंकि कर्तव्यों का उल्लंघन अधिकारों के हनन में परिणत हो सकता है।

What do you think?

पुस्तक समीक्षा : Why The Constitution Matters?

Anthony Giddens: मार्क्स का अध्ययन