भारतीय संसद भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का संरक्षण स्थल है साथ ही इसमें बैठने वाले प्रतिनिधि भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों के सिपाही हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह पूरा ढांचा दलों की व्यक्तिगत राजनीति के कारण चरमरा गया है।
अगर वर्तमान बीते संसद के शीतकालीन सत्र की बात करें तो यह सत्र एक साल से भी ज़्यादा समय में सबसे ज़्यादा अनुत्पादक साबित हुआ।
आंकड़े:
• इस सत्र में लोकसभा में भारी व्यवधान देखने को मिला और 65 घंटे से ज़्यादा समय बरबाद हुआ। शीतकालीन सत्र में निचले सदन ने व्यवधानों के कारण कुल 65 घंटे और 15 मिनट का नुकसान उठाया, जो इस साल के तीनों सत्रों में सबसे ज़्यादा है।आर्थिक मूल्य में इसकी बात करें तो अकेले लोकसभा की कार्यवाही में व्यवधान के कारण करदाताओं का लगभग 97 करोड़ रुपये से अधिक पैसा बर्बाद हो गया।
• संसद का कार्य विभिन्न विषयों पर चर्चा करना है,जिसमें जनता के वास्तविक मुद्दों को उठाने के लिए प्रश्नकाल सबसे महत्वपूर्ण सत्र होता है, लेकिन इस शीतकालीन सत्र में ही राज्यसभा में जहां 19 में से 15 दिन प्रश्नकाल नहीं चला। लोकसभा में 20 में से 12 दिन प्रश्नकाल 10 मिनट से अधिक नहीं चला।
• इसका सीधा अर्थ है कि जनता के रोजगार,स्वास्थ्य,महंगाई,अवसंरचना आदि से जुड़े मूलभूत मुद्दों को उठाने की नौबत तक नहीं आई जो कि संसद के क्षरण को दर्शाता है।
कारण:
• इस व्यवधान के कारणों की चर्चा करें तो संसद की कार्यवाही में अधिकांश अवरोध या तो उन सूचीबद्ध विषयों पर चर्चा से उत्पन्न होते हैं जो विवादास्पद हैं या उन गैर-सूचीबद्ध विषयों पर चर्चा से होता हैं जो सार्वजनिक महत्त्व के हैं।उदाहरण के लिए संसद के पिछले कई सत्रों में अदानी और सेबी को लेकर ,इस सत्र में अंबेडकर, संभल हिंसा जैसे मुद्दों ने व्यवधान में योगदान दिया।
• इन अवरोधों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं किये जा सकने का एक अन्य प्रणालीगत कारण यह है कि लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा अनुशासनात्मक शक्तियों का न्यूनतम उपयोग किया जाता है।
समाधान:
• संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य के सुझावों को संसद में होने वाले इन व्यवधानों को रोकने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।उन्होंने सुझाव दिया था कि सदन में अव्यवस्था पर रोक के लिये सांसदों और विधायकों हेतु आचार संहिता को और कठोर बनाने तथा लागू करने की आवश्यकता है।
• दूसरा सुझाव था कि संसद के कार्य-दिवसों में वृद्धि की जानी चाहिये तथा यूनाइटेड किंगडम जैसी व्यवस्था अपनानी चाहिए।
• यूनाइटेड किंगडम में, जहाँ संसद प्रत्येक वर्ष 100 से अधिक कार्य करती है, विपक्षी दलों को 20 कार्य-दिवस किये जाते हैं जब वे संसद में चर्चा के लिये अपना एजेंडा प्रस्तुत कर सकते हैं। कनाडा में भी विपक्षी दलों के लिये विशिष्ट कार्य-दिवसों की ऐसी ही अवधारणा का प्रयोग किया जा रहा है।
अंत में हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र की सफलता इस बात से निर्धारित की जाती है कि वह विचार-विमर्श और वार्ता का कितना प्रोत्साहन दिया जा रहा है। संसद की कार्यवाही में अवरोध का समाधान संसद को और अधिक सशक्त बनाए जाने में निहित है। महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिये एक मंच के रूप में संसद की भूमिका को और गहन किया जाना चाहिये।