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भारत एवं यूरोप में उदारवाद- एक तुलनात्मक अध्ययन

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

• भारत: उदारवाद 19वीं सदी में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में उभरा। राजा राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने सती प्रथा जैसी कुरीतियों को खत्म करने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पश्चिमी विचारों को भारतीय परंपराओं के साथ जोड़ा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) ने स्वशासन और अधिकारों की मांग की। 1947 के बाद, नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकीकरण पर जोर दिया। 1991 की आर्थिक उदारीकरण नीति ने बाजार को खोला।
• यूरोप: उदारवाद 17वीं-18वीं सदी के प्रबोधन (Enlightenment) से शुरू हुआ। लॉक और मिल जैसे विचारकों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, मुक्त बाजार और सीमित सरकार की वकालत की। इसने फ्रांसीसी क्रांति जैसी घटनाओं को जन्म दिया। 20वीं सदी में उदारवाद दो धाराओं में बंटा: शास्त्रीय (बाजार-केंद्रित) और सामाजिक (कल्याण-केंद्रित)।

फर्क: भारत में उदारवाद औपनिवेशिक दमन और सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ था, जबकि यूरोप में यह औद्योगीकरण और व्यक्तिवाद पर केंद्रित था।

2. मूल सिद्धांत

• भारत: धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक अधिकार विविधता (हिंदू, मुस्लिम, सिख आदि) को जोड़ने के लिए जरूरी हैं। उदारवाद जाति, लिंग और धार्मिक असमानताओं से जूझता है। 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण ने विकास को बढ़ाया, लेकिन असमानता पर सवाल उठे।
• यूरोप: व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकार केंद्रीय हैं। सामाजिक उदारवाद कल्याणकारी राज्य (जैसे स्कैंडिनेविया) को समर्थन देता है, जबकि शास्त्रीय उदारवाद बाजार की वकालत करता है। धर्मनिरपेक्षता कम विवादास्पद है, क्योंकि धार्मिक विविधता कम है।

फर्क: भारत में उदारवाद व्यक्तिगत और सामूहिक (जाति, धर्म) अधिकारों को संतुलित करता है; यूरोप में व्यक्तिगत अधिकारों पर ज्यादा जोर है।

3. राजनीतिक अभिव्यक्ति

• भारत: कोई एक “उदारवादी” पार्टी नहीं है। कांग्रेस (मध्य-वाम) और कुछ क्षेत्रीय दल उदार विचारों को अपनाते हैं। आर्थिक उदारीकरण को सभी स्वीकारते हैं, लेकिन सामाजिक उदारवाद (जैसे अभिव्यक्ति की आजादी, LGBTQ+ अधिकार) को बीजेपी जैसे रूढ़िवादी और पॉपुलिस्ट ताकतों से चुनौती मिलती है।
• यूरोप: उदारवादी दल (जैसे ALDE, यूके के लिबरल डेमोक्रेट्स) स्पष्ट नीतियां चलाते हैं। सामाजिक उदारवाद पश्चिमी यूरोप में मुख्यधारा है (जैसे नीदरलैंड में 2001 से समलैंगिक विवाह), लेकिन पूर्वी यूरोप (पोलैंड, हंगरी) में पॉपुलिज्म इसका विरोध करता है।

फर्क: भारत में उदारवाद बिखरा हुआ और सांस्कृतिक प्रतिरोध का सामना करता है; यूरोप में यह संगठित है, लेकिन क्षेत्रीय चुनौतियां हैं।

4. आर्थिक उदारवाद

• भारत: 1991 के सुधारों ने बाजार खोले, जिससे 2000 के दशक में 7% वार्षिक विकास हुआ। लेकिन असमानता बढ़ी—2023 में ऑक्सफैम ने बताया कि भारत का 1% अमीर 40% संपत्ति रखता है। ग्रामीण गरीबी और बेरोजगारी उदारीकरण पर सवाल उठाती है।
• यूरोप: मुक्त बाजार (EU सिंगल मार्केट) केंद्रीय है। सामाजिक उदारवाद कल्याण (जैसे जर्मनी का सामाजिक सुरक्षा) से संतुलन बनाता है। असमानता कम है—EU का Gini coefficient 30, भारत का 35 (2021)। 2008 के बाद मितव्ययिता (austerity) ने बहस छेड़ी।

फर्क: भारत का आर्थिक उदारवाद नया और कम समावेशी है; यूरोप में कल्याण समर्थन इसे संतुलित करता है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियां

• भारत: उदारवाद जाति, धार्मिक रूढ़िवाद और पितृसत्ता से टकराता है। अभिव्यक्ति की आजादी (जैसे राजद्रोह कानून) और धर्मनिरपेक्षता (जैसे गौरक्षा हिंसा) विवादास्पद हैं। शहरी उदारवादी बदलाव चाहते हैं, लेकिन ग्रामीण मतदाता परंपरा को तरजीह देते हैं—2024 के चुनावों में बीजेपी की सांस्कृतिक अपील दिखी।
• यूरोप: उदारवाद को पारंपरिक बाधाओं से कम, लेकिन आप्रवास, बहुसंस्कृतिवाद और पॉपुलिज्म से चुनौती मिलती है। अभिव्यक्ति (जैसे हेट स्पीच कानून) और धर्मनिरपेक्षता (जैसे फ्रांस का बुर्का प्रतिबंध) अल्पसंख्यक एकीकरण से जुड़े हैं। दक्षिणपंथी दल (जैसे फ्रांस का नेशनल रैली) उदार सहमति को चुनौती देते हैं।

फर्क: भारत में उदारवाद एक विविध, परंपरागत समाज में धीमा बदलाव लाता है; यूरोप की चुनौतियां आधुनिक विविधता और ध्रुवीकरण से हैं।

6. जन समर्थन

• भारत: 2023 के प्यू सर्वे में 64% भारतीयों ने लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को महत्व दिया, लेकिन केवल 43% को संस्थानों पर भरोसा है। उदारवाद शहरों और शिक्षित वर्ग में मजबूत है, लेकिन ग्रामीण और कम आय वर्ग इसे अभिजनवादी मानते हैं।
• यूरोप: उदार मूल्य (जैसे अभिव्यक्ति, समानता) को व्यापक समर्थन है—यूरोबैरोमीटर 2023 में 81% ने लोकतंत्र का समर्थन किया। लेकिन संस्थानों पर भरोसा स्कैंडिनेविया में उच्च (70%) और पूर्वी यूरोप में कम (40%) है।

फर्क: भारत में उदारवाद कम गहरा और पॉपुलिस्ट/परंपरागत विचारों से टकराता है; यूरोप में यह स्थापित है, लेकिन अविश्वास और पॉपुलिज्म इसे कमजोर करते हैं।

सारांश

• भारत: उदारवाद औपनिवेशिक इतिहास, विविधता और असमानता से आकार लेता है। यह लचीला लेकिन बिखरा हुआ है, जो सांस्कृतिक रूढ़िवाद और असमान आर्थिक लाभों से जूझता है।
• यूरोप: उदारवाद परिपक्व, मजबूत संस्थानों और कल्याण प्रणालियों वाला है, लेकिन पॉपुलिज्म और आप्रवास जैसी आधुनिक चुनौतियों का सामना करता है।

मुख्य बिंदु

• शोध से पता चलता है कि 2025 में भारत में उदारवाद वैधता के संकट का सामना कर रहा है, जिसे बाएं और दाएं दोनों से चुनौती दी जा रही है।
• यह संभावना है कि उदारवाद को सुधार की आवश्यकता है, जिसमें परंपरा, आर्थिक समानता, और संस्थानों को मजबूत करना शामिल है।
• सबूत यह दर्शाते हैं कि जनता में उदार लोकतंत्र के प्रति विश्वास कम हो रहा है, जिसमें 85% भारतीय अधिनायकवाद या सैन्य शासन को प्राथमिकता देते हैं।
• विवाद यह है कि कुछ लोग इसे पश्चिमी आयात मानते हैं, जबकि अन्य इसे भारतीय मूल्यों के अनुरूप देखते हैं, जैसे हिंदू धर्म के साथ संगतता।

वर्तमान स्थिति

2025 में, भारत में उदारवाद को बाएं और दाएं दोनों से चुनौती दी जा रही है। बाएं इसे अभिजात्यवादी मानते हैं, जो निगमों को लाभ पहुंचाता है, जबकि दाएं इसे भारतीय परंपरा से कटा हुआ मानते हैं। एक प्यू सर्वेक्षण में, 85% भारतीयों ने अधिनायकवाद या सैन्य शासन को प्राथमिकता दी, जो उदार लोकतंत्र में विश्वास की कमी को दर्शाता है।

सुधार की आवश्यकता

शोध से पता चलता है कि उदारवाद को परंपरा के साथ जोड़ने, आर्थिक समानता सुनिश्चित करने, और संस्थानों को मजबूत करने की आवश्यकता है। शशि थरूर जैसे समर्थक तर्क देते हैं कि उदारवाद हिंदू धर्म के साथ संगत है, जो विविधता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।

ऐतिहासिक संदर्भ

उदारवाद की जड़ें प्राचीन भारतीय मूल्यों में हैं, जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय, जिन्हें राजा राम मोहन राय और बी.आर. अम्बेडकर जैसे विचारकों ने समर्थन दिया।

भारत में 2025 में उदारवाद: एक विस्तृत विश्लेषण

उदारवाद, एक राजनीतिक और नैतिक दर्शन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता, और कानून के शासन पर जोर देता है, जिसमें सीमित सरकार हस्तक्षेप, मुक्त बाजार, और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा शामिल है। भारत और यूरोप में इसके प्रकटीकरण और चुनौतियां भिन्न हैं, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और समकालीन गतिशीलता से आकार लेती हैं। यह विश्लेषण 14 अप्रैल, 2025 तक के हाल के डेटा और विद्वत्तापूर्ण अंतर्दृष्टि पर आधारित है।

ऐतिहासिक विकास

भारत

भारत में उदारवाद औपनिवेशिक युग में उभरा, जिसमें राजा राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने सती प्रथा को खत्म करने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पश्चिमी विचारों को भारतीय परंपराओं के साथ जोड़ा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) ने अधिकारों और स्वशासन की मांग की। 1947 के बाद, नेहरू ने धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ढांचे को आकार दिया, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता पर जोर दिया गया। 1991 के आर्थिक उदारीकरण ने बाजार को खोला, लेकिन असमानता बढ़ी।

यूरोप

यूरोप में उदारवाद प्रबोधन से शुरू हुआ और 19वीं सदी में सुधार आंदोलन बन गया। यह गुलामी को खत्म करने, संवैधानिक सरकारें स्थापित करने, और पूंजीवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण था। ब्रिटेन में लिबरल पार्टी ने 1833 में गुलामी को समाप्त किया, और फ्रांस में तीसरा गणतंत्र 1871 में स्थापित हुआ।

वर्तमान स्थिति और हाल के विकास (2021-2025)

भारत

2025 में, भारत में उदारवाद वैधता के संकट का सामना कर रहा है, जैसा कि The Hindu: India, liberalism and its crisis of legitimacy में उल्लेख किया गया है। वी-डेम इंस्टीट्यूट की 2025 की रिपोर्ट में भारत को उदार लोकतंत्र सूचकांक (LDI) में 100/179 स्थान पर रखा गया, जो इसे ‘चुनावी स्वशासन’ के रूप में वर्गीकृत करती है। विशेष कार्रवाइयों में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को 2019 में रद्द करना, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की खामियों के कारण 19 लाख लोगों को बेघर छोड़ना, और संसद में 28 महत्वपूर्ण विधेयकों को कम चर्चा के साथ पारित करना शामिल है। एक प्यू सर्वेक्षण में, 85% भारतीयों ने अधिनायकवाद या सैन्य शासन को प्राथमिकता दी, जो उदार लोकतंत्र में विश्वास की कमी को दर्शाता है।

शशि थरूर ने The Hindu Lit for Life 2025 में कहा कि उदारवाद और हिंदू धर्म पूरी तरह से संगत हैं, हिंदू धर्म को 21वीं सदी के लिए आदर्श धर्म बताते हुए, जो विविधता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। उन्होंने उल्लेख किया कि भाजपा के वोट शेयर 2014 में 31%, 2019 में 37%, और 2024 में 36% थे, जो हिंदू आबादी (80%) का बहुमत नहीं जीते, हिंदुत्व के लिए बढ़ती स्वीकृति को दर्शाते हुए।

यूरोप

यूरोप में उदारवाद अपेक्षाकृत मजबूत है, विशेष रूप से पश्चिमी यूरोप में, जहां स्वीडन और डेनमार्क जैसे देश उच्च रैंकिंग रखते हैं। हालांकि, पूर्वी यूरोप (जैसे हंगरी, पोलैंड) में पॉपुलिज्म चुनौती देता है। वी-डेम की रिपोर्ट में यूरोप के कई देशों को शीर्ष पर रखा गया, लेकिन जनता का विश्वास कुछ क्षेत्रों में कम है।

चुनौतियां और आलोचनाएं

भारत

बाएं उदारवाद को नवउदारवाद के रूप में देखते हैं, जो अभिजात्यवादी है और आर्थिक अंतर को चौड़ा करता है, निगमों को लाभ पहुंचाता है, और वंचितों को हाशिए पर धकेलता है। दाएं इसे पश्चिमी आयात मानते हैं, जो भारतीय परंपरा और समुदाय से कटा हुआ है, इसे पुराने जमाने का और अभिजात्यवादी मानते हैं। Times of India: The four reasons why Indian liberals are a fast-disappearing species में उल्लेख किया गया कि भारतीय उदारवादियों का प्रभाव कम हो रहा है।

सुधार की आवश्यकता

इस संकट का सामना करने के लिए, उदारवाद को सुधारने की आवश्यकता है, जिसमें शामिल हैं:

1. परंपरा और पहचान के साथ जुड़ना, जनवादी वैकल्पिक विकल्पों का मुकाबला करना।
2. आर्थिक दृष्टिकोण को सुधारना, नि:शुल्क उद्यम को सामाजिक न्याय और कल्याण के साथ संतुलित करना।
3. प्रतिनिधि संस्थाओं को पुनर्जीवित करना, शक्ति के केंद्रीकरण और सार्वजनिक विश्वास के क्षरण का सामना करना।
4. उदारवादियों के बीच सहमति विकसित करना, आंतरिक संघर्षों से बचना।

सारांश और भविष्य

2025 में, भारत में उदारवाद चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन इसके ऐतिहासिक जड़ें मजबूत हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती हैं। सुधारों के माध्यम से, यह संभावना है कि उदारवाद अपनी प्रासंगिकता को पुनः प्राप्त कर सकता है, विशेष रूप से हिंदू धर्म के साथ संगतता को उजागर करते हुए।

मुख्य बिंदुविवरणवर्तमान स्थितिवैधता के संकट में, बाएं और दाएं से आलोचनाएं।जनता का विश्वास85% भारतीय अधिनायकवाद या सैन्य शासन को प्राथमिकता देते हैं (प्यू सर्वेक्षण)।हिंदू धर्म के साथ संगतताशशि थरूर ने 2025 में संगतता और विविधता पर जोर दिया।सुधार की आवश्यकतापरंपरा, आर्थिक समानता, और संस्थानों को मजबूत करना

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